Wednesday, 1 May 2024

यहां बेटियों की नहीं होती विदाई, शादी के बाद बेटे होते हैं पराये

Khasi Community System:  पूरी दुनिया में ऐसी कई जनजातियां हैं, जिनके अपने अलग रिवाज है। लेकिन मेघालय, असम और बांग्‍लादेश…

यहां बेटियों की नहीं होती विदाई, शादी के बाद बेटे होते हैं पराये

Khasi Community System:  पूरी दुनिया में ऐसी कई जनजातियां हैं, जिनके अपने अलग रिवाज है। लेकिन मेघालय, असम और बांग्‍लादेश के कुछ इलाकों में रहने वाली एक ऐसी जनजाति भी है, जिसके रीति-रिवाज जानकर आप हैरान ही रह जाएंगे। दरअसल इस जनजाति बेटों के मुकाबले अपने बेटियों को ज्यादा तरजीह दी जाती है। एक तरफ जहां बेटियों को पराया धन कहकर विदा कर दिया जाता है, उधर इस जनजाति में एक अजीब ही पंरपरा है। यहां लड़की नहीं बल्कि लड़के की बिदाई कर दी जाती है। आइए जानते है पूरी कहानी।

Khasi Community System

दऱअस हम बात कर रहे है खासी जनजाति की, जहां बेटियों को विदा नहीं की जाता, बल्कि दुल्हे कि विदाई होती है। इस जनजाति में घर परिवार के सदस्यों का बोझ पुरुषों की जगह महिलाओं के कंधे पर होता है। खास बात है कि इस जनजाति में लड़कियों के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है। यह जनजाति पूरी तरह से बेटियों के प्रति समर्पित है। यह जनजाति उन तमाम समुदायों और क्षेत्रों के लिए एक बेहतर मिसाल है, जो बेटियों के जन्‍म पर दुखी रहते है और उन्हें बोझ समझते है। बता दें कि खासी जनजाति में लड़कियों को लेकर कई ऐसी परंपराएं और प्रथाएं हैं, जो बाकी भारत के उलट हैं।

सबसे छोटी बेटी को मिलती है ज्‍यादा संपत्ति

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि खासी जनजाति में शादी के बाद लड़के लड़कियों के साथ ससुराल में जाकर रहते है, लड़किया विदा होकर नहीं जाती। असान भाषा में कहें तो लड़कियां जीवनभर अपने माता-पिता के साथ रहती है, जबकि लड़के अपना घर छोड़कर लड़की के घर जमाई बनकर रहते है। इसके अलावा खासी जनजाति में बाप-दादा की जायदाद लड़कों के बजाय लड़कियों के नाम की जाती है। एक से ज्‍यादा बेटियां होने पर सबसे छोटी बेटी को जायदाद का ज्यादा हिस्सा दिया जाता है। खासी समुदाय में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने के कारण उसे ही माता-पिता, अविवाहित भाई-बहनों और संपत्ति का पूरी तरीके से ख्याल रखना है।

Khasi Community System

महिलाओं को एक से ज्‍यादा शादी की छूट

इतना ही नहीं खासी जनजाति में महिलाएं कई शादियां कर सकती है। उन्हें इसके लिए पूरी तरीके से छूट मिली हुई है। यहां के पुरुषों ने कई बार इस प्रथा को बदलने की मांग उठाई है। उनका कहना है कि वे महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते और ना ही उनके अधिकार कम करना चाहते हैं, बल्कि वे अपने लिए बराबरी का अधिकार चाहते हैं। खासी जनजाति में परिवार के सभी छोटे-बड़े फैसलों में महिलाओं की सबसे ज्यादा चलती है। यहां महिलाएं ही बाजार और दुकान चलाती हैं। इस समुदाय में छोटी बेटी का घर हर रिश्तेदार के लिए हमेशा खुला रहता है। आपको बता दें इस जनजाति में छोटी बेटी को खातडुह कहा जाता है।

तलाक के बाद संतान पर पिता नहीं रहता अधिकार

इसके अलावा खासी समुदाय में शादी के लिए कोई खास रस्म नहीं होती है। यहां लड़की और माता पिता की सहमति होने पर लड़का ससुराल में आना-जाना तथा रुकना शुरू करने लगता है। इसके बाद संतान होते ही लड़का स्थायी तौर पर अपनी ससुराल में रहना शुरू करता है। कुछ खासी लोग शादी करने के बाद विदा होकर लड़की के घर रहना शुरू कर देते हैं। शादी से पहले बेटे की कमाई पर माता-पिता का और शादी के बाद ससुराल पक्ष का सबसे ज्यादा अधिकार होता है।Khasi Community System

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