जाने वे राजकुमारियों के बारे में जिन्होंने इतिहास की दिशा ही बदली

भारत का मध्यकालीन इतिहास केवल युद्ध, संघर्ष और धर्म आधारित टकराव तक सीमित नहीं रहा। यह वह दौर भी था जब सत्ता, शांति और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए वैवाहिक संबंधों को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया।

Princesses of Indian History
भारत इतिहास की राजकुमारियां (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar17 Dec 2025 02:30 PM
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बता दें कि इतिहासकारों के अनुसार, इन विवाहों का उद्देश्य युद्ध टालना, राज्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, सत्ता को स्थिर करना और शासकों के बीच भरोसे का रिश्ता बनाना था। इन वैवाहिक गठबंधनों ने न केवल राजपूत–मुगल संबंधों को मजबूत किया, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत की राजनीति पर भी गहरा असर डाला। कई हिंदू राजकुमारियों का विवाह मुस्लिम शासकों से हुआ, जिन्हें आज के नजरिए से देखने पर भले ही चौंकाने वाला माना जाए, लेकिन उस समय ये पूरी तरह राजनीतिक फैसले थे।

जानिए किन-किन हिंदू राजकुमारियों ने मुस्लिम शासकों से विवाह किया

1. आमेर की राजकुमारी हरखा बाई और सम्राट अकबर

1562 ई. में आमेर (जयपुर) के राजा भारमल ने अपनी पुत्री हरखा बाई का विवाह मुगल सम्राट अकबर से किया। यह भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित राजनीतिक विवाह माना जाता है। इसी विवाह से सलीम (जहांगीर) का जन्म हुआ। हरखा बाई को बाद में जोधाबाई के नाम से भी जाना गया।

2. मारवाड़ की राजकुमारी मानीबाई और शहजादा सलीम (जहांगीर)

जोधपुर के राजा उदयसिंह ने अपनी पुत्री मानीबाई का विवाह अकबर के पुत्र सलीम से कराया। मानीबाई को जहांगीर ने ‘शाह बेगम’ की उपाधि दी। यह विवाह राजपूतों की राजनीतिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से हुआ।

3. जोधपुर की राजकुमारी जोधाबाई और जहांगीर

जोधपुर की एक अन्य राजकुमारी, जिन्हें इतिहास में जोधाबाई या जगत-गुसाईं कहा गया, का विवाह भी जहांगीर से हुआ। इन्हीं से मुगल सम्राट शाहजहां का जन्म हुआ, जिससे यह तथ्य सामने आता है कि शाहजहां की माता एक हिंदू राजकुमारी थीं।

4. जैसलमेर की राजकुमारी नाथीबाई और अकबर

1570 ई. में जैसलमेर के शासक रावल हरिराज ने अपनी पुत्री नाथीबाई का विवाह अकबर से किया। इस विवाह के बाद भाटी राजपूतों और मुगलों के संबंध मजबूत हुए और जैसलमेर को राजनीतिक सुरक्षा मिली।

5. जैसलमेर की राजकुमारी और शहजादा सलीम

नाथीबाई के बाद जैसलमेर के शासक भीम की पुत्री का विवाह शहजादा सलीम से हुआ। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में इस विवाह का उल्लेख किया है और उन्हें ‘मल्लिका-ए-जहान’ की उपाधि दी गई।

6. विजयनगर की राजकुमारी और बहमनी सुल्तान फिरोजशाह

दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य के राजा देवराय प्रथम ने युद्ध में पराजय के बाद अपनी पुत्री का विवाह बहमनी सुल्तान फिरोजशाह से किया। दहेज में बांकापुर क्षेत्र दिया गया। इसका उद्देश्य दोनों राज्यों के बीच शांति स्थापित करना था।

7. खेरला की राजकुमारी और फिरोजशाह बहमनी

खेरला राज्य के राजा ने भी अपनी पुत्री का विवाह फिरोजशाह बहमनी से किया। कहा जाता है कि वह सुल्तान की पहली बेगम थीं, हालांकि यह विवाह लंबे समय तक शांति कायम नहीं रख सका।

8. आमेर, बीकानेर और अन्य राजपूत राजकुमारियां

इतिहासकारों के अनुसार, बीकानेर के राजा राय सिंह की पुत्री सहित कई अन्य राजपूत राजकुमारियों का विवाह भी मुगल शासकों से हुआ। इन वैवाहिक संबंधों के बदले राजपूत शासकों को मुगल दरबार में ऊंचे पद और मनसब दिए गए।

राजनीतिक समझदारी का प्रतीक

इतिहासकार मानते हैं कि ये विवाह धार्मिक नहीं, बल्कि पूरी तरह राजनीतिक रणनीति का हिस्सा थे। इनसे यह स्पष्ट होता है कि मध्यकालीन भारत में सत्ता और शांति बनाए रखने के लिए धर्म से ऊपर उठकर निर्णय लिए जाते थे। ये राजकुमारियां अपने-अपने राज्यों की सुरक्षा और भविष्य के लिए इतिहास का अहम हिस्सा बनीं।


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खेती में फसल चक्र क्यों है जरूरी, जानिए वैज्ञानिक कारण

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल चक्र खेती में मिट्टी के स्वास्थ्य और फसल उत्पादन को लंबे समय तक बनाए रखने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है। इसमें अलग-अलग प्रकृति की फसलों को क्रमबद्ध तरीके से उगाया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और कीट-रोगों का प्रकोप कम होता है।

Crop Rotation Farming
फसल चक्र (Crop Rotation) खेती में जादुई सूत्र (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar17 Dec 2025 01:13 PM
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बता दें कि विशेषज्ञ बताते हैं कि फसल चक्र का मुख्य उद्देश्य रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता घटाना, मिट्टी की संरचना सुधारना और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना है। इसका प्रभाव फसल सघनता (Crop Intensity) और फसल विविधीकरण सूचकांक (Crop Diversification Index – CDI) जैसे मानकों से आंका जाता है।

पोषक तत्वों का संतुलन है सबसे अहम

फसल चक्र का पहला सिद्धांत पोषक तत्वों का संतुलन है। फलीदार फसलें जैसे मटर और दालें, राइजोबियम बैक्टीरिया की सहायता से हवा से नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है। इसके बाद गैर-फलीदार फसलें जैसे गेहूं, धान और मक्का उगाने से मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन का सही उपयोग होता है।

गहरी और उथली जड़ों का संतुलन

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गहरी जड़ वाली फसलें (मक्का, सूरजमुखी) मिट्टी के निचले स्तर से पोषक तत्व ग्रहण करती हैं, जबकि उथली जड़ वाली फसलें (गेहूं, सरसों) ऊपरी परत से पोषण लेती हैं। इस बदलाव से मिट्टी की सभी परतों का संतुलित उपयोग होता है।

कीट और रोगों पर नियंत्रण

एक ही फसल को बार-बार उगाने से खास कीट और रोग तेजी से फैलते हैं। फसल चक्र अपनाने से कीटों और रोगों का जीवन चक्र टूटता है, जिससे उनकी संख्या कम होती है और कीटनाशकों का प्रयोग घटता है।

मिट्टी की संरचना और जैविक पदार्थ में सुधार

विभिन्न फसलें मिट्टी में अलग-अलग मात्रा में जैविक पदार्थ (Organic Matter) जोड़ती हैं। इससे मिट्टी की संरचना मजबूत होती है, जलधारण क्षमता बढ़ती है और लंबे समय तक भूमि उपजाऊ बनी रहती है।

किसानों के लिए लाभकारी

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि फसल चक्र अपनाने से

  • उत्पादन लागत घटती है
  • पैदावार में स्थिरता आती है
  • पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिलता है

कुल मिलाकर, फसल चक्र आधुनिक और परंपरागत खेती का संतुलित वैज्ञानिक समाधान है, जिसे अपनाकर किसान मिट्टी की सेहत के साथ-साथ अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।


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भारत सरकार का बड़ा दावा, विकसित भारत बिल को बताया क्रांतिकारी

यह परिणाम आधारित मानदंड तय करेगी, मान्यता एजेंसियों को सूचीबद्ध करेगी और मान्यता से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करेगी। मानक परिषद (Standards Council) शैक्षणिक मानक तय करेगी, पढ़ाई के नतीजे, क्रेडिट ट्रांसफर, छात्र आवाजाही और शिक्षकों के न्यूनतम मानदंड निर्धारित करेगी।

धर्मेंद्र प्रधान
धर्मेंद्र प्रधान
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar16 Dec 2025 06:11 PM
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Developed India Education Bill 2025 : भारत सरकार ने बहुत बड़ा दावा किया है। भारत सरकार का बड़ा दावा यह है कि संसद में पेश किया गया विकसित भारत शिक्षा बिल क्रांतिकारी कदम है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा है कि विकसित भारत शिक्षा बिल के द्वारा भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आ जाएगा। भारत सरकार ने विकसित भारत शिक्षा बिल सोमवार को संसद में पेश किया था। संसद ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति यानि JPC के पास भेज दिया है।

भारत की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाएगा विकसित भारत शिक्षा बिल

आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा संसद में पेश किए गए विकसित भारत शिक्षा बिल में अनेक प्रावधान किए गए हैं। इस विधेयक के तहत उच्च शिक्षा के लिए एक कानूनी आयोग बनाया जाएगा, जो नीति निर्धारण और समन्वय की सर्वोच्च संस्था होगी। यह आयोग सरकार को सलाह देगा, भारत को शिक्षा का वैश्विक केंद्र बनाने पर काम करेगा और भारतीय ज्ञान परंपरा व भाषाओं को उच्च शिक्षा से जोड़ेगा। आयोग में एक अध्यक्ष, वरिष्ठ शिक्षाविद, विशेषज्ञ, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि और एक पूर्णकालिक सदस्य सचिव होंगे। आयोग के तहत तीन स्वतंत्र परिषदें काम करेंगी, ताकि किसी तरह का टकराव न हो। तीनों परिषदों के काम का निर्धारण भी कर दिया गया है।  नियामक परिषद (Regulatory Council) उच्च शिक्षा की निगरानी करेगी। यह संस्थानों के प्रशासन, वित्तीय पारदर्शिता, शिकायत निवारण और शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने का काम करेगी। मान्यता परिषद (Accreditation Council) संस्थानों की मान्यता व्यवस्था देखेगी। यह परिणाम आधारित मानदंड तय करेगी, मान्यता एजेंसियों को सूचीबद्ध करेगी और मान्यता से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करेगी। मानक परिषद (Standards Council) शैक्षणिक मानक तय करेगी, पढ़ाई के नतीजे, क्रेडिट ट्रांसफर, छात्र आवाजाही और शिक्षकों के न्यूनतम मानदंड निर्धारित करेगी।

उच्च शिक्षा केन्द्र में लागू होगा कानून

भारत सरकार द्वारा पेश किया गया विकसित भारत शिक्षा बिल जब कानून बन जाएगा तो उच्च शिक्षा संस्थानों पर लागू किया जाएगा।  यह कानून केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों, डीम्ड यूनिवर्सिटी, IIT, NIT जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, कॉलेजों, ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों तथा 'इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस' पर लागू होगा। हालांकि मेडिकल, कानून, फार्मेसी, नर्सिंग और संबद्ध स्वास्थ्य पाठ्यक्रम इस कानून के सीधे दायरे में नहीं होंगे, लेकिन उन्हें भी नए शैक्षणिक मानकों का पालन करना होगा। बिल में स्वायत्तता की बात की गई है, लेकिन केंद्र सरकार को कई शक्तियां भी दी गई हैं। केंद्र सरकार नीतिगत निर्देश दे सकेगी, प्रमुख पदों पर नियुक्ति करेगी, विदेशी विश्वविद्यालयों को मंजूरी देगी और जरूरत पडऩे पर आयोग या परिषदों को तय समय के लिए भंग भी कर सकेगी। सभी संस्थाएं सालाना रिपोर्ट, संसद की निगरानी और CAG ऑडिट के तहत जवाबदेह होंगी। Developed India Education Bill 2025