Thursday, 2 May 2024

High-court: अब खुद मैली हो गई है पापियों के पाप धोने वाली पवित्र गंगा

Prayagraj: प्रयागराज। ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते-धोते।’ लगभग चार दशक पहले फिल्माया गया यह गाना…

High-court: अब खुद मैली हो गई है पापियों के पाप धोने वाली पवित्र गंगा

Prayagraj: प्रयागराज। ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते-धोते।’ लगभग चार दशक पहले फिल्माया गया यह गाना मौजूदा वक्त में बिल्कुल सटीक बैठता है। कभी पापियों के पाप धोने वाली मां गंगा आज खुद मैली हो गई है। उस समय लोग अपने पाप को धोने के लिए पवित्र गंगा में स्नान करते थे और मां गंगा उनके पापों को धो देती थीं। लेकिन, अब लोग जान-बूझकर गंगा को मैली करने पर आमादा हैं। इस हालात पर इलाहाबाद हाईकोर्ट बेहद खफा है। खरबों रुपये खर्च होने के बाद भी गंगा के प्रदूषण पर सख्त रुख अपनाते हुए हाईकोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम की कार्यशैली पर सख्त नाराजगी जाहिर की। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यहां तक कहा कि जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कुछ कर ही नहीं रहा है तो क्यों न उसे समाप्त कर दिया जाए। अदालत ने नमामि गंगे परियोजना के निदेशक से इस परियोजना में अब तक हुए खरबों रुपये के खर्च का ब्यौरा तलब किया है। साथ ही पूछा कि गंगा अब तक साफ क्यों नहीं हो सकी? अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी जांच और कार्रवाई से संबंधित पूरी रिपोर्ट तलब की है। मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।

स्वतः संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता ने बताया कि गंगा में शोधित जल नहीं जा रहा है। कानपुर में लेदर इंडस्ट्री, गजरौला में शुगर इंडस्ट्री की गंदगी शोधित हुए बगैर गंगा में गिर रही है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा कि आपका क्या रोल है? कैसे निगरानी कर रहे हो? आपके पास इस संबंध में कितनी शिकायतें पहुंची हैं और कितने पर कार्रवाई की गई है? बोर्ड के अधिवक्ता इस पर ठीक जवाब नहीं दे पाए तो कोर्ट ने कहा कि जब आप निगरानी नहीं कर पा रहे हैं और कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं तो क्यों न बोर्ड को बंद कर दिया जाए?

कोर्ट ने गंगा प्रदूषण पर कानपुर आईआईटी और बीएचयू आईआईटी की टेस्ट रिपोर्ट देखकर हैरानी जताई। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि यह रिपोर्ट तो आंखों में धूल झोंकने वाली है। ट्रीटमेंट प्लांट बेकार है। आपने एसटीपी की जिम्मेदारी निजी हाथों में दे रखी है। वे काम हीं नहीं कर रहे हैं। जांच के लिए जो नमूने भेजे गए, वह पर्याप्त मात्रा में नहीं थे। कुछ नमूनों की रिपोर्ट में शोधित पानी की रिपोर्ट मानक के अनुरूप नहीं पाई गई। कोर्ट ने जिम्मेदार लोगों को फटकार लगाते हुए कहा कि जब जांच करानी होती है तो साफ पानी मिलाकर सैंपल भेजकर अच्छी रिपोर्ट तैयार करा ली जाती है। ऐसे काम नहीं चलेगा।

रिपोर्ट से साफ है गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। परियोजना प्रबंधक ने कहा कि जब गंदा पानी ज्यादा मात्रा में एसटीपी से जाएगा तो शोधित नहीं हो पाएगा, इस पर बाउंड नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जब बाउंड नहीं है तो एसटीपी का कोई मतलब ही नहीं है। कोर्ट ने फिर पूछा कि आपके पास कोई पर्यावरण एक्सपर्ट (इंजीनियर) है। जल निगम इस मामले में कैसे काम कर रहा है? सीसा, पोटेशियम व अन्य रेडियोएक्टिव चीजें गंगा को दूषित कर रहीं हैं। यूपी में एसटीपी के संचालन की जिम्मेदारी अडानी ग्रुप की कंपनी को दी गई है, लेकिन संयंत्रों के काम न करने से गंगा मैली हो रही है।

कोर्ट ने कहा कि प्रयागराज, वाराणसी सहित गंगा के किनारे बसे यूपी के कई शहर धार्मिक महत्व के हैं। इन शहरों में स्थानीय लोगों के साथ रोजाना और कुंभ, महाकुंभ के दौरान करोड़ों लोग पहुंचते हैं। उनसे निपटने के लिए किस तरह से प्रबंध करते हैं। क्या योजना है? योजना कैसे बनाई जाती है? इसका सरकारी अधिवक्ता और जल निगम के परियोजना प्रबंधक के पास कोई जवाब नहीं था। परियोजना निदेशक से पूछा कि एसटीपी की रोजाना मॉनिटरिंग कैसे होती है? इस पर परियोजना निदेशक ने एक रिपोर्ट पेश की। कोर्ट ने उस पर नाराजगी जताते हुए सवाल किया, यह तो मंथली (महीनेवार) रिपोर्ट है, प्रतिदिन की रिपोर्ट कहां है? परियोजना निदेशक उसे पेश नहीं कर पाए। कोर्ट ने रिपोर्ट देखकर पूछा कि निगरानी कैसे करते हो, तो निदेशक ने कहा कि ऑनलाइन होती है। कोर्ट ने कहा कि वीडियो देखकर मॉनिटरिंग करते हो। इस पर अपर महाधिवक्ता नीरज कुमार तिवारी ने प्रतिदिन की रिपोर्ट तैयार करने का आश्वासन दिया।

Related Post