पटना। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पटना सर्कल ने अपने दिल्ली मुख्यालय को विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्थल पूर्वी चंपारण जिला के केसरिया स्तूप से एक किलोमीटर उत्तर स्थित ‘रानीवास टीला’ को संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल किए जाने को लेकर एक रिपोर्ट भेजी है।
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एएसआई पटना सर्कल ने इसी तरह के दो और स्थलों कैमूर जिले के बसाहन में ‘अशोक के शिलालेख’ और भागलपुर में विक्रमशिला स्थल के पास ‘जंगलिस्तान क्षेत्र में टीला’ से संबंधित प्रस्ताव मुख्यालय को पूर्व में भेजा था।
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एएसआई पटना सर्कल की अधीक्षण पुरातत्वविद गौतमी भट्टाचार्य ने कहा कि पटना सर्कल के संरक्षण प्रस्तावों को एएसआई मुख्यालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद ये प्राचीन स्थल केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल हो जाएंगे। एएसआई मुख्यालय ने हमसे ‘रानीवास टीले’ के बारे में कुछ स्पष्टीकरण मांगा था। हमने 30 नवंबर को एएसआई के संरक्षित स्मारकों की सूची में इसे शामिल करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। उन्होंने कहा कि हम इस स्थल की आगे की पुरातात्विक जांच भी चाहते हैं।
भट्टाचार्य ने कहा कि इससे पहले टीले की प्रकृति और क्षेत्र की बौद्ध स्थापना और ऐतिहासिकता को समझने के लिए इस साइट के एएसआई द्वारा खुदाई की योजना बनाई गई थी। मठ की कोठरियां आयताकार हैं और इनमें एक सुंदर द्वार और आंगन के साथ स्तंभों वाला बरामदा है। एक महत्वपूर्ण खोज टेराकोटा सीलिंग की थी। इसमें शिलालेख की एक पंक्ति के बाद शीर्ष पर एक स्तूप का चित्रण किया गया है।
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उन्होंने कहा कि मिट्टी के बर्तनों में आम तौर पर लाल बर्तन हैं। हालांकि काले रंग के कुछ टुकड़े भी पाए गए हैं। घुंडीदार ढक्कन, कटोरे आदि मुख्य रूप से देखे जाने योग्य आकार हैं। खुदाई के दौरान अलंकृत ईंटें और टेराकोटा एवं पत्थर की निर्मित अन्य उल्लेखनीय सामग्री मिली हैं। इसके अलावा भागलपुर में विक्रमशिला स्थल के पास जंगलिस्तान में टीले और कैमूर के बसहन में अशोक के शिलालेख के संरक्षण के प्रस्ताव भी एएसआई मुख्यालय के पास लंबित हैं।
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एएसआई, पटना के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अशोक शिलालेख स्थल कैमूर में है और सूची में शामिल करने की सिफारिश 2008 में भेजी गई थी। इसके बाद 2010 और 2021 में सिफारिशें भेजी गईं। जंगलिस्तान में एक टीले के लिए सिफारिशें 2010 में भेजी गई थीं। वर्तमान में बिहार में 70 स्थल एएसआई के अधीन हैं जो उसके पटना सर्कल के तहत आते हैं।
जानकारों का मानना है कि गया के शिव मंदिर को एएसआई ने 1996 में अधिसूचित किया था और उसके बाद से बिहार में किसी भी नए स्थल को एएसआई के दायरे में नहीं लाया गया है।