UP Elections 2022 : उत्तर प्रदेश (UP Elections) में आखिरी चरण का मतदान आज हो रहा है। काशी समेत पूर्वांचल की उन 54 सीटों (UP Elections) पर वोट डाले जा रहे हैं, जहां मोदी और अखिलेश के भरोसे की कड़ी परीक्षा होनी है। आज जिन 54 सीटों पर मतदान हो रहा है उनमें से 37 सीटों पर भाजपा ने पिछली बार कब्जा जमाया था। इसमें बीजेपी ने 29 सीटों पर कब्जा किया था। इसके अलावा भाजपा के सहयोगी दल अपना दल (एस) ने चार, निषाद पार्टी ने एक और सुभासपा ने तीन सीटें जीती थीं जबकि सपा को 11 और बसपा को 6 सीटों पर कामयाबी मिली थी। सबसे रोचक यह रहा कि इस चरण में हो रहे मतदान में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था।
UP Elections 2022
इस बार का राजनीतिक समीकरण पिछली बार की तुलना में बदल गया है। पिछली बार सुभासपा ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार वह सपा के साथ मिलकर पूर्वांचल में जोर लगा रही है। सुभासपा के चीफ ओम प्रकाश राजभर दावा कर रहे हैं कि पूर्वांचल में इस बार सुभासपा 47 सीटों पर जीतने में कामयाब रहेगी। इस बार पूर्वांचल में भाजपा के साथ अपना दल (एस) और निषाद पार्टी है। कांग्रेस अपने दम पर पूरे प्रदेश में जोर लग रही है।
हालांकि कांग्रेस के नेता यह दावा कर रहे हैं कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। यानी कांग्रेस को इस बात का अंदाजा है कि उनकी सीटों में ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं होगी लेकिन मिशन 2024 के लिहाजा से कांग्रेस का वोट कितने प्रतिशत बढ़ता है यह देखना दिलचस्प होगा। इससे ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकेगा कि प्रियंका के काम का कितना असर निचले स्तर तक हुआ है।
हालांकि अंतिम चरण के चुनाव में सभी दलों ने अपनी अपनी ताकत झोंक दी थी लेकिन नरेंद्र मोदी पिछली बार की तरह ही इस बार भी काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए और डमरू बजाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ने का प्रयास किया। पीएम मोदी ने बाबा विश्वनाथ मंदिर में मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना की। वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव भी काशी विश्वनाथ धाम पहुंचे और उन्होंने भी बाबा विश्वनाथ की पूजा की और उनका आशीर्वाद लिया। इससे पहले अखिलेश ने अयोध्या में भी एक कार्यक्रम के बार रोड शो किया था और हनुमानगढ़ी में पूजा अर्चना भी की थी। अबकी बार अखिलेश हिन्दुत्व के काफी करीब जाते दिखायी दिए। अखिलेश का यह अवतार उनको कितना फायदा पहुंचाएगा यह देखना दिलचस्प होगा।
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यूं तो पीएम मोदी काशी से सांसद हैं लेकिन उनके प्रचार का असर पूरे पूर्वांचल पर पड़ता है ऐसा माना जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार ब्रांड मोदी की भी परीक्षा होनी है क्योंकि भाजपा के साथ ही अपनी साख बचाने के लिए जिस तरह से वह काशी की सड़कों पर उतरे और चाय पीते नजर आए वह एक रणनीति के तहत ही किया गया था। इस दौरान मोदी ने काशी में एक लंबा रोड शो भी किया। पीएम मोदी दूसरी बार वाराणसी से सांसद बने हैं और लोगों की उनसे अपेक्षाएं भी हैं।
पिछली बार काशी में भाजपा और उनके सहयोगी दलों ने मिलकर आठ सीटें हासिल की थी लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि दो या तीन सीटों पर सपा सेंध लगाने में कामयाब हो जाएगी। दरअसल इस बार सुभासपा भी भाजपा के साथ नहीं है। काशी की सभी सीटों पर राजभर वोट काफी अहम भूमिका में हैं लिहाजा यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी और बीजेपी इस बार काशी की आठ सीटों में कितनी सीटों पर परचम लहरा पाते हैं।
काशी में जहां पीएम मोदी की साख दांव पर लगी है वहीं दूसरी ओर सपा के मुखिया अखिलेश यादव के गढ़ आजमगढ़ में उनके भरोसे का इम्तिहान होना है। छठे चरण के मतदान के दिन अखिलेश यादव ने अपने गठबंधन के सभी नेताओं को एक मंच पर बुलाया और उन्हें अपनी और अपने गठबंधन की ताकत का एहसास कराया। आजमगढ़ में दस विधानसभा सीटें हैं। पिछली बार सपा ने पांच और बसपा ने चार सीटों पर कब्जा जमाया था वहीं बीजेपी की झोली में केवल एक ही सीट गई थी।
इस बार बदली हुई परिस्थितियों में आजमगढ़ में बसपा का भी इम्तिहान होना है क्योंकि यदि बसपा कमजोर हुई तो इसका लाभ सपा को मिलेगा। शायद इसी को देखते हुए अखिलेश यादव यह दावा कर रहे हैं कि इस बार आजमगढ़ की सभी दस सीटें सपा जीतेगी। वहीं अखिलेश यादव काशी में भी पूरी जोर लगा रहा हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता ने भी अखिलेश के पक्ष में प्रचार किया था। इसका कितना असर पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा।
उत्तर प्रदेश में ओवैसी पिछले चुनाव से ही अपनी पार्टी का दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल रही है। पश्चिमी यूपी में भी ओवैसी का कोई खास असर नहीं देखा गया। अब पूर्वांचल की कुछ सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारकर अखिलेश की परेशानी बढ़ाने का काम किया है।
आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट से ओवैसी ने इ शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को टिकट दिया है। जमाली यहां से लगातार दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं वह हाल ही में बसपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे। लेकिन वहां से उन्हें टिकट नहीं मिला। जिसके बाद उन्होंने ओवैसी की पार्टी से चुनाव लड़ने का फैसला किया। जमाली के सहारे ओवैसी समीकरण बिगाड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।