Saturday, 4 May 2024

Mulayam Singh Yadav : यूपी की राजनीति के धुरी थे नेताजी मुलायम सिंह यादव

Mulayam Singh Yadav : मुलायम सिंह यादव ने देश के हर नेता को अपनी सियासी समझ का लोहा मनवाया। इसमें…

Mulayam Singh Yadav : यूपी की राजनीति के धुरी थे नेताजी मुलायम सिंह यादव

Mulayam Singh Yadav : मुलायम सिंह यादव ने देश के हर नेता को अपनी सियासी समझ का लोहा मनवाया। इसमें कोई शक नहीं कि वह जिस बैकग्राउंड से राजनीति में आए और मजबूत होते गए, उसमें उनकी सूझबूझ थी। हवा के रुख को भांपकर अक्सर पलट जाने में भी माहिर थे। कई बार उन्होंने अपने फैसलों और बयानों से खुद ही अलग कर लिया। राजनीति में कई सियासी दलों और नेताओं ने उन्हें गैरभरोसेमंद माना, लेकिन हकीकत ये है कि यूपी की राजनीति में वह जब तक सक्रिय रहे, तब तक किसी ना किसी रूप में राजनीति के केंद्र में बने रहे।

Mulayam Singh Yadav :

राजनीति का ककहरा या कहें कि दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में डॉ. राममनोहर लोहिया और चरण सिंह से सीखने शुरू किए। डॉ. लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे। लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे। विधानसभा तो कभी विधान परिषद के सदस्य बनते रहे। उनकी पहली पार्टी अगर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल, जिसमें वह 1968 में शामिल हुए। हालांकि चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया। ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी।

मुलायम सिंह की पकड़ लगातार जमीनी तौर पर मजबूत हो रही थी। इमर्जेंसी के बाद देश में सियासत का माहौल भी बदल गया। आपातकाल में मुलायम भी जेल में भेजे गए और चरण सिंह भी। साथ में देश में विपक्षी राजनीति से जुड़ा हर छोटा बड़ा नेता गिरफ्तार हुआ। नतीजा ये हुआ कि अलग थलग छिटकी रहने वाली पार्टियों ने इमर्जेंसी खत्म होने के बाद एक होकर कांग्रेस का मुकाबला करने का प्लान बनाया। इस तर्ज पर भारतीय लोकदल का विलय अब नई बनी जनता पार्टी में हो गया और मुलायम सिंह मंत्री बन गए।

चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद उन्होंने उनके बेटे अजित सिंह का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया। भारतीय लोकदल को तोड़ दिया। 1989 के चुनावों में जब एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी एकता परवान चढ़ रही थी, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस से बगावत करके बाहर निकले, तब फिर विपक्षी एकता में एक नए दल का गठन हुआ, वो था जनता दल। हालांकि इस दल में जितने नेता थे, उतने प्रधानमंत्री के दावेदार भी।

मुलायम को तब चंद्रशेखर का करीबी माना जाता था। वह उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की बात करते थे, लेकिन ऐन वक्त पर जब वह पलटे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को पीएम बनाने पर सहमति जाहिर कर दी तो चंद्रशेखर गुस्से में भर उठे थे। वैसे उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा में वह कांग्रेस के साथ भी गए। कांग्रेस की मनमोहन सरकार को बचाया। वामपंथियों के पसंदीदा भी बने, लेकिन दोनों ने अक्सर कहा कि वह मुलायम पर विश्वास नहीं करते। हां, मुलायम सिंह का एक स्टैंड उनके राजनीतिक करियर से आज तक कायम है, वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति उनका मुखालफत भरा दृष्टिकोण। हालांकि उन पर कई बार ये आरोप लगे हैं कि वह भारतीय जनता पार्टी के प्रति कई बार शॉफ्ट हो जाते हैं, लेकिन वह जब तक सक्रिय राजनीति में रहे, जमीन से जुड़े रहे।

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