उत्तर प्रदेश में मदरसा घोटाला : एसआईटी जांच ने खोली पोल, 42 मदरसा प्रबंधक फंसे

विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में मिजार्पुर में 89 मदरसों की मंजूरी में गंभीर गड़बड़ियां मिली हैं। इन्हें पहले फर्जी ढंग से मान्यता दी गई। बाद में मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत यहां तैनात शिक्षकों को बिना सत्यापन के अवैध रूप से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया गया।

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यूपी मदरसा घोटाला
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar30 Dec 2025 05:37 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश के मिजार्पुर में मदरसों की मंजूरी और सरकारी धन के दुरुपयोग से जुड़ा घोटाला सामने आया है। विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में मिजार्पुर में 89 मदरसों की मंजूरी में गंभीर गड़बड़ियां मिली हैं। इन्हें पहले फर्जी ढंग से मान्यता दी गई। बाद में मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत यहां तैनात शिक्षकों को बिना सत्यापन के अवैध रूप से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया गया। एसआईटी की जांच रिपोर्ट में 42 मदरसा प्रशासकों के साथ-साथ मिजार्पुर में तैनात रहे तीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और कर्मचारी दोषी पाए गए हैं।

42 मदरसा प्रबंधकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज 

रिपोर्ट में मिजार्पुर के दो तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, दो क्लर्क, एक कंप्यूटर आॅपरेटर और 42 मदरसा प्रबंधकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा एक अन्य तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी पर 2017 में बिना सत्यापन के डिजिटल हस्ताक्षरों के माध्यम से मदरसों को लॉक करने और लगभग 1 करोड़ 94 लाख रुपये का भुगतान करने का आरोप है। उनके खिलाफ विभागीय जांच की संस्तुति की गई है। वर्ष 2020 में निदेशक, अल्पसंख्यक कल्याण की सिफारिश पर मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गई थी। अल्पसंख्यक कल्याण की प्रमुख सचिव संयुक्ता समद्दार ने बताया कि एसआईटी की रिपोर्ट मिली है। इसका परीक्षण कराया जा रहा है।

मिजार्पुर में एसआईटी की जांच में खुलासा

जांच में यह भी पता चला कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों ने मदरसों के प्रशासकों के साथ मिलीभगत करके सरकारी आदेशों और उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम-2004 का उल्लंघन किया। अधिनियम के अनुसार कोई भी गैर मुस्लिम द्वारा स्थापित या संचालित मदरसे विधि मान्य नहीं होंगे, लेकिन एक मदरसे के संचालक को मुस्लिम न होने पर भी योजना का लाभ दिया गया। मानकों को ताक पर रखकर मदरसों को अस्थायी मंजूरी दी गई। इन मदरसों के रिकॉर्ड की उचित जांच किए बिना ही शिक्षकों के वेतन के लिए बजट मांगा गया और कुछ ऐसे मदरसों को भी भुगतान कर दिया गया, जिनके लिए बजट स्वीकृत नहीं किया गया था।

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योगी ने कहा- यूपी के हर मंडल में बनेगा स्पोर्ट्स कॉलेज, गांव में खेल मैदान

राज्य के हर मंडल मुख्यालय पर स्पोर्ट्स कॉलेज स्थापित किए जाएंगे। इसके साथ ही हर गांव में खेल मैदान, ब्लॉक स्तर पर मिनी स्टेडियम और जिला स्तर पर बड़े स्टेडियम बनाए जाएंगे।

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योगी आदित्यनाथ 1
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar30 Dec 2025 03:57 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में खेल और खिलाड़ियों के सर्वांगीण विकास के लिए बड़े स्तर पर खेल अधोसंरचना विकसित करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि राज्य के हर मंडल मुख्यालय पर स्पोर्ट्स कॉलेज स्थापित किए जाएंगे। इसके साथ ही हर गांव में खेल मैदान, ब्लॉक स्तर पर मिनी स्टेडियम और जिला स्तर पर बड़े स्टेडियम बनाए जाएंगे। गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में आयोजित विधायक खेल स्पर्धा 2025 के पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार का उद्देश्य युवाओं को बेहतर खेल सुविधाएं देकर उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है।

गोरखपुर में इंटरनेशनल स्टेडियम की योजना

मुख्यमंत्री ने बताया कि गोरखपुर के बेलीपार क्षेत्र में एक इंटरनेशनल स्टेडियम प्रस्तावित है। इसके अलावा 63 करोड़ रुपये की लागत से रीजनल स्टेडियम का नवीनीकरण किया जा रहा है। वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज में आधुनिक स्टेडियम का निर्माण हो रहा है। 

उन्होंने मेरठ में स्थापित मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी को विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त बताते हुए कहा कि अब खेल शिक्षा, प्रशिक्षण और अंतरराष्ट्रीय तैयारी एक ही स्थान पर उपलब्ध कराई जा रही है।

सभी आयु वर्ग के लिए खेल प्रतियोगिताएं

मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि आगे से कामकाजी और सेवानिवृत्त लोगों के लिए भी खेल प्रतियोगिताएं होंगी। छात्रों के लिए बालक-बालिका वर्ग में बेसिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। उन्होंने कहा, खेलेगा युवा तो खिलेगा देश। स्वस्थ शरीर से ही विकसित भारत का निर्माण संभव है।

विधायक खेल स्पर्धा 2025

इस आयोजन में एथलेटिक्स, कबड्डी, वॉलीबॉल, जूडो और कुश्ती सहित कई खेल शामिल थे, जिनमें लगभग 1000 खिलाड़ी प्रत्यक्ष रूप से और 10,000 से अधिक लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। मुख्यमंत्री ने कबड्डी और कुश्ती के फाइनल मुकाबले देखे और विजेताओं को पदक, ट्रॉफी और उपहार देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मंच पर मत्स्य मंत्री डॉ. संजय निषाद, खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव और सांसद रवि किशन शुक्ला उपस्थित रहे, जिन्होंने प्रदेश में खेल इंफ्रास्ट्रक्चर में हो रहे बदलावों की सराहना की।

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उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री: किस जाति ने कितनी बार संभाली सत्ता की कमान?

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, ठाकुर समाज से 5, जबकि ओबीसी में यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इसी तरह वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री बने और कायस्थ, जाट, लोधी व दलित समाज से एक-एक बार नेतृत्व का अवसर मिला।

उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री
उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री: 75 साल का जातीय ट्रेंड फिर चर्चा में
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar30 Dec 2025 03:41 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय संतुलन की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान राजधानी लखनऊ में भाजपा के ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक के बाद यह मुद्दा फिर सियासी बहस के केंद्र में आ गया है। पार्टी नेतृत्व की ओर से ऐसी बैठकों पर आपत्ति जताए जाने और फिर विधायक पंचानंद पाठक के सोशल मीडिया पर दिए जवाब ने प्रतिनिधित्व बनाम संगठनात्मक अनुशासन की बहस को नई धार दे दी है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के 75 वर्षों के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि लंबे समय तक सत्ता की कमान ब्राह्मण समाज के नेताओं के हाथ रही, लेकिन पिछले तीन दशक से यह समुदाय मुख्यमंत्री पद से दूर है। ऐसे में सवाल उठता है उत्तर प्रदेश में अब तक किस समाज के कितने मुख्यमंत्री बने और किस वर्ग का प्रतिनिधित्व किस दौर में मजबूत रहा?

लखनऊ की बैठक से क्यों गरमाई राजनीति?

23 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से भाजपा विधायक पंचानंद पाठक के सरकारी आवास पर हुई ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने सियासी हलकों में खासा शोर मचा दिया। चर्चा रही कि इस बैठक में बड़ी संख्या में विधायक शामिल हुए, जिसने लखनऊ से लेकर जिलों तक राजनीतिक संदेशों की गूंज बढ़ा दी। इसके तुरंत बाद उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पंकज चौधरी का सार्वजनिक बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने इशारों-इशारों में साफ किया कि इस तरह की अलग-अलग सामाजिक समूहों की बैठकें पार्टी के तय संगठनात्मक ढांचे और अनुशासन के अनुरूप नहीं मानी जातीं। जवाब में विधायक पंचानंद पाठक ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखी, और यहीं से यूपी की राजनीति में ब्राह्मण प्रतिनिधित्व बनाम संगठन में भूमिका की बहस ने नया तूल पकड़ लिया।

उत्तर प्रदेश में किस समाज के कितने मुख्यमंत्री?

आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश की सत्ता की कुर्सी पर कुल 21 मुख्यमंत्री बैठे हैं और यह आंकड़े यूपी की राजनीति की प्रतिनिधित्व-यात्रा की पूरी कहानी कह देते हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, ठाकुर समाज से 5, जबकि ओबीसी में यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इसी तरह वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री बने और कायस्थ, जाट, लोधी व दलित समाज को एक-एक बार नेतृत्व का अवसर मिला। साफ है कि उत्तर प्रदेश के शुरुआती दशकों में सत्ता की कमान ब्राह्मण नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन समय के साथ राजनीतिक धुरी बदली और उत्तर प्रदेश में ताकत का केंद्र ठाकुर नेतृत्व, ओबीसी (खासतौर पर यादव) तथा अन्य सामाजिक समूहों की ओर धीरे-धीरे शिफ्ट होता चला गया।

ब्राह्मण नेतृत्व का दौर

आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत का शुरुआती लंबा दौर कांग्रेस के वर्चस्व के नाम रहा और इसी समय सत्ता की कमान अक्सर ब्राह्मण नेतृत्व के हाथों में दिखी। गोविंद वल्लभ पंत से लेकर सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी तक, कई ऐसे चेहरे रहे जिन्होंने लखनऊ की कुर्सी पर बैठकर प्रदेश की दिशा तय की। खास बात यह कि नारायण दत्त तिवारी ने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला, जबकि गोविंद वल्लभ पंत ने दो बार नेतृत्व किया। आंकड़ों की भाषा में देखें तो करीब 23 वर्षों तक उत्तर प्रदेश की सत्ता पर ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी दर्ज हुई

ठाकुर, यादव और वैश्य समाज का उभार

ब्राह्मण नेतृत्व के लंबे दौर के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में ठाकुर समाज की भी मजबूत मौजूदगी रही। इस वर्ग से त्रिभुवन नारायण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह और कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह से लेकर भाजपा के राजनाथ सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक, कई बड़े नाम लखनऊ की गद्दी तक पहुंचे। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश की राजनीति में ठाकुर मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल जोड़ें तो यह अवधि करीब 17 वर्षों के आसपास बैठती है। इधर मंडल राजनीति के उभार के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता की धुरी धीरे-धीरे ओबीसी राजनीति की ओर शिफ्ट हुई और यादव नेतृत्व एक निर्णायक ताकत बनकर सामने आया। राम नरेश यादव से शुरू होकर मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव तक, इस समाज ने लगभग 13 वर्षों तक शासन की कमान संभाली। वहीं, वैश्य समाज से भी प्रदेश को मुख्यमंत्री मिलेचंद्रभान गुप्ता, बाबू बनारसी दास और राम प्रकाश गुप्ता। इनमें चंद्रभान गुप्ता दो बार मुख्यमंत्री बने, जबकि बाकी नेताओं को एक-एक बार राज्य का नेतृत्व करने का अवसर मिला।

जाट, लोधी, दलित और कायस्थ: एक-एक मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने की कहानी केवल कुछ बड़े सामाजिक समूहों तक सीमित नहीं रही। समय-समय पर अन्य समाजों से भी ऐसे चेहरे उभरे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की सत्ता और राजनीति को नई दिशा दी। कायस्थ समाज से डॉ. सम्पूर्णानंद मुख्यमंत्री बने, जबकि जाट समाज से चौधरी चरण सिंह ने नेतृत्व संभालकर किसान राजनीति को नई धार दी। लोधी समाज से कल्याण सिंह का उभार भी उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा मोड़ माना जाता है। इसी क्रम में दलित समाज से मायावती का नाम उत्तर प्रदेश की सियासत में सबसे प्रभावशाली अध्यायों में गिना जाता है। चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने न सिर्फ दलित नेतृत्व को निर्णायक मंच दिया, बल्कि लखनऊ की सत्ता में बहुजन राजनीति को लंबे समय तक केंद्र में बनाए रखा।

32 साल से ब्राह्मण समाज मुख्यमंत्री पद से दूर क्यों?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 1989 के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंडल–कमंडल के उभार ने सत्ता की पूरी दिशा बदल दी। कांग्रेस का प्रभुत्व तेजी से ढला और उसकी जगह समाजवादी धारा, बसपा तथा भाजपा के विस्तार ने नए सामाजिक गठजोड़ गढ़ दिए। इसी राजनीतिक करवट में ब्राह्मण समाज की भूमिका भी बदलती गई जो नेतृत्व कभी सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचता था, वह धीरे-धीरे रणनीतिक वोटबैंक, संगठन, चुनावी प्रबंधन और सत्ता-तंत्र की दूसरी अहम भूमिकाओं तक सिमटता चला गया। नतीजा यह रहा कि 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में सरकारें कई बार बदलीं, सत्ता की धुरी भी कई बार घूमी लेकिन ब्राह्मण समाज से कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सका। UP News

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