अफ्रीका की राजनीति में बड़ा भूचाल: इजराइल ने सोमालीलैंड को दे दी पहचान

इसे इसलिए भी निर्णायक माना जा रहा है क्योंकि सोमालीलैंड पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए प्रयासरत रहा है, लेकिन अब तक किसी भी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश की औपचारिक मुहर उसे नहीं मिल पाई थी।

इजराइल के फैसले से ऑफ अफ्रीका की राजनीति में हलचल
इजराइल के फैसले से ऑफ अफ्रीका की राजनीति में हलचल
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar27 Dec 2025 12:23 PM
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Israel recognise Somaliland : भारत के करीबी माने जाने वाले इजराइल ने इस बार ऐसा कूटनीतिक कदम उठा दिया है, जिसने पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीकी महाद्वीप तक हलचल बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की अगुवाई में इज़राइल ने सोमालिया से अलग होकर बने सोमालीलैंड को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का ऐलान किया है। इसे इसलिए भी निर्णायक माना जा रहा है क्योंकि सोमालीलैंड पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए प्रयासरत रहा है, लेकिन अब तक किसी भी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश की औपचारिक मुहर उसे नहीं मिल पाई थी।

इजराइल की मान्यता ने बढ़ाई धड़कनें

1991 में सोमालीलैंड ने सोमालिया से अलग होकर आज़ाद पहचान का ऐलान कर दिया था। तब से यह इलाका काग़ज़ों पर भले “क्षेत्र” कहलाता रहा, लेकिन ज़मीन पर यह एक देश की तरह चलता आया है अपनी सरकार, संसद, सुरक्षा बल, चुनाव और प्रशासनिक ढांचे के साथ। समस्या बस इतनी थी कि दुनिया ने इसे अब तक औपचारिक मुहर नहीं दी, इसलिए सोमालीलैंड दशकों तक मान्यता की प्रतीक्षा में खड़ा ‘अधूरा राष्ट्र’ बना रहा। अब इज़राइल की मान्यता ने इस लंबी चुप्पी को तोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है क्या सोमालीलैंड अब सचमुच वैश्विक नक्शे पर जगह बनाने जा रहा है?

दूतावास और राजदूतों पर बनी सहमति

इजराइल के विदेश मंत्री गिडिओन सआर ने बताया कि इज़राइल और सोमालीलैंड के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने पर समझौता हुआ है। इसके तहत दोनों पक्ष एक-दूसरे के यहां दूतावास खोलेंगे और राजदूतों की नियुक्ति की जाएगी। कूटनीतिक भाषा में यह सामान्य घोषणा नहीं, बल्कि रिश्तों को औपचारिक और स्थायी ढांचे में ढालने का संकेत है और यही बात कई देशों को चौंका रही है।

कहां है सोमालीलैंड और क्यों है यह इलाका अहम?

सोमालीलैंड, सोमालिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसकी सीमाएं जिबूती और इथियोपिया से जुड़ती हैं। यहां अपनी सरकार, संसद, सुरक्षा बल और प्रशासनिक ढांचा मौजूद है। क्षेत्रीय नजरिए से यह इलाका इसलिए भी संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यह हॉर्न ऑफ अफ्रीका की उस पट्टी में पड़ता है, जहां समुद्री मार्ग, सुरक्षा और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा लगातार केंद्र में रहती है।

नेतन्याहू का ‘डिप्लोमेसी कार्ड’ और अब्राहम समझौते का संदर्भ

इज़राइली प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस फैसले को अब्राहम समझौते की भावना से जोड़कर पेश किया है। 2020 के बाद इज़राइल ने कुछ अरब देशों के साथ रिश्तों को औपचारिक रूप से सामान्य किया था—और अब इसी रणनीतिक रफ्तार को अफ्रीका के हॉर्न तक बढ़ाने की कोशिश के तौर पर इस कदम को देखा जा रहा है।

इज़राइल ने एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें नेतन्याहू ने वीडियो कॉल के जरिए सोमालीलैंड के राष्ट्रपति अब्दिरहमान मोहम्मद अब्दुल्लाही से बातचीत की। बातचीत में उन्हें इज़राइल आने का निमंत्रण दिया गया, जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुए यरुशलम आने की इच्छा जताई।

अमेरिका की असहजता

इस घटनाक्रम ने अमेरिका को भी असहज कर दिया है, क्योंकि सोमालिया में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और अल-शबाब के खिलाफ चल रहे अभियानों की पृष्ठभूमि इस मसले को सीधे सुरक्षा हितों से जोड़ देती है। इसी संदर्भ में अमेरिकी राजनीति के पुराने बयान भी चर्चा में हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक इंटरव्यू में सोमालीलैंड को मान्यता देने पर सवाल उठाते हुए अमेरिका के रुख पर असहमति जताई थी। इजराइल के इस फैसले पर तुर्की और मिस्र जैसे देशों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। उनका कहना है कि यह कदम सोमालिया के आंतरिक मामलों में दखल जैसा है और इससे क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है। तुर्की ने इसे इज़राइल की “विस्तारवादी सोच” से जोड़कर देखा, जबकि मिस्र ने भी संप्रभुता और क्षेत्रीय संतुलन के मुद्दे उठाए।

इजराइल को क्या मिल सकता है?

विश्लेषकों की राय में इज़राइल के लिए यह सिर्फ प्रतीकात्मक मान्यता नहीं, बल्कि रणनीतिक लाभ की संभावना भी है। सोमालीलैंड की लोकेशन यमन के नजदीक पड़ती है और यह इलाका पिछले कुछ वर्षों में हूती गतिविधियों और सुरक्षा तनाव के कारण वैश्विक निगाह में रहा है। कुछ आकलन यह भी बताते हैं कि भविष्य में यह क्षेत्र खुफिया निगरानी और सैन्य लॉजिस्टिक्स के लिहाज से अहम ठिकाना बन सकता है। इस इलाके में यूएई की गतिविधियों और अमेरिकी अधिकारियों के दौरों का जिक्र भी इसी रणनीतिक रुचि को रेखांकित करता है। सोमालीलैंड की आबादी करीब 62 लाख बताई जाती है। यहां चुनाव और सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण होता रहा है, जो इस क्षेत्र की पहचान का एक बड़ा आधार है। हालांकि, हाल के वर्षों में पत्रकारों और विपक्ष पर दबाव जैसी शिकायतें भी सामने आती रही हैं। बावजूद इसके, इज़राइल की मान्यता के बाद सोमालीलैंड को पहली बार वैश्विक मंच पर वह चर्चा मिली है, जिसकी तलाश वह लंबे समय से कर रहा था। Israel recognise Somaliland

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कौन था हुसैन महमूद मर्शाद अल-जौहरी? इजरायल के दावे में लेबनान कमांडर ढेर

इजरायल ने अपने बयान में कहा कि लक्ष्य हुसैन महमूद मर्शाद अल-जौहरी थे जिन पर आरोप है कि वे बीते वर्षों से सीरिया-लेबनान बेल्ट में इजरायल के खिलाफ हमलों और कथित साजिशों को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।

लेबनान में ड्रोन स्ट्राइक के बाद इजरायल का बड़ा दावा
लेबनान में ड्रोन स्ट्राइक के बाद इजरायल का बड़ा दावा
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar26 Dec 2025 12:08 PM
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Hussein Mahmoud Marshad Al-Jawhari : लेबनान के उत्तर-पूर्वी हिस्से में बीते गुरुवार सुबह एक ड्रोन स्ट्राइक ने इलाके में हलचल बढ़ा दी। इजरायली सेना का दावा है कि इस हमले में ईरान की कुद्स फोर्स का एक शीर्ष कमांडर मारा गया। इजरायली रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईडीएफ और शिन बेट ने मिलकर ऑपरेशंस यूनिट से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी को टारगेट किया। वहीं लेबनान की सरकारी समाचार एजेंसी ने बताया कि सीरियाई सीमा की ओर जाने वाली सड़क पर एक वाहन पर ड्रोन से हमला हुआ, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई। इजरायल ने अपने बयान में कहा कि लक्ष्य हुसैन महमूद मर्शाद अल-जौहरी थे जिन पर आरोप है कि वे बीते वर्षों से सीरिया-लेबनान बेल्ट में इजरायल के खिलाफ हमलों और कथित साजिशों को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।

यूनिट 840 क्या है, जिसका नाम सामने आया?

इजरायली बयान में जिस ऑपरेशंस यूनिट का जिक्र किया गया, उसे यूनिट 840 के नाम से भी जाना जाता है। इजरायल का दावा है कि यही यूनिट इजरायल के खिलाफ गतिविधियों को “निर्देशित” करती है और इसके लिए जिम्मेदार मानी जाती है। सेना ने हमले से जुड़ा ड्रोन फुटेज जारी करने की बात भी कही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजरायली पक्ष ने अल-जौहरी को एक “अत्यंत पेशेवर इंटेलिजेंस ऑपरेटिव” के तौर पर पेश किया और दावा किया कि उनके पास सामान्य तौर पर कुद्स फोर्स के कथित टेरर ऑपरेटिव्स की तुलना में अधिक उन्नत क्षमताएं थीं।

ईरान के लिए ‘बड़ा झटका’ क्यों बताया जा रहा है?

इस घटनाक्रम को ऐसे समय में अहम माना जा रहा है, जब इसी साल इजरायली हमलों में ईरान के कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के मारे जाने के दावे सामने आए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, 13 जून को हुए एक इजरायली हमले में आईआरजीसी (IRGC) के कमांडर हुसैन सलामी की मौत का दावा किया गया था। सलामी को इजरायल और अमेरिका समेत विरोधी देशों के प्रति सख्त रुख के लिए जाना जाता था। रिपोर्ट के अनुसार, मई 2025 में उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर किसी देश ने हमला किया तो तेहरान “कड़ा जवाब” देगा। इतना ही नहीं, रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 13 जून से 23 जून के बीच चले संघर्ष के दौरान इजरायल-यूएस के संयुक्त हमलों में ईरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल मोहम्मद बाघेरी और उप कमांडर-इन-चीफ जनरल गुलाम अली राशिद की मौत की भी खबरें सामने आई थीं। Hussein Mahmoud Marshad Al-Jawhari

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सऊदी अरब में शराब क्यों है ‘नो एंट्री’? एक घटना जिसने इतिहास पलट दिया

कुछ ही पलों में गोलियां चलीं ब्रिटिश वाइस-काउंसल की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं। यह वारदात सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि वही चिंगारी बनी, जिसने सऊदी अरब को अपनी नीतियों पर नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया।

सऊदी अरब में शराब पर पाबंदी की कहानी
सऊदी अरब में शराब पर पाबंदी की कहानी
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar25 Dec 2025 11:02 AM
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Saudi Arabia : सऊदी अरब में शराब पर सख्त पाबंदी को अक्सर लोग केवल धार्मिक फैसले के रूप में देखते हैं, लेकिन इसकी जड़ें उससे कहीं ज्यादा गहरी हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि इस प्रतिबंध के पीछे एक ऐसी शाही घटना भी थी, जिसने पूरे किंगडम को भीतर तक झकझोर दिया था। मामला इतना गंभीर था कि यह सिर्फ शाही परिवार की प्रतिष्ठा तक सीमित नहीं रहा,इसने सऊदी अरब की आंतरिक सुरक्षा, प्रशासनिक नियंत्रण और दुनिया के सामने उसकी छवि पर भी सवाल खड़े कर दिए। यही वजह है कि शराब पर रोक वहां सिर्फ ‘कानून’ नहीं बनी, बल्कि राज्य की सख्ती और व्यवस्था की निर्णायक घोषणा बनकर इतिहास में दर्ज हो गई।

1951: वह घटना जिसने इतिहास मोड़ दिया

साल 1951 में सऊदी अरब के जेद्दा शहर में घटी एक खौफनाक घटना ने पूरे किंगडम की नीतियों की दिशा ही बदल दी। शाही परिवार से जुड़े युवा राजकुमार मिशारी बिन अब्दुलअजीज शराब के नशे में जेद्दा स्थित ब्रिटिश वाइस-काउंसल सिरिल ओसमैन के आवास पर पहुंचे। नशे की हालत में उनके व्यवहार ने माहौल को शर्मनाक बना दिया। जब हालात बिगड़ते देख ओसमैन ने राजकुमार को वहां से जाने को कहा, तो यह बात शाही अहंकार पर चोट बन गई। बताया जाता है कि अपमान और गुस्से से तिलमिलाया राजकुमार अगले ही दिन और अधिक उग्र रूप में दोबारा लौटा। इस बार जब शराब और महिला को लेकर उसकी मांग को सख्ती से ठुकरा दिया गया, तो उसने पिस्तौल निकाल ली। कुछ ही पलों में गोलियां चलीं ब्रिटिश वाइस-काउंसल की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं। यह वारदात सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि वही चिंगारी बनी, जिसने सऊदी अरब को अपनी नीतियों पर नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया।

शाही परिवार और किंगडम के लिए बड़ा झटका

यह वारदात महज एक हत्या नहीं थी, बल्कि यह एक राजनयिक की हत्या थी और आरोप शाही परिवार के सदस्य पर लगे। नतीजा यह हुआ कि सऊदी अरब की अंतरराष्ट्रीय साख को ऐसा झटका लगा, जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनाई दी। सत्ता के गलियारों में यह संदेश साफ हो गया कि शराब का मसला सिर्फ सामाजिक अनुशासन या नैतिकता तक सीमित नहीं है; यह शासन की पकड़, आंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति तक को संकट में डाल सकती है। इसी दबाव और पृष्ठभूमि में तत्कालीन शासक किंग अब्दुलअजीज अल सऊद ने एक निर्णायक कदम उठाया और पूरे सऊदी अरब में शराब के उत्पादन, आयात और सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया गया। यही वह कठोर फैसला था, जिसने किंगडम की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान को नई दिशा दी और दुनिया के सामने उसकी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की मुहर लगा दी।

संक्षेप में पूरी कहानी

1951 में जेद्दा से उठा यह मामला सऊदी अरब के लिए सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं रहा, बल्कि किंगडम की प्रतिष्ठा और शासन-व्यवस्था के लिए बड़ा संकट बन गया। आरोप है कि शाही परिवार के युवा राजकुमार मिशारी बिन अब्दुलअजीज नशे की हालत में ब्रिटिश वाइस-कॉन्सुल सिरिल ओसमैन के घर पहुंचे और वहां अभद्रता पर उतर आए। जब उन्हें रोका गया तो बात टलने के बजाय और भड़क गई। अगले ही दिन गुस्से और नशे में वापस लौटकर राजकुमार ने कथित तौर पर गोली चला दी ओसमैन की मौके पर मौत हो गई और उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हुईं। इस राजनयिक हत्याकांड ने सऊदी अरब की अंतरराष्ट्रीय छवि को झकझोर दिया, जिसके बाद राजा अब्दुलअजीज ने निर्णायक कदम उठाते हुए पूरे देश में शराब के उत्पादन, आयात और सेवन पर सख्त प्रतिबंध लागू कर दिया और यही फैसला आगे चलकर किंगडम की सामाजिक पहचान की सबसे कठोर लकीर बन गया।

आज का सऊदी अरब: सख्ती के बीच सीमित ढील

समय के साथ सऊदी अरब की शराब नीति में कुछ सीमित और नियंत्रित बदलावों के संकेत भी दिखने लगे हैं हालांकि इसे ढील नहीं, बल्कि “कड़े नियमों के भीतर प्रबंध” कहा जा सकता है। 2024 में सरकार ने दूतावासों को अपने कर्मचारियों के लिए सख्त शर्तों के साथ सीमित मात्रा में शराब आयात की अनुमति दी, ताकि राजनयिक जरूरतों को नियंत्रित ढंग से पूरा किया जा सके। इसी के साथ गैर-मुस्लिम राजनयिकों और चुनिंदा विदेशी निवासियों के लिए नियंत्रित पहुंच की व्यवस्था पर भी काम आगे बढ़ा। उधर एक्सपो 2030 और फीफा वर्ल्ड कप 2034 जैसे बड़े वैश्विक आयोजनों की तैयारियों के बीच, नीति-निर्माता एक ऐसे “कंट्रोल्ड सेल” मॉडल पर भी विचार कर रहे हैं, जिसमें पहुंच सीमित हो, निगरानी सख्त रहे और किंगडम की सामाजिक-सांस्कृतिक सीमाएं भी कायम रहें। Saudi Arabia


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