Mahabharata : महाभारत का युद्ध दुनिया के इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध है। महाभारत के युद्ध की कथा भारत के अधिकतर नागरिकों ने पढ़ी है। यदि आपने महाभारत की कथा नहीं पढ़ी तो समझ लीजिए आपने भारत के इतिहास के विषय में कुछ भी नहीं पढ़ा है। चिंता की कोई बात नहीं है। हम बेहद साधारण भाषा में महाभारत के युद्ध की पूरी कथा आपको यहां पढ़ा देते हैं।
पूरे 18 दिन चला था महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध क्यों हुआ? महाभारत के युद्ध की नींव किस घटना के कारण पड़ी ? महाभारत के युद्ध से पहले तथा बाद में क्या-क्या हुआ? यह पूरा विस्तार तो आपको महाभारत ग्रंथ पढक़र ही मिलेगा। यहां हम आपको लगातार 18 दिन तक चले महाभारत की 18 दिन के युद्ध की कथा से परिचित करवा रहे हैं। भारतीय मूल के प्रोफेसर बी.एन. नरहरि ने बड़ी खोज की है। प्रोफेसर बी.एन. नरहरि ने अपनी खोज में बताया है कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 BCE (before common era) को शुरू हुआ था। यह युद्ध पूरे 18 दिन चलकर 10 दिसंबर 3067 BCE को समाप्त हुआ था।
पहले दिन का युद्ध Mahabharata
महाभारत के युद्ध के पहले दिन महाभारत का युद्ध धर्म के लिए लड़ रहे पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पढ़ा था। पहले ही दिन पांडव पक्ष के बड़े महारथी विराट नरेश के पुत्र उत्तर कुमार तथा श्वेत केतु को कौरव पक्ष के महारथी शल्य तथा भीष्म पितामह ने मार दिया था। महाभारत युद्ध के पहले ही दिन भीष्म पितामह ने पांडव सेना के हजारों सैनिकों को मार गिराया था। महाभारत का पहला दिन पांडव पक्ष के लिए बड़ी निराशा तथा कौरव पक्ष के लिए बड़े उत्साह का दिन साबित हुआ था।
महाभारत युद्ध का दूसरा दिन
महाभारत के युद्ध के दूसरे दिन पांडवों को अधिक नुकसान नहीं हुआ था। द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया। भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया। भीम ने हजारों कलिंग और निषाद मार गिराए। अर्जुन ने भीष्म को रोके रखा।
महाभारत युद्ध का तीसरा दिन
महाभारत युद्ध का चौथा दिन
महाभारत युद्ध का पांचवा दिन
युद्ध के पांचवें दिन भीष्म ने पांडव सेना में खलबली मचा दी। भीष्म को रोकने के लिए अर्जुन और भीम ने उनसे युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य रोके रखा। भीष्म ने सात्यकि को युद्ध से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
महाभारत युद्ध का छठा दिन
महाभारत युद्ध का सातवां दिन
महाभारत युद्ध का आठवां दिन
आठवें दिन भी भीष्म पांडव सेना पर हावी रहते हैं। भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देता है, राक्षस अम्बलुष अर्जुन पुत्र इरावान का वध कर देता है। घटोत्कच दुर्योधन को अपनी माया से प्रताड़ित करता है। तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच, भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है। दिन के अंत तक भीम धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।
महाभारत युद्ध का नवां दिन
नवें दिन दुर्योधन भीष्म से कर्ण को युद्ध में लाने की बात कहता है, तब भीष्म उसे आश्वासन देते हैं कि या तो श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे या किसी एक पांडव का वध कर देंगे। युद्ध में भीष्म को रोकने के लिए श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है और वे शस्त्र उठा लेते हैं। इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं।
महाभारत युद्ध का दसवां दिन
इस दिन पांडव श्रीकृष्ण के कहने पर भीष्म से उनकी मुत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म के बताए उपाय के अनुसार अर्जुन शिखंडी को आगे करके भीष्म पर बाण ही बाण चला देते हैं। अर्जुन के बाणों से भीष्म बाणों की शय्या पर लेट जाते हैं।
महाभारत युद्ध का ग्याहरवां दिन
ग्याहरवें दिन कर्ण युद्ध में आ जाता है। कर्ण के कहने पर द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया जाता है। दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे तो युद्ध खत्म हो जाएगा। दुर्योधन की योजना अर्जुन पूरी नहीं होने देता है। कर्ण भी पांडव सेना का भारी संहार करता है।
महाभारत युद्ध का बारहवां दिन
बारहवां दिन युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए शकुनि और दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन समय पर पहुंचकर युधिष्ठिर को बंदी बनने से बचा लेते हैं।
महाभारत युद्ध का तेरहवां दिन
इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन से युद्ध करने के लिए भेजता है। भगदत्त भीम को हरा देते हैं, अर्जुन के साथ युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा करते हैं। अर्जुन भगदत्त की आंखो की पट्टी तोड़ देता है, जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है। अर्जुन इस अवस्था में ही उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं।
जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, लेकिन निकलना नहीं जानता था। युधिष्ठिर भीम आदि को अभिमन्यु के साथ भेजता है, लेकिन चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ सभी को रोक देता है। केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। वह अकेला ही सभी कौरवों से युद्ध करता है और मारा जाता है। पुत्र अभिमन्यु का अन्याय पूर्ण तरीके से वध हुआ देखकर अर्जुन अगले दिन जयद्रथ वध करने की प्रतिज्ञा ले लेता है और ऐसा न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने को कह देता है।
महाभारत युद्ध का चौदहवां दिन
अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव जयद्रथ को बचाने योजना बनाते हैं। द्रोण जयद्रथ को बचाने के लिए उसे सेना के पिछले भाग मे छिपा देते है, लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा किए गए सूर्यास्त के कारण जयद्रथ बाहर आ जाता है और अर्जुन और वध कर देता है। इसी दिन द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।
महाभारत युद्ध का पंद्रहवां दिन
इस दिन पाण्डव छल से द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की मृत्यु का विश्वास दिला देते हैं, जिससे निराश हो द्रोण समाधि ले लेते हैं। इस दशा में धृष्टद्युम्न द्रोण का सिर काटकर वध कर देता है।
महाभारत युद्ध का सोलहवां दिन
इस दिन कर्ण को कौरव सेनापति बनाया जाता है। इस दिन वह पांडव सेना का भयंकर संहार करता है। कर्ण नकुल-सहदेव को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। भीम दुःशासन का वध कर देता है और उसकी छाती का रक्त पीता है।
महाभारत युद्ध का सत्रहवां दिन Mahabharata
सत्रहवें दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है, तब कर्ण पहिया निकालने के लिए नीचे उतरता है और उसी समय श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन कर्ण का वध कर देता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बने, जिसे युधिष्ठिर मार देता है।
अठाहरवां दिन
इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए सभी भाइयों को मार देता है। सहदेव शकुनि को मार देता है। अपनी पराजय मानकर दुर्योधन एक तालाब मे छिप जाता है, लेकिन पांडव द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है। तब भीम छल से दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करता है, इससे दुर्योधन की मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं। Mahabharata
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