Vikram Samvat 2081 : 9 अप्रैल 2024 को हिंदू नव वर्ष यानि कि विक्रम संवत 2081 प्रारंभ हो रहा है। हम सबको हिन्दू नववर्ष का स्वागत पूरे जोश के साथ करना ही चाहिए। हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ प्रत्येक वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि जिसे प्रतिपदा, या आम बोलचाल की भाषा में पड़वा कहा जाता है ,से होता है। अनेकों वर्षों की दासता एवं पश्चिम के अंधानुकरण में हम अपना नववर्ष, नव संवत्सर भूल कर जनवरी माह की प्रथम तिथि को नया साल मनाते आ रहे हैं। नव वर्ष का स्वागत रात्रि के 12:00 बजे अंधेरे में बिना उचित अनुचित का विचार किये करते आ रहे हैं। जबकि उस समय हमारे देश में शीत का प्रकोप अपने चरम पर होता है। प्रकृति कोहरे और कुहासे में लिपटी हुई रहती है एवं प्रकृति में नवजीवन का कहीं कोई चिन्ह तक दृष्टिगोचर नहीं होता है बल्कि सब कुछ ठहरा हुआ सा लगता है। ऐसे में नववर्ष मनाने का क्या अर्थ? वही चैत्र माह की प्रतिपदा को हिंदू नव वर्ष पर प्रकृति की छठा देखते ही बनती है ।हर तरफ हर वृक्ष हर तरु पर नव पल्लव हवाओं से अठखेलियां कर रहे होते हैं प्रत्येक वृक्ष पुष्पित एवं पल्लवित होता है। प्रकृति अपने पूर्ण यौवन में मदमाती हुई दिखाई देती है। खेतों में गेहूं की पकी फसलकी स्वर्णिम आभा फैल रही होती है जिसे देखकर कृषक का हृदय प्रफुल्लित है, हर्षोल्लासित है, मदमस्त है। रंग रंग के फूलों की बाहर आई हुई है। सभी जीव जंतु शीतकालीन निष्क्रियता (विंटर हाइबरनेशन) से उबरकर प्रकृति के रंग मंच पर अपनी रासलीलाएं कर रहे हैं बहुरंगी तितलियां पुष्पों का रसपान कर रही हैं, भ्रमर हर तरफ गुंजार कर रहे हैं। प्रकृति के इसी मदमाते, प्रफुल्लित व श्रृंगारित वैभव के साथ हिंदू नव संवत्सर का शुभागमन होता है जो प्रकृति के साथ सनातन संस्कृति के सामंजस्य एवं समरसता का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
Vikram Samvat 2081
नव रात्रि से शुरू होता है हिन्दू नववर्ष
नव वर्ष का आगमन होता है सूर्य की पहली किरण के साथ सूर्य जो ऊर्जा का अखंड एवं विशालतम स्रोत है उसकी ऊर्जा इस अवधि में उत्तरी गोलार्ध को भरपूर मात्रा में प्राप्त होती है, जिससे पृथ्वी की बैटरी चार्ज होती है।
नव वर्ष और नवरात्रि
हिंदू नववर्ष का प्रथम दिन भारत में मनाया जाने वाले नवरात्रि त्योहार, जिसमें नौ देवियों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है, इस दिन हिंदु नववर्ष का भी प्रथम दिन है। इस दिन घर में कलश की स्थापना की जाती है एवं 9 दिनों तक देवी की आराधना की जाती है।
हिंदू नव वर्ष की स्थापना भारत के यशस्वी सम्राट उज्जैन नरेश महाराजा विक्रमादित्य द्वारा शकों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में ईसा से भी 57 वर्ष पूर्व की गई थी। हिंदू नव वर्ष के संबंध में आध्यात्मिक मान्यता यह है कि ब्रह्मा जी द्वारा इसी तिथि को सृष्टि की रचना की गई थी, इसलिए इस तिथि को हिंदुओं द्वारा नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु का प्रथम अवतार ‘मत्स्य अवतार ‘भी हुआ था। केवल उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि भारत राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों में इस तिथि का अत्यंत सांस्कृतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व है। महाराष्ट्र व गोवा में चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस ‘गुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को उगादि या युगादि त्यौहार मनाया जाता है जिसका अर्थ युग का आरंभ अर्थात नव संवत्सर का प्रारंभ होना है। कश्मीर में नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिवस से होता है जो की ‘नवरेह’ के नाम से मनाया जाता है।
अदभुत नाम हैं हिन्दू कलैन्डर में
हिंदू संवत्सर (पूर्ण वर्ष) में कुल 12 महीने होते हैं। इन 12 महीनों के नाम क्रमशः चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ और फाल्गुन है। नव वर्ष का प्रारंभ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। हिंदू संवत्सर का प्रत्येक माह दो पक्षों कृष्ण (काला) पक्ष एवं शुक्ल (उजला) पक्ष में विभाजित होता है। प्रत्येक महीने का प्रारंभ कृष्ण पक्ष से एवं अंत शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से होता है जो कि हमारे ध्येय वाक्य “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अंधेरे से प्रकाश की ओर का ही प्रतीक प्रतीत होता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का यह विभाजन आकाश पर दिखाई देने वाले चंद्रमा के आकार एवं गति के आधार पर किया गया है। कृष्ण पक्ष में चंद्रमा का आकार प्रत्येक अगली तिथि पर धीरे-धीरे घटता जाता है और कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि जिसे अमावस्या कहा जाता है उस दिन चंद्रमा आसमान में दिखाई नहीं देता एवं रात काली घनी अंधेरी हो जाती है। कृष्ण पक्ष के बाद आने वाले शुक्ल पक्ष में चंद्रमा का आकार धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि, जिसे पूर्णिमा कहा जाता है। उस दिन आसमान में पूरा चंद्रमा (फुल मून) दिखाई देता है। जिससे प्रकृति चंद्रमा की चांदनी में नहाई हुई दिखाई देती है। यद्यपि प्रत्येक पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी ,द्वादशी त्रयोदशी ,चतुर्दशी एवं अमावस्या/पूर्णिमा 15-15 तिथियां होती है। किंतु चंद्रमा का एक माह 29.5 दिन का होता है अतः प्रत्येक माह में तिथियों का घटना बढ़ना होता रहता है। एक सौर वर्ष 365 दिन का होता है किंतु पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर लगभग 365 दिन 6 घंटे में पूरा करती है अतः प्रत्येक चौथे वर्ष में एक अतिरिक्त दिन जोड़ दिया जाता है जिसे लीप ईयर कहते हैं। एक चंद्र वर्ष 354 दिन का होता है। सौर वर्ष एवं
चंद्र वर्ष में लगभग 11दिन का अंतर हो जाता है जिसे पूर्ण करने के लिए प्रत्येक 3 वर्ष में एक अतिरिक्त माह जोड़ दिया जाता है जिसे अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम महीना कहा जाता है।
शुभ मुहूर्त में हो रहा है हिन्दू नववर्ष
इस वर्ष हिंदू संवत्सर का प्रारंभ 9 अप्रैल को अत्यंत ही शुभ मुहूर्त में हो रहा है। नव वर्ष का प्रारंभ सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग एवं शश राजयोग में हो रहा है। इस विक्रम संवत्सर का नाम कालयुक्त होगा तथा इस संवत के राजा मंगल एवं मंत्री शनि होंगे तथा इसके सेनापति शुक्र होंगे।
इस हिंदू नव वर्ष को सनातन परंपराओं के साथ पूरी गरिमा, भव्यता, आनंद व आत्माभिमान के साथ मनाएं। शक्ति का आवाहन करें। हवन और पूजन करें। घर सजाएं, रंगोली बनाएं व वंदनवार लगायें। मित्रों संबंधियों परीचितों को नव वर्ष की शुभकामनाएं दें। मातृ शक्ति का वंदन , प्रकृति का संरक्षण, बालिका शिक्षा को आगे बढ़ाने, सात्विक आहार लेने नियमित योग व्यायाम करने समरसता एवं सद्भाव के साथ जीने के साथ साथ जीवन को अर्थपूर्ण बनाने कासंकल्प लें।जियो और जीने दो के मूल मंत्र के साथ इस नव वर्ष पर सभी के लिए मंगल कामनाएं करें। Vikram Samvat 2081
सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग् भवेत।।
सभी सुखी हो सभी रोग मुक्त हो सभी मंगलमय एवं कल्याणकारी जीवन जिए किसी को कोई दुख ना हो इन्हीं कामनाओं के साथ सभी को हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2081 की हार्दिक मंगल कामनाएं।
कलश स्थापना मुहूर्त 2024 के साथ नवरात्रि पर हर रंग का होगा विशेष महत्व
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