Ghaziabad News : गाजियाबाद । कल रविवार को लोहिया नगर (Lohia Nagar) पुराना बस अडडा के पास स्थित अग्रसेन भवन (Agrasen Bhavan) पर 22वां श्री श्याम फाल्गुन महोत्सव (Shri Shyam Phalgun Festival) का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम का आयोजन श्री श्याम खाटू सेवक मंडल द्वारा किया जा रहा है। यह जानकारी श्री श्याम खाटू सेवा मंडल के संस्थापक तथा कार्यक्रम संचालक सुरेन्द्र कुमार गर्ग (Surendra Kumar Garg) (मक्खन लाल जी) ने दी है।
श्री गर्ग ने बताया कि फाल्गुन महोत्सव (Phalgun Festival) दोपहर करीब 3.15 बजे से शुरू होगा जो प्रभु इच्छा तक चलेगा। इस भजन संध्या में प्रसिद्ध भजन गायक आनंद गुप्ता (दिल्ली), बीकानेर के प्रवेश शर्मा, जयपुर के निजाम भाई, दिल्ली के सुनील जैन तथा गाजियाबाद के के.के. मित्तल श्री खाटू श्याम के भजनों से लोगों को भक्ति के सागर में सराबोर करेंगे।
Khatu Shyam
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर लोगों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है। देशभर के कोने-कोने से लोग अपनी मुराद लेकर यहां आते हैं। तीन बाण धारी, शीश के दानी और हारे का सहारा जैसे कई नामों से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि खाटू श्याम जी को ये नाम क्यों मिले।
कौन हैं खाटू श्याम जी
आज खाटू श्याम जी के रूप में प्रसिद्ध देवता असल में पांडवों में से भीम के पोते अर्थात घटोत्कच के बेटे हैं। जिनका असली नाम बर्बरीक है। उनमें बचपन से ही एक वीर योद्धा के गुण थे।
कहलाए हारे का सहारा
महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने के लिए बर्बरीक ने अपनी माता से आज्ञा मांगी। तब उनकी मां को यह आभास हुआ कि कौरवों की सेना अधिक होने के कारण पांडवों को युद्ध में परेशानी हो सकती है। इस पर बर्बरीक की मां ने उन्हें आज्ञा देते हुए ये वचन लिया कि वह युद्ध में हार रहे पक्ष का साथ देंगे। तभी से खाटू श्याम हारे का सहारा कहलाने लगे।
अन्य नामों का अर्थ
तीन बाण धारी – बर्बरीक से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें तीन अभेद्य बाण दिए थे, इसलिए इन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है। इन तीन बाणों में इतनी ताकत थी कि महाभारत का युद्ध इन तीन बाणों द्वारा ही खत्म किया जा सकता था।
शीश का दानी
अपनी मां के कहे अनुसार बर्बरीक युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ देने आए। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देंगे, जिससे पांडवों का हारना तय है। तब भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप बनाकर बर्बरीक से शीश दान में मांगा। इसपर बर्बरीक ने अपनी तलवार के द्वारा भगवान के चरणों में अपना सिर अर्पित कर दिया। इसलिए उन्हें शीश का दानी कहा जाता है।
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