Tuesday, 5 November 2024

खेती बन रही घाटे का सौदा ! एमएसपी की बजाय ये मांग ज्यादा जरूरी

MSP guarantee law : बड़ी टेढ़ी खीर है एमएसपी की गारंटी वाला कानून, एमएसपी कानून की माँग किसान और देश…

खेती बन रही घाटे का सौदा ! एमएसपी की बजाय ये मांग ज्यादा जरूरी

MSP guarantee law : बड़ी टेढ़ी खीर है एमएसपी की गारंटी वाला कानून, एमएसपी कानून की माँग किसान और देश के हित में नहीं है। फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं। ऐसे में अगर सरकार ने एमएसपी पर गारंटी दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा। दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने से पहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा। देश में पैदा होने वाली हर फसल को एमएसपी के दायरे में लाने की किसानों की बड़ी मांग को मानने का मतलब होगा, पूरा केंद्रीय बजट इसके लिए समर्पित करना। इससे अगले पांच सालों के लिए भारत की”तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” का लक्ष्य गंभीर खतरे में पड़ जाएगा और लोगों को डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के जरिए ज्यादा टैक्सेशन का सामना करना पड़ेगा।

एमएसपी कानून से सरकार पर लगभग 10 लाख करोड़ रुपया अतिरिक्त खर्च आएगा

-डॉ. सत्यवान सौरभ

एमएसपी का उद्देश्य फसल की कीमत में उतार-चढाव के बीच किसानों को नुकसान से बचाना है। इसकी गारंटी आज देश में सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है जो व्यावहारिक, संभव नहीं है। भारत सरकार सिर्फ 23 फसलों पर ही एमएसपी की घोषणा करती है। उनमें भी गेहूं और धान की फसलों की खरीद ही एमएसपी पर होती है, क्योंकि खाद्य सुरक्षा और भंडारण के लिए सरकार को इन फसलों की व्यापक खरीद करनी पड़ती है। किसानों की निरंतर मांग रही है कि एमएसपी गारंटी कानून बनाया जाए। इसके मायने होंगे कि सरकार ने कागज पर उतना दाम दिलाने का वायदा किया है। लेकिन सरकार यह तय नहीं कर सकती कि वह कितनी मात्रा खरीदना चाहती है। किसानों द्वारा सरकार को कितना अनाज दिया जाता है? खरीदना होगा। बाजार कीमतें एमएसपी से तय होती हैं जो ज्यादातर समय ऊंची ही रहती है। एमएसपी-आधारित खरीद प्रणाली की बड़ी समस्या बिचौलियों, कमीशन एजेंटों पर कामकाजी निर्भरता और एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) के अधिकारियों की लालफीताशाही है। एक औसत किसान के लिए इन मंडियों तक पहुंच पाना मुश्किल होता है और वह कृषि उपज बेचने के लिए बाजार पर निर्भर रहता है। वर्तमान प्रणाली विशेष फसलों की बाजार में बहुतायत पैदा करती है। इससे साल-दर-साल गहन खेती होती है, जिससे मिट्टी का क्षरण होता है। किसान अपनी समस्याओं के समाधान के लिए बाज़ार के अनुरूप ढलने के बजाय राजनीतिक दबाव पर भरोसा करते हैं। यह सब इस क्षेत्र में निजी निवेश को दूर रखता है और इस प्रकार कृषि में पिछड़ेपन में योगदान देता है। यह मिट्टी को ख़राब करता है क्योंकि मिट्टी की स्थिति चाहे जो भी हो, कुछ फसलों को प्राथमिकता दी जाती है जिनके ऊपर एमएसपी होता है जिसके परिणामस्वरूप समूह के जल संसाधनों का दोहन, क्षारीयता, लंबे समय में फसलों के उत्पादन में कमी और पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। अगर MSP guarantee law लाया जाता है तो सरकार की नज़र अतिरिक्त व्यय पर होगी जो सालाना 10 लाख करोड़ होगा; जो हमारे पिछले वर्ष के बुनियादी बजट से भी अधिक है। इसलिए इसकी मांग का कोई अर्थ नहीं है। यह सच है की खेती घाटे का सौदा बन गयी है लेकिन खेती क्या किसी भी उत्पाद का मूल्य सरकार तय नहीं कर सकती। सरकार के पास भी आर्थिक स्त्रोतों की एक सीमा होती है।

एमएसपी-आधारित खरीद प्रणाली की बड़ी समस्या बिचौलियों, कमीशन एजेंटों पर कामकाजी निर्भरता और एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) के अधिकारियों की लालफीताशाही है

MSP guarantee law की राह के रोड़े

एमएसपी प्रणाली न्यूनतम मूल्य तय करने वाले कानून की परिकल्पना करती है ताकि किसान को आर्थिक रूप से नुकसान न हो। एमएसपी कोलेकर कानूनी बाधाएं एक जटिल मुद्दा है। इसके अलावा, ये सिर्फ कानूनी मुद्दे नहीं हैं, बल्कि कार्यान्वयन के और भी मुद्दे हैं। कानूनी तौर पर इन्हें उतनी आसानी से हल नहीं किया जा सकता है,जितनी किसान उम्मीद कर रहे हैं कि ये हो जाएंगे। पिछले साल ज्वार, तुअर, कपास, उड़दऔर धान (गैर-बासमती) की अखिल भारतीय औसत कीमतें उनके एमएसपी से 5 से 38 प्रतिशत तकअधिक थीं। कर्नाटक में मक्के की कीमतें एमएसपी से अधिक थीं, लेकिन पूरे भारत में वे कम दिख रही थीं जो अन्य राज्यों में कम गुणवत्ता के कारण हो सकता है। दरअसल कीमतों का यहउतार-चढ़ाव ही एमएसपी पर गारंटी के लिए सबसे बड़े बाधक के रूप में सामने आ रहा है। दूसरा, पंजाब की मुख्यफसल धान व गेहूं है, दोनों पर एमएसपी पहले से है और इसकी खरीद सरकार कर रही है। वहीं, एमएसपी पर कानून बनने से बाकी फसलों को खरीदना भी सरकार की मजबूरी होगी और उनको स्टोर करना व आगे बेचना सरकार की जिम्मेदारी बन जाएगी। इसलिए MSP guarantee law आसान नहीं है। एमएसपी हमेशा फसल की एक ”फेयर एवरेजक्वालिटी” के लिए दिया जाता है। यानी कि जब फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं। ऐसे में अगर सरकार ने MSP की guarantee दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा। दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने से पहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा। देश में पैदा होने वाली हर फसल को एमएसपी के दायरे में लाने की किसानों की बड़ी मांग को मानने का मतलब होगा, पूरा केंद्रीय बजट इसके लिए समर्पित करना। इससे अगले पांच सालों के लिए भारत की”तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” का लक्ष्य गंभीर खतरे में पड़ जाएगा और लोगों को डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के जरिए ज्यादा टैक्सेशन कासामना करना पड़ेगा।

किसानो का भला तब होगा जब उनकी कृषि लगत कम होगी और उनकी उपज बिना किसी बिचौलिए के मंडी तक पहुंचेगी

MSP guarantee law
किसानों का फायदा पहुंचाने और उन्हें किसी भी नुकसान से बचाने के लिए फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था काफी सालों से चल रही है। केंद्रीय सरकार फसलों की निम्नतम कीमत तय करती है जिसे एमएसपी या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है। सवाल यह उठता है की क्या एमएसपी कानून बनाने से किसानों की सारी समस्याएं हल हो जाएगी? अभी सरकार लगभग 23 फसलों पर एमएसपी देती है। क्या किसान इन सभी फसलों को एमएसपी पर बेचते है? कई बार ऐसा होता है कि कई फसलें एमएसपी से कम या एमएसपी से ज्यादा मूल्य पर बेचीं जाती है। दरअसल फसलों के दाम बहुत हद तक हालात पर निर्भर करते है। इसलिए एमएसपी घोषित होने के बावजूद अलग-अलग दामों पर फसलें बेचीं जाती है। जब कोई खरीदार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भुगतान करने को तैयार नहीं होगा तो सरकार के पास बड़ी मात्रा में उपज का भंडारण करने के लिए आवश्यक भौतिक संसाधन नहीं हो सकते हैं। सरकार को खरीद और उन खरीदों को करने में तेजी की एक और चिंता का भी सामना करना पड़ेगा। एमएसपी लगाने से भारत के निर्यात पर असर पड़ सकता है, क्योंकि निजी व्यापारियों को एमएसपी पर खरीदारी करने के लिए मजबूर करना मुश्किल हो सकता है। साथ ही, जो किसान उक्त फसलें नहीं उगाते हैं वे इस मांग का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। ये सरकार ही है कि विपरीत परिस्थितियों में किसानों कि जेब पर बोझ नहीं पड़ने देती किसानों को समझना होगा कि एमएसपी घोषित होने से उनका भला नहीं होगा। उनका भला तब होगा जब उनकी कृषि लगत कम होगी और उनकी उपज बिना किसी बिचौलिए के मंडी तक पहुंचेगी। स्टार्टअप के इस युग में किसानों को एमएसपी कि बजाय मार्केटिंग कि मांग करनी चाहिए। MSP guarantee law से सरकार पर लगभग 10 लाख करोड़ रुपया अतिरिक्त खर्च आएगा। इसके लिए देश का बुनियादी ढांचा ही बिगड़ जायेगा या फिर चिकित्सा /रक्षा खर्च में कटौती होगी। या जनता पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टैक्स लगेंगे। क्या देश इंफ्रा और डिफेंस से सरकारी खर्च को कम करने के पक्ष में होगा? क्या डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स को बढ़ाने के पक्ष में कोई है या होगा? ऐसे में समस्या कृषि या आर्थिक नहीं है। देश की अर्थव्यस्था सँभालने की जिम्मेदारी केवल सरकार की न होकर प्रत्येक नागरिक की है।

किसान आंदोलन का भविष्य क्या होगा ? इन गारंटियों की क्या गारंटी !

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