विनय संकोची
किसी भी विषय की रहस्य को जान लेना ही ज्ञान है। प्रेम के रहस्य को जानने वालों, भक्ति के रहस्यों को जानने वालों, को हम संत-महात्मा, ज्ञानी-ध्यानी कहते हैं। उसी प्रकार विज्ञान के रहस्यों को जिसने जान लिया वह भी ज्ञानी हो गए। अध्यात्म की ही बात करें तो प्रेम और भक्ति में डूबा मनुष्य जैसे-जैसे प्रभु के समीप पहुंचने लगता है, तब वह शने: शने: विकारों से मुक्त होने लगता है। विकार रहित मनुष्य पूर्ण रूप से ईश्वर को प्राप्त कर लेता है, तो उसके हृदय में प्रकाश पुंज की तरह ज्ञान बहने लगता है।
स्वार्थ रहित आकांक्षा रहित मनुष्य ईश्वर के समीप तक आ सकता है। जिसके मन में कोई इच्छा ना हो, आकांक्षा ना हो, कोई स्वार्थ ना हो उसे न तो अपनी कुछ ही याद रहती है और न ही संसार की। उसका एकमात्र ध्येय केवल और केवल ईश्वर को पाना होता है। ध्यानमय होने के क्षणों में ज्ञान अर्जित नहीं किया जाता बल्कि वह तो बहता है, अमृत रूप में और जैसे-जैसे मनुष्य में विकार आने लगते हैं, वह आकांक्षाएं पालने लगता है। जैसे-जैसे स्वयं के लिए सुख, वैभव, धन, यश की कामना करने लगता है, वैसे-वैसे वह ईश्वर से दूर होता चला जाता है। और अपने अस्तित्व में वापस लौट आता है। ऐसी स्थिति में ज्ञान ही उसे ईश्वर से दूर होने से रोकता है। गीता में गोविंद कहते हैं कि ज्ञानवान, श्रद्धा में तत्पर जितेंद्रिय को ही ज्ञान प्राप्त होता है। इसी ज्ञान से शांति और इसकी प्राप्ति होती है। ज्ञान स्वयं में इतना प्रभावशाली और प्रकाशमान होता है कि अज्ञान रूपी अंधकार उसके आगे ठहर ही नहीं सकता।
सर्वहित की भावना मानवता को जन्म देती है। मानवता का रास्ता सद्गुणों से होकर गुजरता है। तुलसीदास जी ने भी कहा है-‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’। दूसरे के लिए भला सोचना, भला करना, उससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। जब आपके हृदय में परहित, परोपकार की भावना आ जाएगी, तब आप मानवता के अनुयाई बन जाएंगे। …और यह मानवता आती है सद्गुणों से, इसके लिए आवश्यक है आपके हृदय में विचार शक्ति का उद्भव होता रहे। जब आप विचारशील बनेंगे तो निरंतर आपके हृदय में विचारों का विकास होता रहेगा। जीवन और जीवन धर्म का इसी से उद्घोष होता है, आपके अंदर जितने सद्गुण समाविष्ट होते रहेंगे आप उतने ही अधिक मानवीय होते रहेंगे। सद्गुण मनुष्य के हृदय में मानवीयता का कर्म जागृत करते हैं। ये मनुष्य को मनुष्य के समीप लाते हैं, ये सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, करुणा से आपको भर देते हैं। ये गुण ही मानवता की पहचान हैं। मानवता के द्योतक हैं। सबका भला करने की प्रेरणा इन्हीं गुणों से मिलती है। इसी से विश्व कल्याण के प्रति आप अग्रसर होंगे और जब उस मार्ग पर आप चल पड़ेंगे तो आप उस परम शक्ति के समीप आ जाएंगे, जो समूचे जीव मात्र को, समूची सृष्टि को चला रही है अर्थात् परमात्मा ईश्वर।