मेरठ/नोएडा(चेतना मंच): इन दिनों देश भर की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) पर टिकी हुई है. उत्तर प्रदेश विधानसभा के इस चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) से जहां किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का भविष्य तय होगा. वहीं, प्रसिद्ध किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) की भी अपने ही घर में बड़ी परीक्षा होनी है. हर कोई यही जानना चाहता है कि इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्या करेगा? सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) चल रहे हैं. प्रदेश भर में सात चरणों में ये चुनाव हो रहे हैं. सबसे पहले चरण का चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western UP) के उन जिलों में हो रहा है, जहां किसान आंदोलन (Farmers Protest) का सर्वाधिक प्रभाव था. सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ, मथुरा, आगरा एवं हापुड़ जनपद की 58 विधानसभा सीटों पर आज से मात्र सात दिन बाद यानि 10 फरवरी को वोट पड़ेंगे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होगा.
देश भर के राजनेताओं, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, प्रशासनिक अफसरों, सामाजिक व राजनीतिक विश्लेषकों समेत तमाम जागरूक नागरिकों की नजरें इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं. उप्र का चुनाव हमेशा ही महत्वपूर्ण होता है. यह भी सच है कि देश के इस सबसे बड़े प्रदेश को जीतने वाले राजनीतिक दल को ही दिल्ली की गद्दी (केन्द्र की सत्ता) मिलती है. इस कारण उत्तर प्रदेश के चुनाव पर हमेशा ही सबकी नजर रहती है. किन्तु इस बार निगाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर अधिक लगी हैं. कारण साफ है कि यही वह क्षेत्र है जहां पर दिल्ली में चले 13 महीने के किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का प्रभाव सबसे ज्यादा था. इस बात में कोई दो राय हो ही नहीं सकती कि वह एक ऐतिहासिक आंदोलन साबित हुआ है. उसी आंदोलन के कारण नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) जैसे प्रधानमंत्री को भी झुकना पड़ा है.
क्या राकेश टिकैत लड़ने जा रहे हैं चुनाव? कही ये बड़ी बात
अब देश का हर जागरूक नागरिक यह देखना चाहता है कि किसान आंदोलन का कितना असर अभी भी शेष है? या फिर तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) की वापसी के बाद किसान संतुष्ट हो गए हैं? यहां यह तथ्य भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) व उसके नेता तो यही कह रहे हैं कि आंदोलन स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं हुआ. इतना ही नहीं किसानों ने 31 जनवरी काा दिन विश्वासघात दिवस के रूप में मनाकर अपनी आगे की मंशा भी साफ कर दी है. अब यदि पश्चिमी उप्र के इस क्षेत्र से नतीजे भाजपा के पक्ष में आए तो भाजपा यही प्रचार करेगी कि किसान आंदोलन का अब कोई असर नहीं बचा है. यदि नतीजे भाजपा के विरूद्ध आए तो किसान आंदोलन का विस्तार तेजी के साथ पूरे देश में हो जाएगा. इतना ही नहीं फिर इन नतीजों का असर 2024 के लोकसभा के चुनावों (Lok Sabha Election 2024) तक जाएगा.
अपने ही घर में परीक्षा है किसान नेता राकेश टिकैत की
किसान आंदोलन की बदौलत सर्वमान्य किसान नेता बनकर उभरे राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं. वे इसी क्षेत्र के मुजफ्फरनगर जिले (Muzaffarnagar District) के सिसौली गांव के रहने वाले हैं. उत्तर प्रदेश की तरफ से किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले भारतीय किसान यूनियन (Bhartiya Kisan Union) का मुख्यालय भी यहीं है. ऐसे में यह चुनाव राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के लिए एक बड़ी परीक्षा है. उन्हें यह परीक्षा अपने ही घर में देनी पड़ रही है. टिकैत चुनावी राजनीति से दूर रहने का दावा कर रहे हैं. यह अलग बात है कि वे साफ-साफ कहते हैं कि यदि 13 महीने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन करके तथा आधी दरों पर फसल बेचकर भी किसान गलत जगह वोट देंगे तो हम यही समझेंगे कि हमारी ट्रेनिंग में कुछ कमी रह गई होगी. कुल मिलाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे (10 मार्च को) किसान आंदोलन व प्रसिद्ध किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत (Rakesh Tikait)का भविष्य भी तय कर देंगे.
देशभर के गुर्जर समाज की नजर दादरी पर!
जहां देश की नजर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावों पर टिकी हुई है. वहीं देशभर के गुर्जर समाज (Gurjar Community) की नजरें दादरी विधानसभा सीट (Dadri Assembly Seat) पर लगी हुई हैं. दरअसल दादरी (Dadri) को गुर्जर राजधानी (Gurjar Capital) के नाम से भी जाना जाता है. आजादी के आंदोलन में यहां के दर्जनों स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए कुर्बानी दी थी. उन अमर सपूतों में ज्यादातर गुर्जर समाज के ही सेनानी थे. आजादी के बाद भी अनेक कारणों से यह क्षेत्र गुर्जर समाज के लिए महत्वपूर्ण रहा है.
यही वह क्षेत्र है जहां 22 सितंबर 2021 को गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करने से पूर्व ‘गुर्जर’ शब्द को कालिख लगवा कर मिटवा दिया गया था. उस दिवस को गुर्जर समाज 22 सितंबर की दुर्घटना के नाम से याद करता है. इस मुद्दे पर आंदोलन भी चला. अब देश भर का गुर्जर समाज यह जानना चाहता है कि इस प्रकरण के बाद दादरी क्षेत्र की जनता चुनाव में क्या फैसला करेगी? क्या वोट की चोट करके जनता सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति पर लिखे गए ‘गुर्जर’ शब्द पर पोती गई कालिख का बदला ले पाएगी? इस मुद्दे पर सोशल मीडिया के माध्यम से गुर्जर समाज का युवा वर्ग भी बेहद मुखर नजर आ रहा है. निश्चित ही दादरी विधानसभा क्षेत्र के चुनावी नतीजे (Dadri Assembly Seat Results) बहुत कुछ तय करेंगे.
पढ़ें : UP Election 2022: वकीलों ने दिया राजकुमार भाटी को खुला समर्थन, किया स्वागत