बढ़ते हुए प्रदूषण के साथ ही बढ़ रही है समाज की चिंता
नोएडा क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता तथा पत्रकार अंजना भागी ने अपने खास अंदाज में प्रदूषण की बढ़ती हुई चिंता का विश्लेषण किया है। हम यहां अंजना भागी का विश्लेषण ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं।

Noida News : नोएडा से लेकर ग्रेटर नोएडा, दिल्ली अथवा NCR के हर शहर में हवा में फैला हुआ प्रदूषण विकराल रूप में सबके सामने है। नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता यानि AQI बार-बार पुराने सारे रिकार्ड तोडक़र हर रोज खराब स्तर पर दर्ज किया जा रहा है। ऐसे में नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा के नागरिकों की चिंता लगातार बढ़ रही है। नोएडा क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता तथा पत्रकार अंजना भागी ने अपने खास अंदाज में प्रदूषण की बढ़ती हुई चिंता का विश्लेषण किया है। हम यहां अंजना भागी का विश्लेषण ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं।
क्या आँखें बंद कर लेने से काम चल जाएगा
क्या कबूतर के आँखें बंद कर लेने से वह बिल्ली से बच सकता है? नहीं। और आज यही स्थिति हमारे समाज की हो रही है। हम प्रदूषण के सामने आँखें मूँदे बैठे हैं, यह सोचकर कि शायद खतरा टल जाएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि अब न कोई राम का नाम लेकर मरेगा, न रहीम कहने से। यदि लोग मरेंगे तो साँसों के घुटने से, साँस जनित बीमारियों से, फेफड़ों के रोग, कैंसर, अस्थमा और एलर्जी से। बच्चे से बुज़ुर्ग तक—कोई सुरक्षित नहीं इस अदृश्य युद्ध में न उम्र देखी जा रही है, न ताक़त। बच्चे, युवा और वृद्ध—सब समान रूप से इसकी चपेट में हैं। यह प्रदूषण किसी को चेतावनी नहीं देता, सीधे वार कर रहा है। और यह भी सच है।
प्यूरीफायर समाधान नहीं, भ्रम है
आज समाधान के नाम पर एयर प्यूरीफायर को जादुई यंत्र की तरह पेश किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है— जो लोग दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे, वे प्यूरीफायर कहाँ से खरीदेंगे? कहाँ लगाएंगे? और बिजली के भरोसे अपने फेफड़ों को कैसे बचाएँगे? इलाज- सरकारी और निजी—दोनों की त्रासदी। सरकारी अस्पतालों में दवा मिल गई तो आप बच गए, दवा नहीं मिली तो अगली सुबह फिर वही रोगी को लगने को लंबी लाइन। निजी अस्पतालों में इलाज कराइए तो एक व्यक्ति शायद ठीक हो जाए, लेकिन पूरा परिवार आर्थिक रूप से बीमार हो जाता है। यह भी एक तरह की मौत ही है—धीमी और पीड़ादायक।
600-700 के पार : जब प्रदूषण यंत्र भी चुप हो जाता है
जब प्रदूषण का स्तर 600-700 के पार चला जाता है, तो उसके आँकड़े भी बोलना बंद कर देते हैं। नोएडा के सेक्टर 98 जैसे इलाक़ों में, जहाँ प्रदूषण मापने वाले यंत्र लगे हैं, वहाँ लगातार पानी की बौछारें चल रही हैं। प्रश्न यह है— क्या यही अब आम आदमी का भविष्य बनने वाला है? प्रदूषण जाति नहीं, फेफड़े और उनकी मजबूती के आधार पर प्रहार करता है प्रदूषण यह नहीं पूछता कि आप किस जाति, वर्ग या धर्म के हैं। वह केवल यह देखता है कि आपके फेफड़ों की सहनशक्ति कितनी है। आसमान आज भी नीला है—उम्मीद जि़ंदा है सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि आसमान हर समय काला नहीं रहता।
वह आज भी कई बार नीला दिखाई देता है। इसका अर्थ साफ़ है— यह समस्या लाइलाज नहीं है। लेकिन इसके लिए सामूहिक संकल्प चाहिए। एक ही शहर, और कई तरह की साँसें अपने ही शहर में चलिए— कुछ जगहों पर हवा खुली लगती है, और कुछ जगहों पर जहाँ आज भी लोग चूल्हे पर रोटी बनाते हैं, जहाँ हर काम आग जलाकर होता है वहाँ साँस लेना भी किसी त्योहार से कम नहीं।
धूल, सडक़ें और PM 2.5
सडक़ों पर अत्यधिक भार के कारण बारीक धूल हर समय उड़ती रहती है। यह धूल आसमान तक तो शायद नहीं जाती, लेकिन इंसान की साँस की ऊँचाई तक जरूर पहुँच जाती है। यदि सडक़ों का भार हटे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सक्रिय किया जाए, और PM 2.5 को नियंत्रित करने के ठोस उपाय हों— तो बड़ा बदलाव संभव है। सर्दी से बचने के लिए या कूडे से पीछा छुड़ाने के लिए ही पॉलिथीन, कूड़ा, लकड़ी जो कुछ भी जलाया जा रहा है, उस पर यदि थोड़ा-सा भी नियंत्रण हो, तो यकीन मानिए हालात बेहतर हो सकते हैं। यह जंग अकेली सरकार नहीं लड़ सकती यह युद्ध केवल सरकार का नहीं है। यह जंग हर नागरिक को लडऩी होगी। सरकार को तो नियंत्रण और अपने हर नागरिकों के जीवन का सम्मान हम पद, प्रतिष्ठा और अधिकारों के लिए लड़ते रहे, अपने-अपने घरों में प्यूरीफायर लगाकर यह मानकर सो गए कि हम सुरक्षित हैं। लेकिन क्या कोई 24 घंटे प्यूरीफायर के सामने बैठकर जीवन जी सकता है? क्या प्यूरीफायर को साथ लेकर सडक़ों पर चलना संभव है? ऑक्सीजन सिलेंडर से पहले चेत जाना होगा। इससे पहले कि वह समय आए जब हर व्यक्ति ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर सडक़ पर निकले हमें जागना होगा। हर व्यक्ति को पर्यावरण का सिपाही बनना होगा। आज नहीं तो बहुत देर हो जाएगी। नवंबर में बढ़ी मौतों की संख्या यदि हर वर्ष इसी तरह बढ़ती रही, तो यह आँकड़ा घटेगा नहीं और भयावह होता जाएगा। प्रदूषण के खिलाफ पहल हमें ही करनी होगी। आज नहीं तो कल— लेकिन अगर अब भी नहीं, तो शायद बहुत देर हो जाएगी। हर सुबह यदि आप अपने फोन में देखें तो वह आपको प्रदूषण की असली दर बता रहा है कभी 600, 700 या जो कुछ भी है। Noida News
Noida News : नोएडा से लेकर ग्रेटर नोएडा, दिल्ली अथवा NCR के हर शहर में हवा में फैला हुआ प्रदूषण विकराल रूप में सबके सामने है। नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता यानि AQI बार-बार पुराने सारे रिकार्ड तोडक़र हर रोज खराब स्तर पर दर्ज किया जा रहा है। ऐसे में नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा के नागरिकों की चिंता लगातार बढ़ रही है। नोएडा क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता तथा पत्रकार अंजना भागी ने अपने खास अंदाज में प्रदूषण की बढ़ती हुई चिंता का विश्लेषण किया है। हम यहां अंजना भागी का विश्लेषण ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं।
क्या आँखें बंद कर लेने से काम चल जाएगा
क्या कबूतर के आँखें बंद कर लेने से वह बिल्ली से बच सकता है? नहीं। और आज यही स्थिति हमारे समाज की हो रही है। हम प्रदूषण के सामने आँखें मूँदे बैठे हैं, यह सोचकर कि शायद खतरा टल जाएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि अब न कोई राम का नाम लेकर मरेगा, न रहीम कहने से। यदि लोग मरेंगे तो साँसों के घुटने से, साँस जनित बीमारियों से, फेफड़ों के रोग, कैंसर, अस्थमा और एलर्जी से। बच्चे से बुज़ुर्ग तक—कोई सुरक्षित नहीं इस अदृश्य युद्ध में न उम्र देखी जा रही है, न ताक़त। बच्चे, युवा और वृद्ध—सब समान रूप से इसकी चपेट में हैं। यह प्रदूषण किसी को चेतावनी नहीं देता, सीधे वार कर रहा है। और यह भी सच है।
प्यूरीफायर समाधान नहीं, भ्रम है
आज समाधान के नाम पर एयर प्यूरीफायर को जादुई यंत्र की तरह पेश किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है— जो लोग दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे, वे प्यूरीफायर कहाँ से खरीदेंगे? कहाँ लगाएंगे? और बिजली के भरोसे अपने फेफड़ों को कैसे बचाएँगे? इलाज- सरकारी और निजी—दोनों की त्रासदी। सरकारी अस्पतालों में दवा मिल गई तो आप बच गए, दवा नहीं मिली तो अगली सुबह फिर वही रोगी को लगने को लंबी लाइन। निजी अस्पतालों में इलाज कराइए तो एक व्यक्ति शायद ठीक हो जाए, लेकिन पूरा परिवार आर्थिक रूप से बीमार हो जाता है। यह भी एक तरह की मौत ही है—धीमी और पीड़ादायक।
600-700 के पार : जब प्रदूषण यंत्र भी चुप हो जाता है
जब प्रदूषण का स्तर 600-700 के पार चला जाता है, तो उसके आँकड़े भी बोलना बंद कर देते हैं। नोएडा के सेक्टर 98 जैसे इलाक़ों में, जहाँ प्रदूषण मापने वाले यंत्र लगे हैं, वहाँ लगातार पानी की बौछारें चल रही हैं। प्रश्न यह है— क्या यही अब आम आदमी का भविष्य बनने वाला है? प्रदूषण जाति नहीं, फेफड़े और उनकी मजबूती के आधार पर प्रहार करता है प्रदूषण यह नहीं पूछता कि आप किस जाति, वर्ग या धर्म के हैं। वह केवल यह देखता है कि आपके फेफड़ों की सहनशक्ति कितनी है। आसमान आज भी नीला है—उम्मीद जि़ंदा है सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि आसमान हर समय काला नहीं रहता।
वह आज भी कई बार नीला दिखाई देता है। इसका अर्थ साफ़ है— यह समस्या लाइलाज नहीं है। लेकिन इसके लिए सामूहिक संकल्प चाहिए। एक ही शहर, और कई तरह की साँसें अपने ही शहर में चलिए— कुछ जगहों पर हवा खुली लगती है, और कुछ जगहों पर जहाँ आज भी लोग चूल्हे पर रोटी बनाते हैं, जहाँ हर काम आग जलाकर होता है वहाँ साँस लेना भी किसी त्योहार से कम नहीं।
धूल, सडक़ें और PM 2.5
सडक़ों पर अत्यधिक भार के कारण बारीक धूल हर समय उड़ती रहती है। यह धूल आसमान तक तो शायद नहीं जाती, लेकिन इंसान की साँस की ऊँचाई तक जरूर पहुँच जाती है। यदि सडक़ों का भार हटे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सक्रिय किया जाए, और PM 2.5 को नियंत्रित करने के ठोस उपाय हों— तो बड़ा बदलाव संभव है। सर्दी से बचने के लिए या कूडे से पीछा छुड़ाने के लिए ही पॉलिथीन, कूड़ा, लकड़ी जो कुछ भी जलाया जा रहा है, उस पर यदि थोड़ा-सा भी नियंत्रण हो, तो यकीन मानिए हालात बेहतर हो सकते हैं। यह जंग अकेली सरकार नहीं लड़ सकती यह युद्ध केवल सरकार का नहीं है। यह जंग हर नागरिक को लडऩी होगी। सरकार को तो नियंत्रण और अपने हर नागरिकों के जीवन का सम्मान हम पद, प्रतिष्ठा और अधिकारों के लिए लड़ते रहे, अपने-अपने घरों में प्यूरीफायर लगाकर यह मानकर सो गए कि हम सुरक्षित हैं। लेकिन क्या कोई 24 घंटे प्यूरीफायर के सामने बैठकर जीवन जी सकता है? क्या प्यूरीफायर को साथ लेकर सडक़ों पर चलना संभव है? ऑक्सीजन सिलेंडर से पहले चेत जाना होगा। इससे पहले कि वह समय आए जब हर व्यक्ति ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर सडक़ पर निकले हमें जागना होगा। हर व्यक्ति को पर्यावरण का सिपाही बनना होगा। आज नहीं तो बहुत देर हो जाएगी। नवंबर में बढ़ी मौतों की संख्या यदि हर वर्ष इसी तरह बढ़ती रही, तो यह आँकड़ा घटेगा नहीं और भयावह होता जाएगा। प्रदूषण के खिलाफ पहल हमें ही करनी होगी। आज नहीं तो कल— लेकिन अगर अब भी नहीं, तो शायद बहुत देर हो जाएगी। हर सुबह यदि आप अपने फोन में देखें तो वह आपको प्रदूषण की असली दर बता रहा है कभी 600, 700 या जो कुछ भी है। Noida News












