“सूर्य नमस्कार से क्या बिगड़ेगा?”RSS महासचिव ने योग को लेकर कह दी बड़ी बात
होसबाले ने अपने संबोधन में सवाल उठाया “सूर्य नमस्कार से मुस्लिमों का क्या बिगड़ जाएगा?” उन्होंने कहा कि अगर नमाज़ पढ़ने वाले मुस्लिम पर्यावरण के दृष्टिकोण से नदी या पेड़ों के प्रति सम्मान/पूजा की भावना अपनाएं, या प्राणायाम करें, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।

UP News : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबाले ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आयोजित एक हिंदू सम्मेलन के मंच से योग, सूर्य नमस्कार और प्रकृति-पूजा को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि सूर्य नमस्कार को संकीर्ण धार्मिक चश्मे से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और विज्ञान आधारित अभ्यास के रूप में देखना चाहिए। होसबाले ने अपने संबोधन में सवाल उठाया “सूर्य नमस्कार से मुस्लिमों का क्या बिगड़ जाएगा?” उन्होंने कहा कि अगर नमाज़ पढ़ने वाले मुस्लिम पर्यावरण के दृष्टिकोण से नदी या पेड़ों के प्रति सम्मान/पूजा की भावना अपनाएं, या प्राणायाम करें, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
‘प्रकृति को अपनाना भारत की परंपरा
RSS महासचिव ने कहा कि प्रकृति को अपनाना भारत की सांस्कृतिक परंपरा का मूल है और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी प्रथाएं किसी भी धर्म के व्यक्ति के लिए हानिकारक नहीं हो सकतीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि RSS किसी व्यक्ति या समुदाय को दुश्मन नहीं मानता, बल्कि समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए समावेशिता में विश्वास करता है।
योग-सूर्य नमस्कार पर क्या बोले होसबाले
होसबाले ने सूर्य नमस्कार को धार्मिक बहस नहीं, स्वास्थ्य और विज्ञान से जुड़ा अभ्यास बताते हुए कहा कि इससे किसी समुदाय को नुकसान नहीं होता बल्कि शरीर और मन को लाभ मिलता है। उन्होंने जोर दिया कि योग या प्राणायाम अपनाने का मतलब किसी की इबादत या आस्था से समझौता करना नहीं है। पर्यावरण के संदर्भ में उन्होंने सवाल उठाया कि नदी-पेड़ों के प्रति सम्मान या प्रकृति संरक्षण से जुड़ी आदतें अगर कोई अपनाता है, तो इसमें आपत्ति कैसी? इसी क्रम में उन्होंने कहा कि सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को किसी एक धर्म की सीमा में बांधकर नहीं देखा जाना चाहिए—ये ऐसे अभ्यास हैं जो व्यक्ति की सेहत, समाज की जागरूकता और प्रकृति की सुरक्षा, तीनों के लिए उपयोगी हैं।
सांस्कृतिक एकता पर जोर
गोरखपुर के खोराबार मैदान में अपने भाषण के दौरान होसबाले ने सांस्कृतिक एकता का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति धार्मिक सीमाओं से आगे बढ़कर सह-अस्तित्व, प्रकृति के सम्मान और सामाजिक सद्भाव की बात करती है। उन्होंने कहा कि ‘हिंदू-हिंदुत्व’, ‘राष्ट्र-राष्ट्रीयता’ और ‘भारत-भारतीयता’ जैसे विषयों को समझते हुए राष्ट्र निर्माण का रास्ता चरित्र निर्माण से होकर जाता है।
‘पूजा के तरीके अलग, धर्म जीवन जीने की कला’
RSS महासचिव ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक जड़ें एक हैं। पूजा के तरीके अलग हो सकते हैं, लेकिन धर्म जीवन जीने की कला है। उन्होंने सनातन परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि मानव मूल्यों की रक्षा केवल अपने लिए नहीं, बल्कि मानवता के व्यापक कल्याण के लिए जरूरी है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का उदाहरण देते हुए कहा कि 21 जून को पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जाना इसी सोच की झलक है। UP News
UP News : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबाले ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आयोजित एक हिंदू सम्मेलन के मंच से योग, सूर्य नमस्कार और प्रकृति-पूजा को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि सूर्य नमस्कार को संकीर्ण धार्मिक चश्मे से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और विज्ञान आधारित अभ्यास के रूप में देखना चाहिए। होसबाले ने अपने संबोधन में सवाल उठाया “सूर्य नमस्कार से मुस्लिमों का क्या बिगड़ जाएगा?” उन्होंने कहा कि अगर नमाज़ पढ़ने वाले मुस्लिम पर्यावरण के दृष्टिकोण से नदी या पेड़ों के प्रति सम्मान/पूजा की भावना अपनाएं, या प्राणायाम करें, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
‘प्रकृति को अपनाना भारत की परंपरा
RSS महासचिव ने कहा कि प्रकृति को अपनाना भारत की सांस्कृतिक परंपरा का मूल है और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी प्रथाएं किसी भी धर्म के व्यक्ति के लिए हानिकारक नहीं हो सकतीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि RSS किसी व्यक्ति या समुदाय को दुश्मन नहीं मानता, बल्कि समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए समावेशिता में विश्वास करता है।
योग-सूर्य नमस्कार पर क्या बोले होसबाले
होसबाले ने सूर्य नमस्कार को धार्मिक बहस नहीं, स्वास्थ्य और विज्ञान से जुड़ा अभ्यास बताते हुए कहा कि इससे किसी समुदाय को नुकसान नहीं होता बल्कि शरीर और मन को लाभ मिलता है। उन्होंने जोर दिया कि योग या प्राणायाम अपनाने का मतलब किसी की इबादत या आस्था से समझौता करना नहीं है। पर्यावरण के संदर्भ में उन्होंने सवाल उठाया कि नदी-पेड़ों के प्रति सम्मान या प्रकृति संरक्षण से जुड़ी आदतें अगर कोई अपनाता है, तो इसमें आपत्ति कैसी? इसी क्रम में उन्होंने कहा कि सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को किसी एक धर्म की सीमा में बांधकर नहीं देखा जाना चाहिए—ये ऐसे अभ्यास हैं जो व्यक्ति की सेहत, समाज की जागरूकता और प्रकृति की सुरक्षा, तीनों के लिए उपयोगी हैं।
सांस्कृतिक एकता पर जोर
गोरखपुर के खोराबार मैदान में अपने भाषण के दौरान होसबाले ने सांस्कृतिक एकता का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति धार्मिक सीमाओं से आगे बढ़कर सह-अस्तित्व, प्रकृति के सम्मान और सामाजिक सद्भाव की बात करती है। उन्होंने कहा कि ‘हिंदू-हिंदुत्व’, ‘राष्ट्र-राष्ट्रीयता’ और ‘भारत-भारतीयता’ जैसे विषयों को समझते हुए राष्ट्र निर्माण का रास्ता चरित्र निर्माण से होकर जाता है।
‘पूजा के तरीके अलग, धर्म जीवन जीने की कला’
RSS महासचिव ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक जड़ें एक हैं। पूजा के तरीके अलग हो सकते हैं, लेकिन धर्म जीवन जीने की कला है। उन्होंने सनातन परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि मानव मूल्यों की रक्षा केवल अपने लिए नहीं, बल्कि मानवता के व्यापक कल्याण के लिए जरूरी है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का उदाहरण देते हुए कहा कि 21 जून को पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जाना इसी सोच की झलक है। UP News












