Friday, 3 May 2024

धर्म – अध्यात्म : अंजुरी दिव्य संदेश है, जुड़ने और जोड़ने का!

 विनय संकोची ‘अंजलि’ हाथों की हथेलियों के सहयोग का अनुपम उदाहरण है। सहयोग यदि हृदय की गहराइयों से हो तो…

धर्म – अध्यात्म : अंजुरी दिव्य संदेश है, जुड़ने और जोड़ने का!

 विनय संकोची

‘अंजलि’ हाथों की हथेलियों के सहयोग का अनुपम उदाहरण है। सहयोग यदि हृदय की गहराइयों से हो तो अधिक प्रभावी होता है। दिखावे के लिए किया गया सहयोग, प्रशंसा-प्रसिद्धि के लिए किया जाने वाले सहयोग, मन से मन के तार नहीं जोड़ता है और न ही ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह मन मस्तिष्क में होता है। नि:स्वार्थ सहयोग ही उसका माध्यम बनता है। अंजलि बनी हथेलियों का सहयोग नि:स्वार्थ होता है, जब वे जुड़ती हैं तो स्वतः ही प्रभु-गुरु कृपा की अधिकारी हो जाती हैं। प्रभु-गुरु कृपा का माध्यम बन जाती हैं।

जब दो हथेलियां अंजलि बनती हैं तो किसी निर्धन को अन्नदान का माध्यम बनकर पुण्य कमाती हैं। अंजलि में जुड़ी हथेलियों में दाएं बाएं का भेद नहीं रहता है। हथेलियों का अपना, अपना अस्तित्व सिमटकर अंजुरी में समा जाता है। दो हथेलियां एक हो जाती हैं और एक होकर पुण्य कमाती हैं तथा साथ-साथ पुष्प या अन्य की सुगंध से महक-महक जाती हैं। दोनों एक साथ जुड़कर वह सुख पाती हैं, अलग-अलग रहकर जिसे पा लेना उनके लिए संभव नहीं था। संभव हो ही नहीं सकता था।

अहं दूरियां बढ़ाता है। विचारों में विकार उत्पन्न करता है। रिश्ते में दरार डालता है। अपने और दूसरों के लिए दु:ख का कारण बनता है। स्वार्थ और अहंकार प्रेम के सबसे बड़े शत्रु हैं। जहां स्वार्थ और अहंकार होगा वहां प्रेम हो ही नहीं सकता, सहयोग हो ही नहीं सकता। जहां प्रेम नहीं होगा, वहां हथेलियां परस्पर मिलकर अंजलि बन ही नहीं सकती। अंजलि के लिए प्रेम-सहयोग अमृत तुल्य और अहंकार-स्वार्थ विष तुल्य है। अहं का त्याग किए बिना, स्वार्थ को त्यागे बिना, आज तक न कोई मनुष्य श्रेष्ठ कहलाया है और न ही कहला सकता है। अंजलि प्रतीक है एकता का, सामंजस्य का। अंजलि माध्यम है प्रेम प्रदर्शन का, अंजलि रास्ता है पुण्य कमाने का, अंजलि प्रतीक है अभेद का, अंजलि संदेश है सहयोग और सद्भाव का। अंजलि सीख है उनके लिए जो साथ तो रहते हैं लेकिन एक साथ जुड़ नहीं पाते हैं, आड़े आ जाता है अहंकार, अभिमान, घमंड।

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है अहंकार। भगवान को न तो अहंकार पसंद है और न ही अहंकारी। जो ‘मैं’ का मारा है, वह भगवान का हो ही नहीं सकता। भगवान उसे अपनाते ही नहीं हैं। इसके विपरीत भगवान अहंकारी को ऐसा पाठ पढ़ाते हैं कि वह सिर उठाने की स्थिति में रहता ही नहीं है। पौराणिक इतिहास इस प्रकार की कथाओं से भरा पड़ा है, जिनमें भगवान द्वारा अहंकारी को दंडित किए जाने का उल्लेख मिलता है। अहंकारी व्यक्ति छिद्रयुक्त नाव की सवारी करने वाला होता है, नाव में पानी भरता भी है तो उसका ‘मैं’ उसे किसी अन्य को सहायता के लिए पुकारने से रोकता है। परिणाम सुखद नहीं होता है। अंजलि बनना, बनाना उसे आता नहीं है। अगर आता तो पानी को उलीच सकता है। लेकिन जो काम आता ही न हो उसे करे कैसे? अंजलि जुड़ने और जोड़ने का दिव्य संदेश है।

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