उत्तर प्रदेश में पीएम आवास योजना में गड़बड़ी, CAG ने उठाए गंभीर सवाल
सीएजी ने इसे डेटा की अशुद्धि या आंकड़ों में गड़बड़ी की ओर संकेत माना है। दिलचस्प यह भी कि ग्राम्य विकास विभाग ने अक्टूबर 2023 में स्वीकार किया था कि कई पात्र लाभार्थी गलती से स्थायी प्रतीक्षा सूची से बाहर हो गए थे।

UP News : उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के क्रियान्वयन को लेकर सीएजी (CAG) की ताजा रिपोर्ट ने सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में योजना का लाभ सैकड़ों अपात्र लोगों तक पहुंच गया और मकान निर्माण के नाम पर करोड़ों रुपये जारी कर दिए गए। मामला यहीं नहीं रुका साइबर धोखाधड़ी के चलते 159 लाभार्थियों की 86.20 लाख रुपये की राशि उनके खातों में पहुंचने से पहले ही दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर होने की बात सामने आई है। विधानमंडल में बुधवार को पेश इस रिपोर्ट ने संकेत दिए हैं कि पात्रता जांच, सत्यापन और भुगतान सुरक्षा तीनों स्तरों पर उत्तर प्रदेश में निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है।
2016-17 से 2022-23 तक का ऑडिट
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत कच्चे या जर्जर मकान में रहने वाले परिवारों को अपनी जमीन पर पक्का घर बनाने के लिए 1.20 लाख रुपये की सहायता तीन किस्तों में दी जाती है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2016-17 से 2022-23 के बीच उत्तर प्रदेश में 34.71 लाख आवास स्वीकृत किए गए, जिनमें से 34.18 लाख (98.48%) का निर्माण मार्च 2024 तक पूरा होना दर्शाया गया है। हालांकि, आंकड़ों की इस चमक के बीच लाभार्थी सूची को लेकर सीएजी ने गंभीर सवाल उठाए हैं। जांच में दर्ज है कि मई 2016 में 14.47 लाख लाभार्थियों की अंतिम सूची प्रकाशित हुई थी। इसके बाद केंद्र की सलाह पर दोबारा सर्वे कराया गया और आवास प्लस सर्वे के आधार पर मार्च 2024 तक पात्र परिवारों की संख्या 33.64 लाख तक पहुंच गई। लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, इस बढ़ी हुई संख्या में से केवल 22.29 लाख परिवारों को ही सूची में अतिरिक्त रूप से शामिल किया गया, जबकि एक बड़ा हिस्सा स्थायी प्रतीक्षा सूची से बाहर रह गया। सीएजी ने इसे डेटा की अशुद्धि या आंकड़ों में गड़बड़ी की ओर संकेत माना है। दिलचस्प यह भी कि ग्राम्य विकास विभाग ने अक्टूबर 2023 में स्वीकार किया था कि कई पात्र लाभार्थी गलती से स्थायी प्रतीक्षा सूची से बाहर हो गए थे।
किस्तों की धीमी रफ्तार ने बढ़ाई ग्रामीण आवास योजना की चिंता
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 से 2023 के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण पर कुल 40,231 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें 37,984 करोड़ रुपये सीधे मकान निर्माण पर और 157 करोड़ रुपये प्रशासनिक मद में व्यय होना दर्शाया गया है। रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि प्रशासनिक मद में अपेक्षाकृत कम खर्च के चलते यूपी को केंद्र से 357 करोड़ रुपये कम प्राप्त हुए, जिससे योजना की संचालन-क्षमता पर असर पड़ने की आशंका जताई गई है। ऑडिट में भुगतान प्रक्रिया को लेकर भी गंभीर खामियां सामने आईं। रिपोर्ट के अनुसार, 79% लाभार्थियों को पहली किस्त जारी करने में 7 कार्य दिवस से अधिक की देरी हुई। वहीं अगस्त 2024 तक 11,031 लाभार्थियों के मामलों में 20.18 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी नहीं होने पर सीएजी ने आपत्ति दर्ज की है। यानी, जिनके लिए घर “सपने” की तरह था, उनके लिए किस्तों की देरी और अटकी रकम योजना की रफ्तार पर बड़ा सवाल बनकर खड़ी हो गई है।
साइबर ठगी का बड़ा केस
रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली चूक उजागर हुई है। सीएजी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 159 लाभार्थियों की कुल 86.20 लाख रुपये की सहायता राशि साइबर धोखाधड़ी के कारण उनके खातों में पहुंचने के बजाय दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर हो गई। यह मामला सिर्फ ठगी का नहीं, बल्कि संकेत है कि योजना से जुड़े भुगतान तंत्र, बैंकिंग सत्यापन और डेटा-सुरक्षा की परतों में कहीं न कहीं बड़ी कमजोरी मौजूद है। ऐसे में जरूरत है कि यूपी में लाभार्थी सत्यापन से लेकर डिजिटल ट्रांजैक्शन तक, हर चरण पर कड़ी निगरानी और तकनीकी सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए ताकि “घर की पहली ईंट” रखने से पहले ही किस्तें लीक न हों।
यूपी के अन्य विभाग भी CAG की रडार पर
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कई विभागों के वित्तीय अनुशासन और बजट प्रबंधन पर भी तीखे सवाल खड़े किए हैं। समाज कल्याण विभाग के मामले में रिपोर्ट कहती है कि मूल बजट से 342 करोड़ रुपये बचने के बावजूद वित्त विभाग को सिर्फ 40 करोड़ ही लौटाए गए, जबकि शेष करीब 302 करोड़ रुपये का स्पष्ट हिसाब सामने नहीं आ सका। इतना ही नहीं, 115 करोड़ रुपये का अनुपूरक अनुदान भी रिपोर्ट के मुताबिक अनावश्यक साबित हुआ। वहीं कुछ योजनाओं में केंद्रांश समय पर न मिलने के कारण करीब 19 करोड़ रुपये वापस करने की नौबत आ गई यानी पैसा उपलब्ध होने और सही समय पर मिलने के बीच समन्वय की कमी उजागर हुई है। रिपोर्ट में उच्च शिक्षा और आबकारी विभाग भी सीएजी की आपत्ति के दायरे में आए हैं। उच्च शिक्षा विभाग में 957 करोड़ रुपये की बचत के बावजूद राशि वापस न करने पर सवाल उठे हैं, साथ ही 3.92 करोड़ का अनुपूरक अनुदान भी “फिजूल” बताया गया है। इसी तरह, आबकारी विभाग में 195 करोड़ रुपये बचने के बावजूद कोई रकम लौटाई नहीं गई और ऊपर से 50 करोड़ का अनुपूरक अनुदान भी अनावश्यक माना गया। वहीं व्यावसायिक शिक्षा विभाग की तस्वीर भी चिंताजनक बताई गई है रिपोर्ट के अनुसार मूल बजट की 402.24 करोड़ रुपये की राशि वित्त विभाग को लौटाई नहीं गई, इसके बावजूद जुलाई 2024 में 300 करोड़ का अनुपूरक अनुदान लेना भी औचित्यहीन ठहराया गया। सीएजी ने यह भी संकेत दिया कि कई योजनाओं में खर्च की रफ्तार बेहद धीमी रही—जैसे दस्तकार प्रशिक्षण योजना, मेगा राजकीय ITI और मुख्यमंत्री शिक्षुता प्रोत्साहन योजना में बजट उपयोग का स्तर काफी कम दर्शाया गया। कुल मिलाकर, रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बजट “बचत” और “अनुदान” के बीच चल रही गणना की गड़बड़ी पर स्पष्ट सवालिया निशान लगा दिया है।
वितरण कंपनियों की वित्तीय कमजोरी पर उठे सवाल
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की बिजली से जुड़ी प्रमुख योजनाओं दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और सौभाग्य योजना के प्रबंधन पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय प्रबंधन की कमजोरियों के चलते बिजली वितरण कंपनियां 20,026.61 करोड़ रुपये के ऋण को अनुदान में परिवर्तित नहीं कर सकीं, जिससे योजनाओं के वित्तीय संतुलन पर दबाव बढ़ा। सीएजी ने टैक्स क्लेम की प्रक्रिया में भी खामियां गिनाईं। जीएसटी/राज्य कर दावों में त्रुटियों के कारण 2.90 करोड़ रुपये से अधिक की जीएसटी प्रतिपूर्ति और 4.21 करोड़ रुपये की बकाया प्रतिपूर्ति हासिल नहीं हो सकी। वहीं, लागू ब्याज दरों के सत्यापन में कमी के चलते आरईसी (REC) ऋणों पर 7.19 करोड़ रुपये का अधिक ब्याज भुगतान दर्ज किया गया है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि कुछ मामलों में गलत जीएसटी लगाना, जरूरत से ज्यादा ऋण लेना, और परियोजनाओं के क्रियान्वयन में 29 से 49 महीने तक की देरी जैसे मुद्दे सामने आए। कुल मिलाकर, सीएजी की टिप्पणी यह संकेत देती है कि उत्तर प्रदेश में “घर-घर बिजली” के लक्ष्य से जुड़ी योजनाओं में कागजी दावों के साथ-साथ वित्तीय अनुशासन और निगरानी तंत्र को भी मजबूत करने की जरूरत है।
लेखापरीक्षा के बाद वसूली
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में विद्युत सुरक्षा निरीक्षण शुल्क को लेकर लेखापरीक्षा में खामियां पकड़े जाने के बाद दो बिजली वितरण कंपनियों ने 5.97 करोड़ रुपये की वसूली जरूर कर ली। लेकिन रिपोर्ट ने यह भी साफ किया है कि सुधार की यह कार्रवाई अधूरी रही क्योंकि कुछ मदों में अतिरिक्त भुगतान की स्थिति अब भी बनी हुई है। यानी ऑडिट की आपत्ति सामने आने पर रकम वापस लेने की पहल तो हुई, पर भुगतान प्रक्रिया की निगरानी और शुल्क निर्धारण की पारदर्शिता पर सवाल अभी भी कायम हैं। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के क्रियान्वयन को लेकर सीएजी (CAG) की ताजा रिपोर्ट ने सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में योजना का लाभ सैकड़ों अपात्र लोगों तक पहुंच गया और मकान निर्माण के नाम पर करोड़ों रुपये जारी कर दिए गए। मामला यहीं नहीं रुका साइबर धोखाधड़ी के चलते 159 लाभार्थियों की 86.20 लाख रुपये की राशि उनके खातों में पहुंचने से पहले ही दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर होने की बात सामने आई है। विधानमंडल में बुधवार को पेश इस रिपोर्ट ने संकेत दिए हैं कि पात्रता जांच, सत्यापन और भुगतान सुरक्षा तीनों स्तरों पर उत्तर प्रदेश में निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है।
2016-17 से 2022-23 तक का ऑडिट
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत कच्चे या जर्जर मकान में रहने वाले परिवारों को अपनी जमीन पर पक्का घर बनाने के लिए 1.20 लाख रुपये की सहायता तीन किस्तों में दी जाती है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2016-17 से 2022-23 के बीच उत्तर प्रदेश में 34.71 लाख आवास स्वीकृत किए गए, जिनमें से 34.18 लाख (98.48%) का निर्माण मार्च 2024 तक पूरा होना दर्शाया गया है। हालांकि, आंकड़ों की इस चमक के बीच लाभार्थी सूची को लेकर सीएजी ने गंभीर सवाल उठाए हैं। जांच में दर्ज है कि मई 2016 में 14.47 लाख लाभार्थियों की अंतिम सूची प्रकाशित हुई थी। इसके बाद केंद्र की सलाह पर दोबारा सर्वे कराया गया और आवास प्लस सर्वे के आधार पर मार्च 2024 तक पात्र परिवारों की संख्या 33.64 लाख तक पहुंच गई। लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, इस बढ़ी हुई संख्या में से केवल 22.29 लाख परिवारों को ही सूची में अतिरिक्त रूप से शामिल किया गया, जबकि एक बड़ा हिस्सा स्थायी प्रतीक्षा सूची से बाहर रह गया। सीएजी ने इसे डेटा की अशुद्धि या आंकड़ों में गड़बड़ी की ओर संकेत माना है। दिलचस्प यह भी कि ग्राम्य विकास विभाग ने अक्टूबर 2023 में स्वीकार किया था कि कई पात्र लाभार्थी गलती से स्थायी प्रतीक्षा सूची से बाहर हो गए थे।
किस्तों की धीमी रफ्तार ने बढ़ाई ग्रामीण आवास योजना की चिंता
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 से 2023 के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण पर कुल 40,231 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें 37,984 करोड़ रुपये सीधे मकान निर्माण पर और 157 करोड़ रुपये प्रशासनिक मद में व्यय होना दर्शाया गया है। रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि प्रशासनिक मद में अपेक्षाकृत कम खर्च के चलते यूपी को केंद्र से 357 करोड़ रुपये कम प्राप्त हुए, जिससे योजना की संचालन-क्षमता पर असर पड़ने की आशंका जताई गई है। ऑडिट में भुगतान प्रक्रिया को लेकर भी गंभीर खामियां सामने आईं। रिपोर्ट के अनुसार, 79% लाभार्थियों को पहली किस्त जारी करने में 7 कार्य दिवस से अधिक की देरी हुई। वहीं अगस्त 2024 तक 11,031 लाभार्थियों के मामलों में 20.18 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी नहीं होने पर सीएजी ने आपत्ति दर्ज की है। यानी, जिनके लिए घर “सपने” की तरह था, उनके लिए किस्तों की देरी और अटकी रकम योजना की रफ्तार पर बड़ा सवाल बनकर खड़ी हो गई है।
साइबर ठगी का बड़ा केस
रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली चूक उजागर हुई है। सीएजी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 159 लाभार्थियों की कुल 86.20 लाख रुपये की सहायता राशि साइबर धोखाधड़ी के कारण उनके खातों में पहुंचने के बजाय दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर हो गई। यह मामला सिर्फ ठगी का नहीं, बल्कि संकेत है कि योजना से जुड़े भुगतान तंत्र, बैंकिंग सत्यापन और डेटा-सुरक्षा की परतों में कहीं न कहीं बड़ी कमजोरी मौजूद है। ऐसे में जरूरत है कि यूपी में लाभार्थी सत्यापन से लेकर डिजिटल ट्रांजैक्शन तक, हर चरण पर कड़ी निगरानी और तकनीकी सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए ताकि “घर की पहली ईंट” रखने से पहले ही किस्तें लीक न हों।
यूपी के अन्य विभाग भी CAG की रडार पर
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कई विभागों के वित्तीय अनुशासन और बजट प्रबंधन पर भी तीखे सवाल खड़े किए हैं। समाज कल्याण विभाग के मामले में रिपोर्ट कहती है कि मूल बजट से 342 करोड़ रुपये बचने के बावजूद वित्त विभाग को सिर्फ 40 करोड़ ही लौटाए गए, जबकि शेष करीब 302 करोड़ रुपये का स्पष्ट हिसाब सामने नहीं आ सका। इतना ही नहीं, 115 करोड़ रुपये का अनुपूरक अनुदान भी रिपोर्ट के मुताबिक अनावश्यक साबित हुआ। वहीं कुछ योजनाओं में केंद्रांश समय पर न मिलने के कारण करीब 19 करोड़ रुपये वापस करने की नौबत आ गई यानी पैसा उपलब्ध होने और सही समय पर मिलने के बीच समन्वय की कमी उजागर हुई है। रिपोर्ट में उच्च शिक्षा और आबकारी विभाग भी सीएजी की आपत्ति के दायरे में आए हैं। उच्च शिक्षा विभाग में 957 करोड़ रुपये की बचत के बावजूद राशि वापस न करने पर सवाल उठे हैं, साथ ही 3.92 करोड़ का अनुपूरक अनुदान भी “फिजूल” बताया गया है। इसी तरह, आबकारी विभाग में 195 करोड़ रुपये बचने के बावजूद कोई रकम लौटाई नहीं गई और ऊपर से 50 करोड़ का अनुपूरक अनुदान भी अनावश्यक माना गया। वहीं व्यावसायिक शिक्षा विभाग की तस्वीर भी चिंताजनक बताई गई है रिपोर्ट के अनुसार मूल बजट की 402.24 करोड़ रुपये की राशि वित्त विभाग को लौटाई नहीं गई, इसके बावजूद जुलाई 2024 में 300 करोड़ का अनुपूरक अनुदान लेना भी औचित्यहीन ठहराया गया। सीएजी ने यह भी संकेत दिया कि कई योजनाओं में खर्च की रफ्तार बेहद धीमी रही—जैसे दस्तकार प्रशिक्षण योजना, मेगा राजकीय ITI और मुख्यमंत्री शिक्षुता प्रोत्साहन योजना में बजट उपयोग का स्तर काफी कम दर्शाया गया। कुल मिलाकर, रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बजट “बचत” और “अनुदान” के बीच चल रही गणना की गड़बड़ी पर स्पष्ट सवालिया निशान लगा दिया है।
वितरण कंपनियों की वित्तीय कमजोरी पर उठे सवाल
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की बिजली से जुड़ी प्रमुख योजनाओं दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और सौभाग्य योजना के प्रबंधन पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय प्रबंधन की कमजोरियों के चलते बिजली वितरण कंपनियां 20,026.61 करोड़ रुपये के ऋण को अनुदान में परिवर्तित नहीं कर सकीं, जिससे योजनाओं के वित्तीय संतुलन पर दबाव बढ़ा। सीएजी ने टैक्स क्लेम की प्रक्रिया में भी खामियां गिनाईं। जीएसटी/राज्य कर दावों में त्रुटियों के कारण 2.90 करोड़ रुपये से अधिक की जीएसटी प्रतिपूर्ति और 4.21 करोड़ रुपये की बकाया प्रतिपूर्ति हासिल नहीं हो सकी। वहीं, लागू ब्याज दरों के सत्यापन में कमी के चलते आरईसी (REC) ऋणों पर 7.19 करोड़ रुपये का अधिक ब्याज भुगतान दर्ज किया गया है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि कुछ मामलों में गलत जीएसटी लगाना, जरूरत से ज्यादा ऋण लेना, और परियोजनाओं के क्रियान्वयन में 29 से 49 महीने तक की देरी जैसे मुद्दे सामने आए। कुल मिलाकर, सीएजी की टिप्पणी यह संकेत देती है कि उत्तर प्रदेश में “घर-घर बिजली” के लक्ष्य से जुड़ी योजनाओं में कागजी दावों के साथ-साथ वित्तीय अनुशासन और निगरानी तंत्र को भी मजबूत करने की जरूरत है।
लेखापरीक्षा के बाद वसूली
सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में विद्युत सुरक्षा निरीक्षण शुल्क को लेकर लेखापरीक्षा में खामियां पकड़े जाने के बाद दो बिजली वितरण कंपनियों ने 5.97 करोड़ रुपये की वसूली जरूर कर ली। लेकिन रिपोर्ट ने यह भी साफ किया है कि सुधार की यह कार्रवाई अधूरी रही क्योंकि कुछ मदों में अतिरिक्त भुगतान की स्थिति अब भी बनी हुई है। यानी ऑडिट की आपत्ति सामने आने पर रकम वापस लेने की पहल तो हुई, पर भुगतान प्रक्रिया की निगरानी और शुल्क निर्धारण की पारदर्शिता पर सवाल अभी भी कायम हैं। UP News












