धर्म-अध्यात्म : झूठ की कमजोर नींव पर खड़ी 'मैं' की इमारत!

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calendar02 Dec 2025 02:31 AM
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विनय संकोची

यदि मन की बात करें, तो इस बेलगाम को काबू में रखना लगभग असंभव ही है। फर्श पर पड़े पारे को चुटकी से उठाने जैसा प्रयास, मन को काबू में रखने की कोशिश तो होती है, मगर कामयाबी की कोई गारंटी नहीं होती है। मन की चंचलता सर्वविदित है। चंचल मन को वश में रखने के तमाम उपाय सुझाए तो जाते हैं, लेकिन उपाय सुझाने वाले भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं होते कि मन, उन उपायों से पालतू बन जाएगा।

मन हमेशा मनुष्य से कुछ-न-कुछ चाहता रहता है और ऐसा कुछ चाहता है, जिसे पाना बहुत आसान न हो। कठिनाइयों के बाद मिली सफलता से मन अपेक्षाकृत ज्यादा सुखी और संतुष्ट होता है। सहज रूप से, अल्प प्रयास से मिली उपलब्धियां मन को प्रसन्न तो निश्चित रूप से करती हैं, लेकिन संतुष्ट बहुत अधिक नहीं कर पाती हैं।

मनुष्य मन का दास होता है। अधिकांशत: मनुष्य वही करता है, जो उसका मन चाहता है। केवल विवेक है, जो मन की स्वतंत्रता में बाधा डालता है। परंतु देखा यह जाता है कि मनुष्य विवेक की अनदेखी कर, मन के कहने पर चलने का निर्णय लेता है। मन की तमाम लुभावनी बातें मनुष्य को स्वार्थ मार्ग पर अग्रसर करती हैं। मन मनुष्य के 'मैं' का पोषण करता है, जिससे उसके सोच पर प्रभाव पड़ता है। मन, कामनाओं का जनक है। मनुष्य सोचता है - 'मेरे मन की बात बन जाए'। यही सोच कामना का रूप धर लेती है और कामना दु:ख का कारण बनती है। परोक्ष रूप से मन ही कामना के रूप में दु:ख कष्ट का कारण बनता है और दोष लगता है मनुष्य को।

मनुष्य ज्यों-ज्यों मन की बात मानता और मनवाता है, त्यों-त्यों कामना, इच्छा, स्वार्थ के दलदल में फंसता चला जाता है। गहरा और गहरा। मन कामनाओं का त्याग नहीं करने देता, मन इच्छाओं का दमन नहीं होने देता। मन स्वार्थ भाव को सींचता है और मनुष्य मन की बात को पूरा करने में अपना संपूर्ण जीवन लगा देता है। अंतिम समय तक भी मन की बात, मन की कामना पूरी नहीं होती है।

मन के भावों पर नियंत्रण रखने के उपदेश आदिकाल से महापुरुष देते चले आ रहे हैं। परंतु विरले ही हैं, जो मन के भाव प्रवाह को बांध पाने में सफल हुए हैं। प्राचीन ग्रंथों में तमाम ऐसी कहानियां पढ़ने को मिल जाती हैं, जो दर्शाती हैं कि अनेक महापुरुष जिन्होंने मन पर अंकुश लगाने के उपदेश दिए और किसी पड़ाव पर वह भी मन के हाथों मजबूर हुए। उन्होंने भी ऐसे काम किए जिन्हें वे करना नहीं चाहते थे और उन्होंने ऐसा इस कारण से किया क्योंकि मन ने उन्हें विवश कर दिया बंद कर दिया।

मन मनुष्य के स्वभाव को प्रभावित और नियंत्रित करता है। शास्त्र कहते हैं - 'स्वार्थ और अहंकार से स्वभाव बिगड़ता है और इस बिगड़ाव का कारण मूल रूप से मन ही होता है। मन कहता है - 'अपने बारे में सोचो, वह काम करो, जिससे तुम्हारा अपना भला हो।' मन यह भी कहता है कि तुम सब कुछ कर सकते हो। तुम ही सबसे श्रेष्ठ हो, तुम ही सबसे ज्यादा बुद्धिमान हो। मन की इन बातों से मनुष्य के स्वभाव में दूसरों के प्रति उपेक्षा का भाव पनपता है और साथ ही विकसित होती है झूठ की कमजोर नींव पर खड़ी 'मैं' की इमारत।

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नि:संकोच : लड़की को केवल 14 सेकेंड से कम घूरना अपराध नहीं!

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 06:26 PM
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 विनय संकोची

रुटीन खबरों के बीच कुछ ऐसी खबरें भी आ जाती हैं, जो अपनी ओर ध्यान खींचती हैं और टिप्पणी करने को मजबूर करती हैं। एक खबर पढ़ने में ऐसी आई, जो लड़कियों को घूरने वालों को बड़े संकट में डालने का संकेत दे रही है। तमिलनाडु के एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने कहा कि अगर कोई लड़का किसी महिला को, किसी युवती को 14 सेकेंड के लिए भी घूरता है, तो उसके विरुद्ध यौन उत्पीड़न का केस दर्ज हो सकता है।

14 सेकंड का आंकड़ा समझ नहीं आया। पर यह बात तो सही है कि 14 सेकंड में नजरों से कहा तो बहुत कुछ जा सकता है और इसका प्रमाण है टीवी चैनलों पर चलने वाले 15 सेकेंड वाले तमाम विज्ञापन जो इस अल्प समय में ही अपनी पूरी बात कह जाते हैं।...तो सावधान हो जाएं युवतियों-महिलाओं को घूरने वाले। हो सकता है सरकारें आईपीएस की कही बात को बेशक कानून ने बनाएं लेकिन कुछ स्वयंभू 'महिला सम्मान रक्षक दल' इसे जरूर अपना सकते हैं। ...और फिर वह कर सकते हैं जो घूरने वाले ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। बहरहाल मेरा फर्ज़ आपको सावधान करना था, सो कर दिया बाकी आप जानो, आपका राम जाने।

अब आते हैं दूसरी खबर पर अमरीकी वैज्ञानिकों ने अगले 10 वर्ष में केले के विलुप्त होने की चेतावनी कुछ वर्ष पूर्व दी थी। अगर केला विलुप्त हो गया तो व्रत में लोग क्या खाएंगे? सत्य नारायण भगवान के व्रत में केले की जगह कौन सा पेड़ पुजेगा, बंदरों को केले खिलाकर पुण्य कमाने वालों का क्या होगा?

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने लंबे शोध के बाद कहा था - 'केलों का विलुप्तीकरण एक फंगस से होने वाली सिगातोका कॉम्प्लेक्स के कारण होगा। सिगातोका कॉम्प्लेक्स से केले के पेड़ में समस्याएं आ जाती हैं, जिससे पौधा सूखने लगता है।

भ्रष्ट नेता दुनिया के हर छोटे-बड़े देश में पाए जाते हैं। वरिष्ठ अफसरों, कर्मचारियों की फसल भी हर छोटे-बड़े देश में लहलहाती है, किसी देश में कम तो किसी में ज्यादा। क्या कोई ऐसा फंगस कोई, ऐसा जीवाणु, कोई कॉम्प्लेक्स ऐसा नहीं है जो भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की उस लालसा को सुखा दे, जो उन्हें भ्रष्टाचार के लिए उकसाती है। कोई ऐसा फंगस वैज्ञानिक विकसित भी तो कर सकते हैं, जिससे भ्रष्ट नेताओं और अफसरों का शरीर तो सुरक्षित रहे, वे जीवित तो रहें लेकिन उनका लालच मर जाए। अगर ऐसा फंगस तैयार हो गया तो तमाम देश खुशहाल होकर भ्रष्टाचार मुक्ति का जश्न मना सकेंगे।...और कल को ऐसा भी हो सकता है, वैज्ञानिक ऐसा फंगस, ऐसा जीवाणु तैयार करने में भी कामयाब हो जाएं, जो देश के दुश्मन आतंकवादियों के दिलों की नफरत को धो डाले। देखो जी हो तो बहुत कुछ सकता है, क्योंकि विज्ञान बहुत आगे बढ़ रहा है और नए नए आविष्कारों से दुनिया को चमत्कृत कर रहा है।

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संविधान दिवस : भारत का संविधान सीधा जनता से शक्ति लेता है!

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 10:57 PM
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विनय संकोची

26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था। केंद्र सरकार ने 19 नवंबर 2015 को राजपत्र अधिसूचना की सहायता से 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया था। भारत का संविधान अंगीकार करने और लागू करने के बाद से इसमें 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। ऐसा इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि संविधान निर्माता चाहते थे कि इसमें संशोधन आसान हो ताकि आने वाले समय में जरूरत के मुताबिक इसे ढाला जा सके। संविधान में लचीलेपन का सदुपयोग और दुरुपयोग हिंदुस्तान की जनता ने होते हुए देखा है।

11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहे। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे।

संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में कुल 114 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की आजादी थी। संविधान सभा के सदस्यों का पहला सत्र 9 दिसंबर 1947 को आयोजित हुआ, इसमें ड्राफ्टिंग सभा के 207 सदस्य उपस्थित थे। ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे। शुरू में संविधान सभा में 389 सदस्य थे। प्रोवेंसेज के 292 प्रतिनिधि, राज्यों के 93 प्रतिनिधि, चीफ कमिश्नर प्रोवेंसेज के 3, बलूचिस्तान के 1 प्रतिनिधि शामिल थे। बाद में मुस्लिम लीग ने खुद को अलग कर लिया जिसके बाद संविधान सभा की सदस्य संख्या 299 रह गई।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित जरूर है, परंतु विश्व में सर्वश्रेष्ठ भी मानी जाती है। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएं, उद्देश्य, उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' इस वाक्य से प्रारंभ होती है। राज्य अपना प्रथक संविधान नहीं रख सकते हैं, केवल एक ही संविधान केंद्र तथा राज्य दोनों पर समान रूप से लागू होता है।

संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द 1976 में हुए 42 में संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था। यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चित करता है। भारत का कोई अधिकारिक धर्म नहीं है। यह न तो किसी धर्म को बढ़ावा देता है और न ही किसी से कोई भेदभाव करता है।

भारत के संविधान को खूबसूरत लिखावट में लिखने का काम प्रेम बिहारी नारायण रायजादा को सौंपा गया था और इसके लिए पंडित नेहरू ने उनसे आग्रह किया था। रायजादा ने संविधान लेखन का कोई पैसा नहीं लिया था।