Sawan Special :
सैय्यद अबू साद
Sawan Special : कानपुर। श्रावण के महीने को भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। यही कारण है कि इस महीने में महादेव की पूजा, आराधना का विशेष महत्व होता है। यूं तो इस सृष्टि में शायद ही कोई काल या काल चक्र ऐसा रहा हो जिसमें भगवान शिव की उपस्थिति न रही हो। हर काल में भगवान शिव की स्तुति, आराधना और उनकी अनुकंपाओं की तमाम किवदंतियां और कहानियां प्रचलित हैं। सतयुग से लेकर कलियुग तक ओंकार की महिमा ही फलीभूत होती रही है। उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी एक ऐसा ही प्रमाण मौजूद है, जो सीधे भगवान शिव से जुड़ा है। दरअसल, कानपुर के कल्याणपुर क्षेत्र में बाबा शिव का भूतेश्वर मंदिर स्थापित है और मान्यता है कि भगवान शिव के प्रिय भूतों ने एक रात में इस मंदिर का निर्माण किया था। इसलिए मंदिर का नाम बाबा श्री भूतेश्वर महादेव धाम पड़ा। मंदिर में पवित्र श्रावण मास के दिनों में हजारों की संख्या में भक्त महादेव का जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। श्रावण मास के साथ महाशिवरात्रि और नागपंचमी पर मंदिर परिसर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यहां पर देशभर से भक्त पूजन अर्चन के लिए आते हैं।
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श्रीराम के समय से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
भक्तों का मानना है कि भगवान शिव हजारों वर्ष पुराने इस भूतेश्वर मंदिर में की गई हर मनोकामना को पूरी करते हैं। यही वजह है कि सावन भर दूर-दूर से भक्त बाबा के दर्शन के लिए यहां आते हैं। श्री भूतेश्वर महादेव धाम के पुजारी प्रशांत गिरी बताते हैं कि बाबा शिव का यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। मंदिर तब का है जब हनुमान जी ने भगवान सूर्य को निगल लिया था। उस दौरान ही 6 माह की एक ऐसी रात थी, तब भगवान शंकर के प्रिय भूतों ने रातों-रात इस मंदिर का निर्माण किया, जिससे इसका नाम श्री भूतेश्वर महादेव धाम पड़ा। मंदिर के महन्त महाराज गिरी ने बताया कि इस मंदिर का नाता भगवान श्रीराम के समय से भी है। भगवान राम ने जब माता सीता का परित्याग कर दिया था तब यहां माता सीता लव व कुश के साथ बिठूर क्षेत्र में ही रहती थीं, तब प्रतिदिन माता सीता जलाभिषेक करने के लिए लव-कुश के साथ यहां आती थीं।
विशेषता से भरपूर है भूतेश्वर मंदिर
मान्यता है कि ऐसा शिवलिंग पूरे भारतवर्ष में नहीं है। राजा विनायक राव ने कई बार खुदाई कर शिवलिंग के अंतिम छोर का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन शिवलिंग का छोर नहीं मिल सका। मंदिर में महादेव के साथ शिव परिवार, शनि महाराज, संकट मोचन धाम, राधाकृष्ण, मां भगवती, काली माता और भगवान विष्णु की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर कच्ची मिट्टी के ईंटों से निर्मित है। भूतेश्वर महादेव मंदिर में दो सुरंगे भी थीं जिसमें से एक रावतपुर क्षेत्र में और दूसरी बिठूर क्षेत्र में खुलती थी। रावतपुर के राजा की रानी रौतेला इन्ही सुरंगों से भूतेश्वर महादेव की पूजा करने आती थीं। रानी रौतेला बहुत सुंदर थीं। उन्हें कोई देख न सके इसलिए रावतपुर राजा ने रानी के लिए दो सुरंगों का निर्माण कराया था जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। कहते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर में तोड़फोड़ की थी। इसके प्रमाण भूतेश्वर महादेव मंदिर में टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष के रूप में आज भी मौजूद हैं।
श्रावण मास में रहता मेले सा नजारा
क्षेत्र के लोगों का भूतेश्वर महादेव धाम में असीम और अटूट विश्वास है। क्षेत्रीय लोगों का मानना है कि भूतेश्वर बाबा किसी की भी मनोकामना को बाकी नहीं छोड़ते। सभी भक्त बाबा के दरबार से प्रसन्न होकर जाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर पीतल के घण्टे चढ़ाते हैं। भूतेश्वर महादेव मंदिर में रोजाना सुबह 5 बजे महादेव की आरती होती है, जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल होते हैं। मंदिर के सेवक बाल किशन गुप्ता कहते है कि श्रावण मास में महादेव का शृंगार पूजन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सोमवार को महादेव का जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। प्राचीन मंदिर का शिवलिंग भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहता है। यहां पर श्रावण मास के सोमवार को मेले जैसा नजारा देखने को मिलता है। भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं।
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