ओशो की मौत साधारण नहीं बल्कि हत्या है

ओशो को लेकर सबसे बड़ी भ्रान्ति यह है कि ओशो एक sex गुरु थे। बात यहीं पर समाप्त नहीं होती। ओशो की मौत को लेकर भी एक बड़ा रहस्य मौजूद है। ओशो को जानने वाले दवा करते है कि मौत कोई साधारण मौत नहीं थी , बल्कि धीमा जहर देकर ओशो की हत्या की गई थी।

चर्चित धर्मगुरु ओशो
चर्चित धर्मगुरु ओशो
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar29 Dec 2025 04:54 PM
bookmark

Osho : ओशो 20 वीं शताब्दी के सबसे चर्चित धर्मगुरु रहे है। ओशो की मौत को 35 वर्ष से अधिक का समय बीत चूका है। कोई व्यक्ति अपनी मौत के 35 वर्ष बाद भी उतनी ही चर्चा में बना रहे जितनी चर्चा में वह जीवित रहते हुए हुई थी,तो इसे उस व्यक्ति का आकर्षण ही कहा जा सकता है। ओशो के भक्तों,ओशो के अनुयायी हो अथवा ओशो के विरोधी हो ओशो के आकर्षण से कोई बच नहीं पाया है। ओशो को लेकर सबसे बड़ी भ्रान्ति यह है कि ओशो एक sex गुरु थे। बात यहीं पर समाप्त नहीं होती। ओशो की मौत को लेकर भी एक बड़ा रहस्य मौजूद है। ओशो को जानने वाले दवा करते है कि मौत कोई साधारण मौत नहीं थी , बल्कि धीमा जहर देकर ओशो की हत्या की गई थी। यहाँ हम आपको ओशो के जीवन के महत्वपूर्ण पक्ष से परिचित कराने का प्रयास कर रहे है।  

ओशो चेतना की क्रांति अथवा विवादों की धुरी

ओशो भारतीय दर्शन और आधुनिक चेतना-विमर्श का ऐसा नाम हैं, जो 35 साल बाद भी उतनी ही तीखी बहस का केंद्र है जितना अपने दौर में थे। उनके समर्थक उन्हें जड़ता तोड़ने वाला निर्भीक विचारक मानते रहे, जबकि आलोचक उनकी जीवनशैली और प्रयोगों को लेकर लगातार सवाल उठाते रहे। ओशो अक्सर कहते थे कि इंसान धरती पर बस मेहमान है। ओशो के अनुसार मनुष्य पृथ्वी पर ठहरने नहीं, गुजरने के लिए आता है। लेकिन उनकी अपनी यात्रा भी उसी कथन की तरह जितनी बेपरवाह दिखती है, उतनी ही परतदार, बहसों से भरी और कई रहस्यों से घिरी रही। 11 दिसंबर 1939 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा गांव में जैन परिवार में जन्मे ओशो का देहांत 19 जनवरी 1990 को पुणे में हुआ. मगर कहानी वहीं खत्म नहीं हुई। 

चंद्रमोहन जैन से ओशो तक का सफर 

आचार्य रजनीश जिन्हें दुनिया आज ओशो के नाम से पहचानती है उनके बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन था। कहा जाता है कि शुरुआती वर्षों में उनका कुछ समय नानी के घर भी बीता और वहीं से उनके स्वभाव में वह अलग तरह की अकेली आजादी झलकने लगी, जो आगे चलकर उनकी सोच की पहचान भी बनी। समय के साथ साथ आचार्य रजनीश के नाम भी बदले और पहचान भी। 1960 के दशक में वे आचार्य रजनीश कहलाए, फिर उनके अनुयायियों ने उन्हें भगवान रजनीश के रूप में देखना शुरू कर दिया। लेकिन 1989 के आसपास दुनिया ने उन्हें सबसे अधिक ओशो नाम से जाना। ओशो शब्द को लेकर कई व्याख्याएं मिलती हैं कहीं इसे समुद्र में विलीन हो जाने जैसे अर्थ से जोड़ा जाता है, तो कहीं इसे भीतर की गहराई और विस्तार का प्रतीक माना जाता है। यही वजह रही कि उनके आश्रम, ध्यान केंद्र और संस्थान भी धीरे-धीरे इसी एक नाम ओशो के साथ पहचाने जाने लगे।

लेक्चरर से आध्यात्मिक मंच तक का सफर 

ओशो ने अपनी पेशेवर यात्रा की शुरुआत दर्शन (फिलॉसफी) के लेक्चरर के रूप में की, लेकिन जल्द ही क्लासरूम की दीवारें उनके लिए छोटी पड़ गईं। उनके प्रवचन तेज, बेबाक और सीधे चोट करने वाले थे। यही कारण था कि ओशो जितनी तेजी से लोगों के बीच चर्चित हुए, उतनी ही तेजी से विवादों के घेरे में भी आ गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1970 के आसपास वे मुंबई पहुंचे और वहीं से नव-संन्यास की अवधारणा के जरिए अपने शिष्यों का एक नया संसार खड़ा किया जो परंपरा से टकराता भी था और उसे चुनौती भी देता था। फिर 1974 में पुणे के कोरेगांव पार्क में उनका ध्यान-आधारित केंद्र/आश्रम स्थापित हुआ, जिसने देखते ही देखते भारत ही नहीं, विदेशों तक से आने वाले साधकों और जिज्ञासुओं को अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया।

लग्जरी लाइफस्टाइल पर भी हुई थी बहस

ओशो की जीवनशैली को लेकर चर्चा हमेशा तेज रही। उनके पहनावे, घड़ियों और लग्जरी पसंद को लेकर समर्थक इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता बताते थे , जबकि आलोचक इसे अध्यात्म के विरुद्ध मानते थे। कई रिपोर्ट्स में यह दावे भी सामने आते रहे कि शिष्यों से मिले उपहारों में रोल्स रॉयस जैसी कारें शामिल थीं हालांकि उनकी संख्या को लेकर अलग-अलग आंकड़े बताए जाते हैं। मगर इतना तय है कि यह प्रसंग ओशो की छवि से लंबे समय तक चिपक गया और विरोधियों के लिए उन्हें घेरने का बड़ा हथियार बनता रहा। इन्ही विवादों और टकरावों के बीच ओशो 1980 के आसपास अमेरिका पहुंचे। ओरेगॉन में उनके अनुयायियों ने विशाल इलाके में एक अनोखा कम्यून बसाया, जिसे रजनीशपुरम के नाम से जाना गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक वहां रहने से लेकर सुरक्षा, परिवहन, रेस्टोरेंट और सार्वजनिक सुविधाओं तक एक छोटे शहर जैसी पूरी व्यवस्था खड़ी कर दी गई थी। यही वह दौर था जब ओशो के प्रयोग और बयान बार-बार सुर्खियों में आए और उनके पक्ष-विपक्ष की बहस पहले से भी ज्यादा तेज हो गई।

कैसे हुआ रजनीशपुरम का पतन?

ओरेगॉन का यह कम्यून आगे चलकर अमेरिकी प्रशासन की कड़ी निगरानी में आ गया। रजनीशपुरम से जुड़े एक बहुचर्चित बायोटेरर/फूड फ़ूड पॉइजनिंग  प्रकरण में ओशो की सेक्रेटरी आनंद शीला को सजा मिलने के बाद माहौल और सख्त हो गया। इसके बाद इमिग्रेशन समेत अन्य आरोपों के तहत ओशो की गिरफ्तारी और पूछताछ की खबरें भी सामने आती रहीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ समय जेल में रहने के बाद परिस्थितियां ऐसी बनीं कि ओशो को अमेरिका छोड़ना पड़ा और इसी के साथ रजनीशपुरम की अलग दुनिया भी धीरे-धीरे बिखरने लगी। इसी दौर में कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा भी किया गया कि दुनिया के करीब 21 देशों ने ओशो के प्रवेश पर पाबंदी जैसी सख्ती की थी, हालांकि इन दावों के आंकड़ों और समय-सीमा को लेकर समय-समय पर बहस भी होती रही है।

रहस्यमयी क्यों कहलाती है आखिरी यात्रा?

1985 के आसपास ओशो भारत लौट आए और लौटते ही उनकी यात्रा एक बार फिर सुर्खियों सवालों और अटकलों के बीच आ खड़ी हुई। कुछ रिपोर्ट्स में नेपाल जाने-आने की चर्चाएं भी आती हैं, लेकिन कुल मिलाकर भारत वापसी के करीब पाँच साल बाद, 58 वर्ष की उम्र में पुणे में उनका निधन हो गया। यहीं से ओशो की कहानी का सबसे संवेदनशील और विवादित अध्याय शुरू होता है। एक तरफ ऐसे दावे उभरे कि अमेरिका में उन्हें थेलियम जैसे स्लो-पॉइजन दिए जाने की आशंका थी और खुद ओशो ने भी अपने भीतर जहर जैसे लक्षण महसूस होने की बात कही थी। दूसरी ओर, कुछ लोगों ने संस्था, संपत्ति और अंदरूनी खींचतान को भी शक की वजह बताया। सच क्या था यह आज भी साफ नहीं, लेकिन इतना तय है कि ओशो के जाने के बाद भी उनकी मृत्यु पर उठे सवाल उनकी चर्चा को और गहरा कर गए।

‘Who Killed Osho’ और वसीयत विवाद

वरिष्ठ पत्रकार अभय वैद्य की किताब “Who Killed Osho” का जिक्र आते ही ओशो की मृत्यु से जुड़ी बहस फिर तेज़ हो जाती है। इस किताब में मौत के हालात, इलाज की प्रक्रिया, पोस्टमॉर्टम न होने, अंतिम संस्कार जल्दी कर दिए जाने और वसीयत जैसे पहलुओं पर सवाल उठाए गए हैं । कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक ओशो की वसीयत को लेकर विवाद आगे चलकर बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां दस्तावेज़ की प्रामाणिकता पर अलग-अलग सवाल खड़े होते रहे। परिवार की तरफ से भी इसे पूरी तरह स्वाभाविक मृत्यु मानने पर संदेह जताए जाने की चर्चाएं सामने आती रही हैं।

ओशो आज भी क्यों चर्चा में हैं?

आज सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म के दौर में ओशो के वीडियो-प्रवचन एक बार फिर बड़े पैमाने पर सुने और साझा किए जा रहे हैं। कोई उन्हें जिंदगी की दिशा बदल देने वाली बातें बताता है, तो कोई उनके विचारों को खतरनाक हद तक उलझाने वाला करार देता है। शायद यही ओशो की कहानी का सबसे बड़ा सच भी है जैसे उनके विचार किसी एक निष्कर्ष में नहीं बंधते, वैसे ही उनकी जिंदगी और उनकी मौत भी आज तक किसी फैसले पर नहीं, बल्कि एक लगातार चलती बहस के रूप में मौजूद है। Osho

संबंधित खबरें

अगली खबर पढ़ें

ओशो को Sex गुरू कहने वाले ओशो को नहीं जानते

ओशो तो वास्तव में जीवन के उस सच्चे रहस्य को उद्घाटित करते हैं जिस रहस्य को दुनिया के तमाम महापुरूष पूरी तरह से उद्घाटित नहीं कर पाए थे। ओशो ने आसान भाषा तथा अपने तर्कों के द्वारा जीवन के परम सत्य को प्राप्त करने का मार्ग बताने का बड़ा काम किया है।

ओशो
ओशो दर्शन
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar29 Dec 2025 02:15 PM
bookmark

Osho : ओशो (Osho) एक Sex गुरू थे। ओशो Sex की बात करके धर्म भ्रष्ट करने का काम करते रहे। ओशो धर्म तथा अध्यात्म में Sex को लाने वाले धर्म गुरू रहे हैं। ऐसे अनेक सवाल ओशो के ऊपर उठाए जाते हैं। क्या वास्तव में ओशो Sex गुरू थे? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने ओशो के अनेक अनुयायियों के साथ लम्बी बातचीत की है। इस बातचीत तथा रिसर्च के दौरान हमें ओशो के जीवन पर आधारित एक प्रमाणिक वीडियो मिला है। इस वीडियो को सुनकर यह स्पष्ट होता है कि वास्तव में ओशो को Sex गुरू कहने वाले लोग दरअसल ओशो को जानते ही नहीं हैं।

क्या वास्तव में ओशो Sex गुरू थे

हाल ही में Deepcast-5 नामक यूट्यूब चैनल ने ओशो के प्रसिद्ध शिष्य समर्थ गुरू उर्फ सिद्धार्थ औलिया का एक लम्बा इंटरव्यू प्रसारित किया है। ओशो के शिष्य समर्थ गरू उर्फ सिद्धार्थ ओलिया ‘‘समर्थ गुरूधारा’’ (Samarthgurudhara) के नाम से ओशो के द्वारा दिए गए ज्ञान को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। यूट्यूब पर प्रसारित इस वीडियो में पूरे प्रमाण तथा तथ्यों के साथ यह साबित किया गया है कि ओशो के साथ Sex गुरू का टैग जोडऩा सरासर गलत है। ओशो तो वास्तव में जीवन के उस सच्चे रहस्य को उद्घाटित करते हैं जिस रहस्य को दुनिया के तमाम महापुरूष पूरी तरह से उद्घाटित नहीं कर पाए थे। ओशो ने आसान भाषा तथा अपने तर्कों के द्वारा जीवन के परम सत्य को प्राप्त करने का मार्ग बताने का बड़ा काम किया है।

ओशो का असली नाम चंद्र मोहन जैन था

आपको बता दें कि भगवान रजनीश के नाम से चर्चित रहे ओशो का असली नाम चंद्र मोहन जैन था, ओशो 20वीं सदी के सबसे चर्चित आध्यात्मिक गुरुओं में से एक रहे हैं। उनके बारे में आज भी यह धारणा फैली हुई है कि वह “Sex Guru” थे — यानी ऐसा गुरु जिन्होंने Sex को ही आध्यात्मिकता का केंद्र माना। Samarthgurudhara ने इंटरव्यू में स्पष्ट किया कि यह धारणा गलतफहमी और घटित मिथकों पर आधारित है, न कि उनके वास्तविक विचारों पर वीडियो के अनुसार, Osho ने सेक्स को कभी सतही इच्छाओं के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। बल्कि उन्होंने इसे मानव ऊर्जा का एक रूप बताया — जिसे समझकर और उसे नियंत्रित करके व्यक्ति गहरे ध्यान और समाधि की ओर बढ़ सकता है। उनके अनुसार, “संभोग से समाधि की ओर” (Sexual Energy से Spiritual Awareness तक) का मार्ग है, न कि केवल यौन सुख का प्रचार। उनकी यह सोच पारंपरिक धार्मिक दृष्टिकोणों से बिलकुल अलग थी, क्योंकि उन्होंने सेक्स के विषय को एक ऊर्जा रूप में देखा, न कि केवल सामाजिक या नैतिक सीमा में बांधा गए व्यवहार के रूप में। 

Osho की आध्यात्मिक शिक्षाएँ और जीवन दर्शन

Osho वास्तविकता में ध्यान (Meditation), जागरूकता (Awareness) और व्यक्ति की आंतरिक स्वतंत्रता पर जोर देते थे। वे मानते थे कि व्यक्ति की इच्छाओं को दबाने से हम वास्तविकता से पीछे हटते हैं; बल्कि उन्हें समझकर उनसे ऊपर उठना चाहिए। उनकी शिक्षाओं में ध्यान के विभिन्न रूप थे, जिनका उद्देश्य था व्यक्ति की मानसिक सीमाओं को तोड़ना और उसे असली आत्म-अनुभूति तक पहुंचाना। ओशो की मीडिया में प्रस्तुत की गई छवियाँ — खासकर उनकी बोल्ड टिप्पणियाँ और शारीरिक मानव स्वाभाव पर खुले विचारों ने वर्षों तक लोगों में यह भ्रम फैलाया कि वे व्यक्ति को मात्र यौन क्रिया तक सीमित मानते थे। इस इंटरव्यू ने इस झूठे आरोप को तोड़ते हुए बताया कि यह उनके सिखाए आध्यात्मिक संदेश का विकृत रूप है।

Osho की सच्ची पहचान को जानना जरूरी है

यूटयूब पर प्रसारित इंटरव्यू से यह स्पष्ट होता है कि: ओशो कभी केवल ‘Sex Guru’ नहीं थे; वे एक विचारक, आध्यात्मिक चिंतक और ध्यान के प्रसिद्ध गुरु थे। उनका लक्ष्य लोगों को मन की सीमाओं से परे ले जाना था न कि सिर्फ यौन विचारधारा पर ध्यान केंद्रित करना। जो लोग आज “Sex Guru” का लेबल लगाते हैं, वे ओशो के पूरे दर्शन को नहीं समझ पाए हैं। इस रिसर्च के आधार पर स्पष्ट कहा जा सकता है कि Osho जैसे व्यक्तित्व और उनकी शिक्षाएँ आज भी विवादों और विमर्शों का केंद्र बनी हुई हैं। इस इंटरव्यू ने उन मिथकों और गलत धारणाओं को चुनौती दी है, जिन पर सालों से आधारित सोच कायम थी। चेतना मंच के पाठकों के लिए यह कहानी यह याद दिलाती है कि किसी भी महान व्यक्तित्व को केवल एक पहलू से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए — बल्कि उनके जीवन के व्यापक संदर्भ, दर्शन और सूक्ष्म विचारों को समझना महत्वपूर्ण है।

संभोग से समाधि की ओर तो बस ओशो का एक इशारा है

यूटयूब पर प्रसारित ओशो के शिष्य समर्थ गुरू उर्फ सिद्धार्थ ओलिया के इंटरव्यू में बताया गया है कि ओशो के प्रवचनों का संकलन करके 600 से भी अधिक पुस्तकें प्रका​शित की गई हैं। उन्होंने बताया कि ओशो ने 9 हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं। संभोग से समाधि की ओर तो ओशो की छोटी सी प्रवचन माला का हिस्सा है। इंटरव्यू में समर्थ गुरू ने बताया कि काम यानि Sex की उर्जा ही जीवन का आधार है। Sex की उर्जा को अधोगामी बनाने की बजाय उधो गामी बनाकर मानव जीवन का सम्पूर्ण रूपांतरण करके परम सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ओशो की संभोग से समाधि की ओर पुस्तक में इसी विषय पर पूरी बातचीत की गई है। Osho

संबंधित खबरें

अगली खबर पढ़ें

मेरे पहले प्यार को मिला सबका प्यार

नोएडा शहर से प्रकाशित होने वाले लोकप्रिय समाचार-पत्र चेतना मंच का 27वां स्थापना दिवस उस समय और भी खास हो गया जब चेतना मंच का 28 पेज का स्थापना दिवस विशेषांक लाखों पाठकों के हाथों में पहुंचा। चेतना मंच के इस विशेषांक के पहले पन्ने पर एक विशेष संपादकीय लेख प्रकाशित किया गया।

धूमधाम के साथ मनाया गया  चेतना मंच का 27वां स्थापना दिवस
धूमधाम के साथ मनाया गया चेतना मंच का 27वां स्थापना दिवस
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar29 Dec 2025 01:03 PM
bookmark

27th Foundation Day of Chetna Manch : हाल ही में 21 दिसंबर 2025 को चेतना मंच का 27वां स्थापना दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया। चेतना मंच के स्थापना दिवस के अवसर पर चेतना मंच के नोएडा कार्यालय में हवन-पूजन तथा भंडारे का आयोजन किया गया। नोएडा शहर से प्रकाशित होने वाले लोकप्रिय समाचार-पत्र चेतना मंच का 27वां स्थापना दिवस उस समय और भी खास हो गया जब चेतना मंच का 28 पेज का स्थापना दिवस विशेषांक लाखों पाठकों के हाथों में पहुंचा। चेतना मंच के इस विशेषांक के पहले पन्ने पर एक विशेष संपादकीय लेख प्रकाशित किया गया।

संपादकीय लेख को मिला पाठकों को भरपूर प्यार

चेतना मंच के स्थापना दिवस के अवसर पर प्रकाशित विशेष संपादकीय लेख का शीर्षक बहुत अनूठा था। इस संपादकीय पेज का शीर्षक था-‘‘मेरा पहला प्यार”।  मेरा पहला प्यार शीर्षक से प्रकाशित चेतना मंच के संपादकीय लेख को पांच लाख से अधिक पाठकों ने पढ़ा है। इस संपादकीय लेख को पढ़नेे वाले पाठक लगातार इस विषय में अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे हैं। ज्यादातर पाठकों ने ‘‘मेरा पहला प्यार” शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय लेख की खूब तारीफ की है। चेतना मंच की पूरी टीम पाठकों के इस प्यार से अभिभूत हुई है। चेतना मंच न्यूज पोर्टल www.chetnamanch.com के पाठकों को यह संपादकीय लेख पढ़वाने के मकसद से यहां उस संपादकीय लेख को ज्यों का त्यों प्रकाशित किया जा रहा है।

मेरा पहला प्यार

इस हैडिंग (शीर्षक) को पढक़र कृपया यह न समझें कि मैं किसी रूमानी प्रसंग की बात कर रहा हूँ। आप यह बिल्कुल भी ना समझें कि अमुक कक्षा में पढ़ते हुए किसी से प्रेम हो गया, उसकी हर अदा दिलकश लगने लगी, सामने आते ही मंदिर की घंटियाँ बज उठीं, दिल धडक़ना भूल गया या सर्दियों की गुनगुनी धूप-सा सुकून मिलने लगा। नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। क्योंकि मैं तो उस प्रकृति-प्रेमी संवेदना का व्यक्ति हूँ जो यह सोच रखता है कि :“छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया,


बाले तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूं लोचन।“

दरअसल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक छोटे से गाँव में जन्मे व्यक्ति को प्रकृति की मृदु छाया का आनंद लेने का अवकाश कहाँ था? इस गाँव में गन्ने की खेती ने भले ही लोगों के जीवन में मिठास घोली हो, लेकिन किसानों का स्वयं का जीवन अत्यंत कष्टसाध्य और दुर्वह था। गाँव, गली, खेत-खलिहान, झोपड़पट्टियाँ हर ओर शोषण, पीड़ा और मौन फैला हुआ था। इन्हीं परिस्थितियों में एक जज़्बा जन्मा। वह जज़्बा यह था कि गाँव, किसान, मज़दूर, शोषित-दमित और वंचित वर्ग की पीड़ा को समाज और सत्ता के सामने निर्भीकता से रखना जरूरी है। इसी उत्कट भावना से आज से 27 वर्ष पूर्व, आज ही के दिन 21 दिसंबर 1998 को आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र  ‘‘चेतना मंच’’ का जन्म हुआ। लेकिन जन्म देना कभी आसान नहीं होता। मैंने तथा चेतना मंच की पूरी टीम ने भी चेतना मंच नामक इस रचना को आकार देने में गहरी प्रसव पीड़ा सही है। जैसे एक माँ शिशु का मुख देखते ही सारी पीड़ा भूल जाती है उसके हृदय में अथाह, नि:स्वार्थ प्रेम उमड़ पड़ता है वैसे ही मुझे भी अपनी इस रचना ‘‘चेतना मंच” से गहरा प्रेम हो गया। साथ ही प्रेम हो गया चेतना मंच के उन लाखों पाठकों से जिन्होंने चेतना मंच को अपना भरपूर प्यार दिया।  मेरे प्रिय पाठकों, अब आप समझ ही गए होंगे कि मेरा पहला प्यार  ‘‘चेतना मंच” समाचार-पत्र तथा चेतना मंच के पाठक हैं। दिन-प्रतिदिन ‘‘चेतना मंच”  का प्रकाशन करते हुए यह अनुभूति होती है कि मैं अत्यंत सौभाग्यशाली हूँ कि मेरा पहला प्यार हमेशा मेरे साथ है। चेतना मंच के माध्यम से सच को सच कहने का जो रंग मुझ पर चढ़ा है, वह कभी फीका नहीं पड़ेगा। मैं जीवन भर इसी शिद्दत के साथ इस पहले प्यार के पीछे चलता रहूँगा। ठीक उसी प्रकार कि मानो कोई सपना साकार हो गया हो, मानो आसमान मेरी मुट्ठी में आ गया हो। चेतना मंच की यह यात्रा केवल समाचार देने की नहीं है, बल्कि सच की खोज और सच से आपको रूबरू कराने की है कदम दर कदम। आज के इंटरनेट और ऑनलाइन प्रकाशनों के युग में इस प्रेम को निभाना आसान नहीं है। किन्तु प्रेम निभाना कब आसान रहा है? क्योंकि प्रेम तो वही है। 

“आग का दरिया है और डूब के जाना है।“

इसी संकल्प के साथ, चार वर्ष पूर्व चेतना मंच का ऑनलाइन संस्करण www.chetnamanch.com आरंभ किया गया। आप सुधी पाठकों ने चेतना मंच समाचार पत्र की तरह से ही चेतना मंच के न्यूज पोर्टल को भरपूर प्यार से नवाजा है। चेतना मंच के पाठकों ने चेतना मंच को जो अपार स्नेह और विश्वास दिया है, उसके लिए मैं हृदय से प्रत्येक पाठक का बारम्बार आभार व्यक्त करता हूँ। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि चेतना मंच आगे भी सच का सजग प्रहरी बना रहेगा तथा शोषित, पीडि़त, निर्बल वर्ग का सच्चा साथी और सहयोगी बना रहेगा। 27 वर्षों की यह यात्रा केवल समय की नहीं, बल्कि संघर्ष, विश्वास और सच के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की यात्रा है और यह सफर यूँ ही निरंतर चलता रहेगा :-

मंजिलें क्या हैं, रास्तों से पूछो।

चलते-चलते कारवां बन जाते हैं।।- 27th Foundation Day of Chetna Manch


संबंधित खबरें