RSS प्रमुख मोहन भागवत ने राम मंदिर को लेकर कही बड़ी बात, बताया राष्ट्र निर्माण का वक्त

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Ram Mandir Ayodhya
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 11:28 AM
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Ram Mandir Ayodhya : अयोध्या में चल रहे श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि यह वक्त राष्ट्र निर्माण का वक्त है। उन्होंने देश की जनता (हिन्दू, मुस्लिम, सिख व इसाई समेत सभी धर्म व जाति के लोगों) से अपील की है कि आपसी कड़वाहट, विवाद और संघर्ष को समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अकारण विवाद को लेकर जो पक्ष-विपक्ष खड़ा हुआ है, उसे समाप्त किया जाना चाहिए। अयोध्या की पहचान संघर्ष मुक्त जगह के तौर पर होनी चाहिए।

Ram Mandir Ayodhya

दरअसल, हम आपको बता दें कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने राम मंदिर के उदघाटन से पूर्व एक लेख लिखा है। यह लेख पांचजन्य में प्रकाशित हुआ है। पाठकों के लिए हम इस लेख को हूबहू प्रकाशित कर रहे हैं।

हमारे भारत का इतिहास पिछले लगभग डेढ़ हजार वर्षों से आक्रांताओं से निरंतर संघर्ष का इतिहास है। आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना और कभी-कभी (सिकंदर जैसे आक्रमण) अपना राज्य स्थापित करने के लिए होता था। परंतु इस्लाम के नाम पर पश्चिम से हुए आक्रमण यह समाज का पूर्ण विनाश और अलगाव ही लेकर आए। देश समाज को हतोत्साहित करने के लिए उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करना अनिवार्य था, इसलिए विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में मंदिरों को भी नष्ट कर दिया। ऐसा उन्होंने एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था ताकि भारतीय स्थायी रूप से कमजोर हो जाएँ और वे उन पर अबाधित शासन कर सकें।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर का विध्वंस भी इसी मनोभाव से, इसी उद्देश्य से किया गया था। आक्रमणकारियों की यह नीति केवल अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए थी।

भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, परन्तु विश्व के शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के लिए आक्रामक होकर ऐसे कुकृत्य किये हैं। परंतु इसका भारत पर उनकी अपेक्षानुसार वैसा परिणाम नहीं हुआ जिसकी आशा वे लगा बैठे थे। इसके विपरीत भारत में समाज की आस्था निष्ठा और मनोबल कभी कम नहीं हुआ, समाज झुका नहीं, उनका प्रतिरोध का जो संघर्ष था वह चलता रहा। इस कारण जन्मस्थान बार-बार पर अपने आधिपत्य में कर, वहां मंदिर बनाने का निरंतर प्रयास किया गया। उसके लिए अनेक युद्ध, संघर्ष और बलिदान हुए। और राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदुओं के मन में बना रहा।

आपसी विचार-विनिमय

1857 में विदेशी अर्थात ब्रिटिश शक्ति के विरुद्ध युद्ध योजनाएं बनाई जाने लगी तो उसमें हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर उनके विरुद्ध लड़ने की तैयारी दर्शाई और तब उनमें आपसी विचार-विनिमय हुआ। और उस समय गौ–हत्या बंदी और श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति के मुद्दे पर सुलह हो जायेगी, ऐसी स्थिति निर्माण हुई। बहादुर शाह जफर ने अपने घोषणापत्र में गौहत्या पर प्रतिबंध भी शामिल किया। इसलिए सभी समाज एक साथ मिलकर लड़े। उस युद्ध में भारतीयों ने वीरता दिखाई लेकिन दुर्भाग्य से यह युद्ध विफल रहा, और भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली, ब्रिटिश शासन अबाधित रहा, परन्तु राम मंदिर के लिए संघर्ष नहीं रुका।

अंग्रेज़ों की हिंदू मुसलमानों की “फूट डालो और राज करो” की नीति के अनुसार, जो पहले से चली आ रही थी और इस देश की प्रकृति के अनुसार अधिक से अधिक सख्त होती गई। एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने संघर्ष के नायकों को अयोध्या में फाँसी दे दी और राम जन्मभूमि की मुक्ति का प्रश्न वहीं का वहीं रह गया। राम मंदिर के लिए संघर्ष जारी रहा।

1947 में देश को स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब सर्वसम्मति से सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया तभी ऐसे मंदिरों की चर्चा शुरू हुई। राम जन्मभूमि की मुक्ति के संबंध में ऐसी सभी सर्वसम्मति पर विचार किया जा सकता था, परंतु राजनीति की दिशा बदल गयी। भेदभाव और तुष्टीकरण जैसे स्वार्थी राजनीति के रूप प्रचलित होने लगे और इसलिए प्रश्न ऐसे ही बना रहा। सरकारों ने इस मुद्दे पर हिंदू समाज की इच्छा और मन की बात पर विचार ही नहीं किया। इसके विपरीत, उन्होंने समाज द्वारा की गई पहल को उध्वस्त करने का प्रयास किया। स्वतन्त्रता पूर्व से ही इससे संबंधित चली आ रही कानूनी लड़ाई निरंतर चलती रही। राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए जन आंदोलन 1980 के दशक में शुरू हुआ और तीस वर्षों तक जारी रहा।

1986 में अदालत के आदेश

वर्ष 1949 में राम जन्मभूमि पर भगवान श्री रामचन्द्र की मूर्ति का प्राकट्य हुआ। 1986 में अदालत के आदेश से मंदिर का ताला खोल दिया गया। आगामी काल में अनेक अभियानों एवं कारसेवा के माध्यम से हिन्दू समाज का सतत संघर्ष जारी रहा। 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला स्पष्ट रूप से समाज के सामने आया। जल्द से जल्द अंतिम निर्णय के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने के लिए आगे भी आग्रह जारी रखना पड़ा। 9 नवंबर 2019 में 134 वर्षों के कानूनी संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सत्य और तथ्यों को परखने के बाद संतुलित निर्णय दिया। दोनों पक्षों की भावनाओं और तथ्यों पर भी विचार इस निर्णय में किया गया था। कोर्ट में सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद यह निर्णय सुनाया गया है। इस निर्णय के अनुसार मंदिर का निर्माण के लिए एक न्यासी मंडल की स्थापना की गई। मंदिर का भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को हुआ और अब पौष शुक्ल द्वादशी युगाब्द 5125, तदनुसार 22 जनवरी 2024 को श्री रामलला की मूर्ति स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया है।

पक्ष-विपक्ष खड़ा हुआ

धार्मिक दृष्टि से श्री राम बहुसंख्यक समाज के आराध्य देव हैं और श्री रामचन्द्र का जीवन आज भी संपूर्ण समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का आदर्श है । इसलिए अब अकारण विवाद को लेकर जो पक्ष-विपक्ष खड़ा हुआ है, उसे ख़त्म कर देना चाहिए। इस बीच में उत्पन्न हुई कड़वाहट भी समाप्त होनी चाहिए। समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह अवश्य देखना चाहिए कि विवाद पूर्णतः समाप्त हो जाये। अयोध्या का अर्थ है ‘जहाँ युद्ध न हो’, ‘संघर्ष से मुक्त स्थान’ वह नगर ऐसा है। संपूर्ण देश में इस निमित्त मन में अयोध्या का पुनर्निर्माण आज की आवश्यकता है और हम सभी का कर्तव्य भी है।

अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण का अवसर अर्थात राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह आधुनिक भारतीय समाज द्वारा भारत के आचरण के मर्यादा की जीवनदृष्टि की स्वीकृति है । मंदिर में श्रीराम की पूजा ‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं’ की पद्धती से और साथ ही राम के दर्शन को मन मंदिर में स्थापित कर उसके प्रकाश में आदर्श आचरण अपनाकर भगवान श्री राम की पूजा करनी है क्योंकि “शिवो भूत्वा शिवं भजेत् रामो भूत्वा रामं भजेत्” को ही सच्ची पूजा कहा गया है।

इस दृष्टि से विचार करें तो भारतीय संस्कृति के सामाजिक स्वरूप के अनुसार

मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्।

आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पंडितः।

इस तरह हमें भी श्री राम के मार्ग पर चलने होगा।

जीवन में सत्यनिष्ठा, बल और पराक्रम के साथ क्षमा, विनयशीलता और नम्रता, सबके साथ व्यवहार में नम्रता, हृदय की सौम्यता और कर्तव्य पालन में स्वयं के प्रति कठोरता इत्यादि, श्री राम के गुणों का अनुकरण हर किसी को अपने जीवन में और अपने परिवार में सभी के जीवन में लाने का प्रयत्न ईमानदारी, लगन और मेहनत से करना होगा।

साथ ही, अपने राष्ट्रीय जीवन को देखते हुए सामाजिक जीवन में भी अनुशासन बनाना होगा। हम जानते हैं कि श्री राम-लक्ष्मण ने उसी अनुशासन के बल पर अपना 14 वर्ष का वनवास और शक्तिशाली रावण के साथ सफल संघर्ष पूरा किया था। श्री राम के चरित्र में प्रतिबिंबित न्याय और करुणा, सद्भाव, निष्पक्षता, सामाजिक गुण, एक बार फिर समाज में व्याप्त करना, शोषण रहित समान न्याय पर आधारित, शक्ति के साथ-साथ करुणा से संपन्न एक पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना, यही श्रीराम की पूजा होगी ।

अहंकार, स्वार्थ और भेदभाव के कारण यह विश्व विनाश के उन्माद में है और अपने ऊपर अनंत विपत्तियाँ ला रहा है। सद्भाव, एकता, प्रगति और शांति का मार्ग दिखाने वाले जगदाभिराम भारतवर्ष के पुनर्निर्माण का सर्व-कल्याणकारी और ‘सर्वेषाम् अविरोधी’ अभियान का प्रारंभ, श्री रामलला के राम जन्मभूमि में प्रवेश और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा से होने वाला है। हम उस अभियान के सक्रिय कार्यान्वयनकर्ता हैं। हम सभी ने 22 जनवरी के भक्तिमय उत्सव में मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ-साथ भारत और इससे पूरे विश्व के पुनर्निर्माण को पूर्तता में लाने का संकल्प लिया है। इस भावना को अंतर्मन में स्थापित करते हुए अग्रसर हो …

जय सिया राम।

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शत्रुओं के लिए अभेद्य थी राम नगरी , "अद्भुत अयोध्या" किताब से खुले कई रहस्य

शत्रुओं के लिए अभेद्य थी राम नगरी , "अद्भुत अयोध्या" किताब से खुले कई रहस्य
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calendar29 Nov 2025 08:12 PM
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Ancient Ayodhya of Lord Ram : प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या, जिसके बारे में हम सभी बचपन से सुनते और पढ़ते आए हैं। जिसमें अयोध्या नगरी को बहुत ही सुंदर और भव्य बताया गया है। लेकिन कई बार हमारे मन में यह सवाल भी आया है कि आखिर जैसी अयोध्या के बारे में हमने सुना है क्या सच में सतयुग के रामायण काल में भी वह वैसी ही दिखती थी? तो इसका जवाब आपको मिलेगा लेखिका नीना राय की हाल ही में लिखी पुस्तक "अद्भुत अयोध्या प्रभु श्रीराम की दिव्य नगरी" में, जिसे उन्होंने बाल्मिकी रामयाण को आधार बनाकर लिखा है।

किसने और कब की अयोध्या की स्थापना ?

राम की नगरी अयोध्या की स्थापना हजारों वर्ष पूर्व सतयुग में मनु मानवेंद्र के हाथों की गई थी। अयोध्या को एक राजधानी के तौर पर बसाया गया था। जहां के राजा थे महाराज दशरथ, जिनके साम्राज्य के अधीन कई राज्य आते थे। महाराज्य दशरथ हर 10 साल में अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा छोड़ते थे। और वह घोड़ा जिस-जिस राज्य की भूमि पर जाता वहां के राजा दशरथ, का आधिपत्य स्वीकार कर लेते थे। और जो न मानते उन्हें अयोध्या से युद्ध लड़ना पड़ता। इस महान नगरी अयोध्य के शत्रु भी कम नहीं थे, पुस्तक में बताया गया है कि अयोध्या पर कई बार 3 से 4 राज्य एक साथ मिल कर हमला करते थे। शत्रुओं के हमलों से राज्य की रक्षा करने के लिए अयोध्या राजधानी की इस तरह संरचना की गई थी, कि शत्रु आसानी से उसे भेद नहीं सकता था। जब अयोध्या नगरी का निर्माण हुआ तो वह बेहद सुंदर और मनमोहक थी। जिसपर कब्जा करना हर राज्य का सपना था। इस बात को देखते हुए अयोध्या को इतनी कुशलता के साथ बनवाया गया था कि उस पर इंसान तो क्या कोई  राक्षस, दानव या असुर भी आक्रमण न कर सके।

कैसे हुआ था अयोध्या का निर्माण?

अद्भूत अयोध्या पुस्तक में लिखा है कि जब अयोध्या नगरी का निर्माण हो रहा था, तो क्षत्रिया दृष्टिकोण से वास्तुशिल्प तैयार किया गया था। ताकि इस पर कोई हमला न कर सकें। इसके अलावा उन्होंने राज्य के निर्माण के लिए वास्तु शास्त्र का भी ध्यान रखा था। अयोध्या के लिए स्थान का चुनाव भी वास्तु को देखकर किया गया था। जैसे राज्य के मुख को उत्तर दिश की ओर रखा गया। क्योंकि माना जाता है कि अगर किसी भी घर या राज्य का मुख उत्तर दिशा की ओर हो तो, कभी भी धन, धर्म और पुश्तैनी जायदाद की कमी नहीं होती। इसके अलावा राज्य के पास पानी के स्त्रोत के होने का भी विशेष रूप से ध्यान रखा गया था। इसी वजह से अयोध्या नगरी का निर्माण सरयू नदी के पास हुआ। राज्य के पैटर्न को भी वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था।

परिंदा भी पर नहीं मार सकता था अयोध्या में

अयोध्या को शत्रुओं से बचाने के लिए महल की प्राचीर पर शताकणों को रखा गया था। जिसे अधुनिक समय की मिसाइल कह सकते हैं, जो दूर से ही शत्रुओं पर वार कर सकती थी। महल के आस-पास घना वन था ताकि शत्रु आसानी से महल तक न पहुंच सके। और महल से पहले बड़े-बड़े गड्डे और जल कुंड थे ताकि शत्रु सेना के हाथी या घोड़े महल में प्रवेश न कर सकें। सतयुग की अयोध्या का यह डिजाइन अपने आप में ही निराला था। जिसकी नकल हमें बाद के साम्राज्यों में भी दिखाई देती है।

कैसी दिखती थी अयोध्या नगरी ?

पुस्तक में दी गई जानकारी के अनुसार अयोध्या के निर्माण के समय बने ज्यादातर घरों पर सोना लगा हुआ था। वहां हर प्रकार के फलों के पेड़, खेत, सुंदर बंगीचे, अलग-अलग तरह के पशु-पक्षी भी मौजूद थे। राजपरिवार के सदस्यों के महलों की शान ही निराली थी। रानी कैकई के महल को उनके पसंद के अनुरूप सजाया गया था। जिसमें दीवारों पर कई चित्र उकेरे गए थे। उन्हें संगीत सुनने और पक्षियों का भी बहुत शौक था। इस बात को ध्यान में रखते हुए महाराज दशरथ ने उनके महल का निर्माण करवाया था। रानी कैकई के महल को भव्य बनाने के लिए उनकी दीवारों पर सुदंर चित्र बनवाएं गए थे। इसके साथ ही महल में  सितार, वीणा जैसे कई वाद्य यंत्र भी मौजूद थे। इसके अलावा वहां  सुंदर बंगीचे भी थे, जहां कई तरह के पक्षी रखे गए थे। जिनकी अवाजों से उनका महल हमेश गूंजता रहता था।

कैसा दिखता था श्रीराम का भव्य महल ?

अद्भुत अयोध्या प्रभू श्रीराम की दिव्य नगरी पुस्तक के अनुसार प्रभू श्रीराम का महल बेहद भव्य था। अयोध्या में मौजूद सभी महल उसके आगे फीके थे। उनके महल में बड़े-बड़े दरवाजे लगाए गए थे। साथ ही महल के निर्माण के समय उस पर बेहद कीमती हीरे, मोती और मणि का इस्तेमाल किया गया था। जिस वजह से राम जी का महल काफी दूर से ही चमकता था। इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता हैं कि श्रीराम का महल कैलश पर्वत सा चमकता था। इसके साथ ही महल में कई तरह के पशु-पक्षी भी मौजूद थे, जिनकी मनमोहक अवाजे वहां से आती रहती थी।

मुरादाबाद, काशीपुर तथा मुजफ्फरनगर मील के पत्थर हैं राम मंदिर के आंदोलन में

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प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में हर हाल में जाएंगे हरभजन, कहा- जिसको जो करना है कर ले

प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में हर हाल में जाएंगे हरभजन, कहा- जिसको जो करना है कर ले
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userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:28 AM
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Ram Mandir : रामनगरी अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया जा रहा है। जिसको लेकर दुनियाभर के नेता, अभिनेता और खिलाड़ियों को 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए अयोध्या आने का न्यौता मिल रहा है।

Ram Mandir

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर राजनिति भी जारी है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह बीजेपी सरकार और पीएम मोदी का पॉलिटिकल एजेंडा है। इस बात को लेकर कई विपक्षी नेताओं ने इस समारोह में शामिल होने से इंकार कर दिया है। इसी बीच भारत के पूर्व स्पिनर गेंदबाज और आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद हरभजन सिंह ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का दिन एक ऐतिहासिक दिन होगा। वह अयोध्या जाएंगे और अगर किसी पार्टी को बुरा लगता है तो लगे।

‘सभी को भगवान राम का आशिर्वाद लेना चाहिए’

हरभजन सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा- देश के लोगों को मेरी शुभकामनाएं। भगवान राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। जितना संभव हो उतने लोगों को कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए और आशीर्वाद लेना चाहिए। यह एक ऐतिहासिक दिन है। यह सभी का है। यह बड़ी बात है कि भगवान राम का मंदिर उनके जन्म स्थान पर बन रहा है। वहां पर सभी को जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह मंदिर जरूर जाएंगे। बता दें कि सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, रविचंद्रन अश्विन सहित कई खिलाड़ियों को अयोध्या आने का न्यौता मिला है।

‘जब भी मौका मिलेगा मै मंदिर जाऊंगा’

आप राज्यसभा सांसद हरभजन ने आगे कहा- मैं निश्चित रूप से मंदिर जाऊंगा। मैं धर्म और भगवान में दृढ़ विश्वास रखता हूं। मैं आशीर्वाद लेने के लिए हर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे जाता हूं। जब भी मौका मिलेगा मैं मंदिर जाऊंगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। यह है हमारा सौभाग्य है कि हमारे जीवनकाल में ही मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देता हूं, जिनके नेतृत्व में मंदिर का निर्माण हो रहा है।

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गर्भ गृह में रखी गई रामलला की मूर्ति

आपको बता दें कि राम लला की मूर्ति को गुरुवार को 'जय श्री राम' के उल्लासपूर्ण उद्घोष के बीच राम मंदिर के 'गर्भ गृह' में रखा गया है। आगामी समारोह की एक महत्वपूर्ण प्रस्तावना में बुधवार रात को क्रेन की मदद से मूर्ति को अंदर लाने से पहले गर्भगृह में एक विशेष पूजा आयोजित की गई थी। अयोध्या के मंदिर में राम लला की 'प्राण प्रतिष्ठा' 22 जनवरी को होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'प्राण प्रतिष्ठा' के उपलक्ष्य में अनुष्ठान करेंगे, जबकि लक्ष्मीकांत दीक्षित के नेतृत्व में पुजारियों की एक टीम मुख्य अनुष्ठान का नेतृत्व करेगी।

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री का दावा, कहा राम मंदिर नहीं बल्कि राष्ट्र मंदिर

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