Wednesday, 1 May 2024

Birthday Special: कलम और तलवार दोनों के धनी थे, कृष्ण भक्त रहीम दास!

 विनय संकोची बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय। रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय। इसका अर्थ…

Birthday Special: कलम और तलवार दोनों के धनी थे, कृष्ण भक्त रहीम दास!

 विनय संकोची

बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय। रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय।

इसका अर्थ है मनुष्य को सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है, तो फिर उसे बनाना कठिन होता है। जैसे यदि एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
यह दोहा मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक रहीम दास का है। इनका नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना है और 17 दिसंबर 1556 को जिनका जन्म लाहौर में हुआ था। रहीम के पिता बैरम खां हुमायूं की सेना में काम करते थे। रहीम के जन्म के समय बैरम खां की आयु 60 वर्ष थी। हुमायूं की मृत्यु के बाद बैरम खां ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में अकबर को राज सिंहासन पर बैठा दिया था।

जब बैरम खां सपरिवार हज यात्रा पर गए थे, तब एक अफगानी पठान के द्वारा अकबर ने ही उनकी हत्या करा दी थी। उस समय रहीम की आयु मात्र 5 वर्ष की थी। बाद में अकबर ने रहीम का अपने पुत्र की तरह पालन किया। रहीम को अकबर का सौतेला बेटा भी कहा जाता है, क्योंकि बैरम खां की मौत के बाद अकबर ने बैरम खां की दूसरी पत्नी सईदा बेगम से निकाह कर लिया था।

वर्ष 1573 में अकबर गुजरात में हुए विद्रोह को शांत करने के लिए जिन विश्वस्त सरदारों को लेकर गए थे, उनमें रहीम भी थे। 1576 में रहीम को गुजरात का सूबेदार बना दिया गया। 28 वर्ष के रहीम को अकबर ने खान-ए-खाना की उपाधि से विभूषित किया था, इससे पहले यह सम्मान केवल बैरम खान को ही मिला था।

अब्दुल रहीम खान-ए-खाना अकबर के नवरत्नों में इकलौते थे जिनका कलम और तलवार दोनों पर समान अधिकार था। रहीम मुसलमान होते हुए भी श्रीकृष्ण के परम भक्त थे और हिंदू जीवन को अपने अंतर्मन में धारण किए हुए थे। रहीम दास अपनी काव्य रचना में महाभारत, रामायण, पुराण और गीता जैसे पवित्र हिंदू ग्रंथों को उदाहरण के रूप में उपयोग में लाते थे, जिनसे उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है। रहीम के दोहे तब भी प्रसिद्ध थे और आज भी प्रसिद्ध और लोकप्रिय हैं। रहीम दास के दोहे शिक्षाप्रद प्रेरणादायक और मनभावन हैं। अपनी रचनाओं में रहीम दास ने खड़ी बोली, पूर्वी अवधी और ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। रहीम दास के ग्रंथों में रहीम सतसई, बरवै, सोरठा, भेद, श्रंगार, मदनाष्टक, पंचाध्याई, राग, नगर शोभा, फुटकर छंद, संस्कृत काव्य आदि शामिल हैं।

रहीम दास का एक-एक दोहा एक शिक्षक की भूमिका में साक्षात खड़ा दिखाई देता है। जैसे-

यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोई। बैर, प्रीति, अभ्यास, जस होत होत ही होय।। भावार्थ यह कि दुश्मनी, प्रेम, अभ्यास और यश या मान-सम्मान कोई अपने साथ लेकर पैदा नहीं होता, यह सब धीरे-धीरे मनुष्य के आचरण और प्रयासों से क्या अनुसार बढ़ते हैं।

खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे ना दबे, जानत सकल जहान।। भावार्थ : सात बातें ऐसी हैं, जो किसी के लाख कोशिशों के बावजूद भी गुप्त नहीं रह सकतीं। यह सात बातें हैं – खैर (सेहत), खून (कत्ल), खांसी, खुशी, बैर (शत्रुता), प्रीति (प्रेम) और मदिरापान इन बातों को आप भले ही जाहिर न करें लेकिन यह जाहिर हो ही जाती हैं।

जे गरीब पर हित करें, हे रहीम बड़ लोग।
कहां सुदामा बापरो, कृष्ण मिताई जोग।।

भावार्थ यह कि जो गरीबों का हित करते हैं, वह बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं-कृष्ण की मित्रता भी एक साधना है।
1627 ईसवी में 70 वर्ष की अवस्था में कृष्ण भक्त रहीम दास की मृत्यु हुई।

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