उत्तर प्रदेश भाजपा में बड़ा फैसला करीब, क्या नए अध्यक्ष से मजबूत होगा संगठन?

बड़ा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बने राजनीतिक संदेश की भरपाई कैसे होगी, और क्या भाजपा ऐसा चेहरा आगे करेगी जो अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) नैरेटिव को सीधे काउंटर कर सके?

OBC कार्ड या सरप्राइज नाम यूपी भाजपा में अंदरूनी मंथन तेज
OBC कार्ड या सरप्राइज नाम? यूपी भाजपा में अंदरूनी मंथन तेज
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar13 Dec 2025 11:43 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर संगठन वाला “सबसे बड़ा फैसला” होने जा रहा है। दो साल के इंतजार के बाद यूपी भाजपा को जल्द नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है। शनिवार को नामांकन/चुनावी प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत और रविवार को नाम की घोषणा की संभावना जताई जा रही है। इसी वजह से लखनऊ का सियासी तापमान अचानक बढ़ गया है पार्टी कार्यालय से लेकर नेताओं की आवाजाही तक, हर तरफ हलचल तेज है। लेकिन इस बार सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि अध्यक्ष कौन बनेगा। बड़ा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बने राजनीतिक संदेश की भरपाई कैसे होगी, और क्या भाजपा ऐसा चेहरा आगे करेगी जो अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) नैरेटिव को सीधे काउंटर कर सके?

सामाजिक-संतुलन की खोज

भाजपा के अंदरखाने उत्तर प्रदेश के ओबीसी समीकरणों को लेकर गहरी मंथन की खबरें हैं। 2022 के बाद कुछ इलाकों में वोट-बेस की “खिसकन” की चर्चा तेज हुई है, और इसमें खास फोकस कुर्मी समुदाय पर नजर आता है। सियासी गलियारों में माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कुर्मी चेहरों को आगे बढ़ाकर कई सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की, जिससे भाजपा को कुछ क्षेत्रों में नुकसान का संकेत मिला। ऐसे में पार्टी के सामने चुनौती साफ है प्रदेश अध्यक्ष का चयन सिर्फ संगठनात्मक पद-भराई नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के लिए एक बड़ा सामाजिक-राजनीतिक संदेश भी होगा। रणनीति यही दिखती है कि नेतृत्व ऐसा चुना जाए जो संगठन को कसकर बांधे, क्षेत्रीय संतुलन साधे और मैदान में ‘बढ़त’ का नैरेटिव दोबारा भाजपा के पक्ष में खड़ा कर सके।

क्या इस बार “ओबीसी कार्ड” खेलेगी बीजेपी?

सूत्रों के मुताबिक भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश में ओबीसी नेतृत्व को आगे कर एक नया सियासी संदेश देने की तैयारी में है। इसी वजह से संगठन के भीतर नामों की सरगर्मी भी तेज हो गई है। चर्चा है कि केंद्रीय राज्य मंत्री पंकज चौधरी के नामांकन को लेकर अंदरूनी स्तर पर कवायद चल रही है, वहीं धर्मपाल लोधी और बीएल वर्मा जैसे चेहरों के नाम भी पार्टी के गलियारों में बार-बार लिए जा रहे हैं। मगर यूपी भाजपा की राजनीति का एक पुराना नियम है—यहां आखिरी घड़ी तक पत्ता नहीं खुलता। कई बार पार्टी ऐसा “सरप्राइज” नाम सामने रख देती है, जो पूरी सियासी चर्चा की दिशा ही बदल देता है। ऐसे में लखनऊ से दिल्ली तक निगाहें टिकी हैं और अंतिम मुहर लगने तक उत्तर प्रदेश की सियासत में यह सस्पेंस बरकरार रहना तय माना जा रहा है।

कुर्मी वोट पर नजर

उत्तर प्रदेश की चुनावी बिसात पर कुर्मी समाज को यादवों के बाद सबसे असरदार सामाजिक समूहों में गिना जाता है। खासकर पूर्वांचल के करीब 20 जिलों में कुर्मी वोट कई सीटों पर “टर्निंग पॉइंट” साबित होता रहा है। यही वजह है कि भाजपा के भीतर एक दलील जोर पकड़ रही है अगर संगठन की कमान ऐसे चेहरे को दी जाए, जिसकी कुर्मी समाज में स्वाभाविक स्वीकार्यता हो, तो 2024 के बाद उभरे राजनीतिक गैप को काफी हद तक पाटा जा सकता है। साथ ही पार्टी के सामने चुनौती यह भी है कि सहयोगी दलों के संभावित दबाव के बीच भाजपा उत्तर प्रदेश में यह संदेश साफ रखे कि वह अपने सामाजिक आधार और नेतृत्व-संतुलन को अपने दम पर साधने में सक्षम है और यही फैसला आने वाले सियासी मुकाबले की दिशा भी तय कर सकता है।

लोधी फैक्टर पर भाजपा की नजर 

यदि भाजपा उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी लोधी समाज से किसी नेता को देती है, तो यह फैसला महज़ संगठनात्मक नहीं, बल्कि साफ़ राजनीतिक संकेत भी माना जाएगा। कल्याण सिंह के दौर के बाद राज्य स्तर पर लोधी नेतृत्व का वैसा बड़ा और लगातार चर्चा में रहने वाला चेहरा कम ही नजर आया है, जबकि पश्चिम और मध्य यूपी की राजनीति में इस समाज की पकड़ आज भी प्रभावी मानी जाती है। ऐसे में पार्टी अगर लोधी वर्ग से नेतृत्व आगे बढ़ाती है, तो वह एक तरफ अपने पुराने समर्थक आधार को नया भरोसा दे सकती है, दूसरी तरफ सामाजिक संतुलन का संदेश भी मजबूती से रख सकती है जो आने वाले चुनावी मुकाबलों में भाजपा के लिए ‘धार’ लौटाने वाली रणनीति बन सकता है।

क्या BJP कोई बड़ा सरप्राइज देगी?

भाजपा के रणनीतिक खाके में एक रास्ता यह भी माना जा रहा है कि पार्टी निषाद समाज या किसी अन्य प्रभावी वर्ग को प्रतिनिधित्व देकर उत्तर प्रदेश में सामाजिक संतुलन का नया समीकरण तैयार करे। दूसरी तरफ, अगर नेतृत्व की बागडोर ब्राह्मण चेहरे को सौंपी जाती है, तो संगठन और चुनावी संदेश की दिशा अलग हो जाएगी, क्योंकि इससे पार्टी का फोकस और प्राथमिकताएं नए तरीके से पढ़ी जाएंगी। इसी कड़ी में हरीश द्विवेदी और गोविंद शुक्ला जैसे नाम भी संभावित विकल्पों के तौर पर सियासी चर्चाओं में उभर रहे हैं। कुल मिलाकर यह मुकाबला सिर्फ नामों की सूची नहीं है; यह फैसला उत्तर प्रदेश की राजनीति के अगले रोडमैप, सामाजिक संदेश और चुनावी रणनीति तीनों का संकेतक साबित हो सकता है। UP News

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उत्तर प्रदेश BJP अध्यक्ष की रेस में धर्मपाल सिंह, कौन हैं, क्यों बढ़ी चर्चा?

इसी बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और आंवला से विधायक धर्मपाल सिंह का नाम संभावित दावेदारों में तेजी से उभर रहा है। लंबे राजनीतिक अनुभव और संगठनात्मक समझ के चलते चर्चा के केंद्र में वे लगातार बने हुए हैं

धर्मपाल सिंह
धर्मपाल सिंह
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userअभिजीत यादव
calendar13 Dec 2025 11:16 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश भाजपा में जल्द ही नए प्रदेश अध्यक्ष की तस्वीर साफ होने वाली है। इसी संकेत के साथ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के संगठन कार्यालय से लेकर जिलों की इकाइयों तक सियासी हलचल तेज हो गई है। 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी नेतृत्व की कोशिश है कि कमान ऐसे चेहरे को मिले जो संगठन की पकड़ मजबूत करे, सामाजिक समीकरणों को साधे और सरकार–संगठन की ‘डबल इंजन’ रणनीति को बूथ तक असरदार ढंग से उतार सके। इसी बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और आंवला से विधायक धर्मपाल सिंह का नाम संभावित दावेदारों में तेजी से उभर रहा है लंबे राजनीतिक अनुभव और संगठनात्मक समझ के चलते चर्चा के केंद्र में वे लगातार बने हुए हैं।

धर्मपाल सिंह की शुरुआती पहचान

धर्मपाल सिंह का जन्म 15 जनवरी 1953 को उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गुलड़िया गौरीशंकर गांव में हुआ। लोधी समुदाय से आने वाले धर्मपाल सिंह की राजनीतिक पहचान की सबसे बड़ी ताकत उनका ‘जमीनी’ जुड़ाव है गांव-देहात की नब्ज़ समझने वाली वही पकड़, जो उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में किसी भी संगठनात्मक फैसले को असरदार बना देती है। ग्रामीण पृष्ठभूमि, स्थानीय रिश्तों और क्षेत्रीय पकड़ के चलते पार्टी के भीतर उन्हें ऐसे नेता के तौर पर देखा जाता है, जो फाइलों की राजनीति नहीं, बल्कि जमीन पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के बीच भरोसे की राजनीति करते हैं और भाजपा की संगठनात्मक रणनीति में यही भरोसा अक्सर निर्णायक भूमिका निभाता है।

पढ़ाई–लिखाई और पारिवारिक पक्ष

शैक्षिक पृष्ठभूमि की बात करें तो धर्मपाल सिंह ने पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ एलएलबी और बीएड तक की पढ़ाई की है। 1970 में उनका विवाह वंदना देवी से हुआ और उनके तीन पुत्र हैं। खेती-किसानी से जुड़ाव ने उन्हें अपने इलाके के किसान और ग्रामीण सरोकारों से स्वाभाविक रूप से जोड़ रखा है और उत्तर प्रदेश जैसे विशाल व विविधतापूर्ण राज्य में यही ‘ग्राउंड कनेक्ट’ कई बार राजनीतिक मजबूती की सबसे बड़ी कसौटी बन जाता है। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत 1996 से मानी जाती है, जब वे पहली बार विधायक बने। इसके बाद संगठन और सरकार दोनों मोर्चों पर उनकी सक्रियता लगातार बनी रही। वर्तमान में वे योगी सरकार में पशुपालन मंत्री हैं और बरेली की आंवला विधानसभा सीट से विधायक के तौर पर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

प्रदेश अध्यक्ष की रेस में क्यों माना जा रहा ‘अहम चेहरा’?

राजनीतिक हलकों में धर्मपाल सिंह को लेकर जो चर्चा तेज है, उसकी जड़ें उनके लंबे अनुभव, संगठन की नब्ज़ पहचानने की क्षमता और सामाजिक समीकरणों पर मानी जा रही पकड़ में बताई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष महज संगठन का मुखिया नहीं होता वह चुनावी मशीनरी का ‘मैदान-प्रबंधक’ भी होता है, जो लखनऊ की रणनीति को जिलों, मंडलों और बूथ तक अनुशासन के साथ पहुंचाता है। ऐसे में अगर पार्टी नेतृत्व उन्हें नई जिम्मेदारी सौंपता है, तो इसे 2027 के रण से पहले संगठन को धार देने, कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने और मैदानी तालमेल मजबूत करने की बड़ी तैयारी के तौर पर देखा जाएगा।

कब तक साफ होगी तस्वीर?

उत्तर प्रदेश भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान बदलने की कवायद अब निर्णायक चरण में पहुंच चुकी है। पार्टी नेतृत्व 2027 के विधानसभा रण से पहले प्रदेश में नया नेतृत्व स्थापित करने के साफ संकेत दे चुका है, ताकि संगठन को नई धार और नई दिशा मिल सके। माना जा रहा है कि नामांकन प्रक्रिया पूरी होते ही तस्वीर लगभग साफ हो जाएगी और 14 दिसंबर को नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर औपचारिक मुहर लग सकती है। इसी वजह से लखनऊ स्थित यूपी बीजेपी मुख्यालय में तैयारियों का दौर तेज है बैठकें, रणनीति और संगठनात्मक गणित हर स्तर पर चल रहा है, जबकि जिलों तक कार्यकर्ताओं में नए ‘कप्तान’ को लेकर उत्सुकता अपने शिखर पर बताई जा रही है। UP News

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उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन आज, राजधानी लखनऊ में हलचल तेज

सूत्रों के मुताबिक वे दिल्ली से लखनऊ पहुंचकर नामांकन दाखिल करेंगे और फिर प्रदेश भाजपा कार्यालय जाएंगे। यानी आज की प्रक्रिया से ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए ‘कप्तान’ की तस्वीर काफी हद तक साफ होती नजर आ सकती है।

उत्तर प्रदेश बीजेपी का नया अध्यक्ष तय आज के नामांकन से साफ होगी तस्वीर
उत्तर प्रदेश बीजेपी का नया अध्यक्ष तय आज के नामांकन से साफ होगी तस्वीर
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userअभिजीत यादव
calendar13 Dec 2025 10:16 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष चयन की घड़ी अब निर्णायक मोड़ पर आ चुकी है। शनिवार को नामांकन के साथ ही सियासी फोकस पूरी तरह राजधानी लखनऊ पर सिमट गया है पार्टी कार्यालय से लेकर जुड़े कार्यक्रमों तक मंत्रियों, विधायकों और संगठन पदाधिकारियों की चहल-पहल तेज हो गई है। पार्टी के तय कैलेंडर के अनुसार रविवार को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल नए अध्यक्ष के नाम पर औपचारिक मुहर लगाएंगे। इस बीच संगठन के भीतर कई चेहरों को लेकर चर्चा जरूर है, लेकिन सबसे मजबूत चर्चा केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी के नाम की बताई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक वे दिल्ली से लखनऊ पहुंचकर नामांकन दाखिल करेंगे और फिर प्रदेश भाजपा कार्यालय जाएंगे यानी आज की प्रक्रिया से ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए ‘कप्तान’ की तस्वीर काफी हद तक साफ होती नजर आ सकती है।

डिप्टी सीएम को बड़ी जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष चयन की दो-दिवसीय प्रक्रिया को लेकर तैयारियों की कमान भी साफ-साफ तय कर दी है। शनिवार के नामांकन कार्यक्रम की व्यवस्था और समन्वय की जिम्मेदारी उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश महामंत्री संजय राय को सौंपी गई है, ताकि संगठनात्मक प्रक्रिया तय समय पर और अनुशासित तरीके से पूरी हो सके। वहीं रविवार को होने वाली औपचारिक घोषणा के लिए मंच डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के सभागार में प्रस्तावित किया गया है। इस कार्यक्रम की जिम्मेदारी उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और प्रदेश महामंत्री गोविंद नारायण शुक्ला संभालेंगे।

घोषणा को ‘मेगा इवेंट’ बनाने की तैयारी

उत्तर प्रदेश में संगठन की यह घोषणा अब सिर्फ एक नाम तय करने की प्रक्रिया नहीं रह गई है, बल्कि इसे पार्टी एक बड़े राजनीतिक संदेश और शक्ति-प्रदर्शन के रूप में पेश करने की तैयारी में जुटी है। शुक्रवार को लखनऊ में दिनभर बैठकों का सिलसिला चला, जिसमें प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक व्यवस्थाओं, मंच संचालन और प्रबंधन की पूरी रूपरेखा तय की गई। जिम्मेदारियां बांटकर कार्यक्रम को “मेगा इवेंट” बनाने की रणनीति पर काम हुआ। शुक्रवार शाम राष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल तेज दिखी। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की अगुआई में प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह और दोनों उप मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक हुई, जिसमें केंद्रीय निर्देशों और चुनाव प्रक्रिया के बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की गई। चुनावी प्रक्रिया के तहत पार्टी ने मतदाता सूची जारी कर दी है—कुल 464 मतदाता तय किए गए हैं, जिनमें प्रदेश परिषद सदस्यों के साथ-साथ सांसद और विधायक भी शामिल हैं। पार्टी के नियमों के अनुसार विधानमंडल और संसद के उत्तर प्रदेश कोटे से तय अनुपात में नामों को मतदाता सूची में शामिल किया जाता है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में संगठन का ‘मैसेज’

उत्तर प्रदेश भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष का चयन महज़ संगठनात्मक औपचारिकता नहीं, बल्कि सामाजिक-संगठनात्मक संतुलन और क्षेत्रीय संकेतों का बड़ा पैमाना माना जाता है। इस बार भी पार्टी के तेवर बता रहे हैं कि अध्यक्ष पद के जरिए यूपी में संगठन की नई दिशा और 2027 की सियासी तैयारी का संदेश साफ किया जाएगा। यही वजह है कि लखनऊ इन दिनों सिर्फ राजधानी नहीं, बल्कि राजनीति का “कंट्रोल रूम” बन गया है। UP News

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