Jagdeep Dhankhar: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। उपराष्ट्रपति के पद से अचानक इस्तीफा देने के बाद से जगदीप धनखड़ हर किसी की जिज्ञासा का विषय बने हुए हैं। हर कोई सवाल कर रहा है कि आखिर जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा क्यों दे दिया? जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का असली कारण यहां बताया जा रहा है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का असली कारण जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। विस्तार में चर्चा करने से पहले आपको इतना बता दें कि जगदीप धनखड़ ने अपनी मर्जी से इस्तीफा नहीं दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए विवश किया था।
तेजी से फैसला लेना बना जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का कारण
उपराष्ट्रपति के तौर पर जगदीप धनखड़ भारत के ऊपरी सदन राज्यसभा के सभापति थे। राज्यसभा के सभापति के तौर पर जगदीप धनखड़ ने शानदार काम किया है। जगदीप धनखड़ को फटाफट फैसले लेने में माहिर माना जाता है। फटाफट फैसला लेना ही जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का कारण बन गया। दरअसल इस्तीफा देने से ठीक पहले जगदीप धनखड़ ने एक बड़ा फैसला किया था। राज्यसभा के सभापित के तौर पर जगदीप धनखड़ ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए विपक्षी दलों के महाभियोग के नोटिस को मान्यता दे दी थी। विपक्षी दलों के नोटिस को भाजपा के नोटिस से पहले मान्यता देना जगदीप धनखड़ के जी का जंजाल बन गया। इसी बड़े फैसले के कारण जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति जैसे सम्मानित पद इस्तीफा देना पड़ा।
सरकार चाहती थी कि पहले सरकार का नोटिस स्वीकार हो जाए
उपराष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के मूल कारण की पटकथा कुछ इस प्रकार से है कि सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ सदन में महाभियोग लाया जाना था। केन्द्र सरकार तथा विपक्ष दोनों ही अपना-अपना महाभियोग ला रहे थे। राज्यसभा के सभापति के तौर पर जगदीप धनखड़ को विपक्ष का प्रस्ताव पहले मिला। प्रस्ताव मिलते ही उन्होंने प्रस्ताव को स्वीकार करने की विधिवत घोषणा कर दी। बताया गया है कि महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए सरकार ने विपक्षी सांसदों सहित 145 सांसदों के हस्ताक्षर जुटा लिए थे जबकि लोकसभा में सिर्फ 100 सांसदों के दस्तखत की जरूरत थी। सरकार ने सत्र शुरू होने से पहले ही साफ कर दिया था कि वह जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएगी। दूसरी ओर विपक्ष ना सिर्फ जस्टिस वर्मा बल्कि जस्टिस शेखर यादव का मुद्दा भी उठाना चाहता था। जस्टिस शेखर यादव पर विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में विवादित टिप्पणी करने के चलते उन्हें हटाने की मांग की गई थी। पूरा घटनाक्रम कुछ इस प्रकार हुआ कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे वाले दिन दोपहर करीब 1 बजे धनखड़ ने Business Advisory Committee (BAC) की बैठक की।
बैठक बेनतीजा रही और विपक्ष ने सरकार के सुझावों पर फैसला लेने के लिए और समय की मांग की। धनखड़ ने कहा कि BAC की एक और बैठक शाम 4.30 बजे होगी। दिन में तीन बजे विपक्ष ने जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए धनखड़ को नोटिस सौंप दिया और इसके बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। केंद्र सरकार उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा इस संबंध में विपक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने से नाराज थी क्योंकि सरकार को ऐसा लगा कि विपक्ष इस मामले में उससे आगे निकल गया है और इसके बाद जल्दी-जल्दी एनडीए सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने का काम किया गया। लेकिन तब तक बात बिगड़ चुकी थी। जगदीप धनखड़ विपक्ष का नोटिस स्वीकार कर चुके थे और उन्होंने राज्यसभा में इस बात का ऐलान किया कि उन्हें नोटिस मिल गया है। धनखड़ ने कहा कि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के अनुसार, "जब संसद के दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव की सूचनाएं प्रस्तुत की जाती हैं तो आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा मिलकर एक समिति गठित की जाती है।" इसके बाद सरकार परेशान हो गई और उसकी सारी कसरत एक तरह से धरी की धरी रह गई। फिर क्या था जगदीप धनखड़ से चुपचाप इस्तीफा मांग लिया गया। इस प्रकार फटाफट फैसले करने की आदत भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई।