World AIDS Day : हर साल 1 दिसंबर का समय वर्ल्ड एड्स डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विश्व भर में इस घातक जानलेवा बीमारी से संबंधित रोग के बारे में कई तरह की जानकारियां साझा की जाती हैं तथा जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं। “एक्वायर्ड इम्यून डिफिशिएंसी सिंड्रोम” नामक इस रोग के कारण हजारों लोग हर वर्ष अपनी जान गंवा देते हैं। विशेषज्ञों द्वारा इस रोग से निजात पाने हेतु आज भी शोध कार्य जारी हैं। ऎसे में ज्योतिष शास्त्र भी इस रोग के होने की संभावनाओं पर कई तरह के विचार प्रस्तुत करता है। एचआईवी नामक यह वायरस ज्योतिष में किन ग्रहों के द्वारा अधिक प्रभावी दिखाई देता है और किस प्रकार के योग इसमें शामिल होते हैं इन सभी को रोग शास्त्र द्वारा समझा जा सकता है।
ग्रह-नक्षत्र योग का स्वास्थ्य पर प्रभाव
स्वास्थ्य के संदर्भ में जब ग्रह नक्षत्रों के असर की बात होती है तो एक गहरा संबंध दिखाई देता है। ज्योतिष शास्त्र में सेहत एवं रोग के बारे में विस्तार पूर्वक विवरण प्राप्त होता है। ज्योतिष के अनुसार रोग शास्त्र को भैषज विज्ञान के रूप में जाना गया है। जीवन में होने वाले छोटे मोटे रोग हों या फिर लंबी दिर्घकालिक व्याधियां इन सभी के लक्ष्णों की चर्चा ज्योतिष शास्त्र में प्राप्त होती है। नव ग्रह और नक्षत्र व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं। हर ग्रह की स्थिति एवं नक्षत्र की प्रकृत्ति व्यक्ति के प्रत्येक अंग पर असर डालती है।
एड्स नामक रोग में ग्रह नक्षत्रों की भूमिका
कई बार हम देखते हैं कि लोग हल्के से मौसम के बदलाव को भी नहीं झेल पाते हैं और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। ऎसे में इसका मुख्य कारण व्यक्ति के लग्न और लग्नेश के कमजोर होने के कारण भी होता है। जन्म कुंडली में छठा भाव रोग भाव कहलाता है। अष्टम भाव लंबी बीमारी का संकेत देता है और द्वादश भाव की स्थिति हमारे लिए अस्पताल की संभावनाओं को दिखाती है। रोग किस प्रकार का होगा इसे समझने के लिए कुंडली में लग्न और लग्नेश की स्थिति को समझना होता है। यदि लग्न एवं लग्नेश की स्थिति मजबूत हो तब रोग से लड़ने की क्षमता भी व्यक्ति में अच्छी होती है। रोग कम समय में समाप्त होगा या देर तक चलेगा या फिर दीर्घकालिक रूप से जीवन भर साथ रहेगा। इस स्थिति को कुंडली के अष्टम लग्न की स्थिति से जान सकते हैं। जब अष्टम भाव की दशा में रोग लगता है तो उसका प्रभाव लंबे समय तक जीवन पर रहता है।
World AIDS Day in hindi
एचआईवी वायरस और राहु केतु
राहु केतु का प्रभाव संक्रमण, विष, जीवाणु एवं विषाणुओं द्वारा होने वाले रोग के मुख्य कारक बनते हैं। राहु केतु बेहद गंभीर रोगों के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। जब इनका संबंध अन्य पाप ग्रहों के साथ होता है तब रोग घातक रूप से प्रभावित करता है। मंगल के साथ राहु का संबंध आना दुर्घटना से लगने वाली चोट में रक्त हानि, शरीर में विषाक्तता का फैल जाना, गलत इंजेक्शन से संक्रमण का खतरा, फोड़े इत्यादि का घाव में बदल जाना मंगल और राहु के योग का प्रभाव होता है। मंगल रक्त है और राहु विष ऎसे में जब दोनों साथ होते हैं तो रक्त में किसी न किसी प्रकार के संक्रमण होने की आशंका भी अधिक होती है। इस कारण रक्त का कैंसर हो सकता है। वहीं रक्त में विषाणुओं का प्रभाव राहु के कारण फैलता ओर केतु की भूमिका गहराई से असर डालती है जो एड्स जैसे रोग का कारण बनता है। इस प्रकार कई अन्य बातें इस घातक रोग के लिए विशेष भूमिका का निर्वाह करती हैं जिसे ज्योतिष के सूक्ष्म अध्ययन द्वारा ही जाना जा सकता है।
आचार्या राजरानी
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