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Teachers’ Day 2025 पर हम न केवल शिक्षकों का सम्मान कर रहे हैं, बल्कि उन महान विभूतियों को भी याद कर रहे हैं, जिन्होंने ज्ञान और प्रेरणा से दुनिया को रोशन किया। ऐसे ही एक प्रेरणादायक शिक्षक और गणितज्ञ थे वशिष्ठ नारायण सिंह। उनका जीवन गणित के जटिल समीकरणों और असाधारण प्रतिभा की कहानी है, जिसमें संघर्ष, दर्द और अदम्य साहस के कई अध्याय हैं। गरीबी, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ और सामाजिक उपेक्षा जैसी कठिनाइयों के बावजूद वशिष्ठ बाबू ने साबित कर दिया कि सच्ची प्रतिभा कभी दबती नहीं। Teachers Day 2025
भारत और विदेशों में ‘गणित के चाणक्य’ और ‘वैज्ञानिक जी’ के नाम से पहचाने जाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह आज भी हर छात्र और शिक्षक के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। ‘गणित के चाणक्य’ और ‘वैज्ञानिक जी’ के नाम से पहचाने जाने वाले वशिष्ठ बाबू ने साबित कर दिया कि सच्ची प्रतिभा कभी थमती नहीं। उनके काम और जीवन से हर शिक्षक और छात्र को यह सीख मिलती है कि ज्ञान और जुनून ही सबसे बड़ी ताकत हैं।
बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में 2 अप्रैल 1942 को जन्मे वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपनी अद्भुत प्रतिभा से न केवल बिहार, बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन किया। गरीब परिवार में जन्मे, जहां पिता ललन सिंह पुलिस विभाग में कार्यरत थे, वशिष्ठ बचपन से ही असाधारण मेधा के धनी थे। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा नेतरहाट विद्यालय से प्राप्त की और 10वीं की परीक्षा में पूरे बिहार में शीर्ष स्थान हासिल कर अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाया। आज Teachers’ Day पर हम उनकी कहानी को याद कर प्रेरणा लेते हैं—कैसे एक सच्चे शिक्षक और गणितज्ञ की लगन और ज्ञान ने दुनिया को दिखा दिया कि कठिनाइयाँ प्रतिभा के सामने कभी टिक नहीं सकतीं।
पटना साइंस कॉलेज में वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा की कहानी आज भी छात्रों और शिक्षकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। जब बीएससी का सामान्य पाठ्यक्रम तीन साल का था, तब वशिष्ठ बाबू ने सीधे अंतिम वर्ष की परीक्षा देने की चुनौती दी। उनकी असाधारण मेधा और गहरी समझ देखकर विश्वविद्यालय ने नियम बदल दिए, और 1963 में उन्होंने मात्र एक प्रयास में बीएससी पूरी कर दिखाया। एक और घटना ने उनकी अद्वितीय गणितीय क्षमता को जगजाहिर कर दिया। जब एक गणित के प्रोफेसर बार-बार गलत हल प्रस्तुत कर रहे थे, वशिष्ठ ने बोर्ड पर जाकर उसी प्रश्न को कई अलग-अलग तरीकों से हल किया। प्रिंसिपल ने उनकी प्रतिभा देख दंग रह गए और उन्हें सीधे पहले वर्ष से तीसरे वर्ष में प्रमोट कर दिया।
1965 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली ने वशिष्ठ नारायण सिंह की असाधारण प्रतिभा को देखकर उन्हें अमेरिका बुलाया। वहां उन्होंने ‘चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत’ (Reproducing Kernel Hilbert Spaces) पर पीएचडी पूरी कर 1969 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की। इसके बाद वे वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने और NASA में भी कार्य किया। लेकिन अमेरिका की चमक-धमक उन्हें संतोष नहीं दे सकी; उनका दिल और उद्देश्य हमेशा भारत की सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने में था। 1971 में उन्होंने सब कुछ छोड़कर भारत लौटने का निर्णय लिया।
आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में अपनी शिक्षा और शोध के क्षेत्र में योगदान देने के दौरान 1973 में वशिष्ठ नारायण सिंह का विवाह हुआ। पढ़ाई में इतनी गहरी रूचि थी कि वे विवाह के दिन भी बारात में देर से पहुंचे। 1974 में दिल का दौरा और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं ने उनके जीवन और कार्यक्षमता को प्रभावित किया, लेकिन उन्होंने कभी अपने ज्ञान और शिक्षा के प्रति जुनून नहीं खोया। 1987 में वे अपने गांव लौट आए, जहां उन्होंने अपनी जड़ों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अपनाया।
अगस्त 1989 में वे ट्रेन से अचानक उतर गए और भीड़ में गायब हो गए। लगभग पांच वर्षों तक उनका कोई पता नहीं चला। अंततः छपरा में उन्हें पाया गया और सरकार ने बेंगलुरु के NIMHANS में भर्ती कराया। 1993 से 1997 तक इलाज के बाद स्वास्थ्य में सुधार हुआ। 14 नवंबर 2019 को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मृत घोषित किया गया। उनकी मृत्यु ने न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। वशिष्ठ नारायण सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि असाधारण प्रतिभा, संघर्ष और जुनून के सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती। गणित के जादूगर की यह कहानी हर शिक्षक और छात्र के लिए प्रेरणा है। Teachers Day 2025


ISRO : श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एलवीएम3 रॉकेट के जरिए ब्रिटेन स्थित वनवेब समूह कंपनी के 36 उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करके रविवार को एक और उपलब्धि हासिल कर ली।
इसरो के 43.5 मीटर लंबे रॉकेट को 24.5 घंटे की उल्टी गिनती समाप्त होने के बाद चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लॉन्च पैड से रविवार सुबह नौ बजे प्रक्षेपित किया गया।
ब्रिटेन की नेटवर्क एक्सेस एसोसिएट्स लिमिटेड (वनवेब ग्रुप कंपनी) ने पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में 72 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ एक करार किया है। इस करार के तहत यह वनवेब के लिए दूसरा प्रक्षेपण था।
वनवेब ग्रुप कंपनी के लिए पहले 36 उपग्रह 23 अक्टूबर 2022 को प्रक्षेपित किए गए थे।
वनवेब अंतरिक्ष से संचालित एक वैश्विक संचार नेटवर्क है जो सरकारों एवं उद्योगों को सम्पर्क की सुविधा मुहैया कराता है।
इसरो ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए कहा कि एलवीएम3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन पूरा हो गया है। सभी 36 वनवेब जेन-1 उपग्रहों को निर्धारित कक्षाओं में स्थापित कर दिया गया है। एलवीएम3 अपने लगातार छठे प्रक्षेपण में पृथ्वी की निचली कक्षा में 5,805 किलोग्राम पेलोड लेकर गया।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने एलवीएम3-एम3-वनवेब इंडिया-2 मिशन के सफल प्रक्षेपण के लिए एनएसआईएल, इसरो और वनवेब को बधाई दी।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने रविवार के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो की सराहना की।
उन्होंने ट्वीट किया कि मुझे ऐसे समय में अंतरिक्ष विभाग के साथ जुड़कर गर्व होता है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया का एक अग्रणी देश बनकर उभरा है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सिंह ने कहा कि इसरो टीम ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। एलवीएम3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन का सफल प्रक्षेपण।
रविवार का यह प्रक्षेपण वनवेब ग्रुप कंपनी का 18वां प्रक्षेपण था, जबकि इसरो के लिए 2023 का यह दूसरा प्रक्षेपण है। इससे पहले फरवरी में एसएसएलवी/डी2-ईओएस07 का सफल प्रक्षेपण किया गया था।
रविवार के प्रक्षेपण के साथ ही वनवेब द्वारा पृथ्वी की कक्षा में स्थापित उपग्रहों की संख्या बढ़कर 616 हो गई, जो इस साल वैश्विक सेवाएं शुरू करने के लिए पर्याप्त है।
वनवेब ने कहा कि यह मिशन भारत से वनवेब द्वारा उपग्रहों का दूसरा प्रक्षेपण है, जो ब्रिटेन और भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के बीच संबंधों को दर्शाता है।
कंपनी ने कहा कि वनवेब भारत के न केवल उपक्रमों, बल्कि उसके कस्बों, गांवों, नगर निगमों और स्कूल समेत उन क्षेत्रों में भी सुरक्षित संपर्क सुविधा मुहैया कराएगा, जहां तक पहुंच बनाना मुश्किल है।
यह एल.वी.एम.3 का छठा प्रक्षेपण है। इसे पहले इसे ‘जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीककल एम के थ्री’ के नाम से जाना जाता था।
ISRO : श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एलवीएम3 रॉकेट के जरिए ब्रिटेन स्थित वनवेब समूह कंपनी के 36 उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करके रविवार को एक और उपलब्धि हासिल कर ली।
इसरो के 43.5 मीटर लंबे रॉकेट को 24.5 घंटे की उल्टी गिनती समाप्त होने के बाद चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लॉन्च पैड से रविवार सुबह नौ बजे प्रक्षेपित किया गया।
ब्रिटेन की नेटवर्क एक्सेस एसोसिएट्स लिमिटेड (वनवेब ग्रुप कंपनी) ने पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में 72 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ एक करार किया है। इस करार के तहत यह वनवेब के लिए दूसरा प्रक्षेपण था।
वनवेब ग्रुप कंपनी के लिए पहले 36 उपग्रह 23 अक्टूबर 2022 को प्रक्षेपित किए गए थे।
वनवेब अंतरिक्ष से संचालित एक वैश्विक संचार नेटवर्क है जो सरकारों एवं उद्योगों को सम्पर्क की सुविधा मुहैया कराता है।
इसरो ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए कहा कि एलवीएम3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन पूरा हो गया है। सभी 36 वनवेब जेन-1 उपग्रहों को निर्धारित कक्षाओं में स्थापित कर दिया गया है। एलवीएम3 अपने लगातार छठे प्रक्षेपण में पृथ्वी की निचली कक्षा में 5,805 किलोग्राम पेलोड लेकर गया।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने एलवीएम3-एम3-वनवेब इंडिया-2 मिशन के सफल प्रक्षेपण के लिए एनएसआईएल, इसरो और वनवेब को बधाई दी।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने रविवार के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो की सराहना की।
उन्होंने ट्वीट किया कि मुझे ऐसे समय में अंतरिक्ष विभाग के साथ जुड़कर गर्व होता है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया का एक अग्रणी देश बनकर उभरा है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सिंह ने कहा कि इसरो टीम ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। एलवीएम3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन का सफल प्रक्षेपण।
रविवार का यह प्रक्षेपण वनवेब ग्रुप कंपनी का 18वां प्रक्षेपण था, जबकि इसरो के लिए 2023 का यह दूसरा प्रक्षेपण है। इससे पहले फरवरी में एसएसएलवी/डी2-ईओएस07 का सफल प्रक्षेपण किया गया था।
रविवार के प्रक्षेपण के साथ ही वनवेब द्वारा पृथ्वी की कक्षा में स्थापित उपग्रहों की संख्या बढ़कर 616 हो गई, जो इस साल वैश्विक सेवाएं शुरू करने के लिए पर्याप्त है।
वनवेब ने कहा कि यह मिशन भारत से वनवेब द्वारा उपग्रहों का दूसरा प्रक्षेपण है, जो ब्रिटेन और भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के बीच संबंधों को दर्शाता है।
कंपनी ने कहा कि वनवेब भारत के न केवल उपक्रमों, बल्कि उसके कस्बों, गांवों, नगर निगमों और स्कूल समेत उन क्षेत्रों में भी सुरक्षित संपर्क सुविधा मुहैया कराएगा, जहां तक पहुंच बनाना मुश्किल है।
यह एल.वी.एम.3 का छठा प्रक्षेपण है। इसे पहले इसे ‘जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीककल एम के थ्री’ के नाम से जाना जाता था।
