बाराबंकी की बेटी ने बदली मड़ाई की तस्वीर, पीएम बाल पुरस्कार से होगी सम्मानित
पूजा पाल ने फसल की मड़ाई के दौरान उठने वाली धूल को नियंत्रित करने वाला थ्रेसर मॉडल तैयार किया है। यह नवाचार किसानों को धूल से होने वाली श्वसन संबंधी परेशानियों से बचाने में मदद करता है और खेत-खलिहान में काम करने वाले लोगों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बन सकता है।

UP News : उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से एक ऐसी खबर सामने आई है, जो गांव की मिट्टी से निकलकर देश के मंच तक पहुंची प्रतिभा का भरोसा बढ़ाती है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के अगेहरा गांव की 8वीं कक्षा की छात्रा और बाल वैज्ञानिक पूजा पाल को किसानों के हित में विकसित किए गए धूल-रहित थ्रेसर मॉडल के लिए प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पूजा को यह पुरस्कार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में 26 दिसंबर को प्रदान किया जाएगा। खबर सामने आते ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में परिवार से लेकर गांव और जिले तक उत्साह का माहौल है। पूजा पाल ने फसल की मड़ाई के दौरान उठने वाली धूल को नियंत्रित करने वाला थ्रेसर मॉडल तैयार किया है। यह नवाचार किसानों को धूल से होने वाली श्वसन संबंधी परेशानियों से बचाने में मदद करता है और खेत-खलिहान में काम करने वाले लोगों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बन सकता है।
उत्तर प्रदेश का गौरव बनी बाराबंकी की बेटी
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के छोटे से गांव अगेहरा से निकली पूजा पाल ने अपनी लगन और नवोन्मेषी सोच से यह साबित कर दिया कि सपनों की ऊंचाई संसाधनों से नहीं, हौसले से नापी जाती है। अपने इनोवेशन के जरिए पूजा पहले भी पहचान हासिल कर चुकी हैं, और अब प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार की उपलब्धि ने उन्हें उत्तर प्रदेश की बेटियों के लिए एक नई प्रेरक मिसाल बना दिया है। जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी के अनुसार, केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद तहसील सिरौलीगौसपुर क्षेत्र के ग्राम अगेहरा की रहने वाली पूजा पाल को यह सम्मान प्रदान किया जाएगा। गांव की मिट्टी से उठी यह सफलता की कहानी आज पूरे यूपी को यह संदेश दे रही है कि मेहनत और आइडिया मिल जाएं, तो मंज़िलें खुद रास्ता दे देती हैं।
धूल-रहित थ्रेसर कैसे बना पहचान
उत्तर प्रदेश की बाल वैज्ञानिक पूजा पाल तब सुर्खियों में आईं, जब उन्होंने किसानों की सेहत को केंद्र में रखकर धूल-रहित थ्रेसर का मॉडल तैयार किया। खेतों में मड़ाई के दौरान उड़ने वाली धूल अक्सर मजदूरों और किसानों के लिए बड़ी परेशानी बन जाती है आंखों में जलन, सांस फूलना और समय के साथ फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। पूजा का मॉडल इसी जोखिम को कम करने का व्यावहारिक रास्ता दिखाता है, जिससे खेत-खलिहान में काम करने वाले लोगों को ज्यादा सुरक्षित माहौल मिल सकता है। बताया जाता है कि 7वीं कक्षा में ही पूजा ने राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में अपना यह मॉडल प्रस्तुत किया था, जहां उनके नवाचार को उपयोगी और प्रभावशाली मानते हुए सराहना मिली। यह उपलब्धि दिखाती है कि यूपी की नई पीढ़ी अब सिर्फ सपने नहीं देख रही, बल्कि खेती और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर समाधान भी गढ़ रही है।
मजदूर पिता, रसोइया मां… फिर भी हौसला ऊंचा
उत्तर प्रदेश के एक सामान्य ग्रामीण परिवार से आने वाली पूजा पाल की कहानी संघर्ष और संकल्प का आईना है। सीमित संसाधनों के बीच उनके पिता पुत्ती लाल मजदूरी कर घर चलाते हैं, जबकि मां सुनीला देवी सरकारी स्कूल में रसोइया के तौर पर काम करती हैं। पूजा अपने घर में तीन बहनों और दो भाइयों के साथ रहती हैं जहां सपनों की पूंजी बड़े साधन नहीं, परिवार की मेहनत और बेटी की लगन रही। परिवार लंबे समय तक छप्परनुमा घर में रहा, लेकिन अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान की स्वीकृति मिलना उनके लिए नई शुरुआत जैसा है। बाराबंकी के इस घर से उठी पूजा की उड़ान बताती है कि यूपी की मिट्टी में मेहनत की जड़ें जितनी गहरी हों, सफलता की छांव उतनी ही बड़ी होती है।
जापान तक पहुंचा उत्तर प्रदेश की बेटी का इनोवेशन
पूजा पाल के इस नवाचार ने उन्हें न सिर्फ उत्तर प्रदेश और देश में पहचान नहीं दिलाई, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचने का रास्ता भी खोल दिया। जानकारी के मुताबिक, पूजा को जापान समेत विदेशों में भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला, जहां उनके मॉडल ने सबका ध्यान खींचा। इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें बाल वैज्ञानिक के तौर पर सम्मानित कर चुकी है और एक लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी जा चुकी है। प्रशासन ने भी पूजा की उपलब्धि को मिशन शक्ति के तहत महिला सशक्तिकरण अभियान से जोड़ते हुए उन्हें जिले में रोल मॉडल के रूप में चिन्हित किया है। पूजा का कहना है कि अगर मेहनत में निरंतरता हो और सोच को सही दिशा मिले, तो छोटा सा गांव भी बड़ी पहचान की शुरुआत बन जाता है और यही संदेश आज बाराबंकी से पूरे उत्तर प्रदेश तक गूंज रहा है। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से एक ऐसी खबर सामने आई है, जो गांव की मिट्टी से निकलकर देश के मंच तक पहुंची प्रतिभा का भरोसा बढ़ाती है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के अगेहरा गांव की 8वीं कक्षा की छात्रा और बाल वैज्ञानिक पूजा पाल को किसानों के हित में विकसित किए गए धूल-रहित थ्रेसर मॉडल के लिए प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पूजा को यह पुरस्कार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में 26 दिसंबर को प्रदान किया जाएगा। खबर सामने आते ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में परिवार से लेकर गांव और जिले तक उत्साह का माहौल है। पूजा पाल ने फसल की मड़ाई के दौरान उठने वाली धूल को नियंत्रित करने वाला थ्रेसर मॉडल तैयार किया है। यह नवाचार किसानों को धूल से होने वाली श्वसन संबंधी परेशानियों से बचाने में मदद करता है और खेत-खलिहान में काम करने वाले लोगों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बन सकता है।
उत्तर प्रदेश का गौरव बनी बाराबंकी की बेटी
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के छोटे से गांव अगेहरा से निकली पूजा पाल ने अपनी लगन और नवोन्मेषी सोच से यह साबित कर दिया कि सपनों की ऊंचाई संसाधनों से नहीं, हौसले से नापी जाती है। अपने इनोवेशन के जरिए पूजा पहले भी पहचान हासिल कर चुकी हैं, और अब प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार की उपलब्धि ने उन्हें उत्तर प्रदेश की बेटियों के लिए एक नई प्रेरक मिसाल बना दिया है। जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी के अनुसार, केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद तहसील सिरौलीगौसपुर क्षेत्र के ग्राम अगेहरा की रहने वाली पूजा पाल को यह सम्मान प्रदान किया जाएगा। गांव की मिट्टी से उठी यह सफलता की कहानी आज पूरे यूपी को यह संदेश दे रही है कि मेहनत और आइडिया मिल जाएं, तो मंज़िलें खुद रास्ता दे देती हैं।
धूल-रहित थ्रेसर कैसे बना पहचान
उत्तर प्रदेश की बाल वैज्ञानिक पूजा पाल तब सुर्खियों में आईं, जब उन्होंने किसानों की सेहत को केंद्र में रखकर धूल-रहित थ्रेसर का मॉडल तैयार किया। खेतों में मड़ाई के दौरान उड़ने वाली धूल अक्सर मजदूरों और किसानों के लिए बड़ी परेशानी बन जाती है आंखों में जलन, सांस फूलना और समय के साथ फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। पूजा का मॉडल इसी जोखिम को कम करने का व्यावहारिक रास्ता दिखाता है, जिससे खेत-खलिहान में काम करने वाले लोगों को ज्यादा सुरक्षित माहौल मिल सकता है। बताया जाता है कि 7वीं कक्षा में ही पूजा ने राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में अपना यह मॉडल प्रस्तुत किया था, जहां उनके नवाचार को उपयोगी और प्रभावशाली मानते हुए सराहना मिली। यह उपलब्धि दिखाती है कि यूपी की नई पीढ़ी अब सिर्फ सपने नहीं देख रही, बल्कि खेती और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर समाधान भी गढ़ रही है।
मजदूर पिता, रसोइया मां… फिर भी हौसला ऊंचा
उत्तर प्रदेश के एक सामान्य ग्रामीण परिवार से आने वाली पूजा पाल की कहानी संघर्ष और संकल्प का आईना है। सीमित संसाधनों के बीच उनके पिता पुत्ती लाल मजदूरी कर घर चलाते हैं, जबकि मां सुनीला देवी सरकारी स्कूल में रसोइया के तौर पर काम करती हैं। पूजा अपने घर में तीन बहनों और दो भाइयों के साथ रहती हैं जहां सपनों की पूंजी बड़े साधन नहीं, परिवार की मेहनत और बेटी की लगन रही। परिवार लंबे समय तक छप्परनुमा घर में रहा, लेकिन अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान की स्वीकृति मिलना उनके लिए नई शुरुआत जैसा है। बाराबंकी के इस घर से उठी पूजा की उड़ान बताती है कि यूपी की मिट्टी में मेहनत की जड़ें जितनी गहरी हों, सफलता की छांव उतनी ही बड़ी होती है।
जापान तक पहुंचा उत्तर प्रदेश की बेटी का इनोवेशन
पूजा पाल के इस नवाचार ने उन्हें न सिर्फ उत्तर प्रदेश और देश में पहचान नहीं दिलाई, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचने का रास्ता भी खोल दिया। जानकारी के मुताबिक, पूजा को जापान समेत विदेशों में भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला, जहां उनके मॉडल ने सबका ध्यान खींचा। इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें बाल वैज्ञानिक के तौर पर सम्मानित कर चुकी है और एक लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी जा चुकी है। प्रशासन ने भी पूजा की उपलब्धि को मिशन शक्ति के तहत महिला सशक्तिकरण अभियान से जोड़ते हुए उन्हें जिले में रोल मॉडल के रूप में चिन्हित किया है। पूजा का कहना है कि अगर मेहनत में निरंतरता हो और सोच को सही दिशा मिले, तो छोटा सा गांव भी बड़ी पहचान की शुरुआत बन जाता है और यही संदेश आज बाराबंकी से पूरे उत्तर प्रदेश तक गूंज रहा है। UP News












