Wednesday, 8 May 2024

नोएडा सीट पर कौन दे रहा है भाजपा को टक्‍कर? इस सवाल से परेशान है जनता

Noida Assembly Seat: नोएडा (चेतना मंच)। उत्तर प्रदेश (UP Elections 2022) की हॉट सीटों में गिनी जाने वाली नोएडा विधानसभा…

नोएडा सीट पर कौन दे रहा है भाजपा को टक्‍कर? इस सवाल से परेशान है जनता

Noida Assembly Seat: नोएडा (चेतना मंच)। उत्तर प्रदेश (UP Elections 2022) की हॉट सीटों में गिनी जाने वाली नोएडा विधानसभा सीट (Noida Seat) पर चुनाव में एक बड़ी उलझन खड़ी हो गई है। विपक्षी दलों के प्रत्याशियों के ढुलमुल रवैए व अपने-अपने दायरे में सिमटे रहने के कारण यह उलझन खड़ी हुई है। उलझन यह है कि जनता समझ ही नहीं पा रही है कि इस सीट पर सत्ता पक्ष यानी भाजपा (BJP) को टक्कर कौन दे रहा है।

‘क्यों पड़े हो चक्कर में-कोई नहीं है टक्कर में’ यह नारा आमतौर पर सुना जाता रहा है। किंतु नोएडा में यह नारा बदल गया है। यहां मतदाता पूछ रहे हैं कि ‘नोएडा वासी हैं चक्कर में-कौन है टक्कर में’। दरअसल नोएडा विधानसभा की सीट (Noida Assembly Seat) पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) के पुत्र पंकज सिंह (Pankaj Singh) विधायक के तौर पर काबिज हैं। उन्हीं के कारण इस सीट को हॉट सीट की श्रेणी में गिना जाता है। इस बार के चुनाव में एक बार फिर से श्री सिंह भाजपा के प्रत्याशी हैं। उनके सामने समाजवादी पार्टी व रालोद गठबंधन से सुनील चौधरी, बहुजन समाज पार्टी से कृपाराम शर्मा व कांग्रेस से अनेक विवादों में रह चुकी श्रीमती पंखुड़ी पाठक यादव प्रत्याशी हैं। इन तीनों ही प्रमुख दलों के प्रत्याशी पहले तो अपने-अपने दलों में टिकटार्थियो के तौर पर जुझते रहे। चुनाव की घोषणा के बाद जब से प्रत्याशी बने है तब से अपने-अपने दलों के दूसरे टिकट के दावेदारों की बगावत से जूझ रहे हैं। इनका बचा-खुचा समय अपने-अपने समाज को जोड़ने में लग रहा है।

प्रत्याशियों की अलग-अलग बात करें तो बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी कृपाराम शर्मा यह मानकर चल रहे हैं कि उनके करीब 40 हजार वोट तो सुरक्षित ही हैं। अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए वे ब्राह्मण वोटों पर डोरे डाल रहे हैं। चुनावी अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग करने का अनुभव न होने के कारण उन्हें अपेक्षित सफलता मिलती प्रतीत नहीं हो रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि यदि श्री शर्मा अभी भी चुनावी रणनीति को धारदार बनाएं तो वे मुख्य मुकाबले में खड़े हो सकते हैं।

अब बात करें समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के प्रत्याशी सुनील चौधरी की। तो उनका भी हाल कमोवेश यही है। तीसरी बार नोएडा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे सुनील चौधरी को वर्ष-2012 में 42071 वोट तथा वर्ष-2017 में 58401 वोट मिले थे। वर्ष-2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी थे। वर्ष-2014 के मध्यावधि चुनाव में सपा प्रत्याशी काजल शर्मा को 41481 वोट मिले थे। यानी पिछले तीनों चुनाव (Noida Assembly Seat) में सपा का वोट बैंक तकरीबन 58 हजार से ऊपर नहीं जा पाया। इस बार रालोद का गठबंधन तो है किंतु प्रत्याशी की चुनावी रणनीति में वह धार नहीं नजऱ आ रही है जिसके बलबूते पर मतदाताओं के बीच यह सीधा संदेश जाए कि सपा प्रत्याशी भाजपा को सीधी टक्कर दे रहे हैं जिससे सत्ता विरोधी मतदाता उनके साथ जुड़ सके।

कांग्रेस ने इस बार महिला प्रत्याशी पंखुड़ी पाठक यादव को मैंदान में उतारा है। श्रीमती पाठक का विवादों से पुराना नाता रहा है। इन विवादों की बात छोड़ भी दें तो भी पंखुड़ी पाठक को जहां अपनी ही पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है। वहीं उन्हें ब्राहमण होने का भी कोई विशेष लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है।

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मूलत: उत्तराखंड (Uttarakhand) की रहने वाली पंखुड़ी पाठक से जहां उत्तराखंड के वोटर यह कहकर वोट देने से कन्नी काट रहे हैं कि वे ब्राह्मण थीं। लेकिन शादी करने के बाद अब यादव हो गईं हैं। ऐसे में उत्तराखंड खासकर वहां के ब्राह्मण का वोट भी उनके हाथ से खिसकता प्रतीत हो रहा है। सर्वविदित है कि नोएडा में यादवों का अधिकांश वोट समाजवादी पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। चूंकि प्रदेश में भाजपा बनाम सपा की इस जंग में यादव बिरादरी कांग्रेस के बजाय सपा को वोट देने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है। वैसे भी पिछले 10 वर्षों में हुए तीन चुनावों पर नजर डालें तो कांग्रेस हमेशा यहां चौथे स्थान पर रही है। इस चौथे स्थान से हटकर कुछ ऊपर खिसक जाने की जद्दो-जहद के जरिए अपने नेतृत्व को संदेश देने की रणनीति पर यदि कांग्रेस की प्रत्याशी चुनाव लड़ रही है तो फिर कुछ नहीं कहा जा सकता।

कांग्रेस के यहां के इतिहास पर नजऱ डालें तो वर्ष-2012 में कांग्रेस प्रत्याशी डा. वी.एस.चौहान 25482 (12.15 प्रतिशत) वोट लाकर चौथे स्थान पर रहे थे। वर्ष-2014 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र अवाना भी मात्र 17212 (10.45 प्रतिशत) वोट लाकर चौथे स्थान पर रहे थे। वर्ष-2017 के चुनाव में हालांकि कांग्रेस ने सपा से गठबंधन किया था। गठबंधन के प्रत्याशी को 58401 वोट मिले थे इसमें सपा का पारंपरिक वोट 41-42 हजार भी शामिल था। उस बार भी कांग्रेस की स्थिति काफी दयनीय ही थी।

गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी के सभी प्रकोष्ठों के अध्यक्ष, दावेदार प्रत्याशी, पूर्व महानगर अध्यक्ष, पीसीसी व एआईसीसी सदस्य भी चुनाव में शामिल न होकर बगावती मूड में नजर आ रहे हैं। ऐसे में पारंपरिक चौथे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के पूर्व महानगर अध्यक्ष शाहबुददीन, पूर्व महानगर अध्यक्ष मुकेश यादव, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के महानगर अध्यक्ष मो. गुडडू, एआईसीसी सदस्य दिनेश अवाना, युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पुरुषोत्तम नागर, व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अभिषेक जैन, पीसीसी सदस्य सतेन्द्र शर्मा, एसटी/एससी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रोहित बेनीवाल, व्यापार प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जीतेन्द्र अम्बावत, अशोक शर्मा, विक्रम चौधरी, एससी/एसटी प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव राजकुमार भारती, किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष गौतम अवाना, कामगार संगठन के अध्यक्ष जावेद खान व सभी ब्लॉक अध्यक्ष, प्रमोद शर्मा समेत कई नेता चुनाव प्रचार में शामिल न होकर अघोषित बगावत करने के मूड में हैं। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति खुद-ब-खुद समझी जा सकती है।

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