करोड़ो की बोली, फिर भी पूरा पैसा नहीं! IPL कॉन्ट्रैक्ट का अंदरूनी हिसाब समझिए
खासकर विदेशी खिलाड़ियों के मामले में BCCI की ‘कैपिंग’ और फिर टैक्स कटौती दोनों मिलकर उस रकम को काफी घटा देते हैं। यही वजह है कि 25 करोड़ में बिकने वाला खिलाड़ी भी अंत में पूरे 25 करोड़ घर नहीं ले जाता।

IPL 2026 : टीवी स्क्रीन पर जब किसी खिलाड़ी के नाम के आगे 20–25 करोड़ की बोली चमकती है, तो लगता है मानो उसकी ज़िंदगी रातों-रात बदल गई। लेकिन आईपीएल की नीलामी का यह आंकड़ा ‘इन-हैंड’ कमाई नहीं होता। खासकर विदेशी खिलाड़ियों के मामले में BCCI की ‘कैपिंग’ और फिर टैक्स कटौती दोनों मिलकर उस रकम को काफी घटा देते हैं। यही वजह है कि 25 करोड़ में बिकने वाला खिलाड़ी भी अंत में पूरे 25 करोड़ घर नहीं ले जाता।
1) ‘कैपिंग’ का नियम
आईपीएल के नियमों में विदेशी खिलाड़ियों की फीस को लेकर एक अहम शर्त होती है कैपिंग (Capping)। इसके तहत अगर कोई विदेशी खिलाड़ी नीलामी में 20, 22 या 25 करोड़ में भी बिक जाए, तो उसकी वास्तविक फीस एक तय सीमा तक ही मानी जाती है। यानी बोली जितनी भी बड़ी हो, खिलाड़ी को अधिकतम कैपिंग राशि तक ही भुगतान मिलता है और नीलामी रकम व कैपिंग रकम के बीच का अंतर आमतौर पर BCCI के वेलफेयर/कल्याण फंड में चला जाता है। यह नियम मुख्य रूप से विदेशी खिलाड़ियों पर लागू माना जाता है, जबकि भारतीय खिलाड़ियों के मामले में यह बाध्यता नहीं दिखती।
2) ग्रॉस सैलरी से कटकर बनती है इन-हैंड
कैपिंग की सीमा पार होते ही खिलाड़ियों की कमाई पर दूसरा बड़ा “कट” लगता है टैक्स का। टीवी स्क्रीन पर जो रकम चमकती है, वह ग्रॉस सैलरी होती है; खिलाड़ी के खाते में उतनी रकम कभी नहीं आती। विदेशी खिलाड़ियों की फीस पर आमतौर पर TDS की दर ऊंची रहती है, जबकि भारतीय खिलाड़ियों के मामले में भी TDS कटता है बस उनकी टैक्स स्लैब और भुगतान संरचना के हिसाब से दरें बदलती रहती हैं। नतीजा साफ है: नीलामी में करोड़ों की बोली जितनी भारी दिखती है, बैंक स्टेटमेंट तक पहुंचते-पहुंचते वही रकम काट-छांटकर काफी हल्की हो जाती है।
3) मैनेजर-पीआर की फीस
टैक्स कटने के बाद भी खिलाड़ी की जेब “पूरी” नहीं भरती । मिलने वाली रकम में से अक्सर मैनेजर/एजेंट का कमीशन, पीआर एजेंसी की फीस, और ट्रेनर–फिजियो–सपोर्ट स्टाफ का खर्च अलग से जाता है। यानी नीलामी के बाद जो पैसा नेट दिखता है, वह भी कई बार अंतिम रकम नहीं होती। मैदान पर फिटनेस, ब्रांड वैल्यू और प्रोफेशनल टीम बनाए रखने की कीमत खिलाड़ी को खुद चुकानी पड़ती है और यही वजह है कि करोड़ों की डील के बावजूद “हाथ में आया पैसा” अक्सर लोगों की कल्पना से काफी कम रह जाता है।
4) किश्तों में मिलता है भुगतान
आईपीएल में खिलाड़ियों की कमाई “मैच फीस” नहीं, बल्कि कॉन्ट्रैक्ट सैलरी होती है और इसका भुगतान भी अक्सर एकमुश्त नहीं होता। फ्रेंचाइजी आमतौर पर रकम को टूर्नामेंट से पहले और सीजन के दौरान किस्तों में जारी करती है। खिलाड़ी फिट और उपलब्ध है तो वह प्लेइंग-11 में उतरे या बेंच पर बैठे, कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक सैलरी चलती रहती है। लेकिन कहानी तब बदलती है जब खिलाड़ी चोटिल हो जाए या बीच सीजन टीम से बाहर हो जाए। ऐसे मामलों में भुगतान कई बार एग्रीमेंट की शर्तों, मेडिकल रिपोर्ट और उपलब्धता के आधार पर तय होता है। यानी नीलामी का आंकड़ा जितना सीधा दिखता है, भुगतान की वास्तविक तस्वीर उतनी ही “कॉन्ट्रैक्ट-ड्रिवन” और शर्तों से बंधी रहती है।
5) भुगतान अब रुपये में होता है डॉलर में नहीं
आईपीएल में फीस को लेकर एक बड़ी गलतफहमी भी रहती है, कई लोग मान लेते हैं कि विदेशी खिलाड़ियों को भुगतान डॉलर में होता होगा। जबकि हकीकत यह है कि अब खिलाड़ियों की कॉन्ट्रैक्ट फीस का भुगतान भारतीय रुपये (INR) में ही किया जाता है। यानी नीलामी में फ्रेंचाइजी ने जितनी बोली लगाई, उसी रकम का भुगतान रुपये में होता है डॉलर में नहीं। इससे यह साफ हो जाता है कि खिलाड़ी की कमाई का “फाइनल हिसाब” भी भारतीय मुद्रा के हिसाब से ही तय होता है, और बाकी कटौतियां/शर्तें उसी ढांचे में लागू होती हैं। IPL 2026
IPL 2026 : टीवी स्क्रीन पर जब किसी खिलाड़ी के नाम के आगे 20–25 करोड़ की बोली चमकती है, तो लगता है मानो उसकी ज़िंदगी रातों-रात बदल गई। लेकिन आईपीएल की नीलामी का यह आंकड़ा ‘इन-हैंड’ कमाई नहीं होता। खासकर विदेशी खिलाड़ियों के मामले में BCCI की ‘कैपिंग’ और फिर टैक्स कटौती दोनों मिलकर उस रकम को काफी घटा देते हैं। यही वजह है कि 25 करोड़ में बिकने वाला खिलाड़ी भी अंत में पूरे 25 करोड़ घर नहीं ले जाता।
1) ‘कैपिंग’ का नियम
आईपीएल के नियमों में विदेशी खिलाड़ियों की फीस को लेकर एक अहम शर्त होती है कैपिंग (Capping)। इसके तहत अगर कोई विदेशी खिलाड़ी नीलामी में 20, 22 या 25 करोड़ में भी बिक जाए, तो उसकी वास्तविक फीस एक तय सीमा तक ही मानी जाती है। यानी बोली जितनी भी बड़ी हो, खिलाड़ी को अधिकतम कैपिंग राशि तक ही भुगतान मिलता है और नीलामी रकम व कैपिंग रकम के बीच का अंतर आमतौर पर BCCI के वेलफेयर/कल्याण फंड में चला जाता है। यह नियम मुख्य रूप से विदेशी खिलाड़ियों पर लागू माना जाता है, जबकि भारतीय खिलाड़ियों के मामले में यह बाध्यता नहीं दिखती।
2) ग्रॉस सैलरी से कटकर बनती है इन-हैंड
कैपिंग की सीमा पार होते ही खिलाड़ियों की कमाई पर दूसरा बड़ा “कट” लगता है टैक्स का। टीवी स्क्रीन पर जो रकम चमकती है, वह ग्रॉस सैलरी होती है; खिलाड़ी के खाते में उतनी रकम कभी नहीं आती। विदेशी खिलाड़ियों की फीस पर आमतौर पर TDS की दर ऊंची रहती है, जबकि भारतीय खिलाड़ियों के मामले में भी TDS कटता है बस उनकी टैक्स स्लैब और भुगतान संरचना के हिसाब से दरें बदलती रहती हैं। नतीजा साफ है: नीलामी में करोड़ों की बोली जितनी भारी दिखती है, बैंक स्टेटमेंट तक पहुंचते-पहुंचते वही रकम काट-छांटकर काफी हल्की हो जाती है।
3) मैनेजर-पीआर की फीस
टैक्स कटने के बाद भी खिलाड़ी की जेब “पूरी” नहीं भरती । मिलने वाली रकम में से अक्सर मैनेजर/एजेंट का कमीशन, पीआर एजेंसी की फीस, और ट्रेनर–फिजियो–सपोर्ट स्टाफ का खर्च अलग से जाता है। यानी नीलामी के बाद जो पैसा नेट दिखता है, वह भी कई बार अंतिम रकम नहीं होती। मैदान पर फिटनेस, ब्रांड वैल्यू और प्रोफेशनल टीम बनाए रखने की कीमत खिलाड़ी को खुद चुकानी पड़ती है और यही वजह है कि करोड़ों की डील के बावजूद “हाथ में आया पैसा” अक्सर लोगों की कल्पना से काफी कम रह जाता है।
4) किश्तों में मिलता है भुगतान
आईपीएल में खिलाड़ियों की कमाई “मैच फीस” नहीं, बल्कि कॉन्ट्रैक्ट सैलरी होती है और इसका भुगतान भी अक्सर एकमुश्त नहीं होता। फ्रेंचाइजी आमतौर पर रकम को टूर्नामेंट से पहले और सीजन के दौरान किस्तों में जारी करती है। खिलाड़ी फिट और उपलब्ध है तो वह प्लेइंग-11 में उतरे या बेंच पर बैठे, कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक सैलरी चलती रहती है। लेकिन कहानी तब बदलती है जब खिलाड़ी चोटिल हो जाए या बीच सीजन टीम से बाहर हो जाए। ऐसे मामलों में भुगतान कई बार एग्रीमेंट की शर्तों, मेडिकल रिपोर्ट और उपलब्धता के आधार पर तय होता है। यानी नीलामी का आंकड़ा जितना सीधा दिखता है, भुगतान की वास्तविक तस्वीर उतनी ही “कॉन्ट्रैक्ट-ड्रिवन” और शर्तों से बंधी रहती है।
5) भुगतान अब रुपये में होता है डॉलर में नहीं
आईपीएल में फीस को लेकर एक बड़ी गलतफहमी भी रहती है, कई लोग मान लेते हैं कि विदेशी खिलाड़ियों को भुगतान डॉलर में होता होगा। जबकि हकीकत यह है कि अब खिलाड़ियों की कॉन्ट्रैक्ट फीस का भुगतान भारतीय रुपये (INR) में ही किया जाता है। यानी नीलामी में फ्रेंचाइजी ने जितनी बोली लगाई, उसी रकम का भुगतान रुपये में होता है डॉलर में नहीं। इससे यह साफ हो जाता है कि खिलाड़ी की कमाई का “फाइनल हिसाब” भी भारतीय मुद्रा के हिसाब से ही तय होता है, और बाकी कटौतियां/शर्तें उसी ढांचे में लागू होती हैं। IPL 2026












