Friday, 17 May 2024

लखपति दीदी बदल सकती हैं भारत का भाग्य, बदलते भारत की तस्वीर

Lakhpati Didi : भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल “लखपति दीदी” भारत का भाग्य बदल सकती हैं। लखपति दीदी…

लखपति दीदी बदल सकती हैं भारत का भाग्य, बदलते भारत की तस्वीर

Lakhpati Didi : भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल “लखपति दीदी” भारत का भाग्य बदल सकती हैं। लखपति दीदी योजना को ग्रामीण भारत की रीढ़ बनाया जा सकता है। लखपति दीदी के साथ ही साथ भारत सरकार की स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का भी खास महत्व रेखांकित करते हुए अनेक विश्लेषण सामने आ रहे हैं। ज्यादातर विश्लेषक यही बता रहे हैं कि लखपति दीदी तथा स्वंय सहायता समूह (एसएचजी) के माध्यम से चलाए जा रहे कार्यक्रम से भारत में चमत्कारिक बदलाव आने वाला है।

लखपति दीदी बन रही हैं ग्रामीण विकास का इंजन

हाल ही में लखपति दीदी तथा भारत में चलाए जा रहे एचएसजी के ऊपर बड़ा ही सारगर्भित विश्लेषण सामने आया है। लखपति दीदी तथा एसएचजी को पूरी तरह जानने समझने वाली महिला पत्रकार मौसमी कबिराज ने यह विश्लेषण किया हैं। उनके विश्लेषण से साफ जाहिर हो रहा है कि लखपति दीदी भारत के ग्रामीण विकास का इंजन बन रही हैं।

मौसमी कबिराज ने लिखा है कि स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में महिलाओं का सामूहिकीकरण ग्रामीण भारत में विकास का इंजन रहा है। वर्तमान में 83 लाख एसएचजी से नौ करोड़ से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। ‘लखपति दीदी’ पहल के तहत एसएचजी से जुड़ी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ में, प्रत्येक एसएचजी परिवार को मूल्यवर्धन के विभिन्न उपायों और आजीविका गतिविधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वे सालाना कम से कम एक लाख रुपये की आय प्राप्त कर सकें। यह पहल दिखाती है कि एसएचजी ग्रामीण महिलाओं के जीवन में वित्तीय स्वतंत्रता और बदलाव लाने वाला एक सशक्त माध्यम है।

एसएचजी की महत्वपूर्ण भूमिका

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाएं एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं। लेकिन 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की ग्रामीण कामकाजी आबादी में महिलाओं की संख्या 36.6 प्रतिशत, जबकि पुरुष की संख्या 78.2 प्रतिशत है। यहां महिला नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देने में एसएचजी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, क्योंकि वे समुदाय और बड़े हितधारकों के बीच एक पुल का काम करते हैं। लेकिन, एसएचजी के भीतर सूक्ष्म-उद्यमों को अपने में व्यवसायं को टिकाऊ बनाने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसमें तकनीकी जानकारियों का अभाव, पारंपरिक तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता,….बाजार से अपर्याप्त संपर्क, सीमित कौशल प्रशिक्षण के साथ आत्मविश्वास और नेतृत्व कौशल की कमी जैसे कई कारण जिम्मेदार दिखाई देते हैं। चूंकि एसएचजी ग्रामीण महिलाओं तक पहुंचने और महिला नेतृत्व वाली ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने का उपयुक्त माध्यम हैं, इसलिए इन्हें मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं।

पहला कदम, सूक्ष्म उद्यम गतिविधियों से जुड़े एसएचजी को दीर्घकालिक बनाने के लिए उन्हें शुरू से अंत तक सहायता देना। इसमें क्षमता निर्माण प्रशिक्षण, वित्तीय संसाधनों तक पहुंच की सुविधा और बाजार संपर्क की सहायता शामिल है। इससे एसएचजी को चुनौतियों से निपटने, अवसरों का लाभ उठाने और आगे बढऩे में मदद मिलती है, जो उनकी महिला सदस्यों के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान करता है।

सफलता का बड़ा उदाहरण

दूसरा कदम, महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिए तैयार करना। सफल महिलाओं के लिए ऐसे अवसर बनाने चाहिए, जहां वे अपनी सफलता की कहानियों को अन्य महिलाओं के साथ साझा कर सकें और उनमें आत्मविश्वास पैदा कर सकें। उदाहरण के लिए, राजस्थान के दूनी गांव की मीरा जाट डेयरी और कृषि उत्पादक कंपनी मैत्री महिला मंडल समिति की प्रमुख हैं। यह समिति राजस्थान में 8,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देती है। आज जब वे चुनौतियों और अपनी सफलता की कहानी अन्य महिलाओं को सुनाती है, तब वे अधिक से अधिक महिलाओं को कामकाजी समूह में शामिल होने के लिए प्रेरित करती हैं। ऐसा ही काम लखपति दीदियां भी कर सकती हैं, जिन्होंने एसएचजी के माध्यम से सफलता पाई है। वे सतत आय के विभिन्न उपायों को सामने लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

तीसरा कदम, उत्पादकता और आय को बढ़ाने के लिए नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रेरित करना। उदाहरण के लिए, सोलर सिल्क रीलिंग मशीन, सोलर ड्रॉयर, बायोमास-संचालित कोल्ड स्टोरेज जैसी कई स्वच्छ प्रौद्योगिकियां कठिन परिश्रम को घटाने और मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार करने में मदद करती हैं। सीईईडब्ल्यू और विलग्रो का अध्ययन बताता है कि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों ने ग्रामीण भारत की 10 हजार से अधिक महिलाओं की सालाना आय को 33 प्रतिशत बढ़ाने में मदद करते हुए उनकी आजीविका में उल्लेखनीय सुधार किया है। राजस्थान में झाडोल गांव की आशापुरा एसएचजी की गायत्री सुथार के अनुभव को बतौर उदाहरण देखा जा सकता है। बिजली आपूर्ति में दिक्कत होने पर उन्हें डेयरी व्यवसाय में नुकसान उठाना पड़ता था। इससे बचने के लिए उन्होंने सोलर रेफ्रिजरेटर लगा लिया। अब वे सोलर रेफ्रिजरेटर को अपने कारोबार का रक्षक बताती हैं, क्योंकि इससे दूध की बर्बादी घटी है और आय बढ़ी है।

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