Monday, 20 May 2024

Bhagat singh Shaheed Diwas- भगत सिंह का आखिरी खत आज है पूरे देश के लिए इंकलाब की आवाज

Bhagat singh Shaheed Diwas- 23 मार्च साल 1931 को देश के तीन देश प्रेमियों भगत सिंह शिवराम राजगुरु और सुखदेव…

Bhagat singh Shaheed Diwas- भगत सिंह का आखिरी खत आज है पूरे देश के लिए इंकलाब की आवाज

Bhagat singh Shaheed Diwas- 23 मार्च साल 1931 को देश के तीन देश प्रेमियों भगत सिंह शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। फांसी के ठीक पहले भगत सिंह ने अपने साथियों के लिए अपना आखरी खत लिखा था और उनका वह आखरी खत आज पूरे देश के लिए इंकलाब की आवाज बन चुका है।

1931 में 23 मार्च के दिन जब भगत सिंह शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को फांसी के फंदे पर लटकाया गया तो उनके चेहरे पर मुस्कान साफ झलक रही थी और तीनों देश प्रेमी मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए। और इतिहास के पन्नों में एक सच्चे देशभक्त के रूप में अपना नाम दर्ज कर लिया।

साथियों के लिए लिखे आखिरी खत में भगत सिंह ने लिखा था ये –

जेल में अपने जिंदगी के आखिरी पलों में इन तीनों देश प्रेमियों के दिल में मृत्यु का जरा सा भी है नहीं था बल्कि देश के लिए कुर्बान होने का सुकून था। फांसी पर चढ़ने से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों के लिए एक खत लिखा था। इस खत में उन्होंने लिखा था।

” जाहिर सी बात है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छुपाना भी नहीं चाहता। आज एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं। अब मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है। इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा हरगिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं है। यदि मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धम पड़ जाएगा। हो सकता है मिट ही जाए। लेकिन हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी। हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी उनका 1000 वां भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र या जिंदा रहता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता। इसके अलावा मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली भला कौन होगा। आज मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है मुझे अब पूरी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और जल्दी आ जाए।

तुम्हारा कॉमरेड भगत सिंह

Bhagat singh Shaheed Diwas-

भगत सिंह के इस खत ने पूरे देश को इंकलाब की आवाज दी। साथ ही यह खत यह भी बयान करता है कि जिंदगी के आखिरी पलों में भी इन तीनों क्रांतिवीरों को फांसी का तनिक भी ध्यान नहीं था। मन में सिर्फ देश प्रेम की भावना थी और देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देने का जज्बा था। तीनों क्रांतिवीरों ने फांसी के फंदे को चूम कर देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

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