Friday, 3 May 2024

Hindi Kavita – मरुस्थल सरीखी आँखों में

Hindi Kavita – उसने कहा- मरुस्थल सरीखी आँखों में मृगमरीचिका-सा भ्रमजाल होता है, क्योंकि बहुत पहले मरुस्थल, मरुस्थल नहीं थे,…

Hindi Kavita – मरुस्थल सरीखी आँखों में

Hindi Kavita –

उसने कहा-
मरुस्थल सरीखी आँखों में
मृगमरीचिका-सा भ्रमजाल होता है,
क्योंकि बहुत पहले
मरुस्थल, मरुस्थल नहीं थे,
वहाँ भी पानी के दरिया,
जंगल हुआ करते थे
गिलहरियाँ ही नहीं उसमें
गौरैया के भी नीड़ हुआ करते थे
हवा के रुख़ ने
मरुस्थल बना दिया

अब
कुछ पल टहलने आए बादल
कुलाँचें भरते हैं
अबोध छौने की तरह
पढ़ते हैं मरुस्थल को
बादलों को पढ़ना आता है
जैसे विरहिणी पढ़ती है
उम्रभर एक ही प्रेम-पत्र बार-बार

वैसे ही
पढ़ा जाता है मरुस्थल को
मरुस्थल होना
नदी होने जितना सरल नहीं होता
सहज नहीं होता इंतज़ार में आँखें टाँकना
इच्छाओं के
एक-एक पत्ते को झरते देखना;
बंजरपन किसी को नहीं सुहाता
मरुस्थल को भी नहीं
वहाँ दरारें होती हैं
एक नदी के विलुप्त होने की।

अनीता सैनी

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