नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर को हिन्दुओं की अस्मिता का सवाल बनाने वाले भाजपा शासित केंद्र की सत्ता ने मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला देने वाले जजों को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद पुरस्कार से नवाजा है। इनमें एक जज मौजूदा समय में सुप्रीम अदालत के मुखिया हैं। सरकार के इस फैसले का विपक्षी दल आलोचना कर रहे हैं, लेकिन सत्ताधीशों का मनना है कि समर्थन करने वालों को इनाम मिलना ही चाहिए।
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला देने वाली पांच जजों की पीठ की अध्यक्षता पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने की थी। रंजन गोगोई के अलावा इस बेंच में जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे।
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जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट से सीजेआई के पद से रिटायर हुए थे। चार महीने के बाद राष्ट्रपति ने उन्हें राज्यसभा के सांसद के तौर पर मनोनीत किया था। वे राज्यसभा पहुंचने वाले तीसरे जज थे। हालांकि, राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत पहले जज थे। उनसे पहले देश के 21वें चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा (1990 से 1991) को कांग्रेस ने राज्यसभा भेजा था। वे 1998 से 2004 तक उच्चसदन में रहे। इससे पहले जस्टिस बहरुल इस्लाम को कांग्रेस ने 1983 में उनके रिटायरमेंट के 5 महीने बाद राज्यसभा भेजा था।
जस्टिस शरद अरविंद बोबडे 23 अप्रैल 2021 को सीजेआई पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने रंजन गोगोई की जगह ली थी। जस्टिस बोबडे आठ साल सुप्रीम कोर्ट में जज रहे। हालांकि, रिटायरमेंट के बाद जस्टिस बोबडे ने कोई आधिकारिक सार्वजनिक पद नहीं संभाला। वे महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी नागपुर के चांसलर हैं।
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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भारत के मौजूदा सीजेआई हैं। उन्होंने नवंबर 2022 में भारत के 50वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली थी। वे भारत के सबसे लंबे समय तक चीफ जस्टिस रहने वाले जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे हैं।
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जस्टिस अशोक भूषण जुलाई 2021 को रिटायर हुए थे। चार महीने बाद नवंबर में उन्हें नेशनल कंपनी लॉ अपीलीय ट्रीब्यूनल (NCLAT) का चेयरपर्सन बनाया गया। उनका कार्यकाल चार साल के लिए है। उनसे पहले यह पद 20 महीने तक खाली रहा था। कैबिनेट की अपॉइंटमेंट कमेटी ने अक्टूबर 2021 में उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी थी।
जस्टिस अब्दुल नजीर सुप्रीम कोर्ट से जनवरी 2023 में रिटायर हुए। एक महीने बाद उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। वे अयोध्या मामले में फैसला सुनाने वाले 5 जजों में से एकमात्र मुस्लिम थे। इतना ही नहीं, अब्दुल नजीर नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाने वाले जजों की बेंच में भी शामिल थे।
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