Friday, 17 May 2024

Tribute to Sharad Yadav : अखर गया सियासी शिल्पी का यूं चले जाना

नई दिल्ली। सियासी फलक के चमकते सितारे शरद यादव का यूं चले जाना हर किसी को अखर गया। जीवनभर समाज…

Tribute to Sharad Yadav : अखर गया सियासी शिल्पी का यूं चले जाना

नई दिल्ली। सियासी फलक के चमकते सितारे शरद यादव का यूं चले जाना हर किसी को अखर गया। जीवनभर समाज के लिए संघर्ष करने वाले सियासी शिल्पी आखिर हमसे रुखसत हो गए। 12 जनवरी 2023 की रात उनके जिंदगी की आखिरी रात साबित हुई। 75 साल की उम्र में गुरुग्राम के फोर्टिस हॉस्पिटल में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ‘चेतना मंच’ परिवार की ओर से भारतीय राजनीति के पुरोधा को विनम्र श्रद्धांजलि।

Tribute to Sharad Yadav

शरद यादव को यूं ही सियासी शिल्पी नहीं कहा जाता था। शरद यादव का मानना था कि राजनीति में जो दिखता है, अगर वह हो जाए तो उसे सियासत का नाम देना ही बेमानी है। उन्होंने दिल्ली में एक छोटे से कमरे में रहकर अपनी जिंदगी के काफी दिन गुजारे। कहा जाता है कि ​दिल्ली के बिट्ठल भाई पटेल मार्ग पर रहते हुए उन्होंने देश के सबसे बड़े किसान नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की शोहबत में राजनीति के दांव पेच सीखे। संभवत: यहीं से मिली सियासी शिक्षा ने उन्हें भारतीय राजनीति के अखाड़े का दिग्गज पहलवान बना दिया।

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भारतीय राजनीति के शिल्पकार शरद यादव का जन्म एक जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बंदाई गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। शुरुआती शिक्षा मध्य प्रदेश में ही हुई। वह जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। वह इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट थे। लेकिन, उनके मन में कुछ और ही चल रहा था, इसलिए वह सियासी कुरुक्षेत्र में कूद पड़े। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ही थी कि उन्होंने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही कारण है कि उनकी पहचान मौजूदा राजनीति के तमाम क्षत्रपों के गुरु के रूप में भी हुई।

Tribute to Sharad Yadav

शरद यादव ने अपनी राजनीति लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और एचडी देवगौड़ा जैसे धुरंधर राजनीतिज्ञों के साथ शुरू की थी। जब वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, उसी वक्त उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। राजनीति के पहले कदम में भी वह अव्वल रहे थे। शरद यादव प्रखर समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे। युवा नेता के रूप में उन्होंने लोहिया के कई आंदोलन में हिस्सा लिया और कई बार जेल भी गए। शरद यादव पहली बार 1974 में मध्य प्रदेश के जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद बने थे। यह वह दौर था, जब देश में जेपी आंदोलन की गूंज थी। 1977 में भी वह जबलपुर सीट से लोकसभा का चुनाव जीते थे। इसके बाद वह 1986 में राज्यसभा सांसद के रूप में चुने गए।

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साल 1986 के बाद शरद यादव ने यूपी की राजनीति में कदम रखा। यहां भी उन्होंने अपना परचम लहराया। 1989 में उत्तर प्रदेश के बदायूं लोकसभा सीट से जीत हासिल कर तीसरी बार लोकसभा सांसद बने। इस दौर में वह केंद्रीय मंत्री भी रहे। उन्हें टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय सौंपा गया था। इसके बाद उन्होंने बिहार की राजनीति में कदम रखा और 1991 से लेकर 2014 तक वह बिहार के मधेपुरा लोकसभा सीट से सांसद रहे। 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया और 1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।

वर्ष 1998 में शरद यादव ने जॉर्ज फर्नांडिस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड (JDU) नाम की पार्टी बनाई। 13 अक्टूबर 1999 को उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया और एक जुलाई 2001 को वे केंद्रीय श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री चुने गए। शरद यादव 2004 में राज्यसभा से दूसरी बार सांसद बने और गृह मंत्रालय के अलावा कई कमेटियों के सदस्य रहे। साल 2009 में वे 7वीं बार सांसद बने और उन्हें शहरी विकास समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान को देखते हुए ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012’ से नवाजा गया। साल 2014 में मधेपुरा लाोकसभा सीट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद शरद यादव ने साल 2018 में जेडीयू से अलग होकर अपनी नई पार्टी लोकतंत्रिक जनता दल (LJD) का गठन किया। साल 2022 में अपने धुर विरोधी नेता लालू यादव की पार्टी RJD में LJD का विलय कर दिया।

देश में मंडल कमीशन लागू होने के बाद राजनीति के दिग्गज शरद यादव ने बीपी मंडल के पैतृक गांव मुरहो से मंडल रथ निकाला था। इस दौरान उन्होंने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को सामाजिक न्याय का आधार बताया था। मंडल रथ रवाना करने के अवसर पर विश्वनाथ प्रताप सिंह, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान सरीखे कई बड़े नेता शामिल हुए थे। मंडल रथ के माध्यम से उन्होंने कोसी क्षेत्र में अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार की। कोसी समेत पूरे बिहार में राजनीति को उन्होंने नई धार दी। जनता दल में विभाजन के बाद शरद यादव ने जदयू से अपनी राजनीति आगे बढ़ाई। हालांकि उसके बाद वे जदयू से भी अलग हो गए और उनका राजनीतिक प्रभाव धीरे- धीरे कम होता चला गया।

शरद यादव इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल में जेल में रहे। बाद में इंदिरा गांधी के वारिस राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े। 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन के शिल्पकारों में वह प्रमुख थे, लेकिन यह भी एक हकीकत है कि बतौर प्रधानमंत्री वह सबसे ज्यादा इंदिरा गांधी को पसंद करते थे।

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