Friday, 29 November 2024

वाह! क्या माल है?

By: परवीणा अग्रवाल  Women’s Day Special: एक दिन सब्जी मंडी में सब्जी खरीद रही थी। एक अत्यंत सुंदर एवं स्मार्ट…

वाह! क्या माल है?

By: परवीणा अग्रवाल 

Women’s Day Special: एक दिन सब्जी मंडी में सब्जी खरीद रही थी। एक अत्यंत सुंदर एवं स्मार्ट महिला जो कम से कम 40 वर्ष की थी सब्जी ले रही थी। जैसे ही वह दुकान से आगे बढ़ी अगल-बगल के दो दुकानदारों ने आपस में एक दूसरे को अश्लील इशारे किए और उनमें से एक ने दूसरे से कहा वाह क्या” माल” है ? ये पहला मौका नहीं था जब एक महिला के लिए इस तरह का कमेंट सुनने को मिला था। कमेंट करने वाला व्यक्ति अशिक्षित अनपढ़ व गरीब तबके का आदमी था। किंतु एक अत्यंत शिक्षित प्रशासनिक सेवा के उच्च अधिकारी द्वारा एक बड़ी राजनेता के लिए भी बिल्कुल यही कमेंट सुना था कि वह तो फला नेता की “माल” है।

यह देश जो ‘नारी तू नारायणी’ या ‘मात्तृ देवों भव’ का उद्घोष करता है, वहां नारी केवल उपभोग की वस्तु (माल) मात्र है। जहां पग- पग पर नारी अस्मिता के लुटेरे मिलते हैं। जहां कुछ महीनो की कन्या से लेकर 80 वर्ष की वृद्धा तक के साथ हिंसक बलात्कार होते हैं। जहां महिला ना तो घर में सुरक्षित है और ना बाहर सुरक्षित है। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में अधिकांश परिवार के सदस्य या परिचितों द्वारा ही किए जाते हैं। ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं जहां पिता ही पुत्री का वर्षों वर्ष यौनशोषण करता रहा।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2021 में भारत में प्रतिदिन 86 रेप के मामले दर्ज किए गए जिसका मतलब है कि हर घंटे में देश में रेप के तीन मामले दर्ज किए गए। निश्चित रूप से मामले इस से कहीं ज्यादा होते हैं क्योंकि स्त्री चेतना एवं सशक्तिकरण की लाख बातें हो फिर भी अनेक मामले सामाजिक प्रताड़ना एवं लाज शर्म के भय से दर्ज नहीं कराए जाते।

देवी मंदिरों एवं शक्ति पीठों में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ मिलेगी। नवरात्रि के अवसर पर इन मंदिरों एवं शक्तिपीठों में देवी का दर्शन पाना एक लड़ाई जीतने जैसा है। घर-घर कन्या पूजन होगा। किंतु मौका मिलते ही गिद्ध झपटने को तैयार है। जिसे हर कन्या हर नारी केवल,” माल” दिखाई देती है। जिसका उपभोग करना उसका जन्म सिद्ध अधिकार है, क्योंकि वह पितृ सत्तात्मक समाज में पैदा हुआ है और महिला का मान मर्दन उसके अहम को उसके पुरुषत्व को (नहीं पुरुषत्व तो शायद ठीक शब्द नहीं है उसकी मर्दानगी को) धार देता है। पुरुष अशिक्षित हो या सुशिक्षित, अमीर हो या गरीब, कल्चरड हो या अनकल्चरड, ये घटक एक महिला के प्रति व्यक्ति की मानसिकता का निश्चय नहीं करते। दोनों तरह के पुरुषों (शायद मर्द )की मानसिकता महिला के प्रति समान हो सकती है । अगर महिला अपराधों के संबंध में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखें तो तो पता चलता है कि लगातार सख्त कानूनों एवं सरकारों के प्रयासों के बावजूद महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या साल दर साल बढ़ती जाती है। कभी धर्म के नाम पर “देवदासी” बनाकर महिला का शोषण किया गया, कभी सम्मान के नाम पर जीवित ही उसे पति की चिता में झोंक दिया गया और उसे अत्यंत निष्ठावान पत्नी बनाकर “सती” का खिताब अदा कर दिया गया।

एक पिता के रूप में अथवा एक भाई के रूप में भले ही पुरुष यह चाहे कि उसकी पुत्री या बहन बंधनों से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचे। पर क्या वह महिला अपने कार्य क्षेत्र में अपने ही सहयोगियों अधीनस्थों की उस गिद्ध दृष्टि से बच पाती है, जिसमें उसे यह महसूस होता है कि सामने वाले ने आंखों ही आंखों में उसके सारे कपड़े उतार दिए हैं।

महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि क्षेत्र कोई भी हो राजनीति का, युद्ध का, उद्योग का, व्यापार का अथवा सेवा का वह कहीं भी कमतर नहीं है। पर अगर वह आगे बढ़ती है तो उसे गिराने का सर्वाधिक सरल तरीका है उसका चरित्र हनन करना। पुरुष की कुंठा की पराकाष्ठा है कि उसके द्वारा दी जाने वाली सारी गालियां मां और बहन को दी जाती है।

अब जरूरत है कि हम अपने बेटों को शिक्षित एवं सुसंस्कृत करें। उन्हें बताएं की महिला भी सम्मान की हकदार है। वह भी इंसान है कोई माल नहीं।

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