जिनके लिए बने कानून वें ही बता रहे हैं धोखा

ये चारों श्रम संहिताएं इन सभी पर लागू होंगी। सरकार को नए कानून में अस्थायी कामगार को स्थायी कामगार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन उसने किया यह है कि उन्हें स्थायी तौर पर अस्थायी कामगार ही बने रहने का प्रावधान कर दिया है।

नए श्रम कानूनों के खिलाफ आवाज उठाते श्रमिक, सवाल एक ही– फायदे किसके लिए?
नए श्रम कानूनों के खिलाफ आवाज उठाते श्रमिक, सवाल एक ही– फायदे किसके लिए?
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar25 Nov 2025 11:59 AM
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भारत सरकार ने देश के 50 करोड़ श्रमिकों के लिए नए श्रम कानून लागू किए हैं। यह विडम्बना है कि जिन लोगों के लिए नए श्रम कानून बनाए गए हैं वें श्रमिक ही श्रमिक कानूनों को अपने साथ धोखा बता रहे हैं। ऐसे में देश में बने नए श्रम कानूनों का पूरी ईमानदारी के साथ विश्लेषण होना जरूरी है। सरकार को भी चाहिए कि सरकार अपने स्तर से इन कानूनों के विषय में ज्यादातर श्रमिकों की राय को जानकर उसी के हिसाब से श्रम कानूनों में बदलाव करे। यहां हम नए श्रम कानूनों का विश्लेषण अपने पाठकों के लिए कर रहे हैं।

श्रमिक संगठनों ने एक सुर में खारिज कर दिए नए श्रम कानून

हाल ही में केंद्र सरकार ने पुराने श्रम कानूनों की जगह चार नई श्रम संहिताएं लागू करने की घोषणा की है, जिनमें वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व कार्य शर्त संहिता, 2020 शामिल हैं। सरकार इसे आजादी के बाद मजदूरों के लिए सबसे बड़े और प्रगतिशील सुधारों में से एक मान रही है। सरकार का दावा है कि इससे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी मिलेगी और हर पांच साल में इसकी समीक्षा की जाएगी। यही नहीं, श्रमिकों को समय पर वेतन की गारंटी दी जाएगी तथा महिला व पुरुषों को समान वेतन मिलेगा। लेकिन अधिकतर मजदूर संगठनों का मानना है कि नई श्रम संहिता श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। वास्तव में सरकार ने सुधार के नाम पर जो किया है, वह सुधार नहीं है, बल्कि कमजोर श्रमिकों को एक तरह से मालिकों (नियोक्ताओं) की दया पर छोड़ दिया है। हमारे देश में संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों को मिलाकर 50 करोड़ से अधिक कामगार काम करते हैं। इनमें से लगभग 90 फीसदी असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। ये चारों श्रम संहिताएं इन सभी पर लागू होंगी। सरकार को नए कानून में अस्थायी कामगार को स्थायी कामगार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन उसने किया यह है कि उन्हें स्थायी तौर पर अस्थायी कामगार ही बने रहने का प्रावधान कर दिया है।

इस उदाहरण से समझ सकते हैं पूरा माजरा

श्रम कानूनों का पूरा माजरा इस एक उदाहरण से समझिए कि सरकार रेलवे में स्थायी व अस्थायी तौर पर कामगारों को नियुक्त करती है। रेलवे में कुछ वर्षों तक अस्थायी तौर पर काम करने के बाद उन्हें स्थायी करने का प्रावधान था, लेकिन नए कानून में उन कामगारों को स्थायी करने का प्रावधान ही खत्म कर दिया सरकार का यह भी दावा है कि इसमें पहली बार सीमित समय के लिए ठेके पर काम करने वाले गिग वर्कर्स को भी शामिल किया गया है और उनके हित में कई प्रावधान लाए गए हैं। यह अच्छी बात है कि सरकार ने गिग वर्कर्स की सुविधा का प्रावधान किया है, लेकिन उन्हें वे सुविधाएं तो उपभोक्ता देंगे। उसमें सरकार की भूमिका क्या है? यह ठीक है कि महिला कामगारों को भी अब समान काम के लिए समान वेतन देने का प्रावधान किया गया है, लेकिन नए कानून के तहत अब रात में भी महिलाओं से काम कराया जा सकेगा, जो कि पहले संभव नहीं था। हालांकि, इसके लिए नियोक्ताओं को महिलाओं से सहमति लेनी होगी। इसके अलावा, सरकार ने फैक्टरी एक्ट कानून में भी बदलाव किया है। जैसे-पहले किसी फैक्टरी में 15-20 कर्मचारी काम करते थे, तो उस पर फैक्टरी एक्ट लागू होता था, लेकिन अब उसकी संख्या बढ़ाकर सी कर दी गई है। ऐसे में, बहुत-सी छोटी फैक्टरियां उसके दायरे से बाहर हो जाएंगी, ऐसे में 'श्रमिकों का अधिकार कहां रहेगा? मौजूदा कानून के तहत, 'यदि किसी फैक्टरी में 100 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं, तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी होती थी, जबकि नए कोड में यह संख्या 300 कर दी गई है, यानी यदि किसी फैक्टरी में 300 से कम कामगार काम कर रहे हों, तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसलिए भले ही इसें सरकार श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर लागू कर रही है, लेकिन नए कानून मजदूरों के दूरगामी हित में नहीं हैं। यदि सरकार का ऐसा दावा है, तो उसे मजदूर संगठनों से बात करनी चाहिए और पूछना चाहिए कि आपकी आपत्ति कहां पर है। इसके अलावा, देश में जितने भी मजदूर संगठन हैं, वे संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का तो कोई संगठन है ही नहीं। ऐसे में, सरकार को संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों के श्रमिक प्रतिनिधियों के साथ बात करनी चाहिए। सर्वाधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और सबसे ज्यादा कठिनाई भी इन्हें ही होती है।

उद्योग जगत के फायदे के लिए बनाए गए हैं नए श्रम कानून

ज्यादातर श्रमिक नेताओं का स्पष्ट मत है कि नए श्रम कानून असल में उद्योग जगत को फायदा पहुंचाने के लिए है, श्रमिक वर्ग को इससे बहुत फायदा नहीं होने वाला है। आउटसोर्सिंग किए जाने वाले श्रमिकों के लिए कोई ज्यादा सुविधाजनक प्रावधान नहीं किया गया है।. मसलन, विभिन्न दफ्तरों, कोठियों, अपार्टमेंटों में ठेकेदारों के माध्यम से ठेके पर सिक्योरिटी गार्ड रखे जाते हैं। उनसे जितने वेतन पर हस्ताक्षर करवाया जाता है, उतना वेतन वास्तव में उन्हें नहीं मिलता है। ऐसे श्रमिकों के हित के लिए नए कानून में क्या प्रावधान हैं। असल में नए श्रम, कानून से नियोक्ताओं के लिए श्रमिकों को नौकरी से निकालना तो आसान हो ही जाएगा, मालिकों के लिए फैक्टरी को बंद करना भी काफी आंसान हो जाएगा। इससे श्रमिकों के लिए मजदूर संगठन बनाना व हड़ताल करना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए सरकार को पहले देश, के संगठित एवं असंगठित मजदूर प्रतिनिधियों से चर्चा करके राष्ट्रीय विमर्श चलाना चाहिए, ताकि देश की भावनाओं का समावेश हो सके। 


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जीवन में सच्चा सुख तथा आनंद लेने का सबसे बेहतरीन तरीका

हर इंसान अपने जीवन में सुख तथा आनंद लेना चाहता है। सुख तथा आनंद लेने के अनेक तरीके भी आजमाए जाते हैं। देखने में आता है कि अनेक तरीके अपनाकर कुछ समय के लिए सुख तथा आनंद मिल जाता है। थोड़े से समय के लिए मिले सुख तथा आनंद के बाद फिर नए सिरे से सुख तथा आनंद की खोज शुरू होती है।

जीवन को खुशहाल बनाने के तरीके
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locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar07 Nov 2025 11:35 AM
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हर इंसान अपने जीवन में सुख तथा आनंद लेना चाहता है। सुख तथा आनंद लेने के अनेक तरीके भी आजमाए जाते हैं। देखने में आता है कि अनेक तरीके अपनाकर कुछ समय के लिए सुख तथा आनंद मिल जाता है। थोड़े से समय के लिए मिले सुख तथा आनंद के बाद फिर नए सिरे से सुख तथा आनंद की खोज शुरू होती है। क्या यह अच्छा हो कि आपको वास्तव में सच्चा सुख तथा आंनद मिल जाए। जीवन में सच्चा सुख तथा सच्चा आनंद लेने के लिए हम आपको बहुत ही आसान तरीका बता रहे हैं।

यह छोटी सी घटना पढक़र आप भी प्राप्त कर सकते हैं सच्चा सुख तथा आनंद

यह घटना प्रीति श्रीवास्तव नामक एक महिला के साथ घटी है। प्रीति बताती हैं कि- मेरे पास एक स्कूटी थी, बहुत दिनो से स्कूटी का उपयोग नही होने से, विचार आया Olx पे बेच दें, कीमत Rs 30000/- डाल दी। बहुत आफर आये 15 से 28 हजार तक। एक का 29000 का प्रस्ताव आया। उसे भी waiting में रखा। कल सुबह एक काल आया, उसने कहा-"मैडम नमस्कार , आपकी गाड़ी का add देखा। पसंद भी आयी है।परंतु 30000 रुपए जमा करने का बहुत प्रयत्न किया, बड़ी मुश्किल से 24000 ही इकठ्ठा कर पाया हूँ। बेटा इंजिनियरिंग के अंतिम वर्ष में है। बहुत मेहनत किया है उसने। कभी पैदल, कभी साईकल, कभी बस, कभी किसी के साथ....

सोचा अंतिम वर्ष तो वह अपनी गाड़ी से ही जाये। आप कृपया स्कूटी मुझे ही दीजिएगा....

नयी गाड़ी मेरी हैसियत से बहुत ज्यादा है। थोड़ा समय दीजिए। मै पैसों का इंतजाम करता हूँ। मोबाइल बेच कर कुछ रुपये मिलेंगें। परंतु हाथ जोड़कर कर निवेदन है मैडम जी, मुझे ही दीजिएगा।" मैने औपचारिकता में मात्र Ok बोलकर फोन रख दिया। कुछ देर बाद मेरे मन मे कुछ विचार आये। वापस काल बैक किया और कहा "आप अपना मोबाइल मत बेचिए, कल सुबह केवल 24 हजार लेकर आईए, गाड़ी आप ही ले जाईए वह भी मात्र 24 में ही"। मेरे पास 29 हजार का प्रस्ताव होने पर भी 24 में किसी अपरिचित व्यक्ति को मै स्कूटी देने जा रही थी। सोचा उस परिवार में आज कितना आनंद हुआ होगा। कल उनके घर स्कूटी आएगी और मुझे ज्यादा नुकसान भी नहीं हो रहा था। ईश्वर ने बहुत दिया है और सबसे बडा धन समाधान है जो कूट-कूटकर दिया है।

अगली सुबह उसने कम से कम 6-7 बार फोन किया?

"मैडम कितने बजे आऊ, आपका समय तो नही खराब होगा। पक्का लेने आऊं, बेटे को लेकर या अकेले आऊ। पर साहब गाडी किसी को और नही दीजिएगा।" वह 500, 200, 100, 50 के नोटों का संग्रह लेकर आया, मगर साथ में बेटा नहीं एक लड़की थी । नोट देखकर ऐसा लगा, पता नही कहां कहां से निकाल कर या मांग कर या इकठ्ठा कर यह पैसे लाया है।

वह लड़की एकदम आतुरता और कृतज्ञता से स्कूटी को देख रही थी । मैने उसे दोनो चाबियां दी, हेलमेट और कागज दिये। लड़की गाड़ी पर विनम्रतापूर्वक हाथ फेर रही थी । फिर स्कूटी पर बैठ गयी , उसकी खुशी देखते ही बनती थी । उसने पैसे गिनने कहा, मैने कहा आप गिनकर ही लाये है, कोई दिक्कत नहीं। जब जाने लगे, तो मैने उन्हे 500 का एक नोट वापस करते हुए कहा , घर जाते समय मिठाई लेते जाइएगा।मेरी सोंच यह थी कि कही तेल के पैसे है या नही। और यदि है तो मिठाई और तेल दोनो इसमें आ जायेंगे आँखों में कृतज्ञता के आंसु लिये उसने मुझसे अनुमति मांगी , मैं ने जाते हुए उससे पूछा कि ये बिटिया कौन है ?

तो उसने उत्तर दिया कि यही तो मेरा बेटा है?.

उसने विदा ली और अपनी स्कूटी ले गया। जाते समय बहुत ही आतुरता और विनम्रता से झुककर अभिवादन किया। बार बार आभार व्यक्त किया ।दोस्तों, जीवन में कुछ व्यवहार करते समय नफा नुकसान नहीं देखना चाहिए। आपके माध्यम से किए गए प्रयास से जब दूसरों को सच्चा सुख तथा आनंद मिलता है तो आपको भी सच्चा सुख तथा आनंद अपने आप ही मिल जाता है।


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अरबों की ठगी करने वाले बिल्डरों के लिए चाहिए कठोर कानून

ठगी करके अरबों रुपय कमाने के बाद ठग बिल्डर अपने आपको तथा अपनी कम्पनी को दिवालिया घोषित कर देते हैं। दिवालिया घोषित हो जाने के बाद ठग किस्म के बिल्डर जीवन भर मौज-मस्ती करते रहते हैं। इन ठग बिल्डरों के हाथों ठगे जाने वाले आम नागरिक तथा बैंक परेशान घूमते रहते हैं।

 धोखाधड़ी
फ्रॉड बिल्डर्स की धोखाधड़ी
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar06 Nov 2025 08:55 PM
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उत्तर प्रदेश के नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा से लेकर देश भर में ठगी करने वाले हजारों बिल्डर मौज कर रहे हैं। ठगी करके अरबों रुपय कमाने के बाद ठग बिल्डर अपने आपको तथा अपनी कम्पनी को दिवालिया घोषित कर देते हैं। दिवालिया घोषित हो जाने के बाद ठग किस्म के बिल्डर जीवन भर मौज-मस्ती करते रहते हैं। इन ठग बिल्डरों के हाथों ठगे जाने वाले आम नागरिक तथा बैंक परेशान घूमते रहते हैं। केन्द्र सरकार ने ठगी करने वाले बिल्डरों से निपटने के लिए एक नई पहल की है।

केन्द्र सरकार की पहल स्वागत योग्य है

यह स्वागतयोग्य है कि ED अर्थात प्रवर्तन निदेशालय ईसाल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड के साथ मिलकर ऐसी व्यवस्था करने जा रहा है, जिससे दीवालिया बिल्डरों और उनके प्रवर्तकों की जब्त की गई संपत्तियों से फ्लैट खरीदारों और बैंकों को राहत दी जा सके। ED की ओर से इस संदर्भ में जो मानक संचालन प्रक्रिया बनाई जा रही है, उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि उसके दायरे में बिल्डरों की जब्त संपत्तियां ही आएंगी। अच्छा हो कि इस प्रक्रिया के दायरे में वे दीवालिया कंपनियां और उनके प्रवर्तक भी आएं, जो बैंकों या बाजार से पैसा लेकर किसी भी तरह की धोखाधड़ी के आरोपित हैं। ऐसे आरोपितों की, बड़ी संख्या है। इनमें वे घोटालेबाज भी शामिल हैं, जो अपने कारोबार को विस्तार देने के नाम पर बैंकों से बड़ा लोन लेकर उसे हड़प गए। आम लोगों और बैंकों से पैसा लेकर उसे हजम कर जाने वालों की संपत्तियों को जब्त कर लेना इसलिए पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इतने मात्र से पीडि़त पक्षों को कोई लाभ नहीं मिलता। दीवालिया कंपनियों और कारोबारियों की जब्त संपत्ति को लेकर जो वैधानिक कार्रवाई शुरू की जाती है, वह आमतौर पर लंबी खिंचती है। इस दौरान पीडि़त पक्ष परेशान होते रहते हैं, क्योंकि अभी नियम यह है कि मामले का निपटारा होने तक जब्त संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता। इसका बुरा असर बैंकों, निवेशकों और आम लोगों पर पड़ता है। इसका कोई मतलब नहीं कि घोटालेबाजों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तो शुरू हो जाए, लेकिन उनकी हजारों करोड़ रुपये की जब्त संपत्ति अनुप्रयुक्त पड़ी रहे। 

पीड़ि खरीददारों को जल्दी मिले इंसाफ

केन्द्र सरकार के वर्तमान प्रयास से भी ज्यादा जरूरी यह है कि ठगी करने वाले बिल्डरों के कारण ठगी का शिकार बने नागरिकों को जल्दी से जल्दी इंसाफ मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। न्याय का तकाजा यह कहता है कि घपले-घोटाले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के साथ ही पीडि़तों को यथाशीघ्र राहत देने की भी कोई व्यवस्था हो। बैंक तो तब भी घोटाले में डूबी रकम वापस पाने की प्रतीक्षा कर सकते हैं, लेकिन आम लोग ऐसा नहीं कर सकते। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बड़ी संख्या में ऐसे बिल्डर हैं, जिन्होंने लाखों लोगों को उनके घर का सपना दिखाकर उनके साथ ठगी की। इनमें से अनेक बिल्डरों ने फ्लैट खरीदारों के साथ बैंकों को भी ठगा। अच्छा होगा कि केंद्र सरकार अपनी विभिन्न एजेंसियों के बीच ऐसा समन्वय कायम करे, जिससे बिल्डरों, के साथ-साथ अन्य दीवालिया कंपनियों के मामलों में फंसे अरबों रुपये की वसूली का रास्ता खुले। इसी के साथ ऐसे भी उपाय करने होंगे, जिससे जानबूझकर दीवालिया होने के तौर-तरीकों पर लगाम लगे। कई मामलों में यह देखने में आया है कि घोटालेबाज दीवालिया होने और इस कारण अपनी संपत्ति की जब्ती के बाद भी पहले की तरह ठाठ से रहते हैं। एक समस्या यह भी है कि ऐसे लोगों के मामलों का निपटारा होने में बहुत अधिक समय लगता है।

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