UP News: अंशु नैथानी / लंबे समय तक कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के राज्यों, उत्तर प्रदेश और बिहार में राज किया था । एक समय ऐसा लगता था कि यूपी बिहार से कांग्रेस का राज तो कभी जा ही नहीं सकता लेकिन वक्त बदला और राज भी गया । हिंदी पट्टी के इन राज्यों में कांग्रेस की यह हालत ये हो गई कि वह तीसरे चौथे नंबर की पार्टी बन गई । सत्ता में वापसी के लिए तमाम तरह के प्रयोग किए जाते रहे । 90 के दशक में मण्डल और कमंडल की राजनीति में पिछड़ी जातियां क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ चली गईं तो सवर्णों को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया। पिछड़ों की राजनीति की बयार में कांग्रेस ने भी अपनी पारंपरिक शैली में बदलाव किया और परंपरागत रूप से सवर्ण के हाथ में नेतृत्व देने वाली यह पार्टी उनकी अवहेलना करने लगी, शायद यह राजनीति की मांग थी। लेकिन यह प्रयोग कांग्रेस को कुछ खास लाभ नहीं दिला पाया पार्टी पूरी तरह हाशिये पर ही चली गई, लेकिन अब एक बार फिर यूपी समेत उत्तर भारत में काँग्रेस ने अपनी पुरानी पहचान की तरफ लौटने का फैसला किया है ।
UP News भूमिहार जाति को कमान
जिस तरह कांग्रेस ने यूपी सहित तीन राज्यों, बिहार और झारखंड में तीनों ही अध्यक्ष भूमिहार जाति से बनाए हैं, यह कोई महज संयोग नहीं है। उत्तर प्रदेश में अजय राय, बिहार में अखिलेश प्रसाद सिंह और झारखंड में राजेश ठाकुर यह तीनों ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूमिहार समाज से आते हैं। यह कदम उठाकर कांग्रेस फिर अपनी उसी पुरानी लीक पर वापस आ रही है ,जहां नेतृत्व की कमान सवर्णों के हाथ रहती थी। यूपी-बिहार में सवर्णों में भी खासतौर पर भूमिहार जाति के अध्यक्षों को चुनकर कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। पहला भूमिहार जाति सवर्णों में अग्रणी तो है ही साथ ही काफी अग्रेसिव भी मानी जाती है, जो कि बीजेपी के अग्रेसिव नेतृत्व को कड़ी चुनौती दे सकती है।
बीजेपी को टक्कर देने का दांव
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस में अवहेलना झेलकर भूमिहार नेता और वोट बैंक बड़े पैमाने पर बीजेपी में शिफ्ट हो गया था । बाद में बीजेपी ने भी भूमिहारो का इस्तेमाल ही ज्यादा किया और सत्ता में प्रतिनिधित्व कम दिया । भूमिहारो का बीजेपी से भी मोहभंग होने लगा, बिहार में तो कई भूमिहारों का कहना है कि अगर हम कांग्रेस में उपेक्षित ना होते तो कभी बीजेपी में ना जाते ,हमारी परंपरागत पार्टी तो कांग्रेस ही है। कांग्रेस यह समझ गई है कि भूमिहारों को साधना उसकी जरूरत है और पुरानी कांग्रेस की तरफ लौटने का प्रयोग भी जरूरी है। साथ ही कांग्रेस को इन महत्वपूर्ण राज्यों में पुरानी धार और तेवर देने के लिए तेजतर्रार छवि के भूमिहारों पर दांव लगाना फायदेमंद दिख रहा है ।
बीजेपी से सवर्णों का मोह भंग ,काँग्रेस का अपने पाले में खींचने का प्रयास
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इससे पहले यूपी में कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी को अध्यक्ष बनाया था पर 11 महीने में ही उन से मोह भंग हो गया। बीएसपी से आए खाबरी को यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर पार्टी दलित वोट बैंक में फिर पैठ बनाना चाहती थी पर कुछ खास हो नहीं पाया। यूं तो भूमिहार वोट यूपी में कुछ खास नहीं है लेकिन कांग्रेस अपनी पुरानी लीक पर लौटते हुए इस तेज तर्रार जाति को नेतृत्व सौंप कर देखना चाहती है । कुछ समय से भूमिहार समेत सवर्ण जतिया भी बीजेपी से असंतुष्ट हैं । काँग्रेस अब उन्हे अपने पाले में कर लेना चाहती है। इन राज्यों में कुछ सीटों पर भूमिहार जिताऊ भी साबित हो सकते हैं ।
UP News पुराने फार्मूले पर लौटती काँग्रेस
दरअसल एक समय कांग्रेस एक अंब्रेला ऑर्गेनाइजेशन हुआ करती थी जहां सभी जाति और समाज के लोग शरण पाते थे और अधिकांश मौकों पर नेतृत्व स्वर्णो के हाथ रहता था। इससे स्वर्णो को भी कांग्रेस में स्वाभाविक जुड़ाव नजर आता था। कांग्रेस का आकर्षण निचले तबके में हमेशा से रहा था। पिछड़ी जातियों को कांग्रेस ने कुछ समय से नेतृत्व देकर लुभाने की कोशिश की, कोई संदेह नहीं है इसलिए उन्होंने दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी की कमान सौंपी है ,लेकिन अब चुनावी वर्ष से पहले संतुलन साधते हुए यूपी ,बिहार और झारखंड जैसे चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्यों में सवर्णो में विश्वास पैदा करने के लिए यह प्रयोग किया गया है । यानी सवर्णों को यह विश्वास दिलाना कि कांग्रेस अब भी सवणो की पार्टी है ,जैसे पहले हुआ करती थी।
सवर्णों में जाएगा संदेश !
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यह बदलाव भी उसी प्रयोग का हिस्सा नजर आता है, तीनों प्रदेशों में भूमिहारों का यह चयन सांकेतिक भी हो सकता है ,जहां भले ही यह तीनों प्रदेश अध्यक्ष भूमिहार जाति से हो लेकिन संदेश पूरे सवर्ण समाज के लिए है कि कांग्रेस फिर से अपने परंपरागत ढांचे की तरफ लौटने की कोशिश कर रही है।
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