Sex Education : यौन शिक्षा (Sex Education) के बारे में बात करना हमारे देश में आज भी बुरा माना जाता है। जबकि यौन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी रखना बहुत ही आवश्यक है। वर्ष 2007 में इस शिक्षा कार्यक्रम की भारत सरकार ने पहल की थी। लेकिन, इसका लगातार विरोध होता रहा है। कई राज्यों ने अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कार्यक्रम में थोड़ा बदलाव करके इसे लागू किया।
Sex Education :
आजकल के बदलते परिवेश में स्वास्थ्य खान पान और स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला किताबी ज्ञान ही काफी नहीं है। अधिकतर किशोर और वयस्क हमारे शरीर के विभिन्न अंगों से परिचित हैं और वे कैसे कार्य करते हैं। लेकिन, जब सेक्स की बात आती है तो किशोरों को तो छोड़िये कई वयस्कों के पास भी पर्याप्त जानकारी नहीं होती है। परिणामस्वरूप सेक्स एजुकेशन से जुड़ी भ्रांतियां, सेक्स संबंधी अंधविश्वास और इससे जुड़ी कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिये स्त्री-पुरुष दोनों को सेक्स के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। समाज का मानना है कि शादी से पहले यौन शिक्षा जरूरी नहीं है। उनके विचारों से यौन शिक्षा भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। देखा जाए तो लोग इस विषय या मुद्दों पर बात करना वर्जित मानते हैं। उनकी सोच है कि इस विषय पर बात करने से किशोरों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। लेकिन, समय बदलने के साथ ही यौन संबंधों को लेकर धारणा भी बदली है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 12 वर्ष और उससे अधिक उम्र के बच्चों पर यौन शिक्षा दी जानी अनिवार्य है। खासकर आज के समय में यह और भी जरूरी हो गया है, ताकि बच्चे उम्र के साथ होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को बेहतर तरीके से समझ सकें। साथ ही यौन क्रिया और उससे जुड़े नुकसान से भी अवगत हों।
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शरीर में उम्र के साथ हो रहे हार्मोनल बदलाव सुरक्षित यौन संबंध, प्रेगनेंसी, माहवारी और बर्थ कंट्रोल के बारे में बच्चों और किशोर लड़के लड़कियों को बताना सेक्स एजुकेशन कहलाता है। यौन शिक्षा एक ऐसी प्रोसेस है, जिसमें स्कूल में टीचर और घर में माता-पिता बढ़ते बच्चों को यौन संबंधी जानकारी देते हैं। एक सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि जिन देशों के स्कूलों में यौन शिक्षा सही समय में बच्चों को दी गयी, वहां वे अपनी सही उम्र में बहुत ही सुरक्षित और संयमित तरीके से संबंध स्थापित किये। आज के समय में लोग इंटरनेट के माध्यम से हर चीज जान लेते हैं। इसमें से बहुत सी ठीक भी होती हैं और बहुत सी गलत भी। जो बच्चे किशोरावस्था में होते हैं, वह सेक्स की बातों को अलग ढंग से ले सकते हैं। ऐसे में यदि सही समय पर बच्चों को यौन शिक्षा दी जाये तो इससे बच्चे जिम्मेदार बनेंगे और उनका दिमाग भी विकसित होगा। वह गलत रास्ते पर जाने से पहले सोचेंगे।
बच्चे बढ़ती उम्र के साथ शरीर में हो रहे बदलाव को समझ नहीं पाते और किसी से पूछते भी नहीं है, जिसकी वजह से वह अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए इंटरनेट की दुनिया में चले जाते हैं, जहां उन्हें आधी-अधूरी जानकारी मिलती है, जिसकी वजह से बहुत सी गलत चीजों को धारण कर लेते हैं। यह उनके स्वास्थ्य और समाज दोनों के लिये बहुत ही खतरनाक होती है। इसलिए ऐसी सभी चीजों से बचने के लिए स्कूलों में यौन शिक्षा जरूर देनी चाहिए। यह बहुत जरूरी है।
सरकारी और प्राइवेट स्कूलों मे यौन शिक्षा अनिवार्य
सबसे पहले सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में यौन शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। इसमें यौन शिक्षा के सभी पहलुओं को जरूर शामिल करना चाहिए, जिससे बच्चों को सेक्स के बारे में जानकारियां हों। सिर्फ लड़कियों को ही नहीं, बल्कि लड़कों को भी मासिक धर्म के बारे में पता होना चाहिए, ताकि लड़का और लड़की दोनों शरीर में होने वाली प्राकृतिक घटना के रूप में इसे स्वीकार कर सकें। गर्भावस्था, यौन संचारित रोग (एसटीडी) और मानव इम्यूनो वायरस (एचआईवी) के बारे में जागरूकता लाने के लिए सेक्स शिक्षा की आवश्यकता है, ताकि युवा अधिक जिम्मेदार बन सकें और सेक्स के संबंध में बेहतर निर्णय ले सकें।
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लड़कियों और लड़कों को गर्भनिरोधक और सुरक्षित सेक्स के बारे में पता होना चाहिए। बच्चों को इस बात की जानकारी दी जाये कि यौन क्रिया में भागीदारी की सही उम्र क्या है और इस क्रिया में सही उम्र का ना होना कितना नुकसानदेह साबित हो सकता है। 2 से 5 साल के बच्चे बहुत छोटे होते हैं। उन्हें सही गलत का पता नहीं होता है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों को गुड और बैड टच के बारे में बताया जाये। यह भी यौन शिक्षा का एक हिस्सा है। इसे लेकर बच्चों में समझ विकसित हो कि कौन व्यक्ति सही और कौन गलत है। सही उम्र में बच्चों को यौन शिक्षा देना शुरू कर देना चाहिए। वहीं, बच्चों की उम्र के हिसाब से ही इस बात का निर्धारण करना चाहिए कि बच्चे को कब और किस उम्र में कितनी जानकारी देना उचित है।
बबिता आर्या