अफ्रीका की राजनीति में बड़ा भूचाल: इजराइल ने सोमालीलैंड को दे दी पहचान
इसे इसलिए भी निर्णायक माना जा रहा है क्योंकि सोमालीलैंड पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए प्रयासरत रहा है, लेकिन अब तक किसी भी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश की औपचारिक मुहर उसे नहीं मिल पाई थी।

Israel recognise Somaliland : भारत के करीबी माने जाने वाले इजराइल ने इस बार ऐसा कूटनीतिक कदम उठा दिया है, जिसने पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीकी महाद्वीप तक हलचल बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की अगुवाई में इज़राइल ने सोमालिया से अलग होकर बने सोमालीलैंड को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का ऐलान किया है। इसे इसलिए भी निर्णायक माना जा रहा है क्योंकि सोमालीलैंड पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए प्रयासरत रहा है, लेकिन अब तक किसी भी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश की औपचारिक मुहर उसे नहीं मिल पाई थी।
इजराइल की मान्यता ने बढ़ाई धड़कनें
1991 में सोमालीलैंड ने सोमालिया से अलग होकर आज़ाद पहचान का ऐलान कर दिया था। तब से यह इलाका काग़ज़ों पर भले “क्षेत्र” कहलाता रहा, लेकिन ज़मीन पर यह एक देश की तरह चलता आया है अपनी सरकार, संसद, सुरक्षा बल, चुनाव और प्रशासनिक ढांचे के साथ। समस्या बस इतनी थी कि दुनिया ने इसे अब तक औपचारिक मुहर नहीं दी, इसलिए सोमालीलैंड दशकों तक मान्यता की प्रतीक्षा में खड़ा ‘अधूरा राष्ट्र’ बना रहा। अब इज़राइल की मान्यता ने इस लंबी चुप्पी को तोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है क्या सोमालीलैंड अब सचमुच वैश्विक नक्शे पर जगह बनाने जा रहा है?
दूतावास और राजदूतों पर बनी सहमति
इजराइल के विदेश मंत्री गिडिओन सआर ने बताया कि इज़राइल और सोमालीलैंड के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने पर समझौता हुआ है। इसके तहत दोनों पक्ष एक-दूसरे के यहां दूतावास खोलेंगे और राजदूतों की नियुक्ति की जाएगी। कूटनीतिक भाषा में यह सामान्य घोषणा नहीं, बल्कि रिश्तों को औपचारिक और स्थायी ढांचे में ढालने का संकेत है और यही बात कई देशों को चौंका रही है।
कहां है सोमालीलैंड और क्यों है यह इलाका अहम?
सोमालीलैंड, सोमालिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसकी सीमाएं जिबूती और इथियोपिया से जुड़ती हैं। यहां अपनी सरकार, संसद, सुरक्षा बल और प्रशासनिक ढांचा मौजूद है। क्षेत्रीय नजरिए से यह इलाका इसलिए भी संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यह हॉर्न ऑफ अफ्रीका की उस पट्टी में पड़ता है, जहां समुद्री मार्ग, सुरक्षा और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा लगातार केंद्र में रहती है।
नेतन्याहू का ‘डिप्लोमेसी कार्ड’ और अब्राहम समझौते का संदर्भ
इज़राइली प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस फैसले को अब्राहम समझौते की भावना से जोड़कर पेश किया है। 2020 के बाद इज़राइल ने कुछ अरब देशों के साथ रिश्तों को औपचारिक रूप से सामान्य किया था—और अब इसी रणनीतिक रफ्तार को अफ्रीका के हॉर्न तक बढ़ाने की कोशिश के तौर पर इस कदम को देखा जा रहा है।
इज़राइल ने एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें नेतन्याहू ने वीडियो कॉल के जरिए सोमालीलैंड के राष्ट्रपति अब्दिरहमान मोहम्मद अब्दुल्लाही से बातचीत की। बातचीत में उन्हें इज़राइल आने का निमंत्रण दिया गया, जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुए यरुशलम आने की इच्छा जताई।
अमेरिका की असहजता
इस घटनाक्रम ने अमेरिका को भी असहज कर दिया है, क्योंकि सोमालिया में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और अल-शबाब के खिलाफ चल रहे अभियानों की पृष्ठभूमि इस मसले को सीधे सुरक्षा हितों से जोड़ देती है। इसी संदर्भ में अमेरिकी राजनीति के पुराने बयान भी चर्चा में हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक इंटरव्यू में सोमालीलैंड को मान्यता देने पर सवाल उठाते हुए अमेरिका के रुख पर असहमति जताई थी। इजराइल के इस फैसले पर तुर्की और मिस्र जैसे देशों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। उनका कहना है कि यह कदम सोमालिया के आंतरिक मामलों में दखल जैसा है और इससे क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है। तुर्की ने इसे इज़राइल की “विस्तारवादी सोच” से जोड़कर देखा, जबकि मिस्र ने भी संप्रभुता और क्षेत्रीय संतुलन के मुद्दे उठाए।
इजराइल को क्या मिल सकता है?
विश्लेषकों की राय में इज़राइल के लिए यह सिर्फ प्रतीकात्मक मान्यता नहीं, बल्कि रणनीतिक लाभ की संभावना भी है। सोमालीलैंड की लोकेशन यमन के नजदीक पड़ती है और यह इलाका पिछले कुछ वर्षों में हूती गतिविधियों और सुरक्षा तनाव के कारण वैश्विक निगाह में रहा है। कुछ आकलन यह भी बताते हैं कि भविष्य में यह क्षेत्र खुफिया निगरानी और सैन्य लॉजिस्टिक्स के लिहाज से अहम ठिकाना बन सकता है। इस इलाके में यूएई की गतिविधियों और अमेरिकी अधिकारियों के दौरों का जिक्र भी इसी रणनीतिक रुचि को रेखांकित करता है। सोमालीलैंड की आबादी करीब 62 लाख बताई जाती है। यहां चुनाव और सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण होता रहा है, जो इस क्षेत्र की पहचान का एक बड़ा आधार है। हालांकि, हाल के वर्षों में पत्रकारों और विपक्ष पर दबाव जैसी शिकायतें भी सामने आती रही हैं। बावजूद इसके, इज़राइल की मान्यता के बाद सोमालीलैंड को पहली बार वैश्विक मंच पर वह चर्चा मिली है, जिसकी तलाश वह लंबे समय से कर रहा था। Israel recognise Somaliland
Israel recognise Somaliland : भारत के करीबी माने जाने वाले इजराइल ने इस बार ऐसा कूटनीतिक कदम उठा दिया है, जिसने पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीकी महाद्वीप तक हलचल बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की अगुवाई में इज़राइल ने सोमालिया से अलग होकर बने सोमालीलैंड को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का ऐलान किया है। इसे इसलिए भी निर्णायक माना जा रहा है क्योंकि सोमालीलैंड पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए प्रयासरत रहा है, लेकिन अब तक किसी भी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश की औपचारिक मुहर उसे नहीं मिल पाई थी।
इजराइल की मान्यता ने बढ़ाई धड़कनें
1991 में सोमालीलैंड ने सोमालिया से अलग होकर आज़ाद पहचान का ऐलान कर दिया था। तब से यह इलाका काग़ज़ों पर भले “क्षेत्र” कहलाता रहा, लेकिन ज़मीन पर यह एक देश की तरह चलता आया है अपनी सरकार, संसद, सुरक्षा बल, चुनाव और प्रशासनिक ढांचे के साथ। समस्या बस इतनी थी कि दुनिया ने इसे अब तक औपचारिक मुहर नहीं दी, इसलिए सोमालीलैंड दशकों तक मान्यता की प्रतीक्षा में खड़ा ‘अधूरा राष्ट्र’ बना रहा। अब इज़राइल की मान्यता ने इस लंबी चुप्पी को तोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है क्या सोमालीलैंड अब सचमुच वैश्विक नक्शे पर जगह बनाने जा रहा है?
दूतावास और राजदूतों पर बनी सहमति
इजराइल के विदेश मंत्री गिडिओन सआर ने बताया कि इज़राइल और सोमालीलैंड के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने पर समझौता हुआ है। इसके तहत दोनों पक्ष एक-दूसरे के यहां दूतावास खोलेंगे और राजदूतों की नियुक्ति की जाएगी। कूटनीतिक भाषा में यह सामान्य घोषणा नहीं, बल्कि रिश्तों को औपचारिक और स्थायी ढांचे में ढालने का संकेत है और यही बात कई देशों को चौंका रही है।
कहां है सोमालीलैंड और क्यों है यह इलाका अहम?
सोमालीलैंड, सोमालिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसकी सीमाएं जिबूती और इथियोपिया से जुड़ती हैं। यहां अपनी सरकार, संसद, सुरक्षा बल और प्रशासनिक ढांचा मौजूद है। क्षेत्रीय नजरिए से यह इलाका इसलिए भी संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यह हॉर्न ऑफ अफ्रीका की उस पट्टी में पड़ता है, जहां समुद्री मार्ग, सुरक्षा और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा लगातार केंद्र में रहती है।
नेतन्याहू का ‘डिप्लोमेसी कार्ड’ और अब्राहम समझौते का संदर्भ
इज़राइली प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस फैसले को अब्राहम समझौते की भावना से जोड़कर पेश किया है। 2020 के बाद इज़राइल ने कुछ अरब देशों के साथ रिश्तों को औपचारिक रूप से सामान्य किया था—और अब इसी रणनीतिक रफ्तार को अफ्रीका के हॉर्न तक बढ़ाने की कोशिश के तौर पर इस कदम को देखा जा रहा है।
इज़राइल ने एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें नेतन्याहू ने वीडियो कॉल के जरिए सोमालीलैंड के राष्ट्रपति अब्दिरहमान मोहम्मद अब्दुल्लाही से बातचीत की। बातचीत में उन्हें इज़राइल आने का निमंत्रण दिया गया, जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुए यरुशलम आने की इच्छा जताई।
अमेरिका की असहजता
इस घटनाक्रम ने अमेरिका को भी असहज कर दिया है, क्योंकि सोमालिया में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और अल-शबाब के खिलाफ चल रहे अभियानों की पृष्ठभूमि इस मसले को सीधे सुरक्षा हितों से जोड़ देती है। इसी संदर्भ में अमेरिकी राजनीति के पुराने बयान भी चर्चा में हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक इंटरव्यू में सोमालीलैंड को मान्यता देने पर सवाल उठाते हुए अमेरिका के रुख पर असहमति जताई थी। इजराइल के इस फैसले पर तुर्की और मिस्र जैसे देशों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। उनका कहना है कि यह कदम सोमालिया के आंतरिक मामलों में दखल जैसा है और इससे क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है। तुर्की ने इसे इज़राइल की “विस्तारवादी सोच” से जोड़कर देखा, जबकि मिस्र ने भी संप्रभुता और क्षेत्रीय संतुलन के मुद्दे उठाए।
इजराइल को क्या मिल सकता है?
विश्लेषकों की राय में इज़राइल के लिए यह सिर्फ प्रतीकात्मक मान्यता नहीं, बल्कि रणनीतिक लाभ की संभावना भी है। सोमालीलैंड की लोकेशन यमन के नजदीक पड़ती है और यह इलाका पिछले कुछ वर्षों में हूती गतिविधियों और सुरक्षा तनाव के कारण वैश्विक निगाह में रहा है। कुछ आकलन यह भी बताते हैं कि भविष्य में यह क्षेत्र खुफिया निगरानी और सैन्य लॉजिस्टिक्स के लिहाज से अहम ठिकाना बन सकता है। इस इलाके में यूएई की गतिविधियों और अमेरिकी अधिकारियों के दौरों का जिक्र भी इसी रणनीतिक रुचि को रेखांकित करता है। सोमालीलैंड की आबादी करीब 62 लाख बताई जाती है। यहां चुनाव और सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण होता रहा है, जो इस क्षेत्र की पहचान का एक बड़ा आधार है। हालांकि, हाल के वर्षों में पत्रकारों और विपक्ष पर दबाव जैसी शिकायतें भी सामने आती रही हैं। बावजूद इसके, इज़राइल की मान्यता के बाद सोमालीलैंड को पहली बार वैश्विक मंच पर वह चर्चा मिली है, जिसकी तलाश वह लंबे समय से कर रहा था। Israel recognise Somaliland












