Saturday, 23 November 2024

मुज़फ़्फ़रनगर के थप्पड़ कांड पर सामने आया बड़ा ही सार्थक विश्लेषण, आप भी पढ़ें Muzaffarnagar Slap Case

Muzaffarnagar Slap Case / रवि अरोड़ा बेशक स्कूली दिनों में मेरी भी खूब पिटाई हुई थी। छोटी छोटी गलती पर…

मुज़फ़्फ़रनगर के थप्पड़ कांड पर सामने आया बड़ा ही सार्थक विश्लेषण, आप भी पढ़ें Muzaffarnagar Slap Case

Muzaffarnagar Slap Case / रवि अरोड़ा
बेशक स्कूली दिनों में मेरी भी खूब पिटाई हुई थी। छोटी छोटी गलती पर भी मैडम जी अथवा मास्टर जी हम बच्चों को बुरी तरह पीटते थे। उन दिनों बच्चों का उनकी जाति अथवा धर्म के नाम से संबोधन भी आम बात थी और मास्टर जी की देखा देखी बच्चे भी एक दूसरे को जाति सूचक शब्दों से आमतौर पर पुकार लिया करते थे। मेरी उम्र के अन्य सभी लोगों के पास भी शायद स्कूली दिनों की कुछ ऐसी ही यादें होंगी। मगर वह दौर अब हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं।

Muzaffarnagar Slap Case

तमाम अन्य मामलों की तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी देश और समाज पहले से अधिक समझदार हुआ है और अब छोटे से छोटे स्कूल में भी बच्चों का शारीरिक उत्पीड़न नहीं किया जा सकता। कम से कम यह तो बिल्कुल नहीं कि एक मासूम बच्चे को दूसरे धर्म बच्चों से बुरी तरह पिटवाया जाए। साफ नज़र आ रहा है कि मुजफ्फर नगर के एक स्कूल में हुए इस प्रकार के घिनौना कार्य को अंजाम देने वाली शिक्षिका जितनी दोषी है, उससे कम दोषी वे लोग भी नहीं हैं जो इस शिक्षिका की हिमायत पुराने दौर की दुहाई देकर कर रहे हैं।

दूसरे अमन पसंद शहरियों की तरह मैं भी इस विचार का हामी हूं कि मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में मासूम बच्चे की पिटाई के मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए और जल्द से जल्द इसका पटाक्षेप कर दिया जाना चाहिए। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक मामलों में यूं भी बेहद संवेदनशील इलाका है और इस मामले को तूल देने से सर्वाधिक नुकसान आपसी सौहार्द और भाईचारे का ही होगा। हालांकि फिर भी इतना तो होना ही चाहिए कि कुछ सवालों के जवाब दे दिए जाएं। उठे सवालों और कानून सम्मत न्याय को दरकिनार कर मामले पर केवल मिट्टी डालना कई बार घातक साबित होता है और चीजें भीतर ही भीतर सड़ कर दुर्गंध पैदा करती हैं। क्या यह सवाल गैर वाजिब है कि प्रशासन ने इस मामले में जो किया क्या वही न्याय है ?

क्या केवल विपक्ष ही इस मामले में राजनीति कर रहा है अथवा सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा भी अपना खेल खेल रही है ? क्या सारा दोष स्कूल की टीचर तृप्ता त्यागी का ही है अथवा उन्हें भी कटघरे में खड़ा किया जायेगा जो सोशल मीडिया पर चौबीसों घंटे हिन्दू-मुस्लिम का खेल खेलते हैं और समाज में तृप्ता त्यागियों की फौज खड़ी कर रहे हैं ? सवाल तो यह भी बनता है कि यदि किसी मुस्लिम टीचर ने हिन्दू बच्चे के साथ ऐसा किया होता, क्या तब भी शासन प्रशासन का यही रुख होता अथवा उस टीचर के घर अब तक बुलडोजर पहुंच चुका होता ?

ऐसे बहुत से उदाहरण आए दिन अखबारों में छपते हैं जिनमें सामाजिक भाईचारे को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होती है। इसी की रोशनी में उम्मीद की जा रही थी कि सात आठ साल के मासूम बच्चे को सांप्रदायिक टिप्पणी के साथ दूसरे धर्म के बच्चों से पिटवाने वाली शिक्षिका के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होगी मगर इस मामले में एफआईआर ही इतनी कमजोर लिखी गई है कि उसका कुछ न बिगड़ना तय हो गया है। सबसे अधिक हैरान करते हैं स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान जो आरोपी शिक्षिका से जाकर मिलते हैं और उसे न्याय का आश्वासन देते हैं। क्या यह बहुसंख्यकों को लुभाने वाली राजनीति नहीं थी?

उधर, पीड़ित बच्चे के पिता की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है जो उसने इलाके की शान्ति के मद्देनज़र समझौता कर लिया मगर फिर भी इसकी जांच तो की ही जानी चाहिए कि सांप्रदायिकता का नंगा नाच क्षेत्र के और किस किस स्कूल में चल रहा है ? आज के दौर में बेशक समाज के एक बड़े तबके को राजनीति के चलते इस्लामोफोबिया का शिकार बना दिया गया है और सोशल मीडिया के जरिए इसका नंगा नाच चहुंओर किया जा रहा है मगर इसकी चिंता तो की ही जानी चाहिए कि क्या यह जहर अब मासूम बच्चों के जीवन में भी घोला जाना जरूरी है ? हालांकि मेरी तरह आप भी मुतमईन होंगे कि ऐसे किसी सवाल का जवाब नहीं दिया जाता और नहीं ही दिया जाएगा मगर हमें अपने आप से ऐसे सवाल करने से भला कौन रोक सकता है ? तो चलिए आप और हम ही एक दूसरे से ये तमाम सवाल करें और अपने तईं इनके जवाब तलाश करें। Muzaffarnagar Slap Case

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