अवैध घुसपैठियों पर योगी सरकार का कड़ा प्रहार, बायोमैट्रिक लिस्ट से होगी पहचान

उत्तर प्रदेश गृह विभाग की योजना है कि ऐसे हर व्यक्ति को एक विशेष “निगेटिव लिस्ट” में दर्ज किया जाए, जिसे उत्तर प्रदेश के दायरे से बाहर ले जाकर केंद्र सरकार और देश के तमाम राज्यों की एजेंसियों के साथ भी शेयर किया जाएगा।

योगी सरकार का हाईटेक एक्शन मोड, हर घुसपैठिए की बनेगी बायोमैट्रिक प्रोफाइल
योगी सरकार का हाईटेक एक्शन मोड, हर घुसपैठिए की बनेगी बायोमैट्रिक प्रोफाइल
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar10 Dec 2025 11:10 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवैध घुसपैठ के खिलाफ कड़ा प्लान तैयार किया है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसे लेकर तैयारियां भी शुरू कर दी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अवैध घुसपैठ को लेकर अब सबसे कड़ा और फुल प्रूफ प्लान तैयार किया है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवैध घुसपैठ के खिलाफ अबकी बार ऐसा मास्टर प्लान तैयार किया है, जिसे राज्य की सुरक्षा रणनीति का सबसे कड़ा और हाईटेक अध्याय माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश अब सिर्फ कागजी सख्ती तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि जमीन पर ऐसा डिजिटल घेरा खड़ा करने की दिशा में बढ़ चुका है, जिसमें पकड़े गए हर घुसपैठिए की पहचान, मूवमेंट और पूरा रिकॉर्ड बायोमैट्रिक निगरानी से जकड़ा रहेगा। मंशा साफ है – एक बार अगर कोई अवैध घुसपैठिया उत्तर प्रदेश की पकड़ में आ गया, तो उसके लिए दुबारा भारतीय सीमा, खासकर उत्तर प्रदेश की जमीन पर कदम रख पाना लगभग नामुमकिन कर दिया जाए।।

यूपी में हर घुसपैठिए की होगी बायोमैट्रिक पहचान

उत्तर प्रदेश में अब किसी भी अवैध घुसपैठिए का रिकॉर्ड सिर्फ कागज पर लिखे नाम–पते तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उसकी पूरी बायोमैट्रिक पहचान उत्तर प्रदेश के हाईटेक सिस्टम में लॉक कर दी जाएगी। चेहरे की बायोमैट्रिक डिटेल, उंगलियों के निशान और जरूरी सूचनाओं का पूरा डेटा एक केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म पर सुरक्षित रखा जाएगा। उत्तर प्रदेश गृह विभाग की योजना है कि ऐसे हर व्यक्ति को एक विशेष “निगेटिव लिस्ट” में दर्ज किया जाए, जिसे उत्तर प्रदेश के दायरे से बाहर ले जाकर केंद्र सरकार और देश के तमाम राज्यों की एजेंसियों के साथ भी शेयर किया जाएगा। मकसद साफ है अगर वही घुसपैठिया दोबारा किसी दूसरे राज्य की सीमा पर या किसी ज़िले में पकड़ा जाए, तो यूपी में तैयार यह डिजिटल प्रोफाइल उसकी पहचान तुरंत बेनकाब कर सके।

दोबारा घुसपैठ की कोशिश पर सीधे जेल का रास्ता

उत्तर प्रदेश सरकार की इस सख्त व्यवस्था का सीधा संदेश साफ है जो घुसपैठिया एक बार उत्तर प्रदेश की गिरफ्त में आया, उसकी पूरी डिटेल ‘निगेटिव लिस्ट’ में लॉक होगी, डिपोर्ट भी किया जाएगा और अगर उसके बाद उसने दोबारा भारतीय सीमा, खासकर उत्तर प्रदेश की धरती पर लौटने की जुर्रत की, तो उसे कहीं भी न तो “राहत” मिलेगी, न “शरण”। अगला ठिकाना सीधे जेल और उसके साथ तेज रफ्तार कानूनी कार्रवाई होगी। अधिकारियों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश से तैयार यह हाईटेक डेटाबेस रियल टाइम में अपडेट रहेगा और इंटेलिजेंस नेटवर्क, केंद्रीय एजेंसियों और देश के दूसरे राज्यों की पुलिस से लगातार जुड़ा रहेगा। यही वजह है कि अवैध घुसपैठ के खिलाफ शुरू हुआ यह यूपी मॉडल, आने वाले समय में राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे की एक मजबूत ढाल के रूप में देखा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में बन रहे हाई सिक्योरिटी डिटेंशन सेंटर

योगी सरकार की योजना है कि ऐसे हर संदिग्ध को सुनियोजित और सुरक्षित निगरानी में रखने के लिए प्रदेश में आधुनिक डिटेंशन सेंटर विकसित किए जाएँ, जो किसी हाई सिक्योरिटी ज़ोन से कम न हों। इन सेंटरों में हाई रेज़ोल्यूशन सीसीटीवी नेटवर्क, बायोमैट्रिक एक्सेस कंट्रोल, 24×7 सशस्त्र सुरक्षा घेरा और मूवमेंट की रियल टाइम मॉनिटरिंग जैसी व्यवस्थाएँ प्रस्तावित हैं, ताकि उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर होने वाली हर संदिग्ध हलचल तुरंत रिकॉर्ड हो सके। अधिकारियों का दावा है कि सुरक्षा के इस बहुस्तरीय इंतज़ाम के बाद इन डिटेंशन सेंटरों से ‘फरार’ होने की गुंजाइश लगभग शून्य रह जाएगी और उत्तर प्रदेश अवैध घुसपैठ के खिलाफ देशभर में एक सख्त और व्यवस्थित मॉडल के तौर पर सामने आएगा।

नेपाल–बांग्लादेश बॉर्डर से घुसपैठ पर खास फोकस

उत्तर प्रदेश की संवेदनशील भौगोलिक स्थिति को देखते हुए नेपाल और बांग्लादेश से आने वाले रूट्स पर सरकार की नजर पहले से कहीं ज्यादा पैनी हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में यूपी के कई जिलों खासकर सीमा और महानगरों के आसपास ऐसे लोगों की बड़ी संख्या पकड़ी गई है, जो फर्जी दस्तावेज, बदले हुए नाम या नकली पते के सहारे उत्तर प्रदेश में चुपचाप बसने की कोशिश कर रहे थे। इन्हीं मामलों ने उत्तर प्रदेश पुलिस और इंटेलिजेंस यूनिट्स को एक साझा, हाईटेक रणनीति पर काम करने के लिए मजबूर किया। अब SIR यानी विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण, आधार सत्यापन और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों की क्रॉस–वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को तेज किया गया है, ताकि कोई भी अवैध घुसपैठिया उत्तर प्रदेश के सिस्टम में ‘लोकल नागरिक’ बनकर घुसने की कोशिश करे, तो उसकी पहचान तुरंत बेनकाब हो जाए।

यूपी से बनेगा राष्ट्रीय सुरक्षा का नया मॉडल

गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में तैयार हो रहा यह “बायोमैट्रिक निगेटिव प्रोफाइल” सिस्टम सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर का रूटीन कदम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के ढांचे में बड़ा स्ट्रक्चरल रिफॉर्म है, जिसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश की धरती से हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा है कि जिन जिलों में डिटेंशन सेंटर के लिए जमीन चिह्नित हो चुकी है, वहां चरणबद्ध तरीके से निर्माण शुरू कर तय समयसीमा में इन्हें ऑपरेशनल किया जाए और समानांतर रूप से उत्तर प्रदेश में तैयार हो रहा यह विशाल डेटाबेस पूरे देश के लिए रेफरेंस मॉडल बन सके। सरकारी हलकों में यह उम्मीद भी जताई जा रही है कि अवैध घुसपैठ पर लगाम लगाने के साथ–साथ उत्तर प्रदेश की यह सख्त नीति फर्जी दस्तावेज, हवाला नेटवर्क, मानव तस्करी और संगठित अपराध जैसी गतिविधियों पर भी ऐसा ब्रेक लगाएगी, जिसकी गूंज लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सुनी जाएगी। UP News

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गोरखपुर में सुहागरात पर तकरार, अगली सुबह ही तलाक की जिद पर अड़ी दुल्हन

बात घर की चारदीवारी तक सीमित न रहकर सीधे सहजनवां थाने पहुंच गई, जहाँ दो दिनों तक पंचायतें, समझौते और समझाने–बुझाने की कोशिशें होती रहीं, लेकिन बावजूद इसके उत्तर प्रदेश की इस शादी का विवादित अध्याय सुलझने के बजाय और उलझता ही नजर आ रहा है।

गोरखपुर के सहजनवां थाना परिसर में जुटे दोनों पक्ष
गोरखपुर के सहजनवां थाना परिसर में जुटे दोनों पक्ष
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar10 Dec 2025 10:36 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक अजीबोगरीब वैवाहिक विवाद सुर्खियों में आ गया है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बेलीपार की रहने वाली एक नवविवाहिता ने सुहागरात के महज अगले ही दिन पति पर ‘शारीरिक रूप से अक्षम’ होने का गंभीर आरोप जड़ दिया और साफ़ शब्दों में तलाक की मांग कर दी। बात घर की चारदीवारी तक सीमित न रहकर सीधे सहजनवां थाने पहुंच गई, जहाँ दो दिनों तक पंचायतें, समझौते और समझाने–बुझाने की कोशिशें होती रहीं, लेकिन बावजूद इसके उत्तर प्रदेश की इस शादी का विवादित अध्याय सुलझने के बजाय और उलझता ही नजर आ रहा है।

सुहागरात के बाद बदल गया माहौल

परिजनों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रहने वाले बीटेक पास युवक की बारात पूरे शानो–शौकत के साथ बेलीपार इलाके पहुँची थी और सात फेरे भी सभी रीति–रिवाजों के साथ संपन्न हुए। लेकिन शादी की पहली रात के बाद ही कहानी ने अचानक यू–टर्न ले लिया। नवविवाहिता का कहना है कि दूल्हा शारीरिक रूप से पूरी तरह सक्षम नहीं है और यह बड़ी सच्चाई उससे और उसके परिवार से छुपाकर उत्तर प्रदेश में इस रिश्ते को ज़बरन अंजाम तक पहुंचाया गया। दुल्हन के पिता ने इसे साफ–साफ धोखाधड़ी करार देते हुए सहजनवां थाने में लिखित तहरीर दे दी, जिसके बाद मामला घर की दहलीज़ से निकलकर सीधे पुलिस और क़ानून की चौखट तक जा पहुँचा।

दो दिन चली पंचायत फिर भी नहीं निकला हल

शिकायत थाने पहुँचते ही सहजनवां पुलिस ने उत्तर प्रदेश में प्रचलित सामाजिक परंपरा के मुताबिक पहले मामला आपसी बातचीत से निपटाने की कोशिश शुरू की। दोनों पक्षों को कभी थाने तो कभी पंचायतनुमा बैठकों में आमने–सामने बिठाकर दो दिनों तक लगातार समझाइश का दौर चला। इस दौरान दूल्हा पक्ष बार–बार आरोपों को बेबुनियाद बताकर शादी बचाने और समझौते की बात करता रहा, जबकि दुल्हन पक्ष तलाक की ज़िद पर अड़ा रहा और किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं हुआ। माहौल गर्माता देख आखिरकार दोनों परिवारों की सहमति से दूल्हे का मेडिकल परीक्षण कराया गया, ताकि कागज़ों और रिपोर्ट के ज़रिए सच सामने लाया जा सके और उत्तर प्रदेश की इस तकरार भरी शादी पर कुछ तस्वीर साफ हो सके।

मेडिकल रिपोर्ट के बाद और सख्त हुआ दुल्हन पक्ष

सूत्रों के अनुसार, मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद दुल्हन पक्ष ने तलाक की अपनी मांग और तेज कर दी है। उनका कहना है कि शादी से पहले अगर दूल्हे के स्वास्थ्य और शारीरिक क्षमता की सच्चाई बताई जाती, तो वे यह रिश्ता कभी तय नहीं करते। फिलहाल, दुल्हन पक्ष किसी भी कीमत पर वैवाहिक संबंध जारी रखने के लिए तैयार नहीं है और तलाक की कानूनी प्रक्रिया पर जोर दे रहा है।

पुलिस ने जांच को भेजी मेडिकल रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में उठे इस अनोखे वैवाहिक विवाद पर सहजनवां थाने के प्रभारी निरीक्षक महेश चौबे ने बताया कि बेलीपार क्षेत्र के एक व्यक्ति ने अपनी बेटी के दूल्हे की शारीरिक क्षमता पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है। चौबे के अनुसार, दोनों पक्षों को लगातार बैठाकर बातचीत कराई जा रही है, वहीं दूल्हे का मेडिकल परीक्षण कराई गई रिपोर्ट को आगे विशेषज्ञ जांच के लिए भेजा गया है, ताकि उसकी वैधता और सटीकता सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने साफ संकेत दिया कि अगर आपसी सहमति से कोई रास्ता नहीं निकलता, तो उत्तर प्रदेश के क़ानून के तहत अगला कदम उठाया जाएगा। थाना प्रभारी ने यह भी स्पष्ट किया कि मामला भले संवेदनशील हो, लेकिन फिलहाल जिले में कानून–व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह सामान्य है और गोरखपुर पुलिस इसे एक नियमित कानूनी प्रक्रिया की तरह ही संभाल रही है। UP News

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उत्तर प्रदेश में SIR बनी BJP के लिए सिरदर्द, शहर–गांव के बीच फंस गया वोट बैंक

SIR के ताज़ा आंकड़े साफ इशारा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की शहरी सियासत में कोई बड़ा बदलाव चुपचाप पक रहा है। लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, आगरा, मेरठ, कानपुर जैसे बड़े शहरी केंद्रों के साथ–साथ यूपी के दर्जनों टियर–2 शहरों में SIR फॉर्म जमा कराने की रफ्तार उम्मीद के मुकाबले काफी ढीली रही।

बीजेपी कार्यकर्ताओं की डोर–टू–डोर मुहिम, मतदाता सूची में नाम बचाने की कोशिशें तेज
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userअभिजीत यादव
calendar10 Dec 2025 10:02 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश में चल रही मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया ने भारतीय जनता पार्टी के लिए अप्रत्याशित चुनौती खड़ी कर दी है। आमतौर पर शहरी वोट बैंक पर मज़बूत पकड़ रखने वाली बीजेपी इस बार उसी जमीन पर फिसलती नजर आ रही है। वजह है– शहरों में रहने वाले लाखों मतदाताओं का अपने वोट को उत्तर प्रदेश के पुश्तैनी गांवों में शिफ्ट करना और बड़ी तादाद में SIR फॉर्म का अब तक वापस न आना। सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में लगभग 2.45 करोड़ मतदाता अब तक अपना SIR फॉर्म जमा नहीं कर पाए हैं, जिसके चलते लखनऊ, प्रयागराज, गाजियाबाद जैसे बड़े शहरों से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल के कई शहरी इलाकों तक वोट कटने का खतरा साफ दिख रहा है। बीजेपी के रणनीतिकारों के सामने यह भरोसा बनाए रखना कठिन हो रहा है कि उत्तर प्रदेश के शहरों में उसका जो ‘सुरक्षित गढ़’ था, वह आने वाले चुनावों में भी उतना ही अडिग रहेगा।

एक वोट, एक पता…और कहानी यहीं से बदली

SIR प्रक्रिया के तहत निर्वाचन आयोग ने साफ नियम बना दिया है कि अब कोई भी मतदाता दो नाव पर सवारी नहीं कर सकेगा – वोटर लिस्ट में नाम सिर्फ एक ही पते पर रहेगा। यानी पहले की तरह शहर और पुश्तैनी गांव, दोनों जगह वोटर बने रहने की पुरानी सुविधा अब इतिहास बन चुकी है। जैसे ही यह प्रावधान लागू हुआ, उत्तर प्रदेश के शहरों में डुप्लीकेट वोटरों की बड़े पैमाने पर छंटनी शुरू हो गई और लोगों के सामने यह सीधा सवाल खड़ा हो गया कि उनका ‘असल घर’ कौन–सा है – महानगर की बहुमंज़िला कॉलोनी या यूपी के गांव की खपरैल वाली बस्ती? यहीं से उत्तर प्रदेश का पूरा चुनावी गणित अप्रत्याशित मोड़ लेता दिखा। उम्मीद के विपरीत, भारी संख्या में मतदाताओं ने शहर की चमक–दमक की बजाय अपने गांव को ही स्थायी पता मानते हुए वहीं की वोटर लिस्ट में नाम बचाए रखना चुना। वजहें भी साफ हैं गांव में पुश्तैनी जमीन–जायदाद और पीढ़ियों से जुड़ी सामाजिक पहचान, पंचायत चुनावों में हर घर की सीधी हिस्सेदारी, कल को जमीन–मकान के किसी विवाद में आधिकारिक रिकॉर्ड के तौर पर गांव की वोटर लिस्ट का महत्व, और दूसरी तरफ शहरों में किराए के घर, ट्रांसफरेबल नौकरी या अस्थायी पढ़ाई–लिखाई वाली ज़िंदगी, जिसमें स्थायित्व की मिट्टी ही कहीं खो जाती है। यही कारण है कि लखनऊ, प्रयागराज, गाजियाबाद जैसे बड़े शहरी केंद्रों में काम, व्यापार या नौकरी के लिए बसे हजारों–लाखों लोग SIR फॉर्म भरने से जानबूझकर कतराते रहे, ताकि गांव वाली सूची से उनका नाम न कटे। नतीजा यह निकला कि उत्तर प्रदेश के गांवों की मतदाता सूची पहले से ज्यादा मजबूत और घनी होती चली गई, जबकि शहरों की वोटर संख्या में लगातार गिरावट दर्ज होने लगी। यूपी का वोटर मानो यह संदेश दे रहा हो कि रोजगार भले शहर का हो, लेकिन जड़ें अब भी गांव की मिट्टी में ही गड़ी हैं।

लखनऊ से गाजियाबाद तक शहरी यूपी में क्यों घट रहे हैं वोटर?

SIR के ताज़ा आंकड़े साफ इशारा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की शहरी सियासत में कोई बड़ा बदलाव चुपचाप पक रहा है। लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, आगरा, मेरठ, कानपुर जैसे बड़े शहरी केंद्रों के साथ–साथ यूपी के दर्जनों टियर–2 शहरों में SIR फॉर्म जमा कराने की रफ्तार उम्मीद के मुकाबले काफी ढीली रही। सूत्रों के मुताबिक अनुमान है कि अकेले लखनऊ में करीब 2.2 लाख, प्रयागराज में लगभग 2.4 लाख, गाजियाबाद में करीब 1.6 लाख और सहारनपुर में लगभग 1.4 लाख वोट कटने की आशंका है। यह वही शहरी पट्टी है, जहां बीते चुनावों में बीजेपी को उत्तर प्रदेश का सबसे ठोस और भरोसेमंद समर्थन मिलता रहा है। ऐसे में लाखों शहरी वोटों की संभावित कटौती सिर्फ तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि सीधे–सीधे बीजेपी के पूरे चुनावी गणित और यूपी की शहरी रणनीति पर बड़ा सवालचिह्न लगाती दिख रही है।

यूपी में भाजपा की ‘अर्बन ताकत’ पर सवाल

भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश के शहर महज़ नक्शे पर बने डॉट नहीं हैं, बल्कि उसकी हर बड़ी जीत की असली धुरी रहे हैं। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में यूपी के शहरी इलाकों से मिली रिकॉर्ड वोटिंग और लाखों के मार्जिन वाली बढ़त ने बीजेपी को सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ने में सबसे ज़्यादा ताकत दी। लेकिन SIR प्रक्रिया ने पहली बार इसी मजबूत किले की बुनियाद पर सवाल खड़ा कर दिया है।

अब हालात ऐसे हैं कि SIR के बाद बीजेपी के सामने एक साथ तीन बड़ी दुविधाएँ खड़ी हो गई हैं –

1. सिकुड़ता शहरी वोट बैंक

नौकरीपेशा, व्यापारी, मध्यम वर्ग और युवा – यह पूरा तबका अब तक बीजेपी का भरोसेमंद कोर वोटर माना जाता रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों में। लेकिन अगर किसी एक शहर से ही 2–3 लाख मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएँ या अपना नाम गाँव की सूची में ट्रांसफर कर दें, तो सीधे–सीधे सीट के जीत–हार का मार्जिन हिल सकता है। यूपी की शहरी सीटों पर जहाँ बीजेपी अब तक आराम से आगे रहती थी, वहीं अब हर कटते हुए नाम के साथ समीकरण टाइट होता नज़र आ रहा है।

2. गांवों में अलग राजनीतिक जमीन

उत्तर प्रदेश के गांव, शहरों की तरह सिर्फ विकास और ब्रांड इमेज पर वोट नहीं करते। यहाँ जातीय संतुलन, स्थानीय चेहरे, पंचायत की राजनीति और पुराने सामाजिक रिश्ते ज़्यादा असर दिखाते हैं। ऐसे में यह मान लेना आसान नहीं कि जो वोटर नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ या कानपुर में बीजेपी का पक्का समर्थक रहा है, वह अपने पुश्तैनी गांव की कुर्सी पर बैठकर भी उतनी ही मजबूती से बीजेपी के पक्ष में बटन दबाएगा। पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक, गांवों का राजनीतिक मानस शहरी यूपी से कहीं ज़्यादा उलझा हुआ और बहुआयामी है – यहीं पर पार्टी के लिए सबसे बड़ा अनिश्चितता वाला ज़ोन बन रहा है।

3. संगठन पर बढ़ता प्रेशर

जैसे ही SIR फॉर्म की रफ्तार कई शहरों में सुस्त पड़ने लगी, बीजेपी के प्रदेश संगठन से लेकर सत्ता के गलियारों तक अलर्ट मोड ऑन हो गया। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, संगठन महामंत्री – सबने मिलकर MPs और विधायकों को साफ संदेश दिया है कि किसी भी शहरी विधानसभा में एक भी पात्र वोटर सूची से मिस नहीं होना चाहिए। नतीजा यह हुआ कि बूथ स्तर पर मॉनिटरिंग, डेली मीटिंग, रिव्यू और फॉलो–अप अब यूपी बीजेपी की रोज़मर्रा की राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं।

दो दशक बाद यूपी की मतदाता सूची की सबसे बड़ी ‘सफाई’

उत्तर प्रदेश में निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े जानकारों का साफ कहना है कि पिछले 20–25 साल में मतदाता सूची की इतनी गहरी और चौतरफा “स्क्रीनिंग” पहले कभी नहीं देखी गई। इस बार SIR के बहाने यूपी की वोटर लिस्ट को लगभग एक्स–रे मशीन की तरह खंगाला जा रहा है, जहाँ एक ही समय पर नाम काटने, संशोधन करने और डुप्लीकेट एंट्री साफ करने की प्रक्रिया साथ–साथ चल रही है।

इसके पीछे तीन बड़ी वजहें साफ दिखती हैं –

1. बड़े पैमाने पर पलायन का असर

आईटी, शिक्षा, निजी नौकरी, फैक्टरी–उद्योग और सर्विस सेक्टर की वजह से लाखों लोग यूपी के एक शहर से दूसरे शहर या फिर राज्य के बाहर बस गए, लेकिन मतदाता सूची में उनका “पुराना पता” जस का तस बना रहा। अब SIR के दौरान पहली बार यह mismatch बड़े पैमाने पर पकड़ में आ रहा है।

2. मृत मतदाताओं के नामों की सफाई

पिछले दो दशकों में स्वाभाविक रूप से बड़ी संख्या में मतदाता अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन वोटर लिस्ट में उनके नाम आज भी दर्ज थे। इस बार उत्तर प्रदेश में SIR के ज़रिए ऐसे मृत मतदाताओं के नाम व्यवस्थित तरीके से हटाए जा रहे हैं, ताकि सूची जमीन की हकीकत से मेल खा सके।

3. फर्जी और डुप्लीकेट वोटरों पर सर्जिकल स्ट्राइक

पहली बार यूपी में इतने व्यापक स्तर पर उन नामों की तलाश हो रही है, जो दो जगह दर्ज हैं या संदिग्ध दस्तावेज़ों के आधार पर जोड़े गए थे। इन्हीं की पहचान और सफाई ने इस पुनरीक्षण को सिर्फ रूटीन काम नहीं, बल्कि एक बड़े चुनावी शुद्धिकरण अभियान में बदल दिया है। इसी पूरी कवायद के बीच जो सबसे नया और चौंकाने वाला ट्रेंड उभरकर सामने आया है, वह यह कि उत्तर प्रदेश का शहरी मतदाता खुद अपने वोट को वापस गांव की ओर मोड़ रहा है। यही बदलाव बीजेपी के लिए सबसे असहज करने वाला है, क्योंकि यह मामला अब महज़ तकनीकी संशोधन का नहीं, बल्कि यूपी की सामाजिक सोच और राजनीतिक दिशा में बदलते संकेतों का भी आईना बनता जा रहा है।

बढ़ सकता है SIR का समय

इतनी बड़ी संख्या में SIR फॉर्म जमा न होने के बाद निर्वाचन आयोग भी सतर्क हो गया है। संकेत मिल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में SIR फॉर्म जमा करने की अंतिम तारीख को एक सप्ताह तक बढ़ाया जा सकता है, ताकि जो मतदाता किसी वजह से फॉर्म नहीं भर पाए, उन्हें आखिरी मौका मिल सके। आयोग भी समझ रहा है कि लगभग 2.45 करोड़ लोगों के नाम अचानक मतदाता सूची से हटना उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा कर सकता है। UP News

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