Noida News : 28 मई को अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्रवाई दिवस है। आज के टाइम में महिलाएं घर ही नहीं दफ्तर के काम को भी बखूबी संभाल रही हैं लेकिन कई बार घर और ऑफिस की जिम्मेदारियों को निभाने में वो सेहत को इग्नोर कर देती हैं। यही कारण है कि उनमें हाइपरटेंशन, डायबिटीज की समस्याएं बढ़ रही है। इसलिए इसकी अनदेखी करना खतरनाक साबित हो सकता है।
यह बातें फेलिक्स अस्पताल की निदेशक डॉ. रश्मि गुप्ता ने अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्रवाई दिवस के अवसर पर कही। उन्होंने बताया कि हर साल 28 मई का दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्रवाई दिवस रूप में मनाया जाता है। 2024 के लिए, थीम दबाव वाली चिंताओं को संबोधित करना और महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना जारी रखती है।
छोटे-छोटे दर्द पर ध्यान न देना बड़ी मुसीबत को दे रहा है दावत
साल 1987 में कोस्टा रिका में प्रजनन अधिकारों के लिए महिला वैश्विक नेटवर्क (डब्ल्यूजीएनआरआर) के सदस्यों के रीयूनियन के समय 28 मई को महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस के रूप में सेलिब्रेट करने का एलान कर दिया गया था। तभी से हर साल 28 मई को इसे विश्व स्तर पर मनाया जाने लगा और महिलाओं को जागरूक करने के उद्देश्य से दुनियाभर में कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाने लगे थे। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है महिलाओं में यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार के बारे में जागरूकता करना। हाइपरटेंशन, डायबिटीज ज्याजा उम्र की महिलाओं में देखने को मिलती थी वहीं अब ये समय से पहले हो रही है।
हाइपरटेंशन, डायबिटीज की समस्याएं बढ़ रही है। हेल्दी लाइफस्टाइल, खानपान और नियमित व्यायाम से कई तरह की बीमारियों से खुद को महफूज रखा जा सकता है। महिलाएं शरीर के छोटे-छोटे दर्द जैसे, कमर, पीठ, घुटने व पैरों के दर्द को शुरुआत से ही अनदेखी करती हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि ऑपरेशन या लंबे इलाज की नौबत आती है। महिलाएं बीपी व डायबिटीज की दवा तक लेने से जी चुराती हैं। इस वजह से बीपी और डायबिटीज का स्तर काफी तेजी से बढ़ता है।
महिलाएं खुद की सेहत के लिए सबसे ज्यादा बेपरवाह होती हैं। पौष्टिक आहार से दूरी कई तरह का मर्ज जैसे, शारीरिक कमजोरी, घुटने, कमर, कंधे का दर्द, खून की कमी, थायराइड की परेशानी देता है। गर्भावस्था के दौरान भी 50 फीसदी महिलाएं कोई न कोई खुद के प्रति लापरवाही करती मिलती हैं। घुटने, कंधे, कमर दर्द, थायराइड, आंखों की रोशनी, मोटापा के प्रति ज्यादा बेपरवाह, मोतियाबिंद या अन्य तकलीफ से आंखों की रोशनी 60 फीसदी तक कम हो जाती है। शहर की तुलना में ग्रामीण महिलाएं खुद के स्वास्थ्य खासकर आंखों को लेकर बेपरवाह होती हैं।
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बीमारी और गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक आहार न लेना सबसे बड़ी भूल
मोतियाबिंद या अन्य तकलीफ की अनदेखी के कारण आंखों की रोशनी 60 फीसदी तक कम हो जाती है। औरों की फ्रिक और देखभाल में खुद की खुशियों और स्वास्थ्य को भी हाशिए पर धकेलने वाली महिलाएं तेजी से बीमारी की चपेट में आ रहीं हैं। कुछ स्वास्थ्य समस्याएं महिलाओं को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, मेनोपॉज, प्रेगनेंसी और मूत्रमार्ग संक्रमण (यूटीआई) से जुड़ी समस्याएं महिलाओं को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। महिलाओं में यौन संचारित रोगों का नुकसान भी अधिक होता है। हृदय रोग महिला और पुरुष दोनों को प्रभावित करता है। मगर महिलाओं में हृदय रोग की संभावना पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है। महिलाओं में गठिया की समस्या ज्यादा होती है। महिलाएं अवसाद और चिंता से ज्यादा घिरी रहती हैं। प्रसव के बाद अवसाद बढ़ता है।
महिलाओं में स्ट्रोक के मामले अधिक रहते हैं। क्योंकि गर्भनिरोधक दवाओं, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और गर्भावस्था के चलते स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। अधिक तनाव से बांझपन होने का खतरा भी बढ़ जाता है। हर साल लगभग लाखों महिलाएं स्तन और सर्वाइकल कैंसर के चलते मौत का शिकार हो जाती हैं। अगर इन कैंसर का सही समय से पता चल जाए तो ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। प्रेगनेंसी एक जटिल प्रक्रिया है। यूटीआई और बैक्टीरिया संक्रमण गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित नहीं करते है। मगर ध्यान न देने पर इनके हानिकारक परिणाम होते हैं। जागरूकता की कमी के चलते मां के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल और धूम्रपान के चलते हृदय रोग का खतरा बढ़ रहा है। युवा महिलाओं में एचआईवी का खतरा अधिक रहता है।
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इसी तरह एचपीवी या अन्य यौन संचारित रोग, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और कम उम्र में स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े हुए अहम मुद्दे हैं। एनीमिया एक ऐसी बीमारी है जो महिलाओं में बहुत ज्यादा होती है। इसमें खून की कमी होती है। महिलाओं में त्वचा का पीला पड़ना, चक्कर आना, थकान, सांस फूलना, सिर घूमना, दिल की धड़कन तेज होती जाती है। एनीमिया से बचने के लिए डाइट में आयरन, विटामिन सी और फोलेट से भरपूर भोजन का सेवन करना चाहिए। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओडी) का शिकार महिलाएं ज्यादा होती हैं। महिलाओं में यह समस्या हार्मोनल इम्बैलेंस की वजह से होती है।
इस बीमारी में महिलाओं का पीरियड साइकिल बिगड़ जाता है। मोटापा बढ़ने पर यह परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है। हेयर फॉल , स्किन पर पिम्पल्स और बढ़ता मोटापा इसके सामान्य लक्षण हैं। महिलाओं में मेनोपॉज की शुरुआत 42 वर्ष के बाद शुरू होता है। यह उनकी ज़िंदगी का ऐसा पड़ाव होता है, जिससे हर महिला को सामना करना पड़ता है। मेनोपोज़ के दौरान महिलाओं के परियड्स बंद हो जाते हैं। मेनोपॉज की वजह से फीमेल हार्मोन एस्ट्रोजन काफी कम हो जाता है। जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है उनकी हड्डिया कमजोर होने लगती हैं। हड्डियों की मजबूती बनाए रखने के लिए कैल्शियम और आयरन का सेवन करना चाहिए। धूप के साथ दूध, दही या पनीर कैल्शियम की कमी को पूरा करन के लिए बेहतरीन सोर्स माने जाते हैं। Noida News
इन बातों का रखें ध्यानः
● परिवार व बच्चों को लेकर तनाव कम लें
● भोजन में पौष्टिक आहार को शामिल करें
● कम से 30 मिनट व्यायाम या वॉक करें
● कोई दवा खाती हैं तो नियमित रूप से लें
● अपनी तकलीफ को कतई छिपाएं नहीं
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