India News : भारत के कोने-कोने में ढ़ेर सारी विविधिताएं भरी पड़ी हैं। इसी भारत में ढ़ेर सारे ऐसे सच भी मौजूद हैं जो बहुत आश्चर्यजनक हैं। अत्यधिक आश्चर्यजनक होने के बावजूद भारत में ऐसे सच भरे पड़े हैं जिन पर आसानी से यकीन नहीं होता। भारत का ऐसा ही एक सच है यहां रहने वाला कालबेलिया समाज। भारत का यह कालबेलिया समाज अनेक विशेषताओं से भरा होने के साथ ही साथ आँखों का चलता-फिरता डाक्टर भी है। विस्तार से जान लेते हैं भारत के कालबेलिया समाज को।
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कहां रहता है कालबेलिया समाज
भारत में रहने वाला कालबेलिया समाज यूं तो भारत के हर कोने में पाया जाता है। कालबेलिया समाज की सर्वाधिक आबादी भारत के राजस्थान प्रदेश में है। भारत के कालबेलिया समाज को सपेरा, जोगी या घुमंतु समाज भी कहा जाता है। घुमंतू समाज होने के कारण ही कालबेलिया समाज की उपस्थिति भारत के हर कोने में मिल जाती है।
आँखों का चलता फिरता डाक्टर होता है इस समाज का हर सदस्य
भारत में आधुनिक काल में भी बहुत-से ऐसे समुदाय हैं, जिन्होंने अपनी संस्कृति और विरासत को आज भी मूल स्वरूप में बचाकर रखा है। इन्हीं में से भारत के एक प्रदेश राजस्थान का कालबेलिया समुदाय भी है, जो पीढिय़ों से देसी विधि से सुरमा (काजल) तैयार करता आ रहा है। इनका दावा है कि इस सुरमा के कारण ही इनके समुदाय में कभी किसी की आंखें खराब नहीं हुई हैं। घूम-घूमकर सांप पकडऩे वाले भारत के इस समुदाय को सपेरा, जोगी या घुमंतू भी कहा जाता है, जो अपने नृत्य- संगीत के लिए भी मशहूर है। कालबेलिया समुदाय अपनी उत्पत्ति 12वीं सदी में गुरु गोरखनाथ के शिष्य से जोडक़र देखता है। अधिकांश कालबेलिया भारत में खानाबदोश जीवन बिताते हैं। भारत सरकार ने ेकालबेलिया समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे रखा है। परंपरागत ज्ञान के कारण इन्हें स्थानीय वनस्पति और जीव-जंतुओं की खासी जानकारी होती है। इसी ज्ञान के आधार पर वे कई तरह के आयुर्वेदिक उपचार करते हैं। कालबेलिया जनजाति की सर्वाधिक आबादी भारत के राजस्थान प्रदेश के पाली जिलें में है। राजस्थान के ही अजमेर और इसके आसपास के गांवों में भी इनकी बड़ी आबादी पाई जाती है। देसी काजल के बारे में कालबेलिया समाज की (80 वर्षीय) बुजुर्ग बिदाम देवी कहती हैं कि ‘सुरमा का प्रयोग समुदाय में जन्म लेने वाले बच्चे से लेकर 100 वर्ष के बुजुर्ग तक करते हैं। यह सुरमा शुद्ध देसी रूप से तैयार किया जाता है। इसे सांप का जहर, “रतनजोत, समुद्री झाग, इलायची के बीज, पताल तुंबडी और बेल की जड़ आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता है। इसे लगाते समय गुरुओं द्वारा बताए गए मंत्रों का जाप किया जाता है। हालांकि वह इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं देती हैं।’ उनका कहना है कि ‘पहले की अपेक्षा अब नई पीढ़ी सांप पकडऩे या गांव- गांव में सांप का खेल दिखाने की जगह व्यापार, दिहाड़ी मजदूरी, मार्बल फैक्टरियों में मजदूरी और गाड़ी चलाने जैसे कार्यों को प्राथमिकता देने लगी है।
नई पीढ़ी के सांप पकडऩे से दूरी की एक वजह भारत में सांपों को लेकर सख्त वन्यजीव संरक्षण कानून भी है, जिसके तहत भारत में सांपों को रखने पर जेल या जुर्माने का प्रावधान’ है। भारत के कालबेलिया समाज की नई पीढ़ी भले ही देसी इलाज की जगह आधुनिक चिकित्सा को तरजीह देती हो, लेकिन बिदाम देवी जैसी बुजुर्ग अब भी अपने समाज की इस विरासत पर न केवल गर्व करती हैं, बल्कि वह इसे सहेज कर अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की जद्दोजहद भी करती नजर आ रही हैं। भारत के इस कालबेलिया समाज को अब आप ठीक प्रकार से समझ गए होंगे। भारत के ऐसे ही दूसरे आश्चर्यजनक किन्तु सत्य घटनाओं से लबरेज अनेक जानकारियां हम आप तक पहुंचाते रहेंगे।
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