Wednesday, 19 March 2025

इदन्न मम यानि कि मेरा कुछ भी नहीं, यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ भाव है

Ghaziabad News : इदन्न मम यह मंत्र आपने जरूर सुना होगा। इदन्न मम का प्रयोग यज्ञ हवन हवन करते समय…

इदन्न मम यानि कि मेरा कुछ भी नहीं, यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ भाव है

Ghaziabad News : इदन्न मम यह मंत्र आपने जरूर सुना होगा। इदन्न मम का प्रयोग यज्ञ हवन हवन करते समय किया जाता है। आमतौर पर सनातन कर्मकांड के तरीके से यज्ञ हवन करने में इदन्न मम मंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है। आर्य समाज द्वारा बताई गई विधि के अनुसार यज्ञ हवन करते हुए इदन्न मम मंत्र का प्रयोग किया जाता है। इदन्न मम का यह छोटा सा मंत्र बहुत बड़ा अर्थ रखता है।

इदन्न मम की भावना से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है

आर्य समाज के पुरोहित तथा विशेषज्ञ इदन्न मम की भावना पर जोर देते हैं। इदन्न मम का अर्थ होता है कि मेरा कुछ नहीं सब उसका है। अर्थात इस मंत्र को बोलते समय यह भावना रहती है कि इस संसार में प्राणी मात्र का कुछ भी नहीं है। संसार में जो कुछ भी है वह सब कुछ ईश्वर का है। इदन्न मम बोलकर यज्ञ में आहुति देने का अर्थ है कि मेरे पास जो कुछ भी है वह सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ है। इसलिए सब कुछ ईश्वर को समर्पित करता हूं।

इदन्न मम को लेकर क्या कहते हैं धर्मगुरु

इदन्न मम की भावना से दुनिया के सभी धर्म गुरु सहमत हैं। सभी का कहना है कि इस संसार में जो भी कुछ मौजूद हैं वह सभी कुछ केवल ईश्वर का है। इंसान को जो भी कुछ मिला है वह सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ प्रसाद है। भारत के हर घर में एक प्रसिद्ध ”आरती ओम जय जगदीश हरे ” गाई जाती है। इस आरती में भी कहा जाता है कि “‘ तेरा तुझको अर्पण क्या लागे है मेरा ”। आरती की इस भावना में भी इदन्न मम की भावना पूरी तरह से समाई हुई है। भारत के प्रत्येक धर्म गुरु की शिक्षा यह है कि जो भी कुछ संसार में है वह सब कुछ ईश्वर का ही है तो है यानी इदन्न मम की भावना से सभी धर्मगुरु सहमत हैं ।

इदन्न मम पर क्या कहना है आर्य समाज का

इदन्न मम वाली भावना का प्रचार प्रसार आर्य समाज खूब करता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही सबसे पहले इदन्न मम का उच्चारण किया था। इस विषय में आर्य समाज की ज्ञाता तथा वैदिक विदुषी रजनी चुघ का कहना है कि यह मेरा नहीं है अपितु सब ईश्वर का है, जैसे जैसे यह भावना बढ़ेगी वैसे ही ईश्वर के प्रति समीपता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि जीवन में मोक्ष का मार्ग व अमरता का साधन ज्ञान,धर्म और धर्माचरण है। इसलिए यह विचार सदैव रखना चाहिए कि इस संसार में मेरा कुछ नहीं है। हमारे ऋषियों द्वारा बनाया गया विधान सर्वश्रेष्ठ है वैदिक वांग्मय के अनुसार इर्षाद्वेष लोभमोह आदि बंधनों से दूर रहना ही जीवन है। संध्या यज्ञ में बार बार इदन्न मम शब्द आता है जिसका भाव यह सब द्रव्य मेरे नहीं हैं। बल्कि ईश्वर के हैं। इसी कड़ी में आर्य समाज के जानकार राजश्री यादव कहते हैं कि व्यक्ति को निर्लेप भाव से संसार में रहना चाहिए। इदन्न मम हमें इसी बात की शिक्षा देता है। Ghaziabad News

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