Saturday, 30 November 2024

विषय विशेष : गुरुओं की भी गुरु होती हैं पुस्तकें!

 विनय संकोची पुस्तकें(Books) मनुष्य की सच्ची मित्र, सदगुरु और जीवन पथ की संरक्षक हैं। मानव जाति ने जो कुछ किया,…

विषय विशेष : गुरुओं की भी गुरु होती हैं पुस्तकें!

 विनय संकोची

पुस्तकें(Books) मनुष्य की सच्ची मित्र, सदगुरु और जीवन पथ की संरक्षक हैं। मानव जाति ने जो कुछ किया, सोचा और पाया वे पुस्तकों के जादुई पृष्ठों पर अंकित है, सुरक्षित है। यदि मनुष्य और पशु में भेद किया जाए तो केवल बुद्धि द्वारा ही किया जा सकता है। बुद्धि और ज्ञान के अभाव में मनुष्य संभवत: संसार का सबसे दयनीय प्राणी होता। यह ठीक है कि ज्ञान का अमृत गुरुजनों से प्राप्त होता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि गुरुजन एक समय सीमा तक ही ज्ञान दान कर सकते हैं। लेकिन पुस्तकें तो गुरुओं की भी गुरु होती हैं। पुस्तकों में तमाम गुरुओं के अनुभव का सार संकलित होता है। उनके द्वारा तप-साधना से अर्जित ज्ञान का अमृत घट संरक्षित होता है।

पुस्तकें मानव मात्र की हितैषी हैं। जीवन में सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों, महापुरुषों, साहित्यकारों, ज्ञानियों के अनुभव का लाभ उठाने की महती आवश्यकता होती है और इस आवश्यकता की पूर्ति करती हैं पुस्तकें, ग्रंथ, किताबें, बुक्स। पुस्तकों के अध्ययन से ज्ञान का विकास होता है।

कंप्यूटर इंटरनेट (Computer Internet)के बढ़ते प्रभाव के बावजूद किताबों का युग कभी समाप्त नहीं हो सकता है। हो ही नहीं सकता है क्योंकि पुस्तक अक्षर ज्ञान के साथ बच्चे की उंगली थामती हैं और पूरी जिंदगी किसी न किसी रूप में साथ निभाती हैं। पुस्तकें आज कुछ महंगी अवश्य ही हैं लेकिन कंप्यूटर की तुलना में तो सस्ती ही हैं। जिसे अक्षर ज्ञान हो, वह पुस्तक पढ़ सकता है। जबकि कंप्यूटर इंटरनेट के लिए विधिवत शिक्षा लेनी आवश्यक है, प्रशिक्षण लेना अनिवार्य है। पुस्तकों से व्यक्ति को ज्ञान मिलता है और यही ज्ञान विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, व्यक्ति का भी और समाज का भी। विकास में पुस्तकों के महत्व को कोई नकार ही नहीं सकता है।

पुस्तकें हमारी संस्कृति की संवाहिका हैं। पुस्तकों के माध्यम से हमें संस्कारों का ज्ञान भी होता है, संस्कार जो व्यक्ति के जीवन को बनाते हैं प्रशंसा योग्य बनाते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो जीवन को सजाने-संवारने में पुस्तकों का बड़ा भारी योगदान है। ज्ञान का संरक्षण करने वाली पुस्तकें व्यक्ति के जीवन से अलग हो ही नहीं सकती हैं।

सच्चे मित्रों के चुनाव की तरह ही अच्छी पुस्तकों का चयन व्यक्ति का जीवन बदल देने में सक्षम होता है। इसलिए मित्रों के चुनाव की तरह पुस्तक का चयन भी सोच समझ कर करना चाहिए। पुस्तकें एक ओर जहां बचपन को सजाने-संवारने, युवावस्था को मर्यादित करने में सहायक होती हैं, वही पुस्तकें बुढ़ापे का सहारा भी बनती हैं। वृद्धावस्था के एकांत में साथ देने वाली पुस्तकों की भूमिका को भला कौन नकार सकता है। बुढ़ापे में सच्चा सुख-शांति देने वाली पुस्तकें जीवन भर साथ निभाती हैं।

पुस्तकालयों(Liberary) में करीने से सजी पुस्तकों को भी अच्छे पाठक का सदैव इंतजार रहता है, सदैव प्रतीक्षा रहती है। एक अच्छा पाठक ही किताब के महत्व को समझता है, मूर्ख के लिए तो ग्रंथ और सादे कागज में कोई अंतर होता ही नहीं है। आजकल कार्यालयों और बड़े-बड़े ड्राइंग रूमों में मोटी-मोटी महंगी पुस्तकें सजाने का फैशन चल पड़ा है। इन किताबों को शायद ही कभी कोई खोलकर देखता हो। बस ये परोपकारी पुस्तकें तो किसी व्यक्ति विशेष की पुस्तक प्रेमी की छवि बनाने के लिए होती हैं। यह ठीक है कि लोगों की पढ़ने की आदत कम हुई है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पुस्तक प्रेमियों का अकाल ही हो गया है। आज भी असंख्य पुस्तक प्रेमी दीवानगी की हद तक पुस्तकों को सहेजते हैं, पढ़ते हैं और प्रयास करके दूसरों को भी पढ़ाते हैं।

पुस्तकें किसी देश की अमर निधि होती हैं किसी देश, किसी जाति, किसी सभ्यता, के उत्कर्ष और अपकर्ष का पता साहित्य से चलता है, इतिहास से चलता है और साहित्य अथवा इतिहास पुस्तकों में संग्रहित होता है। किताबों में संरक्षित रहता है। आज का संसार विचारों का संसार है। विचारों के युग में पुस्तकें अमोघ अस्त्र हैं क्योंकि पुस्तकों में निहित विचार समाज की काया पलट दिया करते हैं। श्रेष्ठ पुस्तकें समाज में नवचेतना का संचार करती हैं, समाज में जागृति लाती हैं। पुस्तकों के महत्व को महान क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक की यह टिप्पणी स्पष्ट करती है – ‘मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूंगा, क्योंकि जहां यह होती हैं, वहां अपने आप ही स्वर्ग हो जाता है।’

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