धर्म – अध्यात्म : संदेह से परे एक सत्य!
विनय संकोची व्यक्ति इच्छाओं का दास है – यह सत्य संदेह से परे है। इच्छाएं व्यक्ति को अपने अनुसार नचाती…
चेतना मंच | November 18, 2021 11:38 PM
विनय संकोची
व्यक्ति इच्छाओं का दास है – यह सत्य संदेह से परे है। इच्छाएं व्यक्ति को अपने अनुसार नचाती हैं और वह नाचता है, लगातार नाचता है, थकता नहीं है। इच्छाएं मृगतृष्णा को जन्म देती हैं और प्यासा व्यक्ति पानी के भ्रम में भागता रहता है, यहां से वहां, न जाने कहां-कहां।
जीवन बीत जाता है, परंतु प्यास नहीं बुझती है और मनुष्य प्यासा ही पंचतत्व में विलीन हो जाता है। क्या यह सब के साथ होता है? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर है, नहीं विरले ही होते हैं जो अपने मन पर नियंत्रण रखकर इच्छाओं को बांध कर रखते हैं और अपने हिसाब से जीवन जीते हैं ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है नगण्य।
मन परावलंबी होता है लेकिन मनुष्य उसके वश में हो जाता है, जिसे हमारे वश में होना चाहिए, हम उसके वश में हो जाते हैं। जीवन का रथ मन रूपी घोड़े के हवाले हो जाता है और हम यानी सारथी घोड़े की मर्जी से मार्ग चुनने को विवश हो जाते हैं। हम वहां नहीं जा पाते जहां जाना चाहते हैं। हम वहां पहुंच जाते हैं, जहां मन हमें ले जाता है। यहीं से शुरू होती है भटकन और यहीं से शुरू होता है लक्ष्य का धुंध में छिपना।
विडंबना यह है कि हम दूसरों को समझने के चक्कर में जितना ज्यादा समय नष्ट करते हैं, उतने ही हम अपने आप से दूर होते चले जाते हैं। अपने आप से दूर होने होकर हम कुछ पाते तो नहीं हैं, पर खो जरूर देते हैं और जो खोते हैं, उसका नाम है – आत्मविश्वास। हम दूसरों के जैसा बनने का प्रयास करने लगते हैं और अपना स्वरूप खो बैठते हैं। हम दूसरों की तरह बन नहीं पाते हैं और न ही अपने मूल रूप में रह पाते हैं, यह स्थिति बड़ी विचित्र होती है, असमंजस से परिपूर्ण।
यह भी कहना उचित नहीं है कि दूसरों को देखें ही नहीं, जरूर देखें लेकिन उनके गुणों को देखें और अपनी क्षमता योग्यता प्रतिभा के अनुसार उन्हें अपने जीवन में उतारें। अच्छे लोगों का, सफल व्यक्तियों का, महापुरुषों का, विद्वानों का अनुसरण करें, कोई बुराई नहीं है लेकिन स्वयं को न भूलें, अपना पथ ना बिसरायें।
इस – उस का अनुसरण करने से भटकना निश्चित है। हमारे साथ सबसे बड़ा संकट यह है कि हम सब अपने से बड़े, अपने से अच्छे, अपने से सक्षम, अपने से समृद्ध, अपने से विद्वान जिस भी व्यक्ति के संपर्क में आते हैं, हम उसके जैसा बनने के बारे में सोचने लगते हैं। हमें क्या पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि हम उस जैसे बन भी सकते हैं या नहीं? सोचना चाहिए जरूर सोचना चाहिए और यदि हम पूरी तरह से आश्वस्त हो जाएं कि हम उसके जैसे बन सकते हैं, तब कोशिश करनी चाहिए। इसी में भलाई है।