MP Phoola Devi Temple : छतरपुर की मां फूला देवी जिनके भरे हैं भंडार कोई जाये ना खाली हाथ । नवरात्रि के पावन मौके पर आपको ले चलते हैं मध्यप्रदेश के फूलादेवी मंदिर में जहां मांगी हर मन्नत पूरी होती है । छतरपुर महाराज विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था । जिसके चारों ओर सभी प्रकार के फूल एवं फलों का बगीचा था। विभिन्न प्रकार के फूल वहां होने से उस स्थान और देवी का नाम भी फूलादेवी प्रसिद्ध हो गया जो छतरपुर के राजकुल परिवार की कुलदेवी हैं । यहां पर आज भी राज परिवार के लोग पूजा करने आते हैं । छतरपुर शहर से पहले दो किलोमीटर की दूरी पर सिंघारी नदी जो की छतरपुर की पूर्वी सीमा बनाती हुई बहती है जिसके किनारे श्मशान और वहां से थोड़ा हटकर शहर के शोर गुल से दूर फूला देवी का मंदिर अपने आप में महत्वपूर्ण है। चंदेल वंश द्वारा निर्मित खजुराहो की प्रस्तर शिला पर उंकेरी गई मूर्तियों का प्रतिरूप हैं ।
MP Phoola Devi Temple में माता महालक्ष्मी का रूप
इन्हें माता महालक्ष्मी का रूप माना गया है इनके साथ में विष्णु जी की चतुर्भुजी मूर्ति है पास में ही एकप्रस्तर पर शिव पार्वती की युगल मूर्ति है साथ में गणेश जी और कुमार कार्तिकेय हैं ।मंदिर केभव्य प्रवेश द।वार जिस पर दोनों ओर दो अप्सराओं की हाथ में पूजा के कमल लिये हैं समर्पित करने को । मंदिर के बगल में शिव जी का मंदिर है । मुख्य मंदिर के सामने एक सभा मण्डप जिस पर बैठकर भक्त गण भजन करते ।
शिव मंदिर के बगल से ही एक बड़ी बारादरी जिसमें साधू संतों के ठहरने की व्यवस्था
आज भी राज परिवार के लोग पूजा करने आते हैं
मंदिर की दूसरी ओर अन्य देवी देवताओं की छोटी छोटी मड़िया और कुछ प्रसिद्ध लोगों द्वारा अपने पूर्वजों की स्मृति में बनाये स्मृति स्थलों पर लगे वृक्ष अत्यंत मनोहारी सुरम्य वातावरण एक आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करता है । सन् 1663में इस मंदिर का निर्माण महाराजा जगत सिंह ने करवाया था जिसे बाद में महाराज विश्वनाथ प्रताप सिंह विस्तार देकर भव्य रूप दिया । यहां पंर परमार वंश का शासन रहा जो पन्ना महाराज छत्रपति छत्रसाल के पुत्र क हिन्दूपत का एक बेटा सरनेत सिंह को जो कि अत्याचारी था उसे राजनगर की रियासत का अधिपति बना कर सोन जू परमार के संरक्षण में भेजा । सोन जू उसके सचिव एवं प्रबंधक दोनों ही थे । बाद में सरनेत सिंह की मृत्यु के पश्चात सोन जू परमार ने इस पर अपना अधिकार जमाकर छतरपुर को अपनी राजधानी बनाया । यह परमार वंश की कुलदेवी महालक्ष्मी का मंदिर है । इनकी मान्यता के विषय में कहा जाता है कि पहले एक छोटी सी मड़िया थी ।
नवरात्रि पर लगता है बड़ा मेला
महाराज जगत सिंह के समय जब अंग्रेजों ने उनकी रियासत को हड़पना चाहा था तभी महाराज जगत सिंह ने माता के मंदिर में आकर मानता मांगी थी बाद में उनका कार्य पूरा होने पर जब उनकी रियासत को अंग्रेजों ने मान लिया तो अपने पिता की मत्यु के पश्चात महाराज विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसे भव्य रूप देकर उनकी इच्छा को पूरा किया ।तभी से इसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक हुई और लोग अपनी इच्छा पूरी करने के लिये मनौती मांग कर आने लगे । दोनों ही नवरात्रि पर यहां भारी भीड़ होने के साथ ही मेला लगता है । अब तो फूलादेवी का प्रवेश द्वार भी काफी बड़ा बन गया । इसका ट्रस्ट बन जाने से एब इसका विकास हो रहा है साथ ही नियमित साज संवार एवं सुधार होता रहता है । विजयादशमी के दिन यहां पर लोग अपने पूर्वजों की समाधि पर भेंट चढ़ाने आते हैं जिससे दशमी के दिन तक अच्छी रौनक रहती है ।
ऊषा सक्सेना
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