Wednesday, 27 November 2024

ये हैं, यूपी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाले 11 मुद्दे

यूपी ऐसा राज्य है जहां से लोकसभा और राज्यसभा के सबसे ज्यादा सांसद आते हैं। यूपी, आबादी के लिहाज से…

ये हैं, यूपी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाले 11 मुद्दे

यूपी ऐसा राज्य है जहां से लोकसभा और राज्यसभा के सबसे ज्यादा सांसद आते हैं। यूपी, आबादी के लिहाज से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। चीन, अमेरिका और इंडोनेशिया (भारत) को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश की आबादी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से ज्यादा नहीं है। यानी, यूपी का चुनाव दुनिया के ज्यादातर देशों के राष्ट्रीय चुनावों से भी बड़ा है।

इतना ही नहीं, भारत के 14 में से 9 प्रधानमंत्री अकेले उत्तर प्रदेश से आते हैं। आजादी के बाद लगभग छह दशक तक भारत की राजनीति के केंद्र में रहने वाले नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ भी यूपी ही रहा है और फिलहाल, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) यूपी के बनारस (Varanasi) से सांसद हैं।

मंडल की राजनीति की औपचारिक शुरुआत करने वाले वीपी सिंह रहे हों या कमंडल की राजनीति के प्रणेता लालकृष्ण आडवाणी। इन सबकी कर्मभूमि उत्तर प्रदेश ही रही है। यही वजह है कि यूपी चुनाव (UP Election 2022) और इसका परिणाम केवल एक प्रदेश ही नहीं, देश के ज्यादातर हिस्से में कौतुलह पैदा करता है।

कुछ घंटों बाद यूपी चुनाव के नतीजे (UP Election 2022 result) सबके सामने होंगे। चुनाव, आम जनता की राजनीतिक समझ को जानने का सबसे सटीक अवसर होते हैं। इस दौरान हमने गोरखपुर (Gorakhpur) के चौरीचौरा से लेकर मथुरा (Mathura) के विश्राम घाट तक कई शहरों और वहां रहने वालों से यह समझने का प्रयास किया कि आखिर उनके लिए इस चुनाव का मुख्य मुद्दा क्या है।

पहला मुद्दा: बीजेपी (BJP)के धुर समर्थक भी दबे मन से ही सही लेकिन, इस बात से इनकार नहीं कर पाए कि बेरोजगारी, महंगाई और आवारा पशु के चलते आम आदमी की परेशानी बढ़ी है।

दूसरा मुद्दा: योगी सरकार के घोर विरोधी भी यह मानते हैं कि पिछले पांच साल में गुंडा राज कम हुआ है और कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरी है। सड़कें और बिजली की हालत में सुधार हुआ है। गरीबों को आवास और मुफ्त राशन मिला है। किसानों के बैंक खाते में पैसे आए हैं।

तीसरा मुद्दा: चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार के कुछ मंत्रियों का इस्तीफा देना और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में शामिल होने जैसी घटना ने अचानक अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का कद बड़ा कर दिया। सरकार के समर्थक और विरोधी, दोनों यह मानने लगे कि इस बार लड़ाई दो-तरफा है और फैसला किसी के भी पक्ष में आ सकता है।

चौथा मुद्दा: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन और लखीमपुर खेड़ी की घटना के बाद लोग यह मानने लगे कि किसान और पश्चिमी यूपी का जाट समुदाय योगी सरकार से नाराज है। आरएलडी (RLD) नेता जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) का अखिलेश यादव से हाथ मिलाना इसका सबसे बड़ा प्रमाण माना गया।

पांचवां मुद्दा: ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे क्षत्रपों और पिछड़ी जातियों के छोटे-छोटे वर्गों के नेताओं का समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाने के बाद माना जाने लगा कि अखिलेश यादव ने बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग की हवा निकाल दी है। जातियों के इसी समीकरण को साधने के कारण 2017 के चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 40 के करीब पहुंच गया था।

छठवां मुद्दा: चुनाव की घोषणा से पहले और बाद में बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) और इसकी मुखिया मायावती (Mayawati) की कम सक्रीयता के चलते यह माना जाने लगा कि जाटव समाज को छोड़कर अन्य अति-पिछड़े वर्गों का वोट कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में बंट सकता है। इससे भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मुसीबतें बढेंगी।

सातवां मुद्दा: योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के दो बयानों ने यूपी चुनाव को दिलचस्प बना दिया। अस्सी-बीस और जून में जनवरी की गर्मी वाले बयानों के बाद यह माना जाने लगा कि बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है। विशेषज्ञों सहित, आम आदमी को भी लगने लगा कि इस बार मुसलमान केवल बीजेपी (BJP) को हराने के लिए एकतरफा वोट डालेंगे। यानी, मुसलमानों के वोट कांग्रेस (Congress), सपा (SP) और बसपा (BSP) में बंटेंगे नहीं और बीजेपी को तो बिलकुल नहीं जाएंगे।

आठवां मद्दा: यह भी धारणा बनती दिखी कि यूपी की जनता किसी भी सरकार को एक से ज्यादा मौका नहीं देती। हर पांच साल पर यहां सरकार बदलती रहती है इसलिए, इस बार भी बदलाव तय है।

नौवां मुद्दा: चुनाव के पहले ओपिनियन पोल (Opinion Poll) और चुनाव के बाद सभी एग्जिट पोल (Exit Poll) के अनुमानों में बीजेपी को बहुमत के सबसे करीब पहुंचने वाली पार्टी बताया गया। साथ ही, समाजवादी पार्टी की सीटों में भी बड़े उछाल का संकेत दिया गया। इससे भी आम लोगों में यह राय बनी कि यूपी में इस बार का चुनाव दो ध्रुवीय है और सरकार किसी की भी बन सकती है।

दसवां मुद्दा: भारत के ज्यादातर राज्यों में चुनाव के दौरान महिलाओं की राय को कम ही जगह मिल पाती है। महिलाएं अपनी राय खुलकर बताती भी नहीं हैं लेकिन, यूपी की कानून व्यवस्था में सुधार के मुद्दे ने सबसे ज्यादा इसी वर्ग को प्रभावित किया है। हालांकि, महंगाई और बेरोजगारी का सीधा असर भी रसोई पर पड़ता है।

महिलाओं के लिए कानून व्यवस्था, महंगाई और बेरोजगारी में से कौन सा मुद्दा सबसे अहम है यह तो नतीजों के बाद ही पता चलेगा। हालांकि, यह तय है कि महिलाओं की अपनी प्राथमिकताएं हैं और ज्यादातर महिलाएं उनके आधार पर ही वोट करने का मन बना चुकी थीं।

पुरुषों में भी एक बड़ा तबका ऐसा है जो आवास, मुफ्त राशन और कैश ट्रांसफर जैसे लाभ को सरकार की उपलब्धि मानता है। बिजली, सड़क और पीने के पानी की बढ़ती पहुंच से भी लोग प्रभावित हैं। इसके बावजूद महंगाई, बेरोजगारी और अवारा पशुओं की समस्या भी उनके लिए चुनावी मुद्दा रहा है। वोट डालते समय कौन सा मुद्दा हावी रहा होगा इसका पता तो 10 मार्च को ही चलेगा।

ग्यारहवां मुद्दा: 2017 के चुनाव के बाद अचानक सीएम बनने के बाद पिछले पांच साल में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अपनी एक विशेष छवि बनाई है। गुंडों और माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही के चलते उन्हें ‘बुलडोजर बाबा’ कहा गया। यानी, एक सख्त प्रशासक के तौर पर खुद को स्थापित करने में सफल रहे हैं। साथ ही, योगी का अपना परिवार न होना, भ्रष्टाचार से दूरी और गेरुआ पहनावे ने उन्हें हिंदुओं के बड़े और ईमानदार नेता के तौर पर स्थापित किया है।

पिछले पांच साल में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अपना खुद का प्रशंसक वर्ग तैयार किया है जो उन्हें अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखता है। हालांकि, एक बड़ा तबका योगी की इस छवि से बेहद नाराज दिखता है और इसे कट्टरता को बढ़ावा देने वाला मानता है। कौन सा वर्ग किस पर भारी पड़ेगा, यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही स्पष्ट होगा।

यूपी के लोग जाति या धर्म के आधार पर बंटे नहीं हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हालांकि, अब वोटरों को केवल इन खांचों में बांट कर नहीं देखा जा सकता। शिक्षा के बढ़ते स्तर, इंटरनेट और सूचनाओं की आसान पहुंच ने एक ऐसा वर्ग तैयार किया है जो जाति, धर्म के बजाए सरकारों के प्रदर्शन और असल मुद्दों के आधार पर वोट करने के लिए तैयार है।

इसमें बड़ा तबका युवा लड़के-लड़कियों का है। यह वर्ग चुनाव परिणामों को किसी भी दिशा में मोड़ सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले कुछ चुनावों की ही तरह इस बार भी महिलाओं का वोट ही निर्णायक साबित होने वाला है। इस वर्ग के बारे में अनुमान लगाना आसान नहीं है क्योंकि, आमतौर यूपी-बिहार की ग्रामीण महिलाएं खुलकर बोलने से कतराती हैं।

– संजीव श्रीवास्तव

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