Tuesday, 7 May 2024

चमत्कारी मंदिर : हर मंगलवार को भक्तों के कष्ट दूर करते हैं मंगलगिरी

Baba Mangalagiri : यूं तो भारत देश के हर कोेने में कोई न कोई ऐसा मंदिर या मठ मिल जाएगा,…

चमत्कारी मंदिर : हर मंगलवार को भक्तों के कष्ट दूर करते हैं मंगलगिरी

Baba Mangalagiri : यूं तो भारत देश के हर कोेने में कोई न कोई ऐसा मंदिर या मठ मिल जाएगा, जहां पर रोजाना ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है। कुछ मंदिर और सिद्धपीठ ऐसे भी हैं, जो अपनी अपनी विशेष मान्यता के चलते पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है। ऐसा ही एक मंदिर है, ‘बाबा मंगलगिरी धाम’। मान्यता है कि यहां पर आने वाले भक्त की हर मुराद को बाबा मंगलगिरी पूर्ण करते हैं। कहा जाता है कि इस पवित्र धाम में कदम रखने के बाद सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है, वह भक्त को तुरंत ही मिल जाता है।

Baba Mangalagiri

मंगलवार को होती है बाबा मंगलगिरी की पूजा

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गढ़ी नौआबाद गांव में स्थित ‘बाबा मंगलगिरी’ की आराधना और पूजा पाठ के लिए मंगलवार का दिन विषेश माना गया है। वैसे तो बाबा मंगलगिरी की पूजा हर दिन की जाती है, लेकिन मंगलवार के दिन बाबा की समाधी स्थल पर उनके भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ रहती है। बाबा के भक्तों का मानना है कि मंगलवार के दिन बाबा की पूजा करने से ही उनकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

इस विधि से करें बाबा मंगलगिरी की पूजा

वैसे तो बाबा को प्रसन्न करने के लिए कोई विशेष पूजा करने की आवश्कता नहीं है। बाबा के समाधि स्थल पर सच्चे मन से बिल्कुल साधारण तरीके से पूजा अर्चना की जाती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि बाबा के मंदिर में दीपक और धूप जलाकर और सच्चे मन से कुछ देर के लिए बाबा का ध्यान करने से बाबा मंगलगिरी जल्दी ही अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते है। लोगों का कहना है कि बाबा मंगलगिरी कभी अपने भक्तों को अपने दरबार से निराश नहीं भेजते हैं।

चमत्कारी मंदिर

भोग में क्या चढ़ाते है श्रद्धालु ?

बाबा मंगलगिरी समाधी धाम पर किसी विशेष प्रसाद की भी जरुरत नहीं है। बाबा मंगलगिरी की समाधि को दूध या जल से स्नान कराने के बाद किसी भी मिष्ठान का भोग लगाया जाता है, तो बाबा उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि गुड़ और चना का प्रसाद सबसे ज्यादा बाबा के धाम पर चढ़ाया जाता है। लेकिन मंदिर के पुजारी का कहना है कि किसी भी मीठे प्रसाद जैसे लड्डू, बूंदी (गुलदाना) या गुड़ और चने से बाबा मंगलगिरी को भोग लगाया जा सकता है।

चादर चढ़ाने की है परंपरा

ग्रामीणों का कहना है कि भक्तों के मनोकामना पूरी होने के बाबा की समाधी पर सफेद चादर चढ़ाने की परंपरा भी है। वह भक्त की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कैसी चादर बाबा की समाधी पर अर्पण करता है। कई श्रद्धालुओं का मानना है कि अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त अपनी इच्छा के अनुसार बाबा के धाम पर कोई विशेष कार्य कर सकता है।

मंगलगिरी का इतिहास

गढ़ी नौआबाद के ग्रामीण बताते हैं कि लगभग 150 वर्ष पूर्व गांव के पास स्थित एक विशाल बाग में एक साधु महाराज आए थे। इन साधु महाराज के साथ एक बछड़ा (बैल)भी था। इन साधु महाराज का नाम मंगलदास था। साधु महाराज रात-दिन जंगल में तपस्या में लीन रहते थे। गांव के लोग जो भी भिक्षा के रूप में उन्हें प्रदान कर देते थे वे उसी को ग्रहण कर लेते थे। मंगलदास इतने बड़े सिद्ध पुरूष थे कि उनके मुख से जो भी बात निकल जाती थी वह सत्य होती थी। गांव के किसानों को वह समय से पहले ही बता देते थे कि कब वर्षा होगी अथवा कब सूखा पड़ेगा। इस प्रकार बाबा मंगलदास का नाम धीरे-धीरे स्वामी मंगलगिरी पड़ गया था। ग्रामीण उनसे इतना प्यार करते थे कि उनके स्वर्गवासी हो जाने के बाद ग्रामीणों ने उनकी तपस्या स्थली पर ही उनकी समाधी बना दी। इस समाधी पर पूजा-अर्चना करने वाले जो भी मन्नत मांगते थे वह पूर्ण होती थी। धीरे-धीरे समाधी स्थल पर आस्था बढ़ती चली गई। ग्रामीणों ने चंदा एकत्र करके समाधी स्थल पर एक मंदिर बना दिया। उस मंदिर का नाम है “मंगलगिरी मंदिर”।

चमत्कारी मंदिर

बाबा का चमत्कारी बैल

बाबा मंगलगिरी के साथ रहने वाला बछड़ा धीरे-धीरे बैल बन गया। जब वह बैल हल व कोल्हू में जोतने लायक हो गया तो किसान अपनी खेती का कार्य कराने के लिए बाबा से मांगकर उस बैल को ले जाने लगे। उस समय सभी ग्रामीण आश्चर्यचकित रह जाते थे जब वे देखते थे कि बाबा का बैल उतना ही काम करता है जितना बाबा ने बोला है। दरअसल जब कोई किसान बाबा से बैल मांगने जाता था तो वह कहता था कि मुझे अपना दो बीघे खेत जोतना है अथवा मुझे गन्ने के कोल्हू में दो कुंडी (गन्ने के रस को भरे जाने वाला बर्तन) रस निकालना है।

बाबा किसान को बैल दे देते थे। किसान द्वारा बैल लाते समय जितना काम करने की बात किसान ने बोली होती थी। उतना काम होने के बाद बैल काम बंद कर देता था। उसके बाद कोई कुछ भी करे बाबा का वह बैल टस से मस नहीं होता था। बताते हैं कि बाबा के स्वर्गवासी होते ही बैल ने भी अपने प्राण अपनी मर्जी से त्याग दिए थे। ऐसा था मंगलगिरी बाबा का यह चमत्कारी बैल। बाबा की समाधी के पास ही ग्रामीणों ने उस बैल की भी समाधी बनाई हुई है।

कैसे पहुुंचे बाबा मंगल गिरी धाम

बाबा मंगलगिरी के धाम पहुंचने के लिए बेहद ही आसान मार्ग है। यदि आप अपने वाहन से आ रहे हैं तो दिल्ली से बागपत बड़ोत के रास्ते बुढ़ाना कस्बा पहुंचे। यहां से गांव गढ़ी नौआबाद पहुंचने का सीधा रास्ता है। ट्रेन से आने वाली यात्री दिल्ली शामली सहारनपुर रेल मार्ग का प्रयोग कर सकते हैं। शामली रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद आप गढ़ी नौआबाद गांव पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन के बाहर से ही आपको गांव के लिए वाहन मिल जाएंगे। बस मार्ग से आने वाले यात्रियों को मुजफ्फरनगर जनपद के खतौली अथवा मुजफ्फरनगर पहुंचना होगा और वहां से बाबा मंगल गिरी धाम आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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