Sunday, 19 May 2024

Lucknow Chikankari : लखनऊ की चिकनकारी का दुनिया मे है अपना खास मुकाम

  Lucknow Chikankari :  गोमती के किनारे बसा लखनऊ अपने बागात, तहजीब और लजीज खानों के साथ ही चिकनकारी के…

Lucknow Chikankari : लखनऊ की चिकनकारी का दुनिया मे है अपना खास मुकाम

 

Lucknow Chikankari :  गोमती के किनारे बसा लखनऊ अपने बागात, तहजीब और लजीज खानों के साथ ही चिकनकारी के लिए भी मशहूर रहा है।लखनऊ अपने चिकनकारी के नायाब शिल्प के लिये कसीदाकारी की दुनिया में खास मुकाम रखता है।सदियों से कला और संस्कृति इस शहर की पहचान रही है। ऐसी ही एक कला है लखनऊ चिकनकारी जिसने गुज़रे ज़माने के शाही परिवारों और आज के फ़ैशनपरस्त शख्सियतों दोनों को ही समान रुप से विस्मित किया है। कला के इस रुप में कशीदाकारी की क़रीब 36 तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब आधुनिक समय में चिकनकारी में मोती, कांच और मुक़ेश(बादला) से भी सजावट की जाती है।चिकनकारी कढ़ाई का वो काम है जो सफ़दे धागे से महीन सफ़ेद कपड़े पर किया जाता है। पारंपरिक रूप से ये कढ़ाई मलमल के कपड़ों पर सफेद धागो से की जाती है ।

चिकनकारी का इतिहास

भारतीय चिकनकारी का काम तीसरी शताब्दी से होता रहा है। चिकन शब्द शायद फ़ारसी के चिकिन या चिकीन शब्द से लिया गया है जिसका मतलब होता है कपड़े पर एक तरह की कशीदाकारी। लखनऊ में चिकनकारी का काम दो सौ सालों से भी पहले से होता रहा है। लेकिन किवदंतियों के अनुसार 17वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां तुर्क कशीदाकारी से बहुत प्रभावित थीं और तभी से भारत में चिकनकारी कला का आरंभ हुआ।
कढ़ाई का काम ज़्यादातर गाँवों में रहने वाली महिलाएं करती हैं जोकि छपाई के ऊपर सुई और धागों की मदद से कढ़ाई करती ।कढ़ाई के लिये अधिकतर मलमल के कपड़ों का इस्तोमाल होता था क्योंकि मलमल, सूखे और उमस भरे मौसम में सुकून देता था।हालंकि आज लखनऊ चिकनकारी का गढ़ है लेकिन पश्चिम बंगाल और अवध ने भी इसके विकास में भूमिका अदा की थी।मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा आदि ३६ प्रकार के चिकन की शैलियां होती हैं।नवाबों के समय में इस कढ़ाईने अपना थोड़ा रंग-रूप बदला और चिकनकारी के साथ सोने और चांदी के तारों से मुकेश का काम भी किया जाने लगा। ऐसा लगभग मुश्किल से ही होता है कि लखनऊ चिकनकारी का लिबास हो और उस पर फूलों के पैटर्न या रुपांकन न हों। फूलों की क़िस्म और इन्हें बनाने की शैलियां फ़ैशन के चलन के साथ बदलती रही हैं लेकिन इनकी जटिलता और नज़ाकत जस की तस रही है।

कढ़ाई का तरीका:

Lucknow Chikankari :
Lucknow Chikankari :

Lucknow Chikankari : सबसे पहले कपड़े पर लकड़ी के ब्‍लॉक से डिजाइन उकेरी जाती हैं। इसके लिए नील और व्हाइट डाई का इस्तेमाल होता है।
छपाई किये गये कपड़े पर कढ़ाई का काम शुरू होता है। कढ़ाई के लिये सूती के सफेद धागों का प्रयोग किया जाता है ।मगर बदलते ट्रेंड के साथ धागों का रंग बदलता चला गया। आज लगभग हर रंग के धागे से चिकनकारी की जाती है।कढ़ाई का काम पूरा होने के बाद पैटर्न की आउट लाइन को हटाने के लिये कपड़े को पानी में भिगोया जाता है। इसके बाद कपड़े को कड़ा करने के लिये इसमें कलफ़ लगाया जाता है। कलफ़,कपड़े की क़िस्म के अनुसार ही लगाया जाता है।

कीमत 500 रुपए से लेकर 5000  तक

lucknow
lucknow

Lucknow Chikankari : लखनऊ में आपको 500 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक और इससे भी कीमती चिकनकारी के नमूने देखने को मिल जाएंगे। इसके अलावा आप लखनऊ की सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय मार्केट अमीनाबाद और आलमबाग से भी चिकनकारी किए गए कपड़े खरीद सकते हैं। पहले मलमल, आर्गंडी और लोन कपड़े पर ही चिकनकारी होती थी। मगर आज के लोगों की पसंद को ख्याल में रखते हुए जोर्जेट, शिफान, कॉटन और डोरिया कोटा कपड़े पर भी की जाने लगी है। पहले जहां केवल फूल और पट्टी की डिजाइनिंग होती थीं वहां भी अब फैंसी डिजाइन बनने लगे है ।

चिकनकारी कई तरह से हुआ करती थी जो धीरे धीरे जमाना गुजरने के साथ लुप्त होती जा रही है। पैसों की तंगी और मुनासिब मेहनताना न मिलने की वजह से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे न बढ़ सका और लुप्त हो गया।लेकिन बदलावों के बावजूद इसका मूल स्वरुप आज भी इसके जन्मस्थान लखनऊ में रचा बसा है।

Gujrat Patola Saree : गुजरात का पटोला क्यों है खास,किसी धरोहर से कम नही है इसकी कला

Related Post